यहां देखिये, क्या हो रहा है? यहां तो एक कामिनी कामुक स्त्री नीतू चाहती थी की कप्तान कुमार उसे ललचाये और उससे सम्भोग करे।
कप्तान कुमार के नीतू की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी, की वह खुद सामने चलकर अपना कामाग्नि कप्तान कुमार से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह अपना शील और अपनी इज्जत कप्तान कुमार को सौंपना चाहती थी।
पर कप्तान कुमार तो गहरी नींद में सोये हुए लग रहे थे। ऊपर की बर्थ में लेटी हुई कामाग्नि लिप्त कामिनी नीतू, कुमार से अभिसार करने के लिए उन की पहल का इंतजार कर रही थी, या यूँ कहिये की तड़प रही थी।
पहले जो बड़ी मानिनी बन कर कुमार की पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन में भड़क रही काम की ज्वाला को कुमार के बदन से मिला कर संतृप्त करना चाह रही थी।
पर आखिर कामिनी भी मानिनी तो है ही ना? मानिनी कितनी ही कामातुर क्यों ना हो, वह अपना मानिनी रूप नहीं छोड़ सकती। वह चाहती है की पुरुष ही पहल करे। जब कुमार से कोई पर्याप्त पहल नहीं हुई तो व्याकुल कामिनी ने अपनी चद्दर का एक छोर जानबूझ कर निचे की और सरका दिया।
उसने कुमार को एक मौक़ा दिया की कुमार उसे खिंच कर इशारा दे और उसे निचे अपनी बर्थ पर बुलाले। तब फिर कामिनी का मानिनीपन भी पूरा हो जाएगा और वह कुमार पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप देगी।
पर काफी समय व्यतीत होने पर भी कुमार की और से कोई इशारा नहीं हुआ। समय बीतता जाता था। नीतू को बड़ा गुस्सा आ रहा था। यह क्या बात हुई की उसे रात को आने का न्योता दे कर खुद सो गए? नीतू ने अपनी निचे खिसकाई हुई चद्दर ऊपर की और खिंच ली और करवट बदल कर चद्दर ओढ़ कर सो गयी।
पर नीतू की आँखों में नींद कहाँ? वह तो जागते हुए कुमार के साथ अभिसार (चुदाई) के सपने देख रही थी। नीतू का मन यह सोच रहा था की जिसका शरीर इतना कसा हुआ और जो इतने अच्छे खासे कद का था ऐसे जाबाँझ सिपाही का लण्ड कैसा होगा? जब कुमार के हाथ नीतू की चूँचियों को छुएंगे और उन्हें दबाने और मसलने लगेंगे तो नीतू का क्या हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ नीतू की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर फिरने लगेगा तो क्या नीतू अपनी कराहट रोक पाएगी?
नीतू की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके लिए अब और इंतजार करना नामुमकिन सा लग रहा था।
नीतू का मन जब ऐसे विचारों में डूबा हुआ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस हुई। नीतू ने थोड़ा सा पर्दा हटा कर देखा तो पाया की सुनीलजी अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे।
नीतू को मन में कहीं ना कहीं ऐसा अंदेशा हुआ की कुछ ना कुछ तो होने वाला था। उसने परदे का एक कोना सिर्फ इतना ही हटाया की उसमें से वह देख सके।
नीतू ने देखा की सुनीलजी शायद अपनी चप्पल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही देर में नीतू ने देखा की सुनीलजी वाशरूम की और चल दिए। नीतू को यह देख कुछ निराशा हुई।
वह सोच रही थी की सुनील जी शायद निचे की बर्थ पर लेटी हुई दो में से एक स्त्री के साथ सोने जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। नीतू के मन में पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोड़ियाँ एक दूसरे के प्रति कुछ ज्यादा ही रूमानी लग रही थीं।
खैर, नीतू दुखी मन से पर्दा धीरे से खिंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आश्चर्य की सिसकारी निकलते निकलते रुक गयी।
