जैसे तैसे कुछ तिकड़म करके एक दिन मैंने पूजा को एक जगह पकड़ ही लिया। मुझे देख कर वह घबरा सी गयी। मैंने उसे पूछा, “अरे भाई, अगर तुम्हें मुझसे कोई शिकायत है या फिर कोई आपत्ति है तो बताओ तो सही। ऐसे भागने से तो काम नहीं होगा ना?”
पूजा ने कहा, “मैं तुम्हें नहीं मिल सकती। मेरी शादी किसी और से तय हो रही है।”
यह सुनकर मुझ पर जैसे एक वज्राघात हुआ। मैंने उसकी और देखकर पूछा, “ऐसा क्या हुआ? क्या तुम मना नहीं कर सकती थी? मुझमें क्या बुराई है?”
पूजा ने कहा, “बात मेरी मर्जी की नहीं है। मेरे पापा नहीं मान रहे। उन्होंने अपना सुसाइड करने की बात तक कर दी है।”
मेरी आँखों में आँसूं आ गए। मैंने कहा, “तो बताओ, मेरा क्या कसूर है? तुमने तो मेरी बनने का वादा किया था।”
पूजा ने कहा, “हाँ किया था। पर मैं क्या करती? तुम ही बताओ, मैं क्या करूँ?”
मैंने कहा, “ठीक है। तुम खुश रहो मेरा क्या? पर मैं तुमसे वादा करता हूँ अगर तुम मेरी नहीं बनी तो मैं जिंदगी भर तड़पता रहूंगा।:
पूजा अचानक मेरी बाँहों में आकर मुझसे लिपट गयी और बोली, “देखो मैं तुम्हारी ही हूँ और रहूंगी। जैसे तुम तड़पते हो वैसे मैं भी तड़पती रही हूँ। मैंने कहा था की वह तुम्हारा (लण्ड) जो है, वह मेरा है। मैं इस बात को अब भी स्वीकार करती हूँ। पर क्या करूँ? मेरे पिताजी एकदम जिद्दी हैं। मैं वादा करती हूँ की भले ही हमारी शादी ना हुई हो पर मैं एक बार तो तुम्हारी बनकर ही रहूंगी। वह जो तुम्हारा है ना; सिर्फ एक बार ही सही, पर मैं उसे अपना बना कