Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 64


आयेशा ने सुनीलजी का हाथ पकड़ा और साथ में अपनी अपनी बन्दूक सम्हाले दोनों चल पड़े।
चलते हुए रास्ता दिखाते आयेशा ने सुनील जी का हाथ पकड़ा और बोली, “ओ परदेसी! आज तुझसे प्यार कर के तूने मुझे सही मायने में एक औरत होने का एहसास दिलाया।
एक औरत जब अपने मन पसंद मर्द से चुदवाती है ना, तो वह समझती है की उसका जीवन आबाद हो रहा है। यह तुम मर्द लोग नहीं समझ सकते। एक औरत जब मर्द से चुदवाती है, तो यह मत समझो की वह सिर्फ अपने बदन का एक हिस्सा मर्द से मिलाती है…
औरत मर्द को ना सिर्फ अपनी चूत, बल्कि सब कुछ दे देती है। हालांकि में मर्द नहीं हूँ पर जो मैंने मर्दों को समझा है उस की बुनियाद पर मैं कह रही हूँ की मर्द को चुदाई के समय औरत की चूत और अपने लण्ड के अलावा कुछ दिखता नहीं है। उन्हें औरत के जज्बात से कोई मतलब नहीं होता…
तुम उन मर्दों में से नहीं हो। तुमने मेरे लिए अपनी जान को खतरे में डाल कर और वह बेईमान फौजी के बिलकुल करीब जाकर अपने हाथों से उसका काम तमाम किया। तुमने मेरे जज्बातों की इज्जत की। मैं तुम्हारी उम्रभर की शुक्र गुजार हूँ। जैसा की मैंने कहा था अगर मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बन पायी तो यह मेरे लिए यह बड़े फक्र की बात होगी, चाहे मुझे इसके लिए हमारे समाज से कितनी ही जिल्लत क्यों ना उठानी पड़े।”
सुनीलजी ने आयेशा की गंवार भाषा में भी एक सच्चा प्यार देखा तो वह गदगद हो उठे। उन्होंने आयेशा को अपनी बाँहों में लिया और दोनों एक प्यार भरे गहरे चुम्बन में जुट गए। अँधेरा छटने वाला था। समय कम बचा था। सूरज निकलते ही पकडे जाने का डर था।
आयेशा उस क्षेत्र को भली भाँती जानती थी। उसने एक शार्ट कट जो पहाड़ी के रास्ते से जाता था उस से हिन्दुस्तान की सरहद में घुसने का फैसला किया।
सुनील जी और आयेशा दोनों पहाड़ों की चट्टानों के पीछे अपने को छुपाते हुए जब ऊंचाई पर पहुंचे तो जमीन पर रेंगते हुए धीमी गति से आगे बढ़ रहे थे, ताकि दुश्मनों की नजर में ना आएं।
आयेशा को यह लग रहा था की उसे परदेसी से अलग होना पडेगा। इसलिए वह थोड़ी इमोशनल हो रही थी और मौक़ा मिलने पर सुनीलजी के हाथ को ले कर चूमने लगती थी। जब वह दोनों पहाड़ी के ऊपर पहुंचे, तब आयेशा ने सुनीलजी को मुस्कुराते हुए देखा और कहा, “देखो परदेसी, वह जो कुटिया दिख रही है, वह हिन्दुस्तान की सरहद में है।”
वह दोनों को निकले हुए करीब एक घंटा हुआ होगा की अचानक उनके ऊपर फायरिंग शुरू हो गयी। फायरिंग दुश्मनों की दिशा से आ रही थी। लगता था जैसे गोली बारी उनको निशाने में रख कर नहीं चलायी जा रही थी।
क्यूंकि गोली बड़ी दूर से आ रही थी और अंधाधुंध फायरिंग हो रही थी। शायद दुश्मन की सेना हिन्दुस्तान की सरहद के अंदर कुछ आतंकियों को भेज रही थी और उनको कवर करने के लिए गोलियां चलाई जा रहीं थीं।