नीतू ने ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए कर्नल साहब की परछाईं सी आकृति को निचे की बर्थ पर लेटी हुई सुनीताजी के बिस्तर में से अफरातफरी में बाहर निकलते हुए देखा। नीतू की तो जैसे साँसे ही रुक गयी।
अरे? सुनीताजी जो नीतू को दोपहर कुमार के बारे में पाठ पढ़ा रही थीं, उनके बिस्तर में कर्नल अंकल? कर्नल साहब कब सुनीता जी के बिस्तर में घुस गए? कितनी देर तक कर्नल साहब सुनीताजी के बिस्तर में थे? यह सवाल नीतू के दिमाग में घूमने लगे।
नीतू का माथा ही ठनक गया। क्या सुनीताजी चलती ट्रैन में ज्योतिजी के पति कर्नल साहब से चुदवा रही थीं? एक पुरुष का एक स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में से इस तरह अफरातफरी में बाहर निकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कर्नल साहब सुनीताजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब सुनीताजी के पति सामने की ही ऊपर की बर्थ में सो रहे थे? और फिर वह सुनीता जी के बिस्तर में से बाहर निकल कर दूसरी और भाग खड़े हुए तब जब सुनीताजी के पति अपनी बर्थ से निचे उतर वाशरूम की और चल दिए थे।
नीतू को कुछ समझ नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। वह चुपचाप अपने बिस्तर में पड़ी आगे क्या होगा यह सोचती हुई कर्नल साहब और सुनीलजी के वापस आने का इंतजार करने लगी।
कुछ ही देर में पहले सुनीलजी वापस आये। नीतू ने देखा की वह सुनीताजी की बर्थ पर जाकर, झुक कर अपनी बीबी को जगा कर कुछ बात करने की कोशिश कर रहे थे।
कुछ देर तक उन दोनों के बिच में कुछ बातचीत हुई, पर नीतू को कुछ भी नहीं सुनाई दिया। फिर नीतू ने देखा की सुनीलजी एक अच्छे बच्चे की तरह वापस चुपचाप अपनी ऊपर वाली बर्थ में जाकर लेट गए।
नीतू को लगा की कुछ न कुछ तो खिचड़ी पक रही थी। थोड़ी देर तक इंतजार करने पर फिर कर्नल साहब भी वाशरूम से वापस आ गए। वह थोड़ी देर निचे सुनीताजी की बर्थ के पास खड़े रहे।
नीतू को ठीक से तो नहीं दिखा पर उस ने महसूस किया की सुनीताजी के बिस्तर में से शायद सुनीताजी का हाथ निकला। आगे क्या हुआ वह अँधेरे के कारण नीतू देख नहीं पायी, पर उसके बाद कर्नल साहब अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चले गए।
डिब्बे में फिर से सन्नाटा छा गया। नीतू देखने लगी पर काफी देर तक कोई हलचल नहीं हुई। ऐसे ही शायद एक घंटे के करीब हो चुका होगा। नीतू आधी नींद में और आधे इंतजार में ना तो सो पा रही थी ना जग पा रही थी।
निराश होकर नीतू की आँख बंद होने वाली ही थी की नीतू को फिर कुछ हलचल का अंदेशा हुआ। फिर नीतू ने पर्दा हटाया तो पाया की सुनीलजी फिर अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे।
इस बार नीतू को लगा की जरूर कुछ ना कुछ नयी कहानी बनने वाली थी। नीतू ने सुनीलजी की परछाईं को जब अपनी बीबी सुनीताजी की बर्थ की और जाते हुए देखा तो नीतू समझ गयी की सुनीलजी का मूड़ कुछ रोमांटिक हो रहा था और चलती ट्रैन में वह अपनी बीबी की चुदाई का आनंद लेने के मूड़ में लग रहे थे।
नीतू बड़ी सतर्कता और ध्यान से देखने लगी। देखते ही देखते सुनीलजी चुपचाप अपनी बीबी की बर्थ में सुनीताजी का कम्बल और चद्दर ऊपर उठा कर उसमें घुस गए।
बापरे! उस वक्त नीतू के चेहरे के भाव देखने लायक थे। एक ही रात में दो दो आशिकाना हरकत? नीतू सोच रही थी की सुनीताजी की चुदाई अभी कर्नल साहब कर ही चुके थे की अब सुनीताजी अपने पति से चुदवायेंगीं? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो नयी पीढ़ी से भी कहीं आगे थी!
