घंटों की थकान और नींद की कमी के कारण सुनीता और जस्सूजी दोनों थके हुए तो थे। पर कुछ घंटों के आराम क बाद हालांकि उनकी थकाहट पूरी तरह खत्म तो नहीं हुई थी, फिर भी उनमें इतनी ऊर्जा का संचार ह चुका था की वह दोनों और ख़ास कर सुनीता जस्सूजी के तगड़े लण्ड को और अपनी प्यासी चूत को ज़रा भी आराम करने देना नहीं चाहती थी।
दोनों को एक दूसरे से पहली मुलाक़ात के महीनों के बाद पहली बार ऐसा मौक़ा मिला था जब उनकी महीनों की चाहत पूरी होने जा रही थी। आराम करने का मौक़ा तो आगे चलकर खूब मिलेगा पर क्या पता ऐसे एक दूसरे के नंग्न बदन को इतने प्यार से लिपटने का और एक दूसरे के बदन को इतने एक दूसरे में मिलाने का मौक़ा नाजाने फिर कब मिले? और अगर मिलेगा भी तो इन वादियों और ऐसे खुशनुमा नज़ारे में तो शायद ही मिले।
यह सोच कर दोनों प्रेमी एक दूसरे के बदन को छोड़ना ही नहीं चाहते थे। भगवान् ने भी क्या दुनिया बनायी है? जब आप एक दूसरे को इतना चाहते हो तो एक पुरुष और एक स्त्री अपने प्यार का इजहार कैसे करे? भगवान् ने सेक्स याने चुदाई का एक जरिया ऐसा दिया जिससे वह दोनों एक दूसरे के अंदरूनी उत्कट प्यार को अपने शरीर की जुबान से चुदाई द्वारा प्रकट कर सकते हैं।
समाज ने ऐसे प्यार भरी चुदाई पर कई अलग अलग तरह के बंधन और नियम लाद दिए हैं। पर जब प्यार एक हद को पार कर जाता है तो वह इन नियमों और बंधनों को नहीं मानता और दो बदन सारे वस्त्रों के आवरण को छोड़ कर एक दूसरे के बदन की कमी पूरी करने के लिए एक दूसरे के बदन को अंदर तक मिलाकर (एक दूसरे को चोद कर) इस कमी को पूरी करने की कोशिश करते हैं। और उसे ही प्यार भरा मैथुन कहते हैं। जस्सूजी और सुनीता उस रात ऐसा ही प्यार भरा मैथुन का आनंद ले रहे थे।
जस्सूजी जानते थे की उनके पास अमर्यादित समय नहीं था। इलाका खतरों से खाली नहीं था। हालांकि वह हिन्दुस्तानी सरहद में आ चुके थे फिर भी सरहद के दूसरी और से दुश्मन की फ़ौज कई बार बिना कारण गोली बारी करती रहती थी। उस समय कई अनजान नागरिक उन गोलियों का शिकार भी हो जाते थे। कई जगह सरहद अच्छी तरह पक्की और सुरक्षित नहीं थी। वहाँ से दहशत गर्द अक्सर घुस आते थे और कहर फैला कर वापस अपनी सरहद में लौट जाते थे।
उन्हें दुश्मनों और हिन्दुस्तानी फ़ौज के क्रॉस फायर से भी बचना था और अपने कैंप में पहुँचना था। कभी भी कोई दुशमन या हिंदुस्तानी फ़ौज का सिपाही भी छानबीन के लिये दरवाजे पर दस्तक दे सकता था। उस समय तक उनको तैयार हो जाना था। पर सुनीता और उनपर प्यार का बहुत सवार था और ख़ास कर सुनीता जस्सूजी को आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी। उसे महीनों से ना हो सकी उस चुदाई की सूद समेत वसूली जो करनी थी।
सुनीता को उस रात कई बार झड़ना था उसे ऐसे कई ऐसे अदभूत ओर्गाज़्म का अनुभव करना था जो सुनीता जानती थी की जस्सूजी ही उसे करा सकते थे। वह इतनी जल्दी चुदाई से बाज आने वाली नहीं थी।
तीसरी बार झड़ने के बाद सुनीता ने जब अपनी साँस वापस पायी तो वह दिए से उठी और पलंग के सहारे घोड़ी बन कर कड़ी हो गयी. जस्सूजी समझ गए की सुनीता कुतिया स्टाइल में (डॉगी स्टाइल) में पीछे से अपनी चूत चुदवाना चाहती थी।
उसे जस्सूजी के लण्ड का डर अब नहीं रहा था। उसे पता था की जो भी दर्द होगा वह उसे जो उत्कट मादक अनुभव करा देगा उसके मुकाबले में कुछ भी नहीं होगा।
