सुनीता ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। सुनीलजी सामने की बर्थ पर बैठे हुए ही गहरी नींद में थे। जैसे ही सुनीता ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जस्सूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ।
जस्सूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह देखा तो जस्सूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद में ले लिए।
जस्सूजी को ठण्ड ना लगे इस लिए सुनीता ने एक और रक्खी एक चद्दर और उसके ऊपर रक्खा पड़ा हुआ कम्बल खिंच निकाला और जस्सूजी के पुरे शरीर को उस कम्बल से ढक दिया।
कम्बल के निचे एक चद्दर भी लगा दी। वही कम्बल और चद्दर का दुसरा छोर अपनी गोद और छाती पर भी डाल दिया। इस तरह ठण्ड से थोड़ी राहत पाकर सुनीता प्यार से जस्सूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी।
उसे जस्सूजी के पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छा लग रहा था। उसे अपने गुरु और अपने प्यारे प्रेमी की सेवा करने का मौक़ा मिला था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे।
पाँव दबाते हुए सुनीता जस्सूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जस्सूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई।
सुनीता ने अपनी टांगें भी लम्बीं कीं और अपने पति सुनीलजी की गोद में रख दीं। सुनीलजी खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं।
उन्होंने सुनीता की और देखा। उन्होंने देखा की जस्सूजी की टाँगें उनकी पत्नी सुनीता की गोद में थीं और सुनीता उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। सुनीता ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।
सुनीता जस्सूजी की टाँगों को सेहला और दबा रही थी तब उसे जस्सूजी के हाथ का स्पर्श हुआ। जस्सूजी ने कम्बल के निचे से अपना एक हाथ लंबा कर सुनीता के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खिसका कर उसे अपनी दो जाँघों के बिच में रख दिया।
अब सुनीता समझ गयी की जस्सूजी चाहते थे की सुनीता जस्सूजी के लण्ड को अपने हाथोँ में पकड़ कर सहलाये। सुनीता जस्सूजी की इस हरकत से चौंक गयी। वह इधर उधर दिखने लगी। सब गहरी नींद सो रहे थे।
सुनीता का हाल देखने जैसा था। सुनीता ने जब चारों और देखा तो पाया की कम्बल के निचे की उनकी हरकतों को और कोई आसानी से नहीं देख सकता था। सारे परदे फैले हुए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।
सुनीता ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और किया और थोड़ा जस्सूजी की और झुक कर जस्सूजी के लण्ड को उनकी पतलून के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ा। जस्सूजी का लण्ड अभी पूरा कड़क नहीं हुआ था। पर बड़ी जल्दी कड़क हो रहा था।
तभी सुनीता ने चारोँ और सावधानी से देख कर जस्सूजी के पतलून की ज़िप ऊपरकी और खिसकायी और बड़ी मशक्कत से उनकी निक्कर हटा कर उनके लण्ड को आज़ाद किया और फिर उस नंगे लण्ड को अपने हाथ में लिया।
सुनीता के हाथ के स्पर्श मात्र से जस्सूजी का लण्ड एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूर्व रस छोड़ने लगा। सुनीता का हाथ जस्सूजी के पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ हो गया था।
फिर सुनीता ने अपनी उँगलियों की मुट्ठी बना कर उसे अपनी छोटी सी उँगलियों में लिया। वह जस्सूजी का पूरा लण्ड अपनी मुट्ठी में तो नहीं ले पायी पर फिर भी जस्सूजी के लण्ड की ऊपरी त्वचा को दबा कर उसे सहलाने और हिलाने लगी।
सुनीता ने जस्सूजी के चेहरे की और देखा तो वह अपनी आँखें मूँदे सुनीता के हाथ में अपना लण्ड सेहलवा कर अद्भुत आनंद महसूस कर रहे थे ऐसा सुनीता को लगा।
उसके बाद सुनीता ने धीरे धीरे जस्सूजी का लण्ड हिलाने की रफ़्तार बढ़ाई। सुनीता चाहती थी की इससे पहले की कोई जाग जाए, वह जस्सूजी का वीर्य निकलवादे ताकि किसीको शक ना हो।
