Sadak Banane Wali Ek Ladki


हेल्लो दोस्तों नमस्कार, आपका दीप पंजाबी आपके मनोरंजन के लिए एक नई कहानी लेकर हाज़िर है। अब बार बार अपना परिचय क्या देना। आप सब जानते ही हो पंजाब से हूँ। अब बार बार एक बात को क्यों दोहराना। सो ज्यादा समय बरबाद न करते हुए सीधा कहानी पे आते हैं।
ये बात करीब 6 महीने पुरानी है जब हमारे एरिये की सड़के बन रही थी। आपको तो पता ही है सड़क वालो की लेबर में औरते भी होती है। उनके बारे में तो सब जानते ही है। एक दम राजस्थानी पहरावा, कानो में चाँदी के टॉप्स, बाँहो में कन्धों तक सफेद गज़रे, नाक मे नथली, चोली घागरा, पैरों में पायल और ठेठ जुत्ती पहने माशा अल्लाह,  क्या लगती है सड़क वाली औरते।
हमारा घर पड़ोसियों के घर से थोडा हटकर है, मतलब के घर के करीब 1000 फ़ीट आगे पीछे, दाये बायें कोई भी घर नही है। गली में अकेला हमारा घर ही है।
हमारे मोहल्ले में पहले के 4 दिन तो सिर्फ मर्द ही मिट्टी डालते, पानी छिड़कते, रोड रोलर चलाते, ईंटो से सड़क की किनारिया बनाते रहे। फेर एक दिन काम के बोझ को देखते हुए ठेकेदार ने करीब 10 औरते काम पे और बुला ली।
शायद आपको भी पता हो के कई गांवों में जिन घरो के आगे सड़क बनती हो, वही घर उस लेबर को दिन में दो तीन बार चाय पानी देते है। वैसे तो ऐसा किसी भी कानून की किताब में नही लिखा, पर सिर्फ एक इंसानियत के नाते भी चाय पानी दे देते है लोग। खैर छोडो इन बातो को अपनी कहानी पे आते है।
मेरे घर वाले कही रिश्तेदारी में नए मकान बनाने की ख़ुशी में रखे अखंड पाठ के भोग पे गए हुए थे। तो घर पे मैं अकेला था। उनको गए हुए एक घण्टा ही हुआ होगा के ट्रैक्टर ट्राली भर कर आई औरते हमारे गली वाले दरवाजे के बाहर थोडा दूरी पे उतर गयी और काम में लग गयी।
उस वक़्त मैं दरवाजे पे खड़ा उन्हें देख रहा था। फेर थोड़ी देर बाद अपना मन बहलाने की खातिर टीवी देखने लगा। उस वक़्त मेने गर्मी होने की वजह से निकर और बनियान पहनी हुई थी। करीब डेढ़ क घण्टे बाद करीब 20 साल की एक लड़की (जिसका नाम सुमरी था, जो के मुझे बाद में पता चला था) ने दरवाजे को खटखटाया।
मैंने दरवाजा खोला।
उसे देखकर मेरी आँखे उसके चेहरे से हट ही नही रही थी। उसने खुदा से क्या गज़ब की खूबसूरती पायी थी।
एक दम फुर्सत में बनाई हुई चीज़ लगती थी।
उसके बोलने से मेरी सोच की लड़ी टूटी।
वो – नमस्ते साब जी, हमे पीने के लिए आपके घर से ठंडा पानी चाहिए।
उसके हाथ में वो बर्तन था, जिसे पंजाबी में डोलू या डोलनी बोलते है।
मैं – आइये अंदर आ जाइये।
वो अकेली अंदर आ गयी। गली वाला दरवाजा हमारी रसोई से काफी दूर पड़ता था। सो वो मेरे साथ रसोई तक आकर रसोई के बाहर ही रुक गयी। मेने उसे अंदर आने को कहा।
वो बोली – नही साब जी, यहाँ ही पानी ला दो आप।
मैं – अरे..!  आप इतना डरते क्यों हो कुछ नही कहूँगा आपको.. विश्वास करो मेरा।
मेरी बात सुनकर वो अंदर आ गयी और मेने उसे फ्रीज़ से ठंडा पानी निकाल कर उसके साथ लेकर आये बर्तन में उड़ेल दिया।
वो – (मेरे कमरे में चल रहे पंखे की तरफ देखकर) साब जी यदि आप बुरा न मानो तो पंखे के निचे 10 मिनट आराम कर लूं..?