सुनीता को पता था की पीछे से चूत चुदवाने से जस्सूजी का लण्ड उसकी चूत में और ज्यादा अंदर घुसेगा। सुनीता की बच्चे दानी तो को तो जस्सूजी का लंड वैसे ही ठोकर मार रहा था। पर अब जब उनका लण्ड और गहरा घुसेगा तो क्या गजब ढायेगा उसके बारे में सुनीता को ज़रा भी आइडिया नहीं था। पर वह यह सब झेलने के लिए तैयार थी।
सुनीता को पता था की अगर प्यार से चुदाई करवा ने की अगर ठान ही ली हो तो एक स्त्री किसी भी लण्ड से चुदवा सकती है चाहे वह कितना बड़ा क्यों ना हो? दर्द जरूर होगा और खूब होगा। पर यही तो प्यार की रीती है। जहां प्यार है वहाँ दर्द तो होता ही है। जब बच्चा होता है तो दर्द के मारे माँ की जान निकल जाती है। पर फिर भी माँ बच्चे को जनम देने के लिए तैयार रहती क्यूंकि वहाँ प्यार है।
जस्सूजी ने अपना लण्ड सुनीता की चूत के पंखुड़ियों पर कुछ समय तक प्यार से रगड़ा। जब उन्हें यकीन हो गया की उनका लण्ड इतना चिकना हो गया है की वह सुनीता की चूत में घुसने से सुनीता को उतना दर्द नहीं देगा तब उन्होंने अपना लण्ड सुनीता की गाँड़ के सानिध्य में ही सुनीता की चूत में पीछे से घुसेड़ा।
जस्सूजी सुनीता की करारी गाँड़ को दखते ही रहे। सुनीता की गाँड़ के गालों को वह बड़े ही प्यार से सहलाते और दबाते रहे और ऐसा करते हुए उन्हें गजब का उन्माद भरे आनंद का अनुभव हो रहा था।
झुकी खड़ी सुनीता के बाल उसके सर के निचे जमीन तक लटके हुए गजब दिख रहे थे। सुनीता के अल्लड़ स्तन और उसकी निप्पलेँ भी अब धरती की और उंगली कर रहीं थीं। जस्सूजी ने सुनीता की चूँचियों को अपने दोनोंहाथों में पकड़ा और अपनी गाँड़ के सहारे सुनीता की चूत में अपना लण्ड और घुसेड़ने के लिए एक धक्का मारा।
जस्सूजी के लण्ड के ऊपर और सुनीता की चूत की सुरंग के अंदर सराबोर फैली हुई चिकनाहट के कारण जस्सूजी का लण्ड अंदर तो घुसा पर फिर वही सुनीता की चूत की सुरंग की त्वचा को ऐसा खींचा की बहुत नियत्रण रखते और जरासा भी आवाज ना करने की भरसक कोशिश करने के बावजूद सुनीता के मुंह में से चीख भरी कराह निकल ही गयी।
जस्सूजी सुनीता की दर्द भरी कराहट सुनकर रुक जाना चाहते थे। पर उनकी प्रियतमा सुनीता कुछ अलग ही मिटटी से बनी थी। जस्सूजी को थम कर अपना लण्ड को निकालने का मौक़ा ना देते हुए, सुनीता ने अपनी गाँड़ को पीछे धकेला और ना चाहते हुए भी जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में और घुस गया।
सुनीता ने थोड़ा सा पीछे मुड़ कर अपने प्रियतम की और देखा और मुस्कुरा कर बोली, “मेरे प्यारे प्रियतम, आप आज मुझे ऐसे चोदो जैसे आपने कभी किसीको चोदा ना हो। मैं यह दर्द झेल लूंगीं। अगर मैंने आपको विरह का दर्द दिया था तो मैं अब खुद मिलन का दर्द प्यार से झेल लूंगीं। पर मुझे विरह का दर्द मत दो। मेरे लिए यह चुदाई का दर्द सही है पर तुम्हारे लण्ड के विरह का दर्द मजूर नहीं। आज मैं पहली बार अपने प्रियतम जस्सू से चुदवा रही हूँ। आज मेरी चूत को भले ही फाड़ दो पर बस खूब चोदो।”
जस्सूजी को सुनीता की प्यार भरे पागलपन पर हँसी आ गयी। वह सोचने लगे, भगवान् ने औरतों को पता नहीं कैसा बनाया है। वह दर्द को भी प्यार के लिए सहन कर अपने प्रियतम को आनंद देना चाहती हैं।
