कैंटीन में सुनीता और ज्योतिजी की मुलाक़ात नीतू से हुई। उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब कहीं नजर नहीं आ रहे थे। नीतू ने घुटनों तक पहुंचता हुआ स्कर्ट पहना था।
उसकी करारी जाँघें खूबसूरत और सेक्सी लग रहीं थीं। ऊपर उसने सिलवटों वाला छोटी बाँहों वाला टॉप पहना था। टॉप पीछे से खुला था जो एक पतली सी डोर से बंधा था।
पीछे से नीतू की ब्रा की पट्टी साफ़ दिख रही थी। नीतू के अल्लड़ स्तन उसके छोटे से टॉप में समा नहीं रहे थे और उसके टॉप में से उभर कर बाहर आने की भरसक कोशिश में लगे हुए दिख रहे थे।
लम्बी और गोरी नीतू अपने गदराते हुए बदन के कारण हर जवान मर्द के लण्ड को जैसे चुनौती दे रही थी। नीतू ने कपाल पर टिका लगा रखा था जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था।
“हेलो, हाई” होने के बाद सुनीता ने चुपके से जब नीतू के कान में कप्तान कुमार के बारे में कुछ पूछा तो नीतू थोड़ा शर्मायी और बोली की उसे कुमार के बारेमें कुछ भी पता नहीं था।
कुमार से उसकी मुलकात सिर्फ पिछली शामको हुई थी उसके बाद पता नहीं वह कहाँ चले गए थे। सुनीता ने नीतू की कान में कुछ और भी बताया जिसके कारण शर्म के मारे नीतू का मुंह लाल लाल हो गया। ज्योतिजी ने यह देखा पर कुछ ना बोली।
कुछ ही देर में वहाँ कुमार और ब्रिगेडियर साहब हाजिर हुए। शायद हॉल के बाहर ही वह दोनों मिल गए थे और ब्रिगेडियर साहब कप्तान कुमार की कमर में हाथ डाले उन्हें साथ लेकर अपनी बीबी नीतू के सामने आकर खड़े हुए।
नीतू के पास पहुँचते ही खन्ना साहब ने कुमार से कहा, “कुमार साहब, मैं ज्यादा चल नहीं पाउँगा इस लिए इस टेक्किंग में मैं आ नहीं पाउँगा। मैं चाहता हूँ की आप युवा लोग इस ट्रैकिंग में जाएं और खूब मौज करें। मेरी ख्वाहिश है की आप नीतू के साथ ही रहें और उसका ध्यान रखें। अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा।”
कप्तान कुमार ने झुक कर खन्ना साहब का अभिवादन किया और उनकी बात को स्वीकार कर नीतू की जिम्मेदारी लेने का वादा किया। सब ट्रैकिंग में जाने के लिए तैयार हो गए थे।
कर्नल जसवंत सिंह का इंतजार था, सो कुछ ही देर में वह भी आ पहुंचे और सुबह के ठीक छह बजे सब वहाँ से ट्रैकिंग में जाने के लिए निकल पड़े।
ज्योतिजी ने देखा की सुनीता ने नीतू को आँख मार कर कुछ इशारा किया जिसे देख कर नीतू शर्मा गयी और मुस्कुरा दी।
ज्योति जी ने सुनीता को कोहनी मार कर धीरे से पूछा, “क्या बात है सुनीता? तुम्हारे और नीतू के बिच में क्या खिचड़ी पक रही है?”
सुनीता ने शरारत भरी आँखों से ज्योतिजी की और देखते हुए, “दीदी हमारे बिच में कोई खिचड़ी नहीं पक रही। मैंने उसे कहा, ट्रैन में जो ना हो सका वह आज हो सकता है। क्या वह तैयार है?”
ज्योतिजी ने सुनीता की और आश्चर्य से देखा और पूछा, “फिर नीतू ने क्या कहा?”