मैं – हाँ क्यों नही, आ जाओ बैठते है।
उसे लेकर मैं अपने कमरे में आ गया। वो निचे फर्श पर ही बैठ गयी और मैं अपने बैड पर बैठा था। वो पसीने से पूरी तरह भीगी हुई थी और लाल रंग की चुनरी से बार बार अपने आप को पोंछ रही थी।
मेने उसके हाल को देखते हुए। उसे अपने बैड पे बैठने को बोला.. क्योंके पंखा बिलकुल बैड के ऊपर लगा हुआ था और हवा भी वहां ज्यादा लग रही थी।
वो थोड़ा सोचकर नीचे से उठकर मेरे बैड पे आकर बैठ गयी। अब उसमे और मुझमे सिर्फ एक फ़ीट का फासला था।
मैं – आपका नाम क्या है ?
वो – जी सुमरी।
मैं – मेरा नाम दीप है। क्या आप चाय या पानी लेंगे?
वो – हांजी पानी पीना है, बहुत प्यास लगी है।
मैं बैड से उठकर रसोई में गया और दो गिलास एक बोतल पानी की ले आया।
मेने दोनों गिलासों में पानी डाला और एक उसको पकड़ाया ओर दूसरा खुद पीने लग गया।
वो प्यासी होने की वजह से एक ही बार में पूरा गिलास पी गयी। जब के मेरे पास पूरा भरा गिलास अभी मेरे हाथो में था।
मैं – लो सुमरी और लो पानी।
उसने अपना गिलास फेर से भरवा लिया और फेर गटक गयी।
तब जाकर कही उसके मन को शांति मिली..
अब उसे आये हुए करीब 10 मिनट हो गए थे।
मेरे पूछने पे उसने बताया के वो राजस्थान के एक छोटे से गांव की रहने वाली है। उसके माँ बाप, भाई बहन सब वहां ही रहते है।
मैं – तो सुमरी यहाँ पंजाब में कैसे आये हो फेर ?
वो – (थोडा शरमाते हुए) – दरअसल मेरी शादी हो चुकी है साब जी,  6 महीने पहले।
क्या ?? उसकी बात सुनकर मैं चौंक गया।
मेरे चौंकने की वजह यह भी थी के शरीर की बनावट के हिसाब से कुंवारी ही लग रही थी।
वो हंसकर बोली – हाँ साब जी, हमारे समाज में बाल विवाह का रिवाज़ है। मतलब जब हम लडकिया या लड़के 2 या 3 साल के होते है। तब से ही हमारी सगाई तय कर दी जाती है और जब हम 18 तक पहुंचते है। तब तक दूल्हा दुल्हन बन चुके होते है।
मैं – (थोड़ा हैरान होकर) – मतलब ये लेबर आपके सुसराल वालो की है..?
वो – हांजी सारी लेबर में मेरे जेठ-जेठानी, ननद-नन्दोई, देवर-देवरानी और भी बहुत सारे रिश्तेदार है।
मैं – आपका पति क्या करता है सुमरी ?
वो – जी वो भी हमारे साथ लेबर में ही है।
मैं – एक बात बोलू सुमरी?
वो – हांजी बोलिए।
मैं – आप बहुत खूबसूरत हो सच में कसम से !