उन्हें अपने प्रियतम के आनंद में ही अपना आनंद महसूस होता है चाहे उसमें उनको कितना भी दर्द क्यों ना हो। उन्होंने बरबस ही झुक कर सारी स्त्री जाती को अपनी सलूट मारी और अपने लण्ड को सुनीता की चूत में पेलने में लग गए।
एक और धक्का दे कर जस्सूजी ने सुनीता की चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। धीरे धीरे बढती चिकनाहट के कारण एक के बाद एक धीरे धक्के से उनका लण्ड और अंदर और अंदर घुसता चला गया और देखते ही देखते वह पूरा सुनीता की चूत की सुरंग में घुस गया।
सुनीता की चूत की पूरी सुरंग जस्सूजी के लण्ड से पूरी तरह भर गयी। सुनीता को खुद ऐसा महसूस हुआ जैसे जस्सूजी उसके बदन में प्रवेश कर चुके थे और वह और जस्सूजी एक हो चुके थे। सुनीता अब जस्सूजी से अलग नहीं थी। दो बदन प्यार में एक हो गए थे। सारी दूरियां ख़त्म हो चुकी थीं।
सुनीता की चूत पुरे तनाव में इतनी दर्द भरे तरीके से खींची हुई होने के बावजूद भी सुनीता के उन्माद का कोई ठिकाना ना था। उसे अपने स्त्री होने का गर्व था की उसने अपने प्रेमी को वह आनंद दिया था जो शायद ही उसके पहले किसी स्त्री ने उनको दिया हो। और अपने प्रियतम के उन्माद भरे प्यार के कारण सुनीता भी अपने जहन में एक गजब के उन्माद का अनुभव कर रही थी।
उसका जस्सूजी से चुदवाने का सपना पूरा हुआ था यह उसके लिए एक अद्भुत अवसर था। राजपूतानी की नफरत जान लेवा होती है तो उसका प्यार एक जान का संचार भी कर देता है।
सुनीता की दिली गूढ़ इच्छा थी की वह जस्सूजी का बच्चा अपने पेट में पाले। जब जस्सूजी ने पीछे से सुनीता की चूत में अपना पूरा लण्ड घुसेड़ दिया तो सुनीता जस्सूजी के प्यार को अपने बदन से छोड़ना नहीं चाहती थी भले ही क्यों ना जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में से निकल जाए।
सुनीता जस्सूजी की ज़िंदा निशानी पूरी जिंदगी गले से लगा कर रखना चाहती थी। सुनीता चाहती थी की जस्सूजी के वीर्य से उसे एक नयी जिंदगी देने का मौक़ा मिले। उसे पता नहीं था की उसके पति उसकी इजाजत देंगे या नहीं। पर सुनीता एक राजपूतानी थी और अगर उसने ठान लिया तो फिर वह उसे पूरा करेगी ही।
जस्सूजी सुनीता की चूत में अपना लण्ड जोश खरोश से पेले जा रहे थे। उनके अंडकोष में उनका गरम वीर्य खौल रहा था। सुनीता की चूत की फड़कन से वह बाहर फुट फुट कर फव्वारे के रूप में निकलने के लिए बेताब था। सुनीता की चूत की अद्भुत पकड़ के कारण जस्सूजी का धैर्य जवाब दे रहा था। अब समय आ गया था की वह महीनों की रोकी हुई गर्मी और वीर्य को खाली कर अपना उन्माद से कुछ देर के लिए ही सही पर निजात पाएं।
सुनीता ने जस्सूजी के बदन के तनाव और चोदते हुए उनकी हूँकार की तीव्रता से यह महसूस किया की उसके प्रियतम भी अपने चरम पर पहुँचने वाले हैं।
तब उसने जस्सूजी के लण्ड के पिस्टन के धक्कों को झेलते हुए पीछे गर्दन कर एक शरारती मुस्कान देते हुए कहा, “मेरे प्रियतम, मेरी जान, तुम्हें अपना सारा वीर्य मेरी चूत में ही उंडेलना है। अगर मैं तुम्हारे वीर्य से गर्भवती हुई तो यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। मुझे तुमसे एक बच्चा चाहिए। चाहे इसके लिए ज्योतिजी और सुनीलजी सहमत हों या नहीं। बोलो क्या तुम मुझे गर्भवती बना सकते हो? तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं ना?”
