Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 53


सुनीलजी की आँखों के सामने कितने समय के बाद भी सुनीता के फिसल कर नदी में गिर जाने का और जस्सूजी के छलाँग लगा कर नदी में कूदने का ने का दृश्य चलचित्र की तरह बार बार आ रहा था।
उन्हें बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की उनमें उतना आत्मविश्वास या यूँ कहिये की साहस नहीं था की वह अपनी जान जोखिम में डाल कर अपनी बीबी को बचाएं। वह अपने आपको कोस रहे थे की जो वह नहीं कर सके वह जस्सूजी ने किया।
सुनीलजी ने मन ही मन तय किया की अगर मौक़ा मिला तो वह भी अपनी जान जोखिम में डाल कर अपने अजीज़ को बचाने से चूकेंगे नहीं। आखिर देश की आजादी के लिए कुरबानियां देनी ही पड़तीं हैं।
अब आगे अंजाम क्या होगा: सुनीता ज़िंदा बचती है या नहीं, जस्सूजी सुनीता को बचा पाते हैं या नहीं और क्या जस्सूजी खुद बच पाते हौं या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा। अब सुनीलजी को तो सिर्फ अपने आप को बचाना था।
अचानक ही तीन में से दो लोग जाते रहे। उन्हें ना तो रास्ते का पता था और ना तो कौनसी दिशा में जाना है उसका पता था। जस्सूजी के बताये हुए निर्देश पर ही उन्होंने चलना ठीक समझा।
सुनीलजी ने अपनी आगे बढ़ने की गति और तेज कर दी। उन्हें सम्हाल के भी चलना था क्यूंकि उन्होंने देखा था की नदी के एकदम करीब चलने में बड़ा ही खतरा था। सुनीलजी की चाल दौड़ में बदल गयी। अब उन्हें बचाने वाले जस्सूजी नहीं थे। अब जो भी करना था उन्हें ही करना था। साथ में उनके पास गन भी थी।
अँधेरे में पेड़ों को ढूंढते हुए गिरते लुढ़कते पर जितना तेज चल सके उतनी तेजी से वह आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में कई पत्थर और कीचड़ उनकी गति को धीमी कर देते थे। पर वह चलते रहे चलते रहे। उन्हें कोई दर्द की परवाह नहीं करनी थी, क्यूंकि अगर दुश्मनों ने उनको पकड़ लिया तो उन्हें मालुम था की जो दर्द वह देंगे उसके सामने यह दर्द तो कुछ भी नहीं था।
एक तरीके से देखा जाए तो सुनीता और जस्सूजी नदी के तूफ़ान में जरूर फँसे हुए थे पर कमसे कम दुश्मनों की फ़ौज से पकडे जाने का डर तो उन्हें नहीं था.
