Sasur Ji Ka Dukh Halka Kiya


ये कहानी अहमदाबाद से हमारी एक पाठक नेहा ने भेजी है, ये उनकी आप बीती है। आगे की कहानी उसी की ज़ुबानी।
मैं नेहा गुप्ता (30) एक शादीशुदा स्त्री हूँ। मेरे पति का नाम रमेश गुप्ता (32) है। वो एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करते है। हमारी शादी को 3 साल हो गए थे। लेकिन हमने अभी तक बच्चा नही लिया था। हमारे परिवार में हम दोनों पति पत्नि, मेरे सास ससुर और उनकी बेटी जो के बनारस में अपने सुसराल में रहती है, उसे छोड़कर कुल मिलाकर 4 लोग है।
हम सब अपनी ज़िन्दगी में बहुत खुश थे। अचानक हमारी खुशियो को किसी की नज़र लग गयी और मेरी सासु माँ का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया। जिस से हमारे घर में शोक की लहर छा गयी। अपनी जीवन संगनी के चले जाने से मेरे ससुर जी बहुत ज्यादा टूट गए थे।
मैं जब भी उनको देखती वो अकेले में बैठे रो रहे होते। मैंने और मेरे पति रमेश ने बहुत समझाया के ऐसा न किया करो आप, आप घर के बड़े हो आपने हमे हौसला क्या देना है, बल्कि खुद ही हौसला हार रहे हो।
हमारी बात सुनकर वो कुछ पल के लिए चुप हो जाते। लेकिन अकेले में फेर रोते रहते। इस तरह से 6 महीने निकल गए। लेकिन बाबू जी का अपनी पत्नी को भुला पाना बहुत कठिन काम लग रहा था। हमने उन्हें कुछ समय के लिए हमारी बनारस वाली बेटी के घर भेज दिया, ताजो उनका मन बहल जाये।
क्योंके अक्सर ही देखा गया है के जब हम घटना स्थल वाली जगह से दूर हो जाते है, तो हमारे मन में नई जगह का महौल घर कर लेता है, और घटी हुई घटना कुछ पल के लिए भूल जाती है। वहां बाबू जी एक महीने के करीब रहे लेकिन वैसे ही रोते वापिस आ गए।
मतलब के उनको बाहर भेजने का कोई फायदा नही हुआ। इस बार मैंने अपने बाबू जी में एक खास बदलाव नोट किया के वो आने बहाने मेरे शरीर को घूरते थे या कहलो के छूने की कोशिश करते थे। आप देसीकहानी डॉट नेट पे मज़ेदार कहानी का लुत्फ़ उठा रहे है।
पहले तो मुझे लगा के शायद मेरा ये वहम होगा लेकिन एक दिन तो हद ही हो गयी। मैं बाथरूम में जा रही थी। वहां पहले से ही बाबू जी अंदर थे और दरवाजा अंदर से बन्द था और शायद वो मुठ मार रहे थे, उनकी हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी।
आह्ह्ह्ह…..मेरी जान नेहा, सी…सी…. मेरी प्यास बुझा दो, तेरी सासु माँ के जाने के बाद मैं किस से अपना दर्द कहूँ। आह्ह्ह्ह्ह्…..मेरा लण्ड तेरी चूत में घुसने को बेहाल हो रहा है। मेरा लाल टोपा अपने गुलाब जैसे कोमल होंठो में लेकर चूसो न मेरी जान नेहा, अब तुम ही मेरी इस समस्या का हल कर सकती हो।
मैं ये तेरी महकती जवानी को भोगना चाहता हूँ। इतने में ही उन्होंने लम्बी आहहह… ली।शायद उनका रस्खलन हो गया था। जब मुझे लगा के वो कभी भी बाहर आ सकते है। इतना सुनते ही मेरी तो हालत खराब हो गयी और मैं बिना बाथरूम जाये ही वापिस अपने बेडरूम में आ गयी। पहले तो मन में ख्याल आया के फ़ोन करके सारा मामला अपने पति रमेश को बता दू।
फेर सोचा नही इस तरह से तो मेरे ऊपर ही बात आ जायेगी के तुम हम बाप बेटे को आपस में लड़वा रही हो, बाकि बोलने से क्या हो गया, कुछ किया तो नही न उन्होंने। किसी के भी कहने से क्या होता है। उस रात मुझे नींद न आई। पति ने सम्भोग के लिए भी न्यौता दिया।
