काफिले के पीछे उनके पालतू हाउण्ड घोड़ों के साथ साथ दौड़ पड़े और देखते ही देखते काफिला सब की आंखोंसे ओझल होगया। उस समय सुबह के करीब ११३० बज रहे थे।
ज्योतिजी, कैप्टेन कुमार और नीतू बाँवरे से जस्सूजी, सुनीता और सुनीलजी को आतंक वादियों के साथ कैदी बनकर जाते हुए देखते ही रह गए। उनकी समझ में नहीं आ रहाथा की वह करे तो क्या करे?
कैप्टेन कुमार ने सबसे पहले चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “हमें तेजी से चलकर सबसे पहले हमारे तीन साथीदारों की अगुआई की खबर ऊपर कैंप में जाकर देनी होगी। हो सकता है वहाँ उनके पास वायरलेस हों ताकि यह खबर सब जगह फ़ैल जाए। जिससे पूरा आर्मी हमारे साथीदारों को ढूंढने में लग जाए।”
असहाय से वह तीनो भागते हुए थके, हारे परेशान ऊपर के कैंप में पहुंचे। उनके पहुँचते एक घंटा और बीत चुका था। इधर सुनीता, जस्सूजी और सुनीलजी के हाथ पाँव बंधे हुए थे और आँखों पर पट्टी लगी हुई थी।
जस्सूजी आँखों पर पट्टी बंधे हुए भी पूरी तरह सतर्क थे। उनके दोनों हाथ कस के बंधे हुए थे। घुड़सवार इधर उधर घोड़ों को घुमाते हुए कोई नदी के किनारे वाले रास्ते जा रहे थे क्यूंकि रास्ते में जस्सूजी को पहाड़ों से निचे की और बहती हुई नदी के पानी के तेजी से बहने की आवाज का शोर सुनाई दे रहा था।
सुनीता का हाल सबसे बुरा था। उस मोटे बदसूरत काले बन्दे ने सुनीता को अपनी जाँघों के बिच अपने आगे बिठा रखा था। सुनीता के दोनों हाथ पीछे कर के बाँध रखे थे। कालिये के लण्ड को सुनीता के हाथ बार बार स्पर्श कर रहे थे। जाहिर है इतनी खूबसूरत औरत जब गोद में बैठी हो तो भला किस मर्द का लण्ड खड़ा न होगा? कालिये का लण्ड अजगर तरह फुला और खड़ा था जो सुनीता अपने हांथों में महसूस कर रही थी।
घोड़े को दौड़ाते दौड़ाते कालिया बार बार अपना हाथ सुनीता की छाती पर लगा देता था और मौक़ा मिलने पर सुनीता की चूँचियाँ जोरसे दबा देता था। कालिया इतने जोर से सुनीता के बूब्स दबाता था की सुनीता के मुंह से चीख निकल जाती थी।
पर उस शोर शराबे में भला किसी को क्या सुनाई देगा? कालिया ने महसूस किया की उसका लण्ड सुनीता की गाँड़ पर टक्कर मार रहा था तब उसने अपने पाजामे को ढीला किया और घोड़े को दौड़ाते हुए ही अपना मोटा हाथी की सूंढ़ जैसा काला लंबा तगड़ा लण्ड पाजामे से बाहर निकाल दिया। जैसे ही उसने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया की वह सीधा ही सुनीता के हाथों में जा पहुंचा।
सुनीता वैसे ही कालिये के लण्ड से उसकी गाँड़ में धक्के मारने के कारण बहुत परेशान थी ऊपर से कालिये के लण्ड का स्पर्श होते ही वह काँप उठी। उसके हाथों में कालिये का लण्ड ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई अजगर हो।
सुनीता को यह ही समझ नहीं आ रहा था की वह कहाँ से शुरू हो रहा था और कहाँ ख़तम हो रहा था। सुनीता को लगा की जिस किसी भी औरत को यह कालिया ने चोदा होगा वह बेचारी तो उसका लंड उसकी चूत में घुसते ही चूत फट जाने के कारण खून से लथपथ हो कर मर ही गयी होगी।
छोटी मोटी औरत तो उस भैंसे जैसे कालिये से चुदवा ही नहीं सकती होगी। कालिये को चोदने के लिए भी तो उसके ही जैसी भैंस ही चाहिए होगी। यह सब सोच कर सुनीता की जान निकले जा रही थी।
