Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 73


अच्छी अच्छी मानिनीयाँ भी चुदवाने को बेताब हुई?
पहले तो पति से ही चुदती थी, गैरों पर क्यों मोहताज हुई?
दवा जो वफ़ा का करते थे जो ढोल वफ़ा का पीटते थे।
क्यों वह झुक कर डॉगी बन लण्ड लेने को सरताज हुई?
जस्सूजी बिस्तर पर लेटे हुए थे। सुनीता जस्सूजी के ऊपर उनका लण्ड अपनी चूत में लिए हुए जस्सूजी को प्यार भरा चुंबन कर रही थी। अपनी गाँड़ थोड़ी ऊपर की और उठा कर वह सुनीलजी यानी अपने पति से अपनी गाँड़ के छिद्र में चिकना तेल या ऑइंटमेंट डलवा कर उसे स्निग्ध करवा रही थी। सुनीलजी का लण्ड पहले जितना कडा तो रहा नहीं था फिर भी सुनीलजी का मन पहली बार अपनी बीबी सुनीता की गाँड़ मारने के लिए मचल रहा था।
अपनी बीबी की गाँड़ में अच्छी तरह चिकनाहट भरा तेल डालने के बाद सुनीलजी ने अपना लण्ड अपने हाथ में पकड़ा और उसे अपनी बीबी की गाँड़ के छिद्र के द्वार पर टिका दिया और एक हल्का धक्का मारा। एक तो सुनीलजी का लण्ड ढीला पड़ गया था। दूसरे वह तेल से लबालब लिपटा हुआ था सो एकदम सरसराता हुआ वह सुनीता की गाँड़ में घुस गया।
इतनी आसानी से अपना लण्ड घुस गया यह देख सुनीलजी ने अपने पेंडू से एक धक्का मारा और अपना पूरा लण्ड सुनीता की गाँड़ में घुसा दिया। सुनीता की गाँड़ की सुरंग उतनी फैली हुई तो थी नहीं। सुनीता को अचानक एक टीस उठी और दर्द हुआ। वह कुछ लम्हों के लिए सेहम गयी। सुनीता चीखी तो नहीं पर वह उस दर्द को बर्दाश्त करने के लिए अपनी आँखें भींच कर कुछ देर जस्सूजी के ऊपर लेटी हुई पड़ी रही।
उस समय सुनीता की चूत में जस्सूजी का लण्ड और उसकी गाँड़ में अपने पति का। सुनीता ने अपनी जिंदगी में पहली बार दो मर्दों का लण्ड एक साथ लिया था। यह अनुभव किसी भी महिला के लिए बड़ा ही अजीब या अनूठा होता है और शायद काम ही महिलायें ऐसा अनुभव करना चाहेंगी। सुनीता के उस दिन दो पति हो गए। वह दो पति की पत्नी हो गयी। और दोनों ही पति सुनीता को एक साथ चोद रहे थे।
सुनीलजी ने पीछे से धीरे धीरे अपनी बीबी की गाँड़ चोदनी शुरू की। सुनीता भी दर्द कुछ कम होने के बाद बेहतर महसूस कर रही थी। पहली बार किसी लण्ड का अपनी गांड में अनुभव कर सुनीता कुछ अजीब सा महसूस कर रही थी। उसे महसूस हो रहा था की उसके बदन में दो लण्ड एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे। बिच में मात्र त्वचा की पतली सतह ही थी।
सुनीलजी ने धीरे धीरे अपनी बीबी की गाँड़ में अपना लण्ड हलके हलके ठोकना शुरू किया। जस्सूजी निचे से और सुनीलजी ऊपर से और बेचारी सुनीता दो हट्टे कट्टे मर्दों के बिच में पिचकी हुई थी। पर उसे बेतहाशा उन्मादक उत्तेजना और रोमांच महसूस हो रहा था। सिर्फ इस लिए नहीं की वह दो लण्ड से एक साथ चुदवा रही थी, पर इस लिए भी की उसे आज अपने दोनों मर्दों की एक छिपी सी विचित्र सी इच्छा या लालसा पूरी करने का मौक़ा मिल रहा था और साथ साथ में उसे अपने दो प्रेमी जो उस पर जान छिड़कते थे उन्हें एक साथ प्यार करने का मौक़ा मिल रहा था।