सुनीता के हाथ बड़ी तेजी से ऊपर निचे हो रहे थे। सुनीता ने कम्बल और चद्दर को मोड़ कर उसकी कुछ तह बना कर ख़ास ध्यान रक्खा की उसके हाथ हिलाने को कोई देख ना पाए। सुनीता जस्सूजी के लण्ड को जोर से हिलाने लगी।
अब सुनीता का हाथ दुखने लगा था। सुनीता ने देखा की जस्सूजी के चेहरे पर एक उन्माद सा छाया हुआ। थोड़ी देर तक काफी तेजी से जस्सूजी का लण्ड हिलाने पर सुनीता ने महसूस किया की जस्सूजी पूरा बदन अकड़ सा गया। जस्सूजी अपना वीर्य छोड़ने वाले थे।
सुनीता ने धीरे से अपनी जस्सूजी के लण्ड को हिलाने की रफ़्तार कम की। जस्सूजी के लण्ड के केंद्रित छिद्र से उनके वीर्य की पिचकारी छूट रही थी। सुनीता को डर लगा की कहीं जस्सूजी के वीर्य से पूरी चद्दर गीली ना हो जाए।
फिर सुनीता ने दूसरे हाथ से अपने पास ही पड़ा हुआ छोटा सा नेपकिन निकाला और उसे दूसरे हाथ में देकर अपने हाथ की मुट्ठी बना कर उनका सारा वीर्य अपनी मुट्ठी में और उस छोटे से नेपकिन में भर लिया। नेपकिन भी जस्सूजी के वीर्य से पूरा भीग चुका था।
जस्सूजी के लण्ड के चारों और अच्छी तरह से पोंछ कर सुनीता ने फिर से उनका नरम हुआ लण्ड और अपना हाथ दूसरे नेपकिन से पोंछा और फिर जस्सूजी के लण्ड को उनकी निक्कर में फिर वही मशक्कत से घुसा कर जस्सूजी की पतलून की ज़िप बंद की। उसे यह राहत थी की उसे यह सब करते हुए किसीने नहीं देखा था।
जस्सूजी को जरुरी राहत दिला कर सुनीता ने अपनी आँखें मुँदीं और सोने की कोशिश करने लगी।
ज्योतिजी पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थीं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नहीं पायीं थीं। ज्योतिजी ने अपनी टाँगें लम्बीं और टेढ़ी कर रखीं थीं जो सुनीलजी की जाँघों को छू रही थीं।
सुनीता जब आधी अधूरी नींद में थी तब उसे कुमार और नीतू की कानाफूसी सुनाई दी। सुनीता समझ गयी की कुमार नीतू को फाँसने की कोशिश में लगा था। नीतू भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी।
दरअसल नीतू और कुमार साइड वाली बर्थ लम्बी ना करके बर्थ को ऊपर उठा कर दो कुर्सियां बना कर आमने सामने बैठे थे। नीतू और कुमार का परिचय हो चुका था। पर शायद नीतू ने अपनी पूरी कहानी कुमार को नहीं सुनाई थी। नीतू ने यह नहीं जाहिर किया था की वह शादी शुदा थी।
वैसे भी नीतू को देखने से कोई यह नहीं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। नीतू ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा निशान नहीं लगा रखा था। ना ही माँग में सिंदूर और नाही कोई मंगल सूत्र।
नीतू ने ऊपर सफ़ेद रंग का टॉप पहना था। उसका टॉप ब्लाउज कहो या स्लीवलेस शर्ट कहो, नीतू के उन्नत स्तनोँ के उभार को छुपाने में पूरी तरह नाकाम था। नीतू के टॉप में से उसके स्तन ऐसे उभरे हुए दिख रहे थे जैसे दो बड़े पहाड़ उसकी छाती पर विराजमान हों।
नीतू ने निचे घाघरा सा खुबसुरत नक्शबाजी वाला लंबा फैला हुआ मैक्सी स्कर्ट पहना था जो नीतू की एड़ियों तक था। नीतू ने अपने लम्बे घने बालों को घुमा कर कुछ क्लिपों में बाँध रखे थे। होठोँ पर हलकी लिपस्टिक उसके होठोँ का रसीलापन उजागर कर रही थी।
और नीतू की लम्बी गर्दन और चाँद सा गोल चेहरा, जिस पर उसकी चंचल आँखें उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाती थी। नीतू की गाँड़ का उभार अतिशय रमणीय था।
उसकी पतली कमर के निचे अचानक उदार फैलाव से वह सब मर्दो की आँखों के आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। जब नीतू चलती थी तो उसकी गाँड़ का मटकना अच्छेअच्छों का पानी निकाल सकता था।
जब कभी थोडासा भी हवा का झोंका आता तो नितुका घाघरा नीतू के दोनों पाँव के बिच में घुस जाता और नीतू की दोनों जाँघों के बिच स्थित चूत कैसी होगी यह कल्पना कर अच्छे अच्छे मर्द का मुठ मारने का मन करता था।
नीतू की जाँघें सीधी और लम्बी थीं। नीतू कोई भी भारतीय नारी से कुछ ज्यादा ही लम्बी होगी। उसकी लम्बाई के कारण नीतू का गठीला बदन भी एकदम पतला लगता था।
हम उम्र होने के अलावा एक दूसरे से पहली नजर से ही जातीय आकर्षण होने के कारण कुमार और नीतू दोनों एक दूसरे से कुछ अनौपचारिकता से बातें कर रहे थे। सुनीता को जो सुनाई दिया वह कुछ ऐसा था।
