रात के दो बजने वाले थे। सुनीता पूरी तरह से वस्त्रहीन बिस्तर में जस्सूजी के साथ घुस गयी। बिस्तर में एक ही कम्बल के निचे उसने जस्सूजी ले बॉय को महसूस क्या। जस्सूजी गहरी नींद में सो रहे थे। सुनीता थोड़ी देर सोचती रही की वह बगैर कपड़ों के कैसे जस्सूजी के साथ सोयेगी। पर अब तो सोना ही था। और अगर बीचमें जस्सूजी ने उस दबौच लिया तो सुनीता का चुदना तय था।
बिस्तर में घुसने के बाद सुनीता दूसरी और करवट बदल कर लेट गयी। सुनीता की गाँड़ जस्सूजी की पीठ कीऔर थी। सुनीता काफी थकी हुई थी। देखते ही देखते उसकी आँख लग गयी और सुनीता भी गहरी नींद में सो गयी। दोनों करीब दो घंटे तक तो वैसे ही मुर्दे की तरह सोते रहे।
करीब दो घंटे बाद जस्सूजी ने महसूस किया की कोई उनके साथ सोया हुआ था। नींद में जस्सूजी को सुनीता के ही सपने आ रहे थे। जो जस्सूजी के मन में छिपे हुए विचार और आशंका थीं वह उनके सपने में उजागर हो रही थीं। जस्सूजी ने देखा की कालिया दरवाजा खटखटा रहा था और “सुनीता…… सुनीता……”
दरवाजा खटखटा ने की आवाज सुनकर सुनीता भगति हुई जस्सूजी की और आयी। जस्सूजी के गले लग कर सुनीता बोली, “जस्सूजी, मुझे बचाओ, मुझे बचाओ। यह राक्षस मुझे चोद चोद कर मार देगा। इसका लण्ड गेंडे के जैसा भयानक है। अगर उसने अपना लण्ड मेरी चूत में डाला तो मैं तो मर ही जाउंगी। दरवाजा मत खोलना प्लीज।”
जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, “नहीं खोलूंगा। तुम निश्चिन्त रहो।”
पर कालिया दरवाजे पर जोर से लात और घूंसे मार रहा था। देखते देखते कालिया ने दरवाजा तोड़ दिया। दरवाजा तोड़ कर उसने लपक कर सुनीता को जस्सूजी के पास से छीन लिया और सुनीता की साडी खिंच कर उसे निर्वस्त्र करने लगा।
देखते ही देखते सुनीता सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी। कालिया ने बीभत्स हँसते हुए सुनीता का ब्लाउज एक ही झटके में फाड़ डाला, उसकी ब्रा खिंच कर उसके स्ट्रैप्स तोड़ डाले और सुनीता का पेटीकोट और पैंटी भी फाड़ कर उसको नंगा कर दिया।
अचानक सुनीता ने झुक कर कालिया के हाथ को अपने दांतों से काट दिया। दांत से चमड़े काटने पर कालिया दर्द से कराहने लगा। कालिया के हाथ से सुनीता छूट गयी और वैसी ही नंगी हालत में वह जस्सूजी की और भागी। जस्सूजी ने नंगी सुनीता को अपनी बाँहों में लिया और उसको अपनी जाँघों के बिच कस कर हड़प लिया।
जस्सूजी ने दूसरे हाथ से अपना पिस्तौल निकाला और उसका निशाना कालिया पर दाग कर उसे कई गोलियां मारीं। कालिया अपने खून में ही लथपथ होकर गिर पड़ा। जस्सूजी ने पिस्तौल एक तरफ रख कर नंगी सुनीता के बदन पर हाथ फेरते हुए उसे दिलासा देने लगे। सुनीता की चिकनी चमड़ी पर जस्सूजी की उँगलियाँ सैर करने लगीं।
जस्सूजी को पहली बार सुनीता ने बेझिझक अपना बदन सौंपा था। जस्सूजी की छाती से सुनीता चिपकी हुई थी। सुनीता की मोटी और नंगी चूँचियाँ जस्सूजी की चौड़ी छाती पर दबी हुई चारों और फील गयी थीं। जस्सूजी का एक हाथ सुनीता की पीठ पर ऊपर निचे हो रहा था। जस्सूजी का हाथ जब सुनीता की नंगी गाँड़ पर पहुंचा तो रुक गया।
शायद वह सुनीता की गाँड़ को अच्छी तरह सेहलाना चाहते थे। जस्सूजी नींद में ही सुनीता की गाँड़ सेहला रहे थे। वह जानते थे की वह नींद में थे। पर यह क्या? उन्हें लगा जैसे वाकई में वह सुनीता की गाँड़ ही सहला रहे थे। वह सुनीता की खुशबु से वाकिफ थे। क्या सुनीता उनके साथ में सो रही थी? ऐसा कैसे हो सकता था? सुनीता ने तो कसम खायी थी की वह उनके साथ सोयेगी नहीं जब तक….. बगैरह बगैरह।
पर हकीकत यह थी की उनके आहोश में एक नंगी औरत सोई हुई थी और वह सुनीता ही हो सकती थी। जस्सूजी यह तो समझ गए की सुनीता को सोना तो उनके साथ ही था क्यूंकि एक ही बेड था। डॉ. खान भी उनको मियाँ बीबी ही समझ रहे थे।