वो मेरी बात सुनकर वो एकदम से शर्मा गयी और उसने अपना चेहरा अपनी हथेलियो में छूपा लिया।
मैं उठकर उसके आगे खड़ा हो गया और उसके हाथ पकड़कर उसके चेहरे से हटाने लगा।
वो – आप ऐसी बाते न करो साब जी, मेरे को लाज आ रही है।
मैं उसकी लाज शर्म तोडना चाह रहा था।
उसने हाथ तो अपने चेहरे से हटा लिए पर मुह दूसरी तरफ ही किया हुआ था और उसकी आँखे बन्द थी।
मेने अपने हाथ से उसकी ठोड़ी को अपनी तरफ सरकाया.. उसकी आँखे अभी भी बन्द थी। जैसे के आत्मसमर्पण कर रही हो। मेने न चाहते हुए भी उसके पतले हल्के गुलाबी होंठो पे किस कर दिया।
जिस से उसकी बन्द आँखे खुल गयी और वो घबराई सी आवाज़ में बोली – नही साब जी, ये ठीक नही है, मुझे जाने दो छोडो मुझे बाकी लेबर वाले मेरी राह देख रहे होंगे।
मेने उसे छोड़ दिया और वो ठंडा पानी लेकर अपनी लेबर में चली गयी। मैं  डर गया के कही सुमरी जाकर अपने माँ बापू को न बोल दे।
इसी उलझन-तानी में उलझे हुए पता नही लगा कब 2 घण्टे बीत गए।
एक बार फेर दरवाजा खटकने की आवाज़ आई। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा के कही उसके माँ बापू न हो और मुझसे झगड़ा करने न आये हो, मेने लकड़ी के दरवाजे में एक मोरी में से देखा के सुमरी अकेली ही खड़ी दरवाजा खटका रही है।
मेने चैन की साँस ली और दरवाजा खोल दिया।
मैं – हाँ सुमरी अब क्या चाहिए आपको ?
वो इस बार पहले की तरह डरी नही और खुद ही मेरे कमरे में आकर बैठ गयी और बोली – साब जी, मेरा चाय पीने को दिल कर रहा है। हमारी लेबर ने अभी एक घण्टे बाद चाय बनानी है। तब तक मुझसे रहा नही जायेगा। अगर आप बुरा न मानो तो मैं यहाँ चाय बनाकर पी सकती हूँ क्या ?
मैं – हाँ सुमरी क्यों नही, इसे अपना ही घर समझो ?
वो शरारत भरे अंदाज़ में बोली – कौन सा मायके वाला या..?
मैं – (उसके दिल की बात बूझकर मेने भी चौंके पे छिक्का मारा) – हाँ इसे अपने पति का घर ही समझो।
हम दोनों हंसने लगे। वो इस बार कुछ ज्यादा हो खुल कर बाते कर रही थी। मेने उसे रसोई में पड़े चाय, चीनी, दूध के बारे में बताया और वो चाय बनाने लगी।
हमारी रसोई में पंखा नही है। जिसकी वजह से वो पसीने से भीग रही थी और वो बार बार चुनरी से अपने मम्मो को चोली के ऊपर से ही साफ कर रही थी।
उसकी ज़ुलफे बार बार उसकी आँखों पे आ रही थी। मेने दिल से डर निकाल कर अपने हाथ से उसकी आँखों पे आई हुई ज़ुल्फ़ों को हटाकर उसके कान पे टांग दिया। जिससे उसने हल्की सी स्माइल दी। मेने उसे दो घण्टे पहले हुई घटना के बारे में बात की और पूछा..
सुमरी सुबह जो भी हुआ उसके लिए तह दिल से माफ़ी चाहता हूँ। आपको शायद बुरा लगा हो, पर मैं भी क्या करता, आप हो ही इतने खूबसूरत के आपकी खूबसूरती में मद्होश होकर पता नही चला कब आपके नरम गुलाब की पत्तियो जेसे होंठो को चूम लिया। सुमरी हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।
उसने मेरी तरफ देखा और बोली – साब जी, आप तो बिलकुल बुध्धू हो। यदि मेने बुरा माना होता तो आपके घर, आपके पास दुबारा आती क्या?