कुमार: “नीतू, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।”
नीतू: “थैंक यू सर। आप भी तो हैंडसम हो!”
कुमार: “अरे कहाँ? अगर मैं आपको हैंडसम लगता तो आप मेरे करीब आने से क्यों झिझकतीं?”
नीतू: “क्या बात करते हैं? मैं आपके करीब ही तो हूँ।”
कुमार ने अपनी टांगों की नीतू की टांगों से मिलाया और बोला, “देखो हमारे बिच इतना बड़ा फासला है।”
नीतू: “फासला कहाँ है? आप की टाँगें मेरी टाँगों को टच तो कर रहीं हैं।”
कुमार: “सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?”
नीतू: “कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से मिलाने का ख्वाब देख रहे हो?”
कुमार: “क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?””
नीतू: “नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?”
कुमार: “क्या मतलब?”
नीतू: “अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।”
कुमार: “मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।”
नीतू: “कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।”
कुमार: “मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?”
नीतू: “फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?”
कुमार: “अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?”
नीतू: “कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?”
कुमार: “हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।”
नीतू: “अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?”
कुमार: “आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?”
नीतू: “ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।”
कुमार: “क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?”
नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। नीतू की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। कुमार को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह नीतू को चुपचाप देखता रहा।
नीतू के चेहरे पर मायूसी देख कर कुमार ने कहा, “मुझे माफ़ करना नीतूजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।”
नीतू ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, “नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।”
कुमार: “नीतूजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।”
नीतू ने बात को मोड़ देकर कुमार के सवाल को टालते हुए कहा, “कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।”
नीतू ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह कुमार को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।
कुमार: “तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे सिर्फ कुमार कह कर ही बुलाइये।”
नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह कुमार के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की नीतू को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे।
नीतू के लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था।
अब नीतू पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। नीतू ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था।
पहले भी कई युवक नीतू को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी।
फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की “आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?” आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।
काफी सोचने के बाद नीतू ने तय किया की जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला गया तो फिर तो उसे अपने हाथोँ की उँगलियों से ही काम चलाना पड़ेगा। एक दिन की चाँदनी आयी है फिर तो अँधेरी रात है ही।
पढ़ते रहिये, यह कहानी आगे जारी रहेगी!
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