ऐसी कई चीज़ों को सोचते हुए अपनी पूरी ताकत से सुनीलजी आगे बढ़ते रहे। चलते चलते करीब चार घंटे से ज्यादा वक्त हो चुका था। सुबह के चार बजने वाले होंगे, ऐसा अनुमान सुनीलजी ने लगाया।
सुनीलजी की हिम्मत जवाब देने लगी थी। उनकी ताकत कम होने लगी थी। अब वह चल नहीं रहे थे उनका आत्मबल ही उन्हें चला रहा था। उनको यह होश नहीं था की वह कौनसे रास्ते पर कैसे चल रहे थे।
अचानक उन्होंने दूर क्षितिज में बन्दुक की गोलियों की फायरिंग की आवाज सुनी। उन्होंने ध्यान से देखा तो काफी दुरी पर आग की लपटें उठी हुई थी और काफी धुआं आसमान में देखा जा रहा था।
साथ ही साथ में दूर से लोगों की दर्दनाक चीखें और कराहट की आवाज भी हल्की फुलकी सुनाई दे रही थी। सुनीलजी घबड़ा गए। उन्हें लगा की शायद उनका पीछा करते करते दुश्मन के सिपाही उनके करीब आ चुके हैं।
सुनीलजी को जल्दी से कहीं ऐसी जगह छुपना था जहां से उनको आसानी से देखा नहीं जा सके। सुनीलजी ने डरके मारे चारों और देखा। नदी के किनारे थोड़ी दूर एक छोटीसी पहाड़ी और उसके निचे घना जंगल उनको दिखाई पड़ा। वह फ़ौरन उसके पास पहुँचने के लिए भागे। अन्धेरा छट रहा था। सूरज अभी उगने में समय था पर सूरज की लालिमा उभर रही थी।
सुनीलजी को अपने आपको दुश्मन की निगाहों से बचाना था। वह भागते हुए नजरे बचाते छिपते छिपाते पहाड़ी के निचे जा पहुंचे। झाड़ियों में छुपते हुए ताकि अगर दुश्मन का कोई सिपाही उस तरफ हो तो उन्हें देख ना सके, बड़ी सावधानी से आवाज किये बिना वह छुपने की जगह ढूंढने लगे।
अचानक उन्हें लगा की शायद थोड़ी ऊपर एक गुफा जैसा उन्हें दिखा। वह गुफा काफी करीब जाने पर ही दिखाई दी थी। दूर से वह गुफा नजर नहीं आती थी।
सुनीलजी फ़ौरन उस चट्टान पर जैसे तैसे चढ़ कर गुफा के करीब पहुंचे। एरिया में गुफा लगभग एक बड़े हॉल के जितनी थी। उन्हें लगा की शायद वहाँ कोई रहता होगा, क्यूंकि गुफा में दो फटे हुए गद्दे रखे थे, एक पानी का मटका था, कुछ मिटटी के और एल्युमीनियम के बर्तन थेऔर एक कोने में एक चूल्हा और कुछ राख थी जिससे यह लगता था जैसे किसने वहाँ कुछ खाना पकाया होगा।
सुनीलजी चुपचाप गुफा में घुस गए और बहार एक घांसफूस का लकड़ी और रस्सी से बंधा दरवाजे जैसा था (वह एक घाँस और लकड़ी की फट्टियों का बना आवरण जैसा ही था, दरवाजा नहीं) उससे गुफा को ढक दिया ताकि किसी को शक ना हो की वहाँ कोई गुफा भी थी।
सुनीलजी थकान से पस्त हो गए थे। उनमें कुछ भी करने की हिम्मत और ताकत नहीं बची थी। खुद को बचाने के लिए जो कुछ वह कर सकते थे उन्होंने किया था अब बाकी उपरवाले के भरोसे छोड़ कर वह एक गद्दे पर लम्बे हुए और लेटते ही उनकी आँख लग गयी।
उन्हें पता नहीं लगा की कितनी देर हो गयी पर अचानक उनको किसीने झकझोर कर जगाया। उनके कान में काफी दर्द हो रहा था। चौंक कर सुनीलजी ने जब अपनी आँख खोली तो देखा की एक औरत फटे हुए कपड़ों में उनकी ही बंदूक अपने हाथों में लिए हुए उनके सर का निशाना बना कर खड़ी थी और उन्हें बंदूक के एक सिरे से दबा कर जगा रही थी।