मैं – हाँ सुमरी ये तो है इतना ख्याल तो मेरे दिमाग में ही नही आया।
वो – मैं तो बल्कि आपका शुक्रिया अदा करती हूँ। आपको खूबसूरत तो लगी मैं। मेरा पति कभी मेरी तारीफ नही करता। बस सारा दिन काम काम और बस काम। मेरे लिए तो जरा सा टाइम भी नही है उनके पास। (उसने अपनी परेशानी बताई)
उसकी बुरा न मानने वाली बात सुनकर मेरे दिल से हज़ारो टन का बोझ उत्तर गया। तब तक चाय भी बन चुकी थी। मेने उसे चाय दो कपों में डालकर अपने कमरे में आने का बोलकर उससे पहले अपने कमरे में चला गया।
उसके तरफ से थोड़ा ग्रीन सिग्नल मिलने से मन ही मन में खुश भी हो रहा था।
करीब 5 मिनट बाद वो ट्रे में दो चाय के कप लेकर आई। मैं बेड पे चौकड़ी मारकर बेठा था। उसने ट्रे मेरे सामने की मेने एक कप उठा लिया और वो दूसरा कप उठाकर ट्रे टेबल पर रखकर खुद मेरे बिलकुल पास बेड पे टांगे नीचे की ओर लटकाकर बैठ गयी।
मेने उसके दिल की जाननी चाही और बात शुरू करते पूछा – हाँ सुमरी अब बोलो रसोई में क्या कह रही थी.. पति आपकी तारीफ नही करता।
वो गर्म चाय की एक घूंट पीकर कप निचे टेबल पे रखकर बोली – हाँ साब जी बिलकुल भी नही करता। उसकी भावना उस वक़्त ऐसी थी के जेसे अपने पति की शिकायत मेरे से कर रही हो।
वो – आज आपने तारीफ की तो मुझे सुनकर अच्छा लगा।
मेने मन में सोचा ये बेर तो खुद झोली में गिरने को तैयार है बस तारीफ रुपी डंडे से इस बेर को झाड़ना पड़ेगा।
मैं – कमाल का आदमी है फेर तो इतनी सुंदर बीवी मिली है फेर भी तारीफ नही करता। काश तुम मेरी बीवी होती। सारा दिन तुम्हारे मृग्नयनो की तारीफ, गुलाब जेसे होंठो की तारीफ, हिरणी जैसी चाल की तारीफ, काली घटाए जेसे बालो की तारीफ, नागिन जेसी लम्बी चोटी की तारीफ करता न थकता।
वो मेरी बातो से इतना प्रभावित हुई के खुद बोल उठी।
काश साब जी मैं इस घर की बहु होती। आपकी सासु माँ, ससुर जी की सेवा करती न थकती।
अब उसकी आवाज़ में उदासी थी और चेहरा निचे किया हुआ था। मेने उसका चेहरा ऊपर किया तो देखा के वो रो रही थी। मेने उसे चुप होने को बोला तो वो फेर भी रो रही थी और उठ कर मेरे गले लगकर रोने लगी। उसे जेसे किसी के प्यार की सख्त जरूरत थी।
उसने रोते हुए बताया के उसके सुसराल में कोई भी उससे अच्छा वयवहार नही करता। सभी मारने को दौड़ते है। उसपे मुझे दया आ रही थी। मेने उसे रसोई से लाकर पानी पिलाया और हौंसला दिया कोई बात नही सब ठीक हो जायेगा। फेर मेने उसे चाय का कप पकड़ाया और पीने को दिया। वो चाय पीकर बैड पे ही बैठी रही। अब मेने भी अपना कप खाली करके टेबल पे रख दिया।
वो मेरे बिलकुल आगे बैठी हुई थी। हम दोनों में बस कुछ क इंचों का फांसला था। मेने हल्के से उसकी जांघ पे अपना हाथ रख दिया। जिसे उसने देख तो लिया पर कोई विरोध नही किया। बस मेरी तरफ हल्की सी स्माइल की।
उसका ग्रीन सिग्नल पाकर मेने अपना हाथ सहलाना शुरू कर दिया। क्या नरम नरम रुई जेसी जांघ थी उसकी। मैं उसको सहलाये जा रहा था। वो आँखे बन्द करके मज़ा ले रही थी। मेने उसको कन्धों से पकड़ कर बैड पे लिटा लिया और उसका चेहरा पकड़ कर उसके होंठो पे अपने होंठ रख कर उन्हें चूसने लगा।
पहले तो वो मना करती रही। पर जब उसे मज़ा आने लगा तो वो भी मेरा साथ देने लग गयी। एक दम उसने मुझे रुकने का बोला..