सुनीता जी के स्टैमिना के लिए भी नीतू के मन में काफी सम्मान हुआ। नीतू जानती थी की कर्नल साहब और सुनीलजी अच्छे खासे जवान और तंदुरस्त थे। उनका लण्ड और स्टैमिना भी काफी होगा। ऐसे दो दो मर्दों से एक ही रात में चुदवाना भी मायने रखता था।
नीतू देखती ही रही की सुनीलजी कैसे अपनी पत्नी सुनीताजी की चुदाई करते हैं। पर अँधेरे और ढके हुए होने के कारण काफी देर तक मशक्कत करने पर भी वह कुछ देख नहीं पायी।
रात के दो बज रहे थे। नीतू को नींद आ ही गयी। नीतू आधा घंटा गहरी नींद सो गयी होगी तब उसने अचानक कुमार की साँसे अपने नाक पर महसूस की। आँखें खुली तो नीतू ने पाया की वह निचे की बर्थ पर कुमार की बाहों में थी।
कुमार उसे टकटकी लगा कर देख रहा था। सारे पर्दे बंद किये हुए थे। नीतू के पतले बदन को कुमार ने अपनी दो टांगों में जकड रखा था और कुमार की विशाल बाँहें नीतू की पीठ पर उसे जकड़े हुए लिपटी हुई थीं।
कुमार ने नीतू को अपने ऊपर सुला दिया था। दोनों के बदन चद्दर और कम्बल से पूरी तरह ढके हुए थे।
नीतू जैसे कुमार में ही समा गयी थी। छोटी से बर्थ पर दो बदन ऐसे लिपट कर लेटे हुए थे जैसे एक ही बदन हो। नीतू की चूत पर कुमार का खड़ा कड़क लौड़ा दबाव डाल रहा था।
नीतू का घाघरा काफी ऊपर की और उठा हुआ था। नीतू तब भी आंधी नींद में ही थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था की वह कैसे ऊपर से निचे की बर्थ पर आगयी।
नीतू ने कुमार की और देखा और कुछ खिसियानी आवाज में पूछा, “कुमार, मैं ऊपर की बर्थ से निचे कैसे आ गयी?”
कुमार मुस्कुराये और बोले, “जानेमन तुम गहरी नींद सो रही थी। मैंने तुम्हें जगाया नहीं। मैं तुम्हें अपनों बाहों में लेना चाहता था। तो मैंने तुम्हें हलके से अपनी बाहों में उठाया और उठाकर यहां ले आया।”
“अरे बाबा, तुम्हें कही घाव हैं और अभी तो वह ताजा हैं।” नीतू ने कहा।
“ऐसी छोटी मोटी चोटें तो हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं। फिर तुम भी तो कोई ख़ास भारी नहीं हो। तुम्हें उठाना बड़ा आसान था। बस यह ध्यान रखना था की कोई देख ना ले।” कुमार ने अपनी मूछों पर ताव देते हुए कहा।
कुमार ने फिर नीतू का सर अपने दोनों हाथोँ में पकड़ा और नीतू के होँठों पर अपने होँठ चिपका दिए। नीतू कुछ पल के किये हक्कीबक्की सी कुमार को देखती ही रही।
फिर वह भी कुमार से चुम्बन की क्रिया में ऐसे जुड़ गयी जैसे उन दोनों के होंठ सील गए हों। कुमार और नीतू दोनों एक दूसरे के होँठों और मुंह में से सलीवा याने लार को चूस रहे थे।
नीतू ने अपनी जीभ कुमार के मुंह में डाल दो थी। कुमार उससे सारे रस जैसे निकाल कर निगल रहा था।
कुमार के चेहरे पर बंधीं पट्टियां होने के कारण नीतू कुछ असमंजस में थी की कहीं कुमार को कोई दर्द ना हो। पर कुमार थे की दर्द की परवाह किये बिना नीतू को अपने बदन पर ऐसे दबाये हुए थे की जैसे वह कहीं भाग ना जाये। नीतू बिलकुल कुमार के बदन से ऐसी चिपकी हुई थी की उसकी सांस भी रुक गयी थी।
नीतू को कभी किसी ने इतनी उत्कटता से चुम्बन नहीं किया था। उसके लिए यह पहला मौक़ा था जब किसी हट्टेकट्टे हृष्टपुष्ट लम्बे चौड़े जवान ने उसे इतना गाढ़ आलिंगन किया हो और इस तरह उसे चुम रहा हो।
कुमार नीतू का सारा रस चूस चूस कर निगल रहा था यह नीतू को अच्छा लगा। कुछ देर बाद कुमारअपनी जीभ नीतू के मुंह में डाल और नीतू के मुंह के अंदर बाहर कर नीतू के मुंह को अपनी जीभ से चोदने लगा।
नीतू बोल पड़ी, “कुमार यह क्या कर रहे हो?”
कुमार ने कहा, “प्रैक्टिस कर रहा हूँ।”
नीतू, “किस चीज़ की प्रैक्टिस?”
कुमार: “जो मुझे आखिर में करना है उसकी प्रैक्टिस.”
कुमार की बात सुनकर नीतू की जाँघों के बिच से रस चुने लगा। नीतू की टाँगें ढीली पड़ गयीं। नीतू ने कुमार की और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, “अच्छा? जनाब ने यहाँ तक सोच लिया है?”