जस्सूजी उन्माद के मारे कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे। उनका गरम वीर्य जो उनक अंडकोष और उनके लण्ड की रग़ों में खौल रहा था, फुंफकार रहा था उसे छोड़ना ही था। और अगर उसे सुनीता की चूत में छोड़ा जाए तो उससे और अच्छी बात क्या हो सकती है? उस समय उन्हें सही या गलत सोचने की सूझबूझ नहीं थी। जस्सूजी उस समय अपने लण्ड के गुलाम थे।
सुनीता भी अपने उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी। जस्सूजी के धक्कों के साथ साथ सुनीता भी अपनी गाँड़ को पीछे धक्का मार कर अपनी उत्तेजना दिखा रही थी। जस्सूजी के एक जोरदार धक्के से जस्सूजी के लण्ड के केंद्रबिंदु स्थित छिद्र से उनके गरम गरम वीर्य का फव्वारा सुनीता ने अपनी चूत में फैलते हुए महसूस किया।
सुनीता की चूत तो पहले से ही जस्सूजी के लण्ड से लबालब भरी हुई थी। जस्सूजी का गरम वीर्य इतनी तादाद में था की सुनीता की चूत की सुरंग में उसके लिए कोई जगह ही नहीं होगी। पर फिर भी वह शायद सुनीता की चूत में से उसकी बच्चे दानी में प्रवेश कर गया। शायद सुनीता के स्त्री अंकुर से जस्सूजी का पुरुष अंकुर मिल गया और शायद एक नयी जिंदगी का उदय इस धरती पर होने के आगाज़ होने लगे।
जस्सूजी अपने लण्ड के कुछ और प्यार भरे धक्के मार के रुक गए। उनका वीर्य उनके एंड कोष से निकल कर सुनीता की पूरी चूत को पूरी तरह भर चुका था। सुनीता और जस्सूजी एक दूसरे से चिपके हुए ऐसे ही कुछ देर तक उसी पोजीशन में खड़े रहे।
धीरे से फिर जस्सूजी ने अपना लण्ड सुनीता की चूत में से बाहर निकाला और कुछ देर तक नंगी सुनीता की चूत में से रिस रहे अप्पने मलाई से वीर्य को देखते रहे। सुनीता ने देखा की ढीला होने के बावजूद भी जस्सूजी का लण्ड इतना मोटा और लंबा एक अजगर की तरह चिकनाहट से लथपथ उनकी टांगों के बिच में से लटक रहा था।
सुनीता ने फुर्ती से लपक कर जस्सूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और अपना मुंह झुकाकर सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड चाटना शुरू किया और देखते ही देखते अपनी जीभ से सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड चाट कर साफ़ कर दिया। जस्सूजी का मलाई सा वीर्य वह गटक कर निगल गयी।
थके हुए जस्सूजी निढाल हो कर पलंग पर गिर पड़े और कुछ ही देर में खर्राटे मारने लगे। सुनीता ने बाथरूम में जाकर अपनी चूत और जाँघों को साफ़ किया। जस्सूजी का वीर्य अपनी चूत में लेकर सुनीता बड़ी ही संतुष्टि का अनुभव कर रही थी। उसे उम्मीद थी की उस सुबह की चुदाई से वह जरूर माँ बनेगी और जस्सूजी की निशानी उसके गर्भ में होगी।
अपने आप को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद कपडे पहनने की जरुरत ना समझते हुए, सुनीता वैसी ही नंगी जस्सूजी की बाहों में उनकी रजाई में घुस कर लेट गयी। कुछ ही देर में दोनों प्रेमी गहरी नींद के आहोश में जा पहुंचे।
सुबह की लालिमा आसमान में हलकी फुलकी दिख रही थी। सुनीता और जस्सूजी को सोये हुए शायद दो घंटे बीत चुके होंगे की अचानक डॉ. खान के शफाखाने के दरवाजे की घंटी बज उठी। जस्सूजी गहरी नींद में से अचानक जाग गए और अपने सूखे हुए कपडे अपने बदन पर डालते हुए दरवाजे की और भागे। वह नहीं चाहते थे की इतनी जल्द्दी सुबह डॉ. खान को घंटी सुनकर ऊपर की मंजिल से निचे उतरना पड़े।
हफरातफ़री में अपने कपडे पहनते हुए जस्सूजी ने दरवाजा खोला तो देख कर हैरान रह गए की सामने सुनीलजी लहूलुहान हालात में सारे कपडे लाल लहू से रंगे हुए उनके सामने खड़े थे।
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