आयेशा इतनी भयानक फायरिंग से घबरा कर सुनीलजी की बाँहों में आगयी थी। सुनीलजी की समझ में नहीं आ रहा था की फायरिंग कहाँ से आ रही थी। तभी उन्होंने एक आतंकवादी को कुछ दुरी पर देखा।
आतंक वादी वहाँ छुपने की कोशिश कर रहा था। लगता था की उसके पास भारी बारूद और मशीनगन थी। सुनीलजी ने बिना कुछ सोचे समझे, इससे पहले की वह उनको मार दे अपनी बन्दुक उठाई और निशाना लगा कर गोली छोड़ी।
सुनीलजी को बड़ा आश्चर्य हुआ जब वह आतंकवादी एकदम झुककर गिर पड़ा और तड़फड़ाने लगा। उनकी गोली ठीक निशाने पर लगी थी। जिंदगी में सुनीलजी ने पहेली ही गोली चलाई थी और ना सिर्फ वह ठीक निशाने पर लगी पर उनकी गोली से एक आतंकवादी को भी उन्होंने मार गिराया।
सुनीलजी ने सूना की आयेशा पहले ड़र के मारे सुनीलजी की और देख रही थी। पर जब उन्होंने एक आतंकवादी को मार गिराया तो वह अनायास ही ताली बजाने और नाचने लगी। आयेशा भाग कर आयी और सुनीलजी के गले लिपट गयी। दोनों प्रेमी कुछ देर तक ऐसे ही क दूसरे के बाहुपाश में जुड़े रहे।
अचानक की एक गोली की सनसनाहट सुनी गयी, आयेशा के मुंह से चीख निकली और आयेशा बल खा कर सुनीलजी के ऊपर गिर पड़ी। उसकी छाती में से खून का फव्वारा छूट पड़ा जिससे सुनीलजी के कपडे खून से लाल लाल हो गए। सुनीलजी वहाँ ही लड़खड़ा कर गिर पड़े। आयेशा की साँस फूल रही थी। उसे शायद फेफड़े में गोली लगी थी।
अचानक एक और गोली सुनीलजी की बाँहों में जा लगी। दुसरा खून का फव्वारा सुनीलजी की बाँहों में से फुट पड़ा। आयेशा ने जब सुनीलजी की बाँहों में से खून निकलते हुए देखा तो वह अपना दर्द भूल गयी और अपने कुर्ते का एक छोर फाड़ कर उसने सुनीलजी को बाँहों पर पट्टी बाँध दी। सुनीलजी की बाँहों में काफी दर्द हो रहा था।
इस तरफ आयेशा की साँसे टूट रही थीं। आयेशा ने सुनीलजी का हाथ पकड़ा। उससे ठीक से बोला नहीं जारहा था। फिर भी आयेशा ने कहा, “परदेसी, लगता है हम यहां तक ही हमसफर रहेंगे। लगता है मेरा सफर यहां खत्म हो रहा है। हम राहों में चलते चलते मिले और एक रात के लिए ही सही पर हम हम बिस्तर बने। मुकद्दर तो देखिये। मैंने सोचा था की शायद तुम मुझे छोड़ कर अपने वतन को चले जाओगे। पर हुआ उलटा ही।
आज यह सफर में हम तुम्हें छोड़ कर जा रहे हैं। अल्लाह तुम्हारा इकबाल बुलंद रखे। और हाँ, तुम छुपतेछिपाते निचे वह कुटिया के पास पहुँच जाना। वहाँ डॉ. खान हैं। बड़े ही भले आदमी हैं। वह तुम्हारा इलाज कर देंगे। तुम जरूर वहाँ जाना।” यह कह कर आयेशा ने आखरी सांस ली और सुनीलजी की हाथ में से उसका हाथ छूट कर निचे गिर पड़ा।
सुनीलजी अपने आपको मजबूत ह्रदय के मानते थे। पर आयेशा का हाथ जब उनके हाथ के निचे गिर पड़ा तो उन्हें ऐसा सदमा लगा की जैसे उनका बड़ा ही करीबी कोई चला गया हो।
एक ही रात की बात थी जब उनका और आयेशा का मिलन हुआ। पर उनको ऐसा लगा जैसे सालों का साथ हो। पर एक ही पल में वह साथ छूट गया।
सुनीलजी अपने आपको रोक नहीं पाए और जोर शोर से फफक फफक कर रोने लगे। उनको रोते हुए सुनने वाला और सांत्वना देने वाला कोई नहीं था।