अपने पति का लण्ड पहेली बार गाँड़ में ले ने से उसे काफी दर्द तो हुआ, पर वह आज वह दर्द सहने के लिए तैयार थी। सुनीता को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके पेट के निचले वाला हिस्सा पूरी तरह से कोई ठोस सामान से भर गया हो। उसे ऐसे लगा जैसे वह गर्भवती हो। उसके पेट में एक साथ दो कड़े मोटे लण्ड घुस रहे थे निकल रहे थे।
दर्दनाक होने के बावजूद सुनीता को अपनी चूत और गाँड़ एक साथ दो लण्ड से चुदवाना अच्छा लगा, चूँकि वह उसके प्रेमियों के थे। सुनीलजी अपना लण्ड धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहे थे जब की जस्सूजी ने अपनी चोदने की रफ़्तार अच्छी खासी बढ़ा दी थी। सुनीता को दोनों मर्दों के एक एक धक्के से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती थी।
सुनीता अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रही थी। उसका बदन जैसे एक नयी ऊंचाई को छू रहा था। उसके हॉर्मोन्स और उसका स्त्री रस उसकी चूत में से रस की धारा समान रिस रहा था। उसके दिमाग में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था। सुनीता की सांस फूल रही थी। ना चाहते हुए भी उसके मुंह से रोमांच के मारे चीत्कारियाँ निकल जाती थीं।
सुनीता की चूत में अचानक मचलन बहुत ज्यादा बढ़ गयी। वह अपने बदन पर नियत्रण नहीं कर पा रही थी। जस्सूजी की फुर्तीली चुदाई और सुनीलजी की गाँड़ में लण्ड से चुदाई के कारण सुनीता अपना आपा खो रही थी। उसका दिमाग घूम रहा था। सुनीता ने जस्सूजी को अपनी बाँहों में कस के पकड़ा और बोली, “जस्सूजी मुझे खूब चोदो। आज मैं आप दोनों से खूब चुदवाना चाहती हूँ। पता नहीं आगे यह मौक़ा मिले या ना मिले।
यह कहते ही सुनीता के दिमाग और मन में एक गजब का धमाका सा हुआ और “हाय राम….. ” कह कर सुनीता झड़ पड़ी।
जस्सूजी को भी सुनीलजी का लण्ड उनके लण्ड से रगड़ खाता हुआ महसूस हो रहा था। दोनों मर्दों के लिए भी यह अनुभव कोई चमत्कार से कम नहीं था। कहाँ एक सेना का विशिष्ट सम्मान्नित पदाधिकारी और एक अति विशिष्ट पत्रकार और कहाँ एक सम्मानित गृहिणी महिला। पर तीनों प्यार के एक अजीब से फितूर में मग्न उस दिन सुनीता से चिपके हुए थे और ऐसी प्यार भरी हरकत कर रहे थे जिसके बारे में शायद उन्होंने सोचा तक नहीं था। तीनों के मन में कुछ अजीब से तरंग लहरा रहे थे।
जस्सूजी ने अपना धैर्य सम्हाले रक्खा था पर अब इस नए अनुभव की उत्तेजना से वह जवाब देने लगा। अब वह अपने वीर्य पर काबू नहीं रख पा रहे थे। सुनीता का जैसे छूट गया की जस्सूजीका वीर्य का फव्वारा भी सुनीता की चूत में गरम गरम लावा जैसे चारों तरफ फ़ैल रहा हो और अपनी गर्मी से पूरी गुफा की सुरंग को गर्माता हुआ चूत की गुफा में जगह ना होने के कारण सुनीता चूत के बाहर निकल रहा था।
यह दृश्य देखते ही सुनीता के पति सुनीलजी भी अपने आप पर कण्ट्रोल ना रख पाए और पिछेसे सुनीता को चिपकते हुए, “सुनीता, मैं तेरे अंदर ही अपना माल निकाल रहा हूँ। ” कह कर उन्होंने भी अपना सारा माल सुनीता की गाँड़ की सुरंग में निकाल दिया।