जस्सूजी एकदम बैठ गए। उन्होंने तय किया था की वह सुनीता के साथ नहीं सोयेंगे। और नंगी सुनीता के साथ तो कतई नहीं। कहीं उनसे अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रहा तो गजब हो जाएगा। सोचते ही उनका लण्ड उठ खड़ा हुआ। जस्सूजी अपने आप पर बड़ा गुस्सा हुए। साला थोड़ी सी सुनीता की भनक लग गयी की उठ खड़ा हो जाता है। सुनीता किसी और की बीबी है। तुम्हारे बाप की नहीं जो तुम उसका नाम सुनते ही खड़े हो जाते हो। ऐसे अपने लण्ड को कोसने लगे।
पर लण्ड एक ऐसी चीज़ है जो किसी की नहीं सुनता। जस्सूजी का लण्ड सुनीता की बदन की खुशबु पहचानते ही उठ खड़ा हो गया। जस्सूजी झुंझलाये। वह आधी नींद में ही उठ खड़े हुए और अपने लण्ड को एडजस्ट करते हुए वाश रूम की और बढे। हलचल से सुनीता भी उठ गयी थी पर सोने का नाटक कर पड़ी रही।
जस्सूजी को बड़ी नींद आ रही थी। पर वह नंगी सुनीता के साथ में सोने के कारण झल्ला उठे। वाशरूम से वापस आ कर वह बैठे कुर्सी पर। उनका पयजामा उनकी कमर से बार बार फिसला जाता था। वह खिंच खिंच कर उसे ऊपर करते रहते थे। जब कुछ देर तक जस्सूजी वापस पलंग पर नहीं लौट आये तो सुनीता ने करवट ली और उठ बैठी। उसने देखा तो जस्सूजी कुर्सी पर बैठे बैठे खर्राटे मार रहे थे।
सुनीता उठी और उसने अपने बदन एक चद्दर से ढका। जस्सूजी की और मुंह कर के बोली, “क्या हुआ? बिस्तरे में क्यों नहीं आ रहे हो?”
जस्सूजी ने कहा, ” जब मैं तुम्हारे पास आता हूँ तो अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रख पाता। अब मैं तुम्हारी चाल में नहीं आने वाला। अगर मैं वहाँ आ गया तो मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं कर सकूंगा। तुम सो जाओ। मैं यहां पर ही सो जाऊंगा।” यह कह कर जस्सूजी ने सोफा पर ही अपने पाँव लंबे किये।
सुनीता को बड़ा गुस्सा आने लगा। अब तक वह चुदवाने के लिए तैयार नहीं थी, तब तो जस्सूजी फनफना रहे थे। अब वह तैयार हुई तो यह साहब नखरे क्यों कर रहे थे?
जब जस्सूजी ने कहा, “तुम वहीँ सो जाओ। मैं यहीं ठीक हूँ।“ तब सुनीता अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं कर पायी। उसने ने गुस्से हो कर कहा, “तुम क्या सोच रहे हो? मैं तुम्हें वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़ कर यह कहूं की यहां आओ और मुझे करो……? मैंने तुम्हें नहीं कहा की मैंने तुम्हें अपने पति की जगह पर स्वीकार किया है। तुमने मेरी जान अपनी जान जोखिम में डाल कर बचाई और मेरा प्रण पूरा किया है।”
सुनीता कुछ देर रुक गयी। फिर कुछ सोच कर बोली, “पर तुमने भी तो प्रण लिया था की जब तक मैं सुनीता हाथ जोड़ कर तुम्हें यह नहीं कहूँ की आओ और मुझे प्यार करो…. तब तक तुम मुझे मजबूर नहीं करोगे। तो लो मैं हाथ जोड़ती हूँ और कहती हूँ की आओ, और मुझे करो….। मैं तुमसे करवाना चाहती हूँ।
सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी हँस पड़े। जल्दी से उठ कर वह बिस्तर पर आ गए और सुनीता को अपनी बाँहों में लेकर बोले, “माननीयों को कभी हाथ नहीं जोड़ने चाहिए। हाथ जोड़ने का काम हम पुरुषों का है। मैं तुम्हें मेरे हाथ जोड़कर तुम्हारे खूबसूरत पाँव पकड़ कर प्रार्थना करता हूँ और पूछता हूँ की हे मानिनी क्या तुम आज रात मुझसे चुदवाओगी? देखो सुनीता अगर तुमने मुझे स्वीकार किया है तो मुझसे खुल कर बात करो। मैं प्यार करो यह शब्द नहीं सुनना चाहता। मैं साफ़ साफ़ सुनना चाहता हूँ की तुम क्या चाहती हो?””
सुनीता ने जस्सूजी के कपडे निकालते हुए कहा, ”
छोडोजी। आप जो सुनना चाहते हो मैं बोलने वाली नहीं। खैर मैं भले ही ना बोलूं पर आपने तो बोल ही दिया है ना? मैं एक बार नहीं, आज रात कई बार मुझे करना है। जब तक मैं थक कर ढेर ना हो जाऊं तब तक तुम मुझे करते ही रहना। आजसे मैं तुम्हारी सामाजिक बीबी ना सही, पर मैं तुम्हारी शारीरक बीबी जरूर हूँ। और यह हक मुझे कोई भी नहीं छीन सकता , ज्योतिजी भी नहीं। ओके?”
बने रहिएगा.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!
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