लेकिन मैंने “मन नही है ” कहकर मना कर दिया और सारी रात जागते हुए ही निकल गई। अगली सुबह पतिदेव शहर से बाहर 2 दिनों के लिए आफिस के एक मीटिंग में चले गए। अब मैं और बाबू जी हम दोनों घर पे रह गए। मेरा डरके मारे एक एक पल बरसो जैसा निकल रहा था। मेरा डरना भी लाजमी था।
पूरा दिन भर घर का काम किया और पिछली रात को नींद न आने के कारण अब नींद ने घेरा डालना शुरू कर दिया। मैं वैसे तो साडी पहनती हूँ। लेकिन गर्मी होने के कारण कुछ दिनों से आसलवार कमीज़ ही पहनती थी। क्योंके साड़ी में एक तो मेरे शरीर की नुमाइश होती थी।
दूसरा उसे सम्भालना बड़ा कठिन काम था। मेरा पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। तो मैं अपने बेडरूम में आकर आगे से अपना कमीज़ उठाकर पंखे के निचे लेटी हुई थी। दीवार घड़ी दिन के 3 बजा रही थी। तो मुझे पता ही नही चला कब मेरी आँख लग गयी।
करीब आधे घण्टे बाद मैने महसुस किया के मेरे स्पाट पेट पे कोई हाथ फेर रहा है, पहले तो मुझे लगा शायद सपने में मेरा पति है। लेकिन जब उसके कठोर हाथो की उंगलिया मुझे निचे सलवार की और जाती महसूस हुई तो मेरी एक दम से नींद खुल गयी और मैंने देखा बाबू जी मेरे बेडरूम में खड़े है और मेरे नंगे बदन को घूर रहे है। पता नहीं कबसे वो यहाँ खड़े मुझे देख रहे थे।
मै हड़बड़ाहट में उठी और अपने कपड़े ठीक किये और पूछा,” बाबू जी आप यहाँ, कोई काम था तो मुझे बुला लिया होता?
बाबू जी बोले,” बहु वो चाय पीने को दिल कर रहा था, इस लिए आवाज़ लगाई थी। तुमने कोई जवाब नही दिया। मैंने सोचा सो गयी है।
तो मैं सीधा अंदर चला आया। तुम्हारी कमीज़ का कपड़ा पंखे की हवा से उड़कर तुम्हारे शरीर को नंगा कर रहा था, तो मैने सोचा सोई हुई को क्यों उठाना, सो मैं खुद ही ठीक कर रहा था। इतने में तुम जाग गई। इन शब्दों में मानो बाबू जी ने अपनी सफाई दी हो।
मैं झट से बेड से निचे उतरी, मेरा दिल धक धक कर रहा था और अपनी चुनरी अपने सिर पे लेकर कहा,” आप अपने कमरे में जाइये, मैं वहीँ चाय लेकर आती हूँ।
मेरे इतना कहने से शयद उसका दिल टूट सा गया, वो अपने कमरे में चले गए। करीब 10 मिनट बाद मैं 1 कप चाय ट्रे में लेकर उनके कमरे में गयी। वो अब रो रहे थे। मैंने पुछा,” अब क्या हुआ बाबू जी, आप रो क्यों रहे हो। कोई दिक्कत है क्या, कुछ तबियत खराब है क्या, डॉक्टर को फोन लगाकर बुला लेती हूँ।
वो बोले,” नही बहु कुछ नही बस आज मेरा दिल तेरी सासु माँ को याद करके रो रहा है। उसकी कमी मुझे बहुत खल रही है। उस से करने वाली बाते मैं किस से करू। मै भी इंसान हूँ, मेरी भी कुछ ख्वाहिशे है। मेरा भी दिल करता है के अपनी ज़िन्दगी के सारे मज़े लू।
अब मैं बच्ची तो थी नही, जो उनकी बातो को न समझती, सीधे शब्दों में उनका दिल सेक्स करने का था। उनकी बातो से मैं भी इमोशनल हो गई। क्योंके वो सही कह रहे थे। मैंने सिर्फ कल्पना में ही सोचा के यदि मेरा पति न हो तो मैं क्या करूंगी। मैं अपने बाबू जी की जगह खुद को रखकर सोच रही थी, उनकी एक एक बात सच्ची प्रतीत हो रही थी।
वो मेरे गले लगकर जार जार रो रहे थे। मेरे दिल में भी अनेको तरह के विचार आ रहे थे। मुझे उनपे दया भी आ रही थी। एक बार तो मन में आया के कुछ नही होगा, इनको खुश कर दू। घर की इज़्ज़त का ख्याल आ गया ये भी सोचा के यदि इन्होंने किसी आस पड़ोस की बहु बेटी को कुछ कह दिया तो बहुत अनर्थ हो जायेगा।