पहली बार सुनीता ना सिर्फ दो मर्दों से एक साथ चुदी बल्कि दो मर्दों का माल भी उसकी चूत और गाँड़ में डाला गया। सुनीता की चूत और गाँड़ दोनों में से ही उसके पति और प्रियतम के वीर्य की मलाई बाहर निकल रही थी। सुनीता की बच्चे दानी में जस्सूजी का वीर्य जा चुका था। पर क्या वह सुनीता के अण्ड से मिलकर फलीभूत हो पायेगा? क्या सुनीता जस्सूजी का बच्चा अपने गर्भ में ले पायेगी? कोई भी सावधानी के बिना जस्सूजी से काफी अच्छी तरह से चुदवाने के कारण उसके मन में यह प्रश्न उठ रहा था। यह सवाल सुनीता के मन में अजीब सी मचलन पैदा कर रहा था।
सुनीता की मन की ख्वाहिश थी की उसे जस्सूजी के वीर्य से गर्भ धारण हो क्यूंकि वह चाहती थी की उसका बच्चा एक दिन देश की सेवा में ऐसे ही लग जाए जैसे जस्सूजी लगे हुए थे। दुसरा आज नहीं तो कल उसे अपने घर में शिफ्ट होना था। तब वह जस्सूजी से दूर हो सकती थी। तो वह अपने बच्चे को देख कर ही जस्सूजी को याद कर लिया करेगी।
साथ साथ में सुनीता को एक भरोसा भी था। अगर उस दिन उसे जस्सूजी के वीर्य से गर्भ धारण नहीं पायी तो भी बाद में भी मौक़ा तो मिलना ही था। सुनीता ने अपने पति को स्पष्ट कह दिया था की अगर वह जस्सूजी से एक बार चुदवायेगी तो वह आखरी बार नहीं होगा। फिर वह जस्सूजी से बार बार चुदवाना चाहेगी। तो सुनीलजी को उसे वह आझादी देनी पड़ेगी। सुनीता के पति सुनीलजी को उसमें कोई आपत्ति नहीं थी।
सुनीता के पति सुनीलजी भी तो ज्योति को बार बार चोदने के सपने देख रहे थे। ज्योति को एक बार चोदने से उनका मन नहीं भरा था। जिस जोश के साथ सुनीलजी से ज्योति ने चुदवाया था वह देखने लायक था। सुनीलजी से उनकी अपनी पत्नी सुनीता ने ऐसे कभी नहीं चुदवाया था। इसी लिए तो कहते हैं की “घरकी मुर्गी दाल बराबर।”
सुनीलजी, जस्सूजी और साथ साथ में सुनीता के झड़ने से अब तीनों थकान महसूस कर रहे थे। सुनीता की चूत इतनी जबरदस्त चुदाई से सूज गयी थी और उसे दर्द भी महसूस हो रहा था। चुदवाते समय उन्माद में दर्द महसूस नहीं हो रहा था। पर जब चुदाई ख़तम करके सब एक दूसरे से थोड़ा हट के लेटे तो सुनीता को दर्द महसूस हुआ।
सुनीता उठकर अपने कपडे लेकर बाथरूम में गयी। उसने अपनी चूत और आसपास के सारे दाग और वीर्य के धब्बों को साफ़ किया। अपने बदन पर ठीक तरह से साबुन लगा कर वह नहायी। फिर अपने कपडे लेकर तौलिया लपेट कर वह बाहर निकली तो सुनीलजी नंगधडंग खड़े बाथरूम के बाहर उसका इंतजार कर रहे थे। सुनीता को उन्होंने अपनी बाँहों में लपेट लिया और उसे चुम्बन करते हुए वह सुनीता के कानों में बोले, “बीबी, मैं आपका बहुत आभारी हूँ की आपने मेरे मन की ख्वाहिश आज पूरी की।”
सुनीता ने अपने पति के होँठों अपने होँठ चुसवाते हुए उसी धीमे आवाज में कहा, “अब आप भी ज्योतिजी को चोदने के लिए आझाद हो। अब हम दो कपल नहीं। अब हम एक जोड़ी हैं। क्या अब हम जो जब जिससे चाहे सम्भोग कर सकते है ना?”