मैं- क्या हुआ सुमरी ?
वो – साब जी न तो गली वाला गेट बन्द किया हमने और न इस कमरे वाला। आज पकड़े जाते रंगे हाथो हम दोनों।
उसकी बात से मुझे भी याद आया के दरवाजा तो कब से बिना कुण्डी के ही बन्द है। मैं उठकर बाहर की तरफ भागा और गली वाले गेट को अंदर से कुण्डी लगाकर वापस सुमरी के पास आया।
सुमरी मेरी निक्कर में तने हुए लण्ड को ऊपर से ही देखकर हसने लगी।
मेने उसके पास जाकर पूछा – क्या हुआ सुमरी, किस बात पे हसी आ गयी।
वो मेरे तने हुए लण्ड की तरफ इशारा करते हुए बोली – इसकी वजह से और फेर हसने लगी।
मेने उसे पूछा देखना है क्या .?.
वो – (थोडा शरमाकर) नही साब जी..
मैं उसका इंकार सुनकर भी तने लण्ड को निकर से निकालकर उसके हाथ में पकड़ा दिया।
वो शर्मा भी रही थी और उसका दिल भी देखने को कर रहा था। पहले तो उसने जरा सा हाथ लगाकर एकदम लण्ड को छोड़ दिया।
जब मेने दुबारा पकड़ाया तो मुंह दूसरी तरफ करके हंस रही थी और गरम लण्ड को सहला भी रही थी। मेने उसकी शर्म दूर करने की सोचकर उसको दुबारा होंठो पे चूमने लगा। तब वो थोड़ा खुल कर मेरा साथ दे रही थी।
मेने उसको पूछा – मेरा लण्ड चूसोगे क्या?
वो बोली – छी इसे भी कोई चूसता है भला।
मैंने कहा – हाँ क्यों नही ? फिल्मो में लडकिया तो बहुत चूस्ती है।
वो – क्या कहा आपने साब जी,  किस फ़िल्म में चूसती है मेने तो ऐसी कोई फ़िल्म नही देखी।
मैं – रुको नही देखी, तो अभी दिखा देता हूँ। मेने बैड के सिरहाने लगे चार्जर से अपना मोबाइल हटाया और सनी लियोनी की एक वीडियो उसको दिखाई जिसमे वो टॉयलेट सीट पे बैठकर एक आदमी का लंड चूस रही होती है।
वीडियो देखरेख वो बोली – हे भगवान अब ऐसी फिल्में भी बनने लग गई क्या साब जी?