उस दिन तक तो सुनीता यह समझती थी की जस्सूजी का लण्ड ही सबसे बड़ा था। पर इस मोटे का लण्ड तो जस्सूजी के लण्ड से भी तगड़ा था। ऊपर से उस लण्ड से इतनी ज्यादा चिकनाहट निकल रही थी की सुनीता के बंधे हुए हाथ उस चिकनाहट से पूरी तरह लिपट चुके थे।
सुनीता को डर था की कहीं कालिया के मन में काफिले से अलग हो कर जंगल में घोड़ा रोक कर सुनीता को चोदने का कोई ख़याल ना आये।
सुनीता बारबार अपने कानों से बड़े ध्यान से यह सुनने की कोशिश कर रही थी की कहीं वह मोटा काफिले को आगे जानेदे और खुद पीछे ना रह जाए, वरना सुनीता की जान को मुसीबत आ सकती थी।
कुछ देर बाद सुनीता को महसूस हुआ की काफिले के बाकी घुड़सवार शायद आगे निकले जारहे थे और कालिये का घोड़ा शायद पिछड़ रहा था। मारे डर के सुनीता थर थर काँपने लगी। उसे किसी भी हाल में इस काले भैंसे से चुदवाने की कोई भी इच्छा नहीं थी।
सुनीता ने “बचाओ, बचाओ” बोल कर जोर शोर से चिल्लाना शुरू किया। अचानक सुनीता की चिल्लाहट सुनकर कालिया चौंक गया। वह एकदम सुनीता की चूँचियों पर जोर से चूँटी भरते हुए बोला, “चुप हो जाओ। मुखिया खफा हो जाएगा।” सुनीता समझ गयी की उसे सरदार से चुदवाने के लिए ले जाया जा रहा था।
जाहिर है सरदार को खुद सुनीता को चोदने से पहले कोई और चोदे वह पसंद नहीं होगा। इस मौके का फायदा तो उठाना ही चाहिए। दुसरा कालिया सरदार से काफी डरता था। सुनीता ने और जोर से चिल्लाना शुरू किया, “बचाओ, बचाओ।”
कालिया परेशान हो गया। आगे काफिले में से किसीने सुनीता के चिल्लाने की आवाज सुनली तो काफिला रुक गया। सब कालिया की और देखने लगे। कालिया अपना घोड़ा दौड़ा कर आगे चलने लगा। उसी वक्त सुनीता को जस्सूजी की आवाज सुनाई दी। जस्सूजी जोर से चिल्ला कर बोल रहे थे, “सुनीता तुम कहाँ हो? क्या तुम ठीक तो हो?”
सुनीता ने सोचा की अगर उन्होंने जस्सूजी को अपना सच्चा हाल बताभी दिया तो वह कर कुछ भी नहीं पाएंगे, पर बेकार परेशान ही होंगें। तब सुनीता ने जोर से चिल्लाकर जवाब दिया “मैं यहां हूँ। मैं ठीक हूँ।”
सुनीता ने फिर पीछे की और घूम कर कालिये से कहा, “अगर तुम मुझे और परेशान करोगे तो मैं तुम्हारे सरदार को बता दूंगी की तुम मुझे परेशान कर रहे हो।”
कालिये ने कहा, “ठीक है। पर तुम चिल्लाना मत। राँड़, अगर तू चिल्लायेगी तो अभी तो मैं कुछ नहीं करूँगा पर मौक़ा मिलते ही मैं तुझे चोद कर तेरी चूत और गाँड़ दोनों फाड़ कर तुझे मार कर जंगल में भेड़ियों को खिलाने के लिए डाल दूंगा और किसीको पता भी नहीं चलेगा। तू मुझे जानती नहीं। अगर तू चुप रहेगी तो मैं तुझे ज्यादा परेशान नहीं करूँगा। बस तू सिर्फ मेरा लण्ड सहलाती रहे।”
कालिये की धमकी सुनकर सुनीता की हवा ही निकल गयी। उसकी बात भी सच थी। मौक़ा मिलते ही वह कुछ भी कर सकता था। अगर उस जानवर ने कहीं उसे जंगल में दोनों हाथ और पाँव बाँध कर डाल दिया तो भेड़िये भले ही उसे ना मारें, पर पड़े पड़े चूंटियाँ और मकोड़े ही उसके बदन को बोटी बोटी नोंच कर खा सकते थे।
इससे बेहतर है की थोड़ा बर्दाश्त कर इस जानवर से पंगा ना लिया जाए। सुनीता ने अपनी मुंडी हिलाकर “ठीक है। अब मैं आवाज नहीं करुँगी।” कह दिया।