सुनीलजी ने सुनीता से कहा, “हाँ, बिलकुल। अब तुम्हें जस्सूजी से चुदवाने में कोई रोकटोक नहीं है।” यह कह कर सुनीलजी फ़टाफ़ट बाथरूम में घुसे। सुनीता तौलिया लपेटे हुए आगे बढ़ी और जस्सूजी के पास पहुंची। जस्सूजी सुनीता को तौलिये में लिपटे हुए देख रहे थे। सुनीता अर्धा बदन छिपाए हुए तौलिये में शर्माते हुए उनके सामने खड़ी थी।
जब सुनीता जस्सूजी के सामने आ खड़ी हुई, तो सुनीता ने देखा की सुनीता को तौलिये में लिपटे हुए आधी नंगी देख कर जस्सूजी ढीला लण्ड फिर खड़ा हो गया। सुनीता हैरान रह गयी की उसकी इतनी भारी चुदाई करने के बाद और तीन बार झड़ने के बाद भी जस्सूजी का लण्ड वैसे का वैसा ही खड़ा हो गया था।
सुनीता घबरा गयी की कहीं जस्सूजी का फिर उसे चोदने का मन ना हो जाए। वह फिर से जस्सूजी से चुदवाना तो चाहती थी, पर उस समय उसकी चूत सूजी हुई थी। जस्सूजी ने अपनी बाँहें लम्बी कर सुनीता को अपने आहोश में ले लिया। सुनीता ने भी अपने होँठों को आगे कर जस्सूजी के होँठों से मिला दिए। दोनों प्रगाढ़ चुम्बन में जुट गए। सुनीता का तौलिया वैसे ही खुल गया। जस्सूजी सुनिनता के दोनों गुम्बजों को अपनी हथेलियों में भर कर उन्हें दबाकर अपना उन्माद व्यक्त करने लगे।
सुनीता को लगा की जस्सूजी एक बार फिर उसे चोदने के लिए तैयार हो रहे थे। तब सुनीता ने अपने मन को सम्हालते हुए जस्सूजी की बाँहें धीरे से और बड़े प्यार से हटा कर कहा, “मेरे प्रियतम, अभी नहीं। मुझे दर्द हो रहा है। पर अब तुम जब चाहोगे मैं तुम्हारे पास दौड़ी चली आउंगी। जितनी व्याकुलता आपको है उससे कहीं ज्यादा मुझे भी है। मैं अब तुम्हारी हो चुकी हूँ और तुम जब चाहो मुझे भोग सकते हो।”
जस्सूजी ने अपनी आँखें सुनीता की आँखों में डालकर कहा, “प्यारी सुनीता, आज मैं तुमसे वादा करता हूँ की आज के बाद मैं तुम्हें और ज्योति को छोड़कर किसी भी औरत की और बुरी नजर से नहीं देखूंगा। आज तुमने मेरी सारी इच्छाएं मेरी सारी मनोकामना पूरी कर दी हैं। मुझे इससे और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। और हाँ, अब हमें यहां से निकले के लिए तैयार होना है।”
यह कह कर जस्सूजी धीरे से सुनीता से थोड़ा हट कर खड़े हुए। उनके खड़े होते ही उनका खड़ा लण्ड हवा में झूलने लगा। सुनीता ने झुक कर उसे बड़े प्यार से चूमा और और उसका अग्र भाग अपने मुंह में लेकर उसे चाटने लगी। सुनीता जस्सूजी के लण्ड को चाटती हुई ऊपर नजरें उठाकर जस्सूजी की और देखने लगी की अपना लण्ड चुसवा कर जस्सूजी के चेहरे पर कैसे भाव दिख रहे थे।
जस्सूजी अपनी आँखें बंद कर सुनीता से अपने लण्ड को चुसवाने का मजा ले रहे थे।
पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!
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