सुनीता ने हाथ फैलाते हुए ज्योतिजी के प्रति अपनी निराशा जताते हुए कहा, “दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई हिन्दुस्तांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब देगी क्या? क्या वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मुस्कुरादी। बस यही उसका जवाब था।”
ज्योति ने आगे बढ़कर सुनीता के कान पकडे और बोली, “मैं समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो मुझसे भी ज्यादा चंट निकली!”
सुनीता ने नकली अंदाज में जैसे कान में दर्द हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरे से बोली, “दीदी मैं चेली तो आपकी ही हूँ ना?”
कर्नल जसवंत सिंह (जस्सूजी) ने सबसे मार्किंग की गयी पगदंडी (छोटा चलने लायक रास्ता) पर आगे बढ़ने के लिए कहा।
एक जवान को सबसे आगे रखा और कप्तान कुमार और नीतू को उनके पीछे चलने को कहा। सब को हिदायत दी गयी की सब की अपनी सुरक्षा के लिए के लिए वह निश्चित किये गए रास्ते (पगदंडी) पर ही चलें।
पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर धीरे धीरे थोड़ी कठिन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान लेफ्टिनेंट थे। उनकी जिम्मेवारी थी की आगे से सबका ध्यान रखे। उसके फ़ौरन बाद नीतू और कुमार थे।
नीतू फुर्ती से दौड़ कर कुमार को चुनौती देती हुई आगे भागती और कुमार उसके पीछे भाग कर उसको पकड़ लेते। जस्सूजी और सुनीता, नीतू और कुमार की अठखेलियां देखते हुए एक दूसरे की और मुस्कराते हुए तेजी से उनके पीछे चल रहे थे।
आखिर में ज्योतिजी और सुनीलजी चल रहे थे। सुनीलजी को चलने की ख़ास आदत नहीं थी इस के कारण वह धीरे धोरे पत्थरों से बचते हुए चल रहे थे।
ज्योतिजी उनका साथ दे रही थी। नौ में से सिर्फ सात बचे थे। दो यात्री में से एक ब्रिगेडियर साहब और एक और उम्र दराज साहब ने टेक्किंग में नहीं जाने का फैसला लिया था वह बेस कैंप पर ही रुक गए थे।
रास्ते में जगह जगह दिशा सूचक चिह्न लगे हुए थे जिससे ऊपर के कैंप की दिशा की सुचना मिलती रहती थी। खूबसूरत वादियों और नज़ारे चारों और देखने को मिलते थे।
सुनीता इन नजारों को देखते हुए कई जगह इतनी खो जाती थी उन्हें देखने के लिए वह रुक जाती थी, जिसके कारण जस्सूजी को भी रुक जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद काफिले से ज्यादा ही आगे निकल गया था।
रास्ते में एक खूबसूरत नजारा दिखा जिसे देख कर नीतू रुक गयी और कुमार से बोली, “कप्तान साहब, सॉरी, कुमार! देखो तो! कितना खूब सूरत नजारा है? वह दूर के बर्फीले पहाड़ से गिर रहा यह छोटी सी युवा कन्या सा यह झरना कैसे कील कील करता हुआ अल्लड़ मस्ती में बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये हुए हैं? लगता है जैसे आसमान अपनी प्रियतमा जमीन को चूम रहा हो।”
कुमार ने नीतू के हाथों में अपना हाथ देते हुए कहा, “नीतू ज़रा बताओ तो, आसमान अपनी प्रीतमा धरती को कैसे चूम रहा है?”
नीतू ने कुछ शर्माते हुए कहा, “मुझे क्या पता? तुम्हीं बताओ.”
कुमार ने नीतू के गालों पर हल्का सा चुम्बन लेते हुए कहा, “ऐसे?”
नीतू ने कहा, “भला कोई अपनी प्रियतमा को ऐसे थोड़े ही चुम्बन करता है?”
कुमार ने पूछा, “तो बताओ ना? फिर कैसे करता है?”
नीतू ने कहा, “मैं क्यों बताऊँ? क्या तुम नहीं बता सकते?”