उस हालात में ना चाहते हुए भी उनकी नजर उस औरत के बदन पर घूमने लगी। हालांकि उस औरत के कपडे फटे हुए और गंदे थे, उस औरत की जवानी और बदन की कामुकता गजब की थी। उसकी फटी हुई कमीज में से उसके उन्मत्त स्तनोँ का उभार छुप नहीं पा रहा था। औरत काफी लम्बे कद की और पतली कमर वाली करीब २६ से २८ साल की होगी।
सुनीलजी ने देखा तो उस औरत ने एक कटार जैसा बड़ा एक चाक़ू अपनी कमर में एक कपडे से लपेट रखा था। उसके पाँव फटे हुए सलवार में से उसकी मस्त सुडौल जाँघे दिख रहीं थीं। शायद उस औरत की चूत और उस कपडे में ज्यादाअंतर नहीं था। उसकी आँखें तेज और नशीली लग रही थीं।
अचानक बंदूक का धक्का खा ने कारण सुनीलजी गिर पड़े। वह औरत उन्हें बन्दुक से धक्का मारकर पूछ रही थी, ” क्या देख रहा है साले? पहले कोई औरत देखि नहीं क्या? तुम कौन्हो बे? यहां कैसे आ पहुंचे? सच सच बोलो वरना तुम्हारी ही बंदूक से तुम्हें भून दूंगी।”
उस औरत के कमसिन बदन का मुआइना करने में खोये हुए सुनीलजी बंदूक का झटका लगते ही सुनीलजी वापस जमीन पर लौट आये। उन्हें पता नहीं था यह औरत कौन थी। वह आर्मी वाली तो नहीं लग रही थी क्यूंकि ना तो उसने कोई यूनिफार्म पहना था और ना ही उसके पास अपनी कोई बंदूक थी।
ना ही उसने अपने कपडे ढंग से पहने हुए थे। पर औरत थी कमालकी खूबसूरत। उसके बदन की कामुकता देखते ही बनती थी। उस औरत ने सोते हुए सुनीलजी की ही बंदूक उनकी कानपट्टी पर दाग रक्खी थी। सुनीलजी को ऐसा लग रहा था जैसे वह औरत भी कुछ डरी हुई तनाव में थी।
सुनीलजी ने डरते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, “मैं यहां के सिपाहियों की जेल से भगा हुआ कैदी हूँ। मेरे पीछे यहां की सेना के कुछ सिपाही पड़े हैं। पता नहीं क्यों?”
सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी को लगा की शायद उस औरत ने हलकी सी चैन भरी साँस ली। बंदूक की नोक को थोड़ा निचे करते हुए उस औरत ने पूछा, “कमाल है? सिपाही पीछे पड़े है, और तुम्हें पता नहीं क्यों? सच बोल रहा है क्या? कहाँ से आया है तू?”
सुनीलजी ने कहा, “हिंदुस्तानी हूँ मैं। हमें पकड़ कर यहां के सिपाहीयो ने हमें जेल में बंद कर दिया था। हम तीन थे। जेल से तो हम भाग निकले पर मेरे दो साथी नदी में बह गए। पता नहीं वह ज़िंदा हैं या नहीं। मैं बच गया और उन सिपाहियों से बचते छिपते हुए मैं यहां पहुंचा हूँ।”
सुनीलजी ने देखा की उनकी बात सुनकर उस औरत कुछ सोच में पड़ गयी। शायद उसे पता नहीं था की सुनीलजी की बात का विश्वास किया जाये या नहीं। कुछ सोचने के बाद उस औरत ने अपनी बन्दुक नीची की और बोली, “फिर यह बंदूक कहाँ से मिली तुमको?”
सुनीलजी ने राहत की एक गहरी साँस लेते हुए कहा, “यह उन में से एक सिपाही की थी। हम ने उसे मार दिया और उसकी बंदूक लेकर हम भागे थे। यह बंदूक उसकी है।”
औरत ने सुनीलजी की कानपट्टी पर से बंदूक हटा दी और बोली, “अच्छा? तो तुम भी उन कुत्तों से भागे हुए हो?”
जैसे ही सुनीलजी ने “भी” शब्द सुना तो वह काफी कुछ समझ गए। अपनी आवाज में हमदर्दी जताते हुए वह बोले, “क्या तुम भी उन सिपाहियों से भागी हो?”
उस औरत ने बड़े ध्यान से सुनीलजी की और देखा और बोली, “तुम्हें पता नहीं क्या यहाँ क्या हो रहा है?”
सुनीलजी ने अपने मुंडी नकारात्मक हुइलाते हुए कहा, “मुझे कैसे पता?”