सुनीलजी एक चट्टान के पीछे आयेशा का बदन घसीट कर ले गए। फायरिंग जारी था और रुकने का नाम नहीं ले रहा था। सुनीलजी का वहाँ दुश्मनों की सरहद में रुकना खतरे से खाली नहीं था। कैसे भी कर उन्हें हिन्दुस्तान की सरहद में दाखिल होना जरुरी था। उनके पास आयेशा की बॉडी को दफनाने का समय ही नहीं था।
सुनीलजी ने आयेशा की बॉडी को खिसका कर चट्टान के पीछे ले जाकर कुछ डाल और पत्तों से उसे ढक दिया। फिर दिए धीरे वह उस कुटिया की और जमीन पर रेंगते हुए चल पड़े। कुछ देर चलने के बाद घनी झाडी में उन्हें वही नदी दिखाई दी। बिना सोचे समझे सुनील उसमें कूद पड़े। उतनी ही देर में उनपर फायरिंग होने लगी।
सुनीलजी ने पानी में डुबकी लगा कर गोलियों से बचने फुर्ती से पानी के अंदर तैरने लगे। पानी का बहाव तेज था। पहाड़ों से पानी निकल कर निचे की और फुर्ती से बह रहा था। बहाव इतना तेज था और पानी इतना गहरा था की कोई भी तैराक उस में कूदने का साहस नहीं करेगा।
यही जगह थी जहां पर सरहद में कुछ झरझरापन था। यहाँ सैनिक निगरानी कुछ कमजोर थी। इसका फायदा दुशमन के फौजी और आतंकवादी अक्सर उठाते रहते थे।
सुनीलजी की बाँह का घाव अब दर्द देने लगा था। वह थके हुए थे और उनको ऐसा लग रहा था की कहीं वह पानी में बेहोश ना हो जाएँ। जैसे तैसे हाथ पाँव मारते हुए वह निचे की और तेजी से पानी में बह रहे थे। जिस दिशा में वह जा रहे थे उन्होंने अंदाज लगाया की वह हिन्दुस्तानी सरहद में दाखिल हो चुके हैं। गोलियों की फायरिंग भी बंद हो चुकी थी।
सुनीलजी ने अपना सर पानी से बाहर निकाला और देखा की दूर दूर में वह कुटिया नजर आ रही थी। सुनीलजी तैरते हुए नदी के किनारे आ गए। उनके बाँहों में सख्त दर्द हो रहा था। उनको ट्रीटमेंट की जरुरत थी। वह लुढ़कते हुए पानी के बाहर निकले। पर बाहर निकल कर थोड़ा चलने पर ही ढेर होकर गिर पड़े। थोड़ी देर बाद जब वह होश में आये तो पाया की वह तो वहीं नदी के किनारे लेटे हुए थे और कुछ मछवारे उनको ऊपर से देख रहे थे।
उनमें से एक मछवारे ने उन्हें हाथ का सहारा देकर उठाया। उस मछवारे ने सुनीलजी से कहा, “तुम्हारे घाव से खून निकल रहा है। इस तरफ डॉ. खान का शफाखाना है। वहाँ जाइये और अपना इलाज कराइये। इंशाअल्लाह ठीक हो जाएगा।”
सुनीलजी वहाँ से लड़खड़ाते लुढ़कते हुए डॉ. खान के शफा खाने पर पहुंचे और वहाँ पहुँचते ही उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई। उनके पाँव से जमीन जैसे खिसक गयी जब जस्सूजी ने डॉ. खान के शफाखाने का दरवाजा खोला।
सुनीलजी का हाल देख कर जस्सूजी बड़े ही आश्चर्य और आघात से सुनीलजी को देखने लगे। सुनील जी के सारे कपडे एकदम भीगे हुए पर खून के लाल धब्बों से पूरी तरह रंगे हुए थे। उनकी एक बांह से खून निकल रहा था। जस्सूजी ने फ़ौरन सुनीलजी को अंदर बुला लिया और दरवाजा बंद करते बुए पूछा, “क्या हुआ सुनीलजी? यह क्या है…….?”