कुमार ने हँस कर एक ही झटके में नीतू को अपनी बाँहों में भरकर उसके लाल लाल चमकते होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक हाथ नीचा कर नीतू की छाती पर हलके से रखते हुए शर्म के मारे लाल हो रही नीतू को जोर से चूमने और उसकी चूँचियों को टॉप के ऊपर से ही मसलने में लग गए।
अफ़रातफरीमें नीतू ने कुमार के हाथ अपनी छाती पर से हटा दिए और बोली, “शर्म करो! हमारे पीछे कर्नल साहब आ रहे हैं। अगर हम यही रास्ते पर चलते रहे तो वह जल्द ही यहां पहुँच जाएंगे।”
कुमार ने निराशा भरे अंदाज में कहा, “तो फिर क्या करें? कहाँ जाएं?”
नीतू ने बहते हुए झरने की और इशारा करते हुए कहा, “हम इस पहाड़ी वाले रास्ते से थोड़ा निचे उतर जाते हैं। वहाँ थोड़ी सी खाई जैसा दिख रहा है ना? वहाँ चलते हैं। वहाँ से नजारा भी अच्छा देखने को मिलगा और हमें कोई देखेगा भी नहीं और कोई दखल भी नहीं देगा।”
कुमार ने हिचकिचाते हुए कहा, “पर सेना के नियम के अनुसार हम इस रास्ते से अलग नहीं चल सकते।”
नीतू ने मुस्कराते हुए कहा, “अच्छा जनाब? क्या आप सब काम नियम के अनुसार ही करेंगे? क्या हम जो कर रहे हैं, नियम के अनुसार है?”
कुमार ने असहायता दिखाते हुए अपने हाथ खड़े कर कहा,”हे भगवान्! इन औरतों से बचाये! ठीक है भाई। चलो, वहीँ चलते हैं।”
नीतू ने शरारत भरी नज़रों से कुमार की और देखते हुए कहा, “अच्छा? लगता है जनाब का काफी औरतों से पाला पड़ा है?”
कुमार ने उसी अंदाज में कहा, “भाई एक ही औरत काफी है। ज्यादा को तो मैं सम्हाल ही नहीं पाउँगा।” ऐसा कह कर नीतू का हाथ कस के पकड़ कर कुमार भाग कर मुख्य रास्ते से निचे उतर गए और निचे की और एक गुफा जैसा बना हुआ था वहाँ एक बड़े पत्थर के पीछे जा पहुंचे।
वहाँ पहुँच कर कुमार ने कस कर नीतू को अपनी बाँहों में दबोच लिया और उसके होँठों पर दबा कर अपने होँठ रख दिए। दोनों एक शिला का टेक लेकर खड़े एक दूसरे का रस चूसने में लग गए।
नीतू के मुंहमें कुमार ने अपनी जीभ डाल दी। नीतू कुमार की जिह्वा को चूसकर उसकी लार निगलती गयी। कुमार नीतू के रसीले होँठों का सारा रस चूस कर जैसे अपनी प्यास तृप्त करना चाहता था।
पिछले दो तीन दिनों से कुमार इन होँठों को चूमने और चूसने के सपने दिन रात देखता रहता था। आज वही होँठ उसकी प्यास बुझाने के लिए उसके सामने अपने आप प्रस्तुत हो रहे थे।
कुमार का एक हाथ नीतू ने गर्व से उन्मत्त कड़क स्तनोँ को उसके टॉप के ऊपर से मसलने में लगा था। इन अल्लड़ मद मस्त स्तनोँ ने कुमार की रातों की नींद हराम कर रखी थी।
कुमार इन स्तनोँ को दबाने, मसलने और चूसने के लिए बेताब था। वह उन पर अपना सर मलना चाहता था वह उन स्तनों पर मंडित प्यारी निप्पलों को चूमना, चूसना और काटना चाहता था।
उधर नीतू कुमार से मिलकर उससे मिलन कर अपने जीवन की सबसे प्यारी पलों को भोगना चाहती थी। उसने उस से पहले कभी किसी युवा से सम्भोग नहीं किया था।