औरत ने कहा, “यह साले कुत्ते यहां की आर्मी के सिपाही, हमारी बस्तियों को लुटते हैं और हम औरतों को एक औरत को दस दस आदमी बलात्कार करते हैं और उनको चूंथने और रगड़ने के बाद उन्हें जंगल में फेंक देते हैं। मेरे पुरे कबीले को और मेरे घर को बर्बाद कर और जला कर वह मेरे पीछे पड़े थे। मैं भी तुम्हारी तरह एक सिपाही को उसीकी बंदूक से मार कर भागी और करीब सात दिन से इस गुफा में छिपी हुई हूँ।
मेरे पीछे भी वह भेड़िये पड़े हुए हैं। पर एक दो दिन से लगता है की हिंदुस्तान की आर्मी ने उनपर हमला बोला है तो शायद वह उनके साथ लड़ाई में फँसे हुए हैं।”
सुनीलजी ने अपनी हमदर्दी जारी रखते हुए पूछा, “तुम इस गुफा में गुजारा कैसे करती हो? तुम्हारा गाँव कौनसा है और तुम्हारा नाम क्या है?”
औरत ने कहा, “मेरा नाम आयेशा है। मैं यहां से करीब पंद्रह मील दूर एक गाँव में रहती थी। मेरे पुरे गाँव में साले कुत्तों ने एक रात को डाका डाला और मेरा घर जला डाला। मेरे अब्बू को मार दिया और दो सिपाहियों ने मुझे पकड़ा और मुझे घसीट कर मुझ पर बलात्कार करने के लिए तैयार हुए। तब मैंने उन्हें फंसा कर मीठी बातें कर के उनकी बंदूक ले ली और एक को तो वहीँ ठार मार दिया। दुसरा भाग गया…
मैं फिर वहाँ से भाग निकली और भागते भागते यहां पहुंची और तबसे यहां उन से छिपकर रह रही हूँ। मैं खरगोश बगैरह जो मिलता है उसका शिकार कर खाती हूँ। एक रात मैं छिपकर नजदीक के गाँव में गयी तो वहाँ एक झौंपड़ी में कुछ बर्तन और गद्दे रक्खे हुए थे। झौंपड़ी वालोँ को उन गुंडों ने शायद मार दिया था। यह चुराकर मैं यहां ले आयी। ”
सुनीलजी ने कहा, “हम दोनों की एक ही कहानी है। वह सिपाही हमारे पीछे भी पड़े हैं। मुझे यहां से मेरे मुल्क जाना है। मुझे पता नहीं कैसे जाना है, कौनसे रास्ते से। क्या तुम मेरी मदद करोगी?”
आयेशा: “तुम अभी कहीं नहीं जा सकते। चारों और सिपाही पहरा दे रहे हैं। अभी पास वाले गाँव में कुछ सिपाही लोग कहर जता रहे हैं। काफी सिपाही इस नदी के इर्दगिर्द पता नहीं किसे ढूंढ रहे हैं। शायद तुम लोगों की तलाश जारी है। यहां से बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। एकाध दो दिन यहां रहना पडेगा। यह जगह अब तक तो मेहफ़ूज़ है। पर पता नहीं कब कहाँ से कोई आ जाये। यह बंदूक तुम्हारे पास है वह अच्छा है। कभी भी इसकी जरुरत पड़ सकती है।”
जब आयेशा यह बोल ही रही थी की उनको कुछ आदमियों की आवाज सुनाई दी। आयेशा ने अपने होँठों पर उंगली रख कर सुनीलजी को चुप रहने का इशारा किया। धीरे से आयेशा ने गुफा के दरवाजे की आड़ में से देखा तो कुछ साफ़ साफ़ नजर नहीं आ रहा था।
आयेशा ने दरवाजा कुछ हटा कर देखा और सुनीलजी को अपने पीछे आने का इशारा किया। बंदूक आयेशा के हाथ में ही थी। आयेशा निशाना ताकने की पोजीशन में तैयार होकर धीरे से बाहर आयी और झुक कर इधर उधर देखने लगी।