हम किसी को मुंह दिखाने लायक नही रहेंगे। इस से बेहतर यही है के घर पे ही इसका हल हो जाये। बाबू जी की इतनी उम्र हो चुकी थी के उनकी दुबारा शादी भी नही हो सकती थी।
मैने दिल पे पत्थर रखकर उनका न्यौता मन में ही कबूल कर लिया। चाहे मेरी सेक्स की पूर्ती मेरे पति द्वारा हो रही थी। लेकिन घर की इज़्ज़त पे कोई आच न आये। इस लिए मुझे बाबू जी से भी सम्बन्ध बनाने पड़े।
मैंने उन्हें नहाने को कहा और उनके कपड़े वगैरह निकाल के उनको दे दिए, क्योंके उनके पसीने की बदबू से उबकाई आ रही थी। वो नहाकर वापिस आ गए। उन्होंने बनियान के निचे टावल को धोती की तरह लपेटा था लेकिन नीचे निक्कर नही पहनी थी। उनका सोया हुआ लण्ड भी उनके चलने की वजह से हिलता दिखाई दे रहा था। जो शायद मुझे दिखाने के लिए आये थे।
उनकी इस हरकत से मैं हल्का सा मुस्करा पड़ी। उन्होंने भी हसके मेरी मुस्कराहट का जवाब दिया। किसी न किसी तरह वो दिन निकल गया। अगले दिन जब सुबह की चाय देने उन्हें उनके कमरे में गयी वो रात को शायद तौलिये को लपेटकर ही सो गए। मैंने हल्का सा दरवाजे को धक्का दिया तो दरवाजा खुला था।
अंदर जाकर देखा तो बाबू जी तो नींद में थे लेकिन उनका मोटा 6×3 लम्बा मोटा लण्ड तौलिये से बाहर तना हुआ दिखाई दे रहा था। उनकी इस हरकत से मुझे सुबह सुबह बहुत गुस्सा आया। लेकिन मैं बोली कुछ नही, बल्कि वही चाय ढक के रखकर चली आई और अपने कामो में व्यस्त हो गयी। करीब एक घण्टे बाद वो आये और बोले,” बहू जरा सा तेल गुनगुना करके ले आओ मेरे सिर और बदन पे मल दो। मुझे नहाने जाना है।
मुझे उनकी नियत तो पहले ही पता चल गयी थी। लेकिन फेर भी कोई प्रेक्टिकली प्रकिर्या न होने की वजह से कोई सबूत नही था।
मैं कटोरी में गर्म करके तेल लेकर आ गई और उन्हें बोला,” लो बाबू जी, तेल और लगालो खुद ही मैंने कपड़े धोने जाना है।
वो बोले,” बहु सिर पे तो मैं खुद ही लगा लूंगा लेकिन पीठ पे कैसे लगाउँगा। सो तुम ही ये कष्ट करदो।
इतना बोलकर वो आँगन में पड़ी खाट पे औंधे मुंह लेट गए। मुझे सुबह से ही बहुत गुस्सा था। लेकिन पता नही बाबू जी के शरीर के स्पर्श मात्र से ही मेरा गुस्सा पता नही कहा गायब हो गया था। मैं उनकी पीठ पे तेल लगा रही थी।
करीब 5 मिनट बाद उन्होंने साइड बदलते हुए कहा,” तुम्हारे हाथ तो तेल से भीगे ही है, अब मेरे पेट ओर टांगो पे भी लगाकर मालिश करदो।
मैं न चाहते हुए भी उनकी हर बात मानते चली जा रही थी। अब मैं उनके कन्धों से लेकर नीचे पेट की और तेल को उड़ेला और दोनों हाथो से उनकी मालिश करने लगी। मैं सोच रही थी के शायद सासु माँ ज़िंदा होती। तो ये सब मुझे न करना पड़ता।
इन 2 दिनों में मेरा बुरा हाल है रमेश के बिना तो कैसे रहते होंगे बाबू जी, माँ के बिना, इन्हें तो 8 महीने से ऊपर हो गए है, बिना सेक्स किये। मैं सोचो में इतनी डूबी हुई थी के मुझे पता ही नही चला कब उनके गर्म गर्म लण्ड पे मेरा हाथ लग गया। मैं हड़बड़ा गई और सब कुछ वही छोड़कर अंदर भाग गयी।
वो उठकर मेरे कमरे में आ गए और बोले,” क्या हुआ बहु तुम चली क्यों आई। कोई बात है तो बताओ, क्या रमेश के बिना दिल नही लग रहा। मैं हूँ ना बोलो क्या बात या कमी है। मै वो कमी पूरी करने की कोशिश करूँगा।
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