मैं – ये कोई आज की बात थोड़ी न है। कई सालो से चल रही है।
वो – कसम से मुझे तो नही पता था बस अब जाकर पता चला है।
उसे मेने एक और वीडियो दिखाई जिसमे एक पत्नी अपने पति की मोजुदगी में ही चोर से चुदवा लेती है पर अपने पति को पता तक नही चलने देती।
दोनों वीडियो देखकर वो बहुत गर्म हो गयी और अपने आप उसका हाथ मेरे तने लण्ड पे आ गया और मेरी निकर उतार कर मेरे लण्ड को इस फ़िल्म वाली लड़की की तरह बैठकर चूसने लगी। उसकी आँखों और स्माइल से पता चल रहा था के उसको बहुत मज़ा आ रहा है।
करीब 10 मिनट तक मेरा मोटा लण्ड चूसने से उसका मुह दर्द करने लगा और वो बोली – अब आप डाल दो बस अपना लण्ड मुझसे और बर्दाश्त नही हो रहा साब जी और थोडा जल्दी करो कही मुझे साथ लेबर वाले आवाज़ न लगा दे।
मेने उसकी बेकरारी को समझते हुए। उसका घागरा उठाकर उसकी हल्के क्रीम रंग की पैंटी को हाथ लगाकर देखा तो वीडियो देखकर गर्म होने की वजह से उसकी पेंटी से सुमरी का चूत रस बाहर निकल कर बह रहा था।
वो बोली – सब जी, ज्यादा कपड़ो की खीचा तानी न करना वरना फट जायेंगे और शाम तक मुझे यहां रहना है। तो बड़ी मुशकिल हो जायेगी।
मेने उसकी मज़बूरी को समझा और उसे निश्चित हो जाने का बोलकर लेट जाने का कहा।
वो आज्ञाकारी बच्चे की तरह मेरी बात मान कर बैड पे लेट गयी। मेने उसकी चोली को निचे से थोड़ा उठाकर छोटे छोटे नुकीले मम्मो को चूमाँ। जिस से वो मज़े में आकर आआआह्ह्ह.. सीईईईईईई.. उफ्फ्फ्फ्फ्फ.. उईईईईइ माँ.. की आवाज़ों से मौन करने लगी।
अब मेने उसकी भीगी पैंटी को उतारा और हाथ की बड़ी ऊँगली उसकी चूत में घुसाकर अंदर बाहर करके उसकी गहरायी मापने लगा।
ऊँगली अंदर जाते ही उसकी आआह्हह्हह निकल गयी। उसकी चूत पे थोड़े काले बाल थे। एक दम टाइट चूत थी। जब मेने ऊँगली निकाली तो ऊँगली पूरी तरह उसके चुत रस से सनी हुई थी।
मेने उसकी टांगे अपने कन्धो पे रखकर अपने लण्ड पे थूक लगाया और लण्ड को उसकी चूत के मुह पे सेट करके हल्का सा धक्का दिया। तो लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत में धस गया। उसकी एक ज़ोर से चीख निकल गयी और वो रोने लगी । मेने अपना हाथ उसके मुह पे रखा तांके आवाज़ बाहर न चली जाये।
वो बोली – मुझे छोड़ दो साब मेने नही चुदवाना आपसे।
वो मुझे छोड़ देने की बीनती कर रही थी, पर मैं ऐसा हसीन मौका गंवाना नही चाहता था। मेने ठीक होकर एक और झटका मारा तो पूरे का पूरा लण्ड उसकी चूत में घुस गया। उसकी आँखों में आंसू आ गए और वो दबी सी आवाज़ में रोने लगी।
इधर मैं लगातार हिट पे हिट किये जा रहा था। अब उसका दर्द कम हो रहा था और उसे मज़ा भी आ रहा था। थोड़ी देर बाद उसका रोना भी बन्द हो गया और उसकी आँखो से बेहता पानी भी सूख गया था। अब वो नीचे से गांड उठा उठाकर चूत चुदवा रही थी।
करीब 10 मिनट बाद वो बोली और तेज़ करो साब जी, और तेज़ बहुत मज़ा आ रहा है। काश हर रात मुझे ऐसा मज़ा मिले और एक लम्बी आआआआह.. से झड़ गयी।