गुफा के अंदर छुपे हुए सुनीलजी ने देखा की एक सिपाही ने आयेशा को गुफा के बाहर निकलते हुए देख लिया था। पहले तो सुनीलजी का बदन डर से काँप उठा। अगर उस सिपाही ने बाकी सिपाहियों को खबर कर दी तो उनका पकडे जाना तय था। सुनीलजी ने तय किया की जस्सूजी ने उन्हें बंदूक दे कर और उसे चलाना सीखा कर उन्हें भी सिपाही बना दिया था। अब तो वह जंग में थे। जंग का एक मात्र उसूल यह ही था की यातो मारो या मरो।
चट्टान पर रेंगते हुए वह चुचाप आगे बढे और आयेशा के पाँव को खिंच कर उसे बाजू में गिरा दिया। अपने होँठों पर उंगली डाल कर चुप रहने का इशारा कर उन्होंने आयेशा की कमर में लटके बड़े चाक़ू को निकाला और पीछे चट्टान पर रेंगते हुए चट्टान के निचे कूद पड़े।
वह सिपाही आयेशा की और निशाना तान कर उसे गोली मारने की फिराक में ही था। पीछे से बड़ी ही सिफ़त से लपक कर उस सिपाही के गले में चाक़ू फिरा कर उसके गले को देखते ही देखते रेंट डाला।
सिपाही के गले में से खून की धारा फव्वारे जैसी फुट पड़ी। वह कुछ बोल ही नहीं पाया। कुछ पलों तक उसका बदन तड़पता रहा और फिर शांत हो कर जमीन पर लुढ़क गया। । खून के कुछ धब्बे सुनीलजी के की शर्ट पर भी पड़े। वैसे ही सुनीलजी की कमीज इतनी गन्दी थी की वह धब्बे उनके कमीज पर लगे हुए कीचड़ और मिटटी में पता नहीं कहाँ गायब हो गए।
ऊपर से देख रही आयेशा जो सुनीलजी के अचानक धक्का मारने से गिरने के कारण गुस्से में थी, वह अचरज से सुनीलजी के कारनामे को देखती ही रह गयी।
सुनीलजी ने उसे धक्का मार कर गिराया ना होता और उस सिपाही को उसकी कमर में रखे हुए चाक़ू से मार दिया ना होता तो वह सिपाही आयेशा को जरूर गोली मार देता और बंदूक की गोली की आवाज से सारे सिपाही वहां पहुँच जाते।
सुनीलजी की चालाकी से ना सिर्फ आयेशा की जान बच गयी बल्कि सारे सिपहियों को उस गुफा का पता चल नहीं पाया जहां आयेशा और सुनीलजी छुपे हुए थे। सुनीलजी उस सिपाही की बॉडी घसीट कर उस पहाड़ी के पीछे ले गए जहां निचे काफी गहरी खायी और घने पेड़ पौधे थे। उस बॉडी को सुनीलजी ने ऊपर से निचे उस खायी में फेंक दिया। वह लाश निचे घने जंगल के पेड़ पौधों के बिच गिर कर गायब हो गयी।
सुनिजि के करतब को बड़ी ही आश्चर्य भरी नजरों से देख रही आयेशा सुनीलजी के वापस आने पर गुफा में उन पर टूट पड़ी और उनसे लिपट कर बोली, “मुझे पता नहीं था तुम इतने बहादुर और जांबाज़ हो।”
आयेशा का करारा बदन अपने बदन से लिपटा हुआ पाकर सुनीलजी की हालत खराब हो गयी। उस बेहाल हाल में भी उनका काफी समय से बैठा हुआ लण्ड उनके पतलून में खड़ा हो गया।
सुनीलजी को लिपटते हुए आयेशा के दोनों भरे हुए अल्लड़ स्तन सुनीलजी की बाजुओं को दबा रहे थे। आयेशा की चूत सुनीलजी के लण्ड को जैसे चुनौती दे रहे थी। सुनीलजी ने भी आयेशा को अपनी बाँहों में ले लिया और कांपते हुए हाथों से आयेशा के बदन के पिछवाड़े को सहलाने लगे।