इससे पहले की जस्सूजी अपनी बात पूरी करे, सुनीलजी जस्सूजी से लिपट गए और फफक फफक कर रो पड़े। उनकी आँखों से आंसूं रुकने का नाम ही नाहीं ले रहे थे। जस्सूजी ने उनको अपना कमीज निकाल ने के लिए कहा। यह सब आवाजें सुनकर बिस्तरे पर नंगी सो रही सुनीता जाग गयी और चद्दर को बदन पर लपेटे बिस्तरे में बैठ गयी। उसने अपने पति का खून में लथपथ हाल देखा तो सुनीता की तो जान ही निकल गयी।
सुनीता को होश ही नहीं रहा की उसने बदन पर कोई भी कपड़ा नहीं पहना था। जब सुनीता बिस्तर से उठ खड़ी हुई तब उसे अपनी नग्न हालात का अंदाजा लगा। फ़ौरन उसने बिस्तर से ही चद्दर उठाई, अपने आपको ढका और भागती हुई आकर जार जार रोते हुए अपने पति से लिपट गयी। सुनीलजी की आँखों से आंसूं की गंगा जमुना बह रही थी। जस्सूजी ने उनको गले लगा कर सुनीलजी को काफी सांत्वना देनेका प्रयास किया।
सुनीता और जस्सूजी ने पूछा की क्या सुनीलजी को कहीं घाव है? तब सुनील जी ने अपने कमीज की आस्तीन उठाकर बाँह पर लगे हुए घाव को दिखाया।
जस्सूजी भाग कर डॉ. खान के एक अलमारी में रखे हुए घाव पर पट्टी बगैरह लगा ने वाले सामान को उठा लाये और उन्होंने और सुनीता ने उनकी मरहम पट्टी की।
सुनीता भी अपने पति से गले लग कर उनको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। कुछ समय बीतने पर जब सुनीलजी कुछ शांत हुए तो उन्होंने अपनी कहानी जस्सूजी और सुनीता को बतानी शुरू की।
सुनीलजी ने कहा, “जस्सूजी, मैंने आज तक मेरी जिंदगी में पटाखा फोड़ने वाली बन्दुक भी नहीं चलायी थी। पर आज रातको ना सिर्फ मैंने आपका असली फौजी रूप देखा जिसमें आपने एक हट्टेकट्टे आदमी को गोली से भून दिया पर मैंने अपने हाथों से दुश्मन के एक फौजी को एक कटार से मौत के घाट भी उतार दिया। उतना ही नहीं, कुछ ही देर के बाद मैंने एक आतंकवादी को भी मेरी बन्दुक से मार गिराया। मेरे सामने मैंने मेरी ही करीबी महिला साथीदार को दुश्मन की गोलियों से छलनी होते हुए देखा।
सुनीलजी की बात सुन जस्सूजी और सुनीता दोंनो चकमें आ गए। सुनीलजी की महिला साथीदार? वह कौन थी? जस्सूजी और सुनीता पहले सुनीलजी की और फिर एक दूसरे की और प्रश्नात्मक नजर से देखने लगे।
सुनीलजी ने बताया की कैसे वह उस रात को जस्सूजी से अलग होने के बाद अँधेरे में चलते चलते नदी किनारे एक गॉंव से कुछ दूर पहुंचे और वहाँ उन्होंने कुछ बन्दुक की फायरिंग की आवाज सुनी।