उसके बाद कालिये ने सुनीता की चूँचियों को जोर से मसलना बंद कर दिया पर अपना लण्ड वहाँ से नहीं हटाया। सुनीता ने तय किया की अगर कालिया ऐसे ही काफिले के साथ साथ चलता रहा तो वह नहीं चिल्लायेगी। सुनीता ने अपनी उंगलयों से जितना हो सके, कालिये के लण्ड को पकड़ कर सहलाना शुरू किया।
दहशतगर्दों का काफिला काफी घंटों तक चलता और दौड़ता ही रहा। कभी एकदम तेज चढ़ाव तो कभी एकदम ढलाव आता जाता रहा। पर पुरे सफर दरम्यान एक बात साफ़ थी की नदी के पानी के बहाव का शोर हर जगह आ रहा था। इससे साफ़ जाहिर होता था की काफिला कोई नदी के किनारे किनारे आगे चल रहा था।
सुनीलजी और सुनीता काफी थक चुके थे। घोड़े भी हांफने लगे थे। काफी घंटे बीत चुके थे। शाम ढल चुकी थी। सुनीता को महसूस हुआ की काफिला एक जगह रुक गया। तुरंत सुनीता की आँखों से पट्टी हटा दी गयी। सुनीता ने देखा की पूरा काफिला एक गुफा के सामने खड़ा था। वहाँ काफी कम उजाला था। कुछ देर में सुनीता के हाथों से भी रस्सी खोल दी गयी।
सुनीता ने जस्सूजी और सुनीलजी को भी देखा। उनके हाथों और पाँव की रस्सी निकाली जा रही थी। सब काफी थके हुए लग रहे थे। काफिले के मुखिया ने गुफा के अंदर से किसी को बाहर बुलाया।
दुशमन की सेना के यूनिफार्म में सुसज्जित एक अफसर आगे आया और जस्सूजी से हाथ मिलाता हुआ बोला, “मेरा नाम कर्नल नसीम है। कर्नल जसवंत सिंघजी आपका और सुनील मडगाओंकरजी का स्वागत है। आप बिलकुल निश्चिन्त रहिये। यहाँ आपको हमसे कोई खतरा नहीं है। हम सिर्फ आपसे कुछ बातचीत करना और कुछ जानकारी हासिल करना चाहते हैं। अब आप हिंदुस्तान की सरहद के दूसरी और आ चुके हैं। अगर आप सहयोग करेंगे तो हम आपको कोई तकलीफ नहीं पहुंचाएंगे।”
फिर सुनीता की और देख कर वह थोड़े अचरज में पड़े और उन्होंने मुखिया से पूछा, “अरे यह औरत कौन है? इन्हें क्यों उठाकर लाये हो?”
मुखिया ने उनसे कहा, “यह सुनीता है जनाब। यह बड़ी जाँबाज़ औरत है और जब हमने इन दोनों को कैद किया तो यह अकेले ही हम से भिड़ने लगी। मैंने सोचा सरदार को यह जवान औरत पेश करेंगे तो वह खुश हो जाएंगे।”
तब सुनीलजी ने आगे बढ़कर कहा, “जनाब यह मेरी बेगम हैं। आपके लोग उन्हें भी उठाकर ले आये हैं।”
कर्नल नसीम ने अपना सर झुकाते हुए माफ़ी मांगते हुए कहा, “मैं मुआफी माँगता हूँ। यह बेवकूफ लोगों ने बड़ी घटिया हरकत की है।”
उस आर्मी अफसर ने कहा, “अरे बेवकूफों, यह क्या किया तुमने? कहीं जनरल साहब नाराज ना हो जाएँ तुम्हारी इस हरकत से।”
फिर थोड़ा रुक कर वह अफसर कुछ देर चुप रहा और कुछ सोच कर बोला, “खैर चलो देखो, आज रात को इस मोहतरमा को इन साहबान के साथ ही रहने दो। सुबह जब जनरल साहब आ जाएंगे तब देखेंगे।”
फिर उस अफसर ने जस्सूजी की और घूमकर कहा, “अब आप आराम कीजिये। आपको हमारे जनरल साहब से सुबह मिलना होगा। वह आपसे कुछ ख़ास बातचीत करना चाहते हैं। हमने आपके लिए रात को आराम के लिए कुछ इंतेझामात किये हैं। इस वीरान जगह में हमसे ज्यादा कुछ हो नहीं पाया है। इंशाअल्लाह अगर आप हमसे कोआपरेट करेंगे तो फिर आप हमारी खातिरदारी देखियेगा। फिलहाल हमें उम्मीद है आप इसे कुबूल फरमाएंगे। चलिए प्लीज।”