उसकी चूत का गर्म गर्म पानी मुझे अपने लण्ड पे महसूस हो रहा था। अब वो एक दम निहात होकर थक कर ऐसे लेटी रही जेसे शरीर में जान न बाकी बची हो।
अब मेने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी और करीब अगले 5 मिनट में अपना गर्म गर्म पानी उसकी छोटी सी चूत में भर दिया। उसके चेहरे पे सन्तुष्टि के साफ भाव दिख रहे थे।
करीब 10 मिनट हम ऐसे ही आराम की हालात में पड़े रहे। फेर हम उठे अपने आप को साफ़ किया। कपड़े पहने और एक दूसरे को किस किया।
जाते जाते मेने उसे 500 का नोट उसपे तरस खाकर दिया।
वो बोली – साब जी आपसे मिलकर बहुत ख़ुशी हुई, आपसे सेकस भी अपने दिल की ख़ुशी के लिए किया है, मैं कोई पेशेवर रंडी नही हूँ। पैसे देकर आप मुझे गाली दे रहे हो।
मैं – नही सुमरी, ये पैसे सेक्स के लिए नही है। ये पैसे आप पे तरस खाकर दिए है। इतनी धुप में शाम तक सड़क पर रहोगी। अपने अच्छे से कपड़े ले लेना या जो दिल करे खा पी लेना।
वो (पैसे पकड़ कर भावुक हो गयी) – साब जी, आपको बहुत याद करुँगी। मेने उसे अपना पर्सनल मोबाइल नम्बर दिया और कहा जब भी तुम्हारा दिल करे मुझे इस नम्बर पे फोन कर लेना।
हमने एक दूसरे को बाँहो में लेकर एक सेल्फ़ी ली और भी उसकी बहुत  सारी फोटोए खिंची जो के उसकी आखरी निशानी के तौर पे अपने पास रखली।
उसने भीगी पलको से मुझे विदा ली।
उसके जाने के बाद मेरा मन भी थोड़ा सा भावुक हो गया।
उस दिन के बाद वो हमारे गांव में कभी नही आई।
उसके बाद एक बार उसने किसी के मोबाइल से मुझे फोन किया और बहुत रोई के आपकी बहुत याद आती है। मेने उसे होंसला रखने को बोला।
फेर एक महीने के बाद एक बार मैं किसी रिश्तेदारी से वापिस आ रहा था। तो मुझे बस में उसकी एक झलक देखने को मिली। उसके साथ कोई औरत और भी थी, जो शायद उसकी सासु माँ या अपनी माँ कोई भी हो सकती थी। सो उसकी वजह से उसे चाह कर भी बुला न सका। वो सारे रास्ते में मेरी तरफ देखकर रोती रही, पर मैं उसकी इज़्ज़त पे आंच ना आ जाये इस लिए उसको बुला भी न सका।
माफ़ करना दोस्तों कहानी लिखते वक़्त भी खुद को रोने से रोक न सका। मेरे हिसाब से यह इस साईट की पहली कहानी होगी। जिसका सेक्सी होने के बावजूद भी, थोड़ा उदासमयी अंत है।
शुरू में चाहे मैंने सिर्फ चूत के लिए उससे बात की पर बाद में सच में उससे प्यार हो गया था।
सो ये थी मेरी एक और आप बीती। आपको कैसी लगी, अपने सुझाव मुझे इस पते पे भेजना। मेरी मेल आई डी है “[email protected]”.
फिर किसी दिन हाज़िर होऊँगा एक नई कहानी लेकर, तब तक के लिए अपने दीप पंजाबी को दो इजाजत.. नमस्कार।
एक खास नोट सभी मेल करने वाले दोस्तों के लिए – कृपया आप कहानी पढकर सिर्फ अपने विचार दो,  उसकी कमी बताओ।
पिछले कई दिनों से मेल करने वाले दोस्त मेरी कहानियो के पात्रो का कांटेक्ट नम्बर, उनके बारे में, उनकी तस्वीर या पता मांग रहे है। सो सबसे हाथ जोड़कर निवेदन है के ऐसा न करेे। क्योंके हम सबकी गोपनीयता को सर्वजनक् नही कर सकते। आपकी बड़ी ही मेहरबानी होगी।

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