उसके बाद उन्होंने अपनी सारी कहानी बताई जिसमें की उन्होंने एक दुशमन के मुल्क की लड़की की जान कैसे बचाई और काफी रात तक गुफा में छुपे रहने के बाद जब उस लड़की ने उनसे वादा किया की वह उन्हें सरहद पार करा देगी तब वह दोनों छुपते छुपाते गुफा से बाहर निकले। अचानक ही दुश्मन की और से आये हुए दहशतखोरों ने जब उन्हें देखा तो गोलियां दागनी शुरू कर दीं।
सुनीलजी जी ने भी जवाबी कारवाई करते हुए अपनी बन्दुक से एक आतंक वादी को ठार मार दिया, पर उस फायरिंग में उस लड़की जिसका नाम आयेशा था उसे गोली लगी। वह लड़की ने मरते हुए भी सुनीलजी को डॉक्टर के घर का रास्ता बताया जहां सुनीलजी को सुरक्षा मिलेगी और घाव का इलाज भी होगा।
सुनीलजी थकान से चूर हो गए थे। उनमें बोलने की भी ताकत नहीं थी। उन्होंने देखा की उनकी पत्नी सुनीता जस्सूजी के बिस्तर में नंगी सोई हुई थी। उन्हें समझने में देर नहीं लगी की क्या हुआ होगा। आखिर वह जो चाहते थे वह हुआ। पर उनमें हिम्मत नहीं थी की वह कुछ बोले।
उन्होंने हड़फड़ाहट में कपडे पहने हुए जस्सूजी को देखा और चद्दर में लिपटी हुई अपनी पत्नी सुनीता को भी देखा। पर आगे कुछ बोले उसके पहले वह बिस्तर पर ढेर हो कर गिर पड़े और फ़ौरन खर्राटे मारने लगे।
सुनीता और जस्सूजी एक दूसरे की और देखने लगे। सुनीता ने तुरंत आपने पति के पाँव स गीले जूते निकाले। फिर उनका शर्ट और पतलून भी निकाला। सुनीलजी के सारे कपडे ना सिर्फ भीगे हुए थे पर खून के लाल धब्बों से रंगे हुए और गंदे थे। सुनीता ने अपने पति के सारे कपडे एक के बाद एक निकाले और गरम पानी से कपड़ा भिगो कर अपने पति के पुरे शरीर को स्पंज किया।
इस दरम्यान सुनीलजी गहरी नींद में सोये हुए ही थे। सुनीता ने उन्हें पूरी तरह प्यार से निर्वस्त्र कर दिया और सुनीता और जस्सूजी ने बिस्तर में ठीक तरह स सुला कर और ऊपर से कम्बल बगैरह ओढ़ा दिया।
सुनीलजी को आराम से बिस्तरे में सुलाकर जस्सूजी फारिग हुए थे की डॉ. खान की आवाज उनको दरवाजे के बाहर से सुनाई दी।
डॉ. खान कह रहे थे, “कर्नल साहब, आज वैसे ही जुम्मा है। शफाखाना आज बंद है। प आज के पुरे दिन और रात को आराम करो दुपहर को और शामको मैं आप तीनों के लिए खाना ले कर आऊंगा। आप कल सुबह तक यहां ही रुकिए। आप तीनों ही थके हुए हैं। मैं एक गद्दा और भिजवा देता हूँ।
यह कहानी आगे जारी रहेगी..!
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