कुमार ने कहा, “मैंने तो उससे आगे भी सोच रखा है।”
वह कुमार की बात का जवाब नहीं दे पायी। नीतू समझ गयी थी की कुमार का इशारा किस और है। शायद कुमार उसके साथ जिंदगी बिताने की बात कर रहे थे।
नीतू के चेहरे पर उदासी छा गयी। वह जानती थी की वह कुमार की इच्छा पूरी करने में असमर्थ थी। कुमार को पता नहीं था की वह शादी शुदा थी। पर अँधेरे में भी कुमार समझ गए की नीतू कुछ मायूस सी लग रही थी।
कुमार नीतू की आँखों में झाँक कर उसे देखने लगा। नीतू ने पूछा, “क्या देख रहे हो?”
कुमार: “तुम्हारी खूबसूरत आँखें देख रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ की मेरी माशूका कुछ मायूस है।”
नीतू: “क्या तुम इतने अँधेरे में भी मेरी आँखें देख सकते हो? मेरे चेहरे के भाव पढ़ सकते हो? मेरी आँखों में तुम्हें क्या दिख रहा है?”
कुमार: “तुम्हारी आँखों में मैं मेरी सूरत देख रहा हूँ।”
नीतू शर्माती हुई बोली, “यह बात सच है। मेरी आँखों में, मेरे मन में अभी तुम्हारे सिवा कोई और नहीं है।”
कुमार ने कहा, “कोई और होना भी नहीं चाहिए, क्यूंकि मैं तुमसे बेतहाशा प्यार करने लगा हूँ। मैं नहीं चाहूँगा की मेरी प्यारी जानू और किसी की और मुड़ कर भी देखे।”
नीतू: “माशा अल्लाह! अभी तो हमें मिले हुए इन मीन चंद घंटे ही हुए हैं और मियाँ मुझे प्यार करने और अपना हक़ जमाने भी लग गए?”
कुमार: “प्यार घंटों का मोहताज नहीं होता, जानेमन! प्यार दिल से दिल के मिलने से होता है।”
नीतू, “देखो कुमार! आप मेरे बारेमें कुछ भी नहीं जानते। प्यार में कई बार इंसान धोका खा सकता है। तुम्हें मेरे बीते हुए कल के बारे में कुछ भी तो पता नहीं है।”
कुमार, “मैं तुम्हारे बीते हुए कल के बारे में कुछ नहीं जानना चाहता। मैं प्यार में धोका खाने के लिए भी तैयार हूँ।”
कुमार की बात सुनकर नीतू की आँखों में पानी भर आया। पहली बार किसी छैलछबीले नवयुवक ने नीतू से ऐसी प्यार भरी बात कही थी। उस दिन तक अगर किसी भी युवक ने नीतू की और देखा था तो सिर्फ हवस की नजर से ही देखा था।
पर कुमार तो उसे अपनी जिंदगी की रानी बनाना चाहते थे। नीतू ने अपने होँठ कुमार के होँठ से चिपका कर कहा, “आगे की बात बादमें करेंगे। अभी तो मैं तुम्हारी ही हूँ । तुम मुझे प्यार करना चाहते हो ना? तो करो।”
फिर नीतू ने कुमार के कानों के पास अपना मुंह ले जा कर कहा, “क्या तुम्हें पता है की अभी इस वक्त हम अकेले ही नहीं है जो इस ट्रैन में एक दूसरे से इतने घने प्यार में मशगूल हैं?”
कुमार ने नीतू की और आश्चर्य से देखा और बोले, “क्या मतलब?”
नीतू ने कहा, “मैं क्या कहूं? मुझे कहते हुए भी बड़ी शर्म आ रही है। यह जो सुनीताजी हैं ना? जिन्होंने तुम्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी? वह भी काफी तेज निकली! मैंने अभी अभी देखा की पहले उनके बिस्तर में ज्योतिजी के पति कर्नल साहब घुसे हुए थे। पता नहीं कबसे घुसे हुए होंगे और उन्होंने सुनीता जी के साथ क्या क्या किया होगा? फिर वह बाहर निकल आये तो कुछ देर बाद अभी अभी सुनीताजी के पति सुनीलजी अपनी पत्नी सुनीताजी की बर्थ में उनके कम्बल में घुसे हुए हैं। शायद इस वक्त जब हम बात कर रहे हैं तो वह कुछ और कर रहे होंगे।”
कुमार को यह सुनकर नीतू की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह बोल पड़े, “नीतू तुम क्या कह रही हो? एक ही रात में दो दो मर्दों से लीला? भाई कमाल है! यह पुरानी पीढ़ी तो हम से भी आगे है!”
फिर कुछ सोच कर बोले, “उनको जो करना है, करने दो। हम अपनी बात करते हैं। हम बात क्यों कर रहे हैं? भाई हम भी तो कुछ करें ना?”
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