आयेशा ने अपने बदन को सुनीलजी के बदन से रगड़ते हुए कहा, ” मैं नहीं जानती आपका नाम क्या है। मैं यह भी नहीं जानती आप वाकई में है कौन और आप जो कह रहे हो वह सच है या नहीं। पर आपने मेरी जान बचाकर मुझे उन बदमाशों से बचाया है इसका शुक्रिया मैं कुछ भी दे कर अदा नहीं कर सकती। मैं जरूर आपकी पूरी मदद करुँगी और आपको उन भेड़ियों से बचाकर आपके मुल्क भेजने की भरसक कोशिश करुँगी, चाहे इसमें मेरी जान ही क्यों ना चली जाए। वैसे भी मेरी जान आपकी ही देन है।”
मुश्किल से सुनीलजी ने अपने आपको सम्हाला और आयेशा को अपने बदन से अलग करते हुए बोले, “आयेशा, इन सब बातों के लये पूरी रात पड़ी है। हमने उनके एक सिपाही को मार दिया है। हालांकि उसकी बॉडी उनको जल्दी नहीं मिलेगी पर चूँकि उनका एक सिपाही ना मिलने से वह बड़े सतर्क हो जाएंगे और उसे ढूंढने लग जाएंगे…
हमें पुरे दिन बड़ी सावधानी से चौकन्ना रहना है और यहां से मौक़ा मिलते ही भाग निकलना है। पर हमें यहां तब तक रहना पडेगा जब तक वह सिपाहियों का घिराव यहां से हट ना जाए।”
कहानी आगे जारी रहेगी..!
[email protected]

शेयर
hindi sexy call girlbehan ki chuchidasi bhabianty ki chudaihindi sex chat videofree india sex storybeti se chudaiantarwasana storynudechachiindian bhabhi sexrandi ki sexसकस कहानीsex storie malayalamenglish indian sex storiesenglish chut ki chudaisubmissive storyhindi fucking kahanihot sexy chachibhabhi doodh storykahani chudayi kisexi hindistoryrandi ki storylatest lesbiandesi bhabhi ki chudai kahanibhabhi ki chudai hot storysexi history hindibehan ne bhai ko chodachudakadindian sex in khetgujrati ma chodvani vartadesi aex storykannada group sex storiesaunties stories tamilgharelu randiyaindian desinetgay kannada storiestamil sexs storieswife share sexshararat episode 27chudai ki kahanimom son tamil sex storiessohagrat in urdu dailymotionsex with jijubhai bahan chudai kahanibaap beti ki chudai kahani hindigujarati sex stories in gujarati languagebabhi sex storysexy hindi chudai kahanidesi class room sexactress ki chudai ki kahanifudi desimaaya episode 1meri maa ko chodabehan ko raat me chodadaisi sex comna pookusex stories mummyonline delhi sex chatbaap ne beti chodideasi papa comचुदाई स्टोरीmother son sexy storysex dewar bhabhiwww tamil sex storymami se sexbhabhi ki sisterchudai kikahaniye galiya yebhahan ki chudaisexi stori hindiodia banda bia storytamil.sex storymaa se sambhogbia story in oriyahindi insect sex storiestamil auntys sex storysnokar ne malkin ko chodaodia bedha bedhei gapatamil sex stories updatetamil teacher student kamakathaikalsexy stories to readdesi hot instagramww bhabhididi ki chudaeakka kamakathaidesi lesbian sex storiescar me sex storychudai maa ke sathses storiesdesi sex best sitebhahen ki chudai