नीतू ने सिर्फ ब्रिगेडियर साहब से कुछ सालों पहले सेक्स किया था। उसे याद भी नहीं था की वह उसे वह उसे कैसा लगा था। नीतू भूल चुकी थी की जवानी क्या होती है और बदन की भूख क्या होती है।
कुमार से मिलने पर जो नीतू को महसूस हुआ वह उससे पहले उसे कभी महसूस नहीं हुआ था। नीतू ने अपनी चूत में सरसराहट और गीलापन काफी समय के बाद या शायद पहली बार महसूस किया था।
कुमार और नीतू के पीछे चल रहे जस्सूजी ने अचानक ही नीतू और कुमार को मुख्य पगदंडी से हट कर निचे झरने के करीब कंदराओं की और जाते हुए देखा तो वह जोर से चिल्लाकर उन्हें सावधान करना चाहते थे की ऐसा करना काफी खतरनाक हो सकता था।
पर उनके जोर से चिल्लाने पर भी उनकी की आवाज कुमार और नीतू के कानों तक पहुँच ना सकी। नदी के पानी के तेज बहाव की कलकलाहट के शोर में भला उनकी आवाज वह दो तेजी से धड़कते दिल और सुलगते बदन कहाँ सुनने वाले थे?
जस्सूजी वहीँ रुक गए। उन्होंने पीछ चल रही सुनीता की और देखा। तेज चढ़ाई चढ़ते हुए कदम कदम पर सुनीता का फ्रॉक उसकी जाँघों तक चढ़ जाता था।
जब सुनीता आगे की और झुकती तो उसके ब्लाउज के पीछे छिपे हुए उसके अल्लड़ स्तनोँ के काफी बड़े हिस्सों की झांकी हो जाती थी। जस्सूजी रुक गए और जैसे ही सुनीता करीब आयी, जस्सूजी ने सुनीता का हाथ थामा और उसे ऊपर चढ़ाई चढ़ने में मदद की।
सर्दी के बावजूद, सुनीता के गुलाबी चेहरे पर पसीने की नदियाँ सी बह रहीं थीं।
जस्सूजी ने सुनीता को कहा, “सुनीता, मैंने अभी वहाँ दूर कुमार और नीतू को पगदंडी से हट कर निचे नदी की और जाते हुए देखा है। वह लोग मुख्य रास्ता छोड़ कर उस तरफ क्यों गए? क्या उन्हें पता नहीं है की ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है? अब हम क्या करें?”
सुनीता जस्सूजी की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, “तो? तो क्या हुआ? जस्सूजी, क्या आप को दो धड़कते दिलों की आवाज नीतू और कुमार में सुनाई नहीं दी? यह तो होना ही था।”
जस्सूजी सुनीता की बात समझ नहीं पाए और अचम्भे से सुनीता की और देखते रह गए। तब सुनीता ने जस्सूजी की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा, “मेरे बुद्धू जस्सूजी! आप कुछ नहीं समझते। अरे भाई नीतू और कुमार हम उम्र होने के बजाय एक दूसरे से काफी आकर्षित हैं? क्या आपने उनकी आँखों में बसा प्यार नहीं देखा?”
जस्सूजी की आँखें यह सुनकर फटी की फटी ही रह गयीं। वह बोल पड़े, “क्या? पर नीतू तो शादीशुदा है?”
सुनीता से हँसी रोकी नहीं जा रही थी। वह बोली, ” हम दोनों भी तो शादीशुदा हैं? तो क्या हम दोनों…..” यह बोल कर सुनीता अचानक चुप हो गयी। उसे ध्यानआया की कहीं इधरउधर बोल देने से जस्सूजी आहत ना हों। सुनीता जस्सूजी के घाव पर नमक छिड़कने का काम सुनीता नहीं करना चाहती थी।
जस्सूजी ने कहा, “इस कदर इस जंगल में अकेले इधर उधर घूमना ठीक नहीं।”
यह कहानी आगे जारी रहेगी!
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