कर्नल नसीम एक बड़े से हाल में उनको ले गए। अंदर जाने का एक दरवाजा था जो लकड़ी का था और उसके आगे एक और लोहे की ग्रिल वाला दरवाजा था। अंदर हॉल में एक बड़ा पलंग था और साथ में एक गुसलखाना था। एक बड़ा मेज था। दो तीन कुर्सियां रखीं थीं। बाकी कमरा खाली था।
कर्नल नसीम ने बड़ी विनम्रता से जस्सूजी से कहा, “मुझे माफ़ कीजिये, पर मोहतरमा के आने का कोई प्लान नहीं था इसलिए उनके लिए कोई ख़ास इंतेजामात कर नहीं पाए हैं। उम्मीद है आप इसी में गुजारा कर लेंगे।”
जो कालिया सुनीता को गोद में बिठाकर घोड़े पर बाँध कर ले आया था वह वहीँ खड़ा था। उसकी और इशारा करते हुए कर्नल नसीम ने कहा, “अगर आपको कोई भी चीज़ की जरुरत हो तो यह अब्दुल मियाँ आपकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। तो फिर कल सुबह मिलेंगे। तब तक के लिए खुदा हाफ़िज़।”
यह कह कर कर्नल नसीम चल दिए। दरवाजे पर पहुँचते ही जैसे कुछ याद आया हो ऐसे वह वापस घूमे और कर्नल साहब की और देख कर बोले, “देखिये, अगर आप के मन में कोई भागने का प्लान हो ता ऐसी गलती भूल कर भी मत करियेगा। हमारे हाउण्ड भूखे हैं। वह आपकी गंध को अच्छी तरह पहचानते हैं। हमने उन्हें खुला छोड़ रखा है। बाकी आप समझदार हैं। खुदा हाफ़िज़।”
यह कह कर कर्नल नसीम रवाना हुए। कालिया को दरवाजे पर ही तैनात किया गया था। जैसे ही नसीम साहब गए, कालिया की लोलुप नजर फिर से सुनीता के बदन पर मंडराने लगीं।
अब उसे एक तसल्ली थी की सरदार को मोहतरमा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। कालिया को लगा की अगर वह कैसे भी सुनीता को मना लेता है तो उसकी रात सुहानी बन सकती है।
सुनीलजी ने दोनों दरवाजे बंद कर दिए। कालिया दरवाजे के बाहर पहरेदारी में था। दरवाजा बंद होते ही सुनीता, सुनीलजी और जस्सूजी इकट्ठे हो गए और एक दूसरे की और देखने लगे।
जस्सूजी ने होँठों पर उंगली रख कर सब को चुप रहने का इशारा किया और वह पुरे कमरे की छानबीन करने में लग गए। उन्होंने पलंग, कुर्सी, मेज, दरवाजे, खिड़कियाँ सब जगह बड़ी अच्छी तरीके छानबीन की।
जस्सूजी को कोई भी कैमरा, या ऐसा कोई खुफिया यंत्र नहीं मिला। चैन की सांस लेते हुए उन्होंने सुनीलजी और सुनीता को कहा, “हमारे दुश्मन की सेना के अफसर हमसे हमारी सेना की गति विधियों के बारेमें खुफिया जानकारी हमसे लेना चाहते हैं। दुश्मन का कुछ प्लान है। शायद वह हम पर कोई एक जगह हमला कर घुसपैठ करना चाहते हैं। पर उन्हें पता नहीं की हम कहाँ कितने सतर्क हैं।
वह हमारी खातरदारी तब तक करते रहेंगे जबतक हम उनको खबर देते रहेंगे। जैसे ही उनको लगा की हम उनसे कोआपरेट नहीं करेंगे तो वह हमें या तो मार डालेंगे या फिर अपनी जेल में बंद कर देंगे। यह तय है की हम हमारे मुल्क से धोखा नहीं करेंगे।
कल जब उनके जनरल के सामने हमारी पेशी होगी तो वह जान जाएंगे की हम उन्हें कुछ भी नहीं बताने वाले। वह हमें खूब त्रास देंगे, मारेंगे, पीटेंगे, जलती हुई आग के अंगारों पर चलाएंगे और पता नहीं क्या क्या जुल्म करेंगे।
हमारी भलाई इसी में है की हम इस रात को ही कुछ भी कर यहां से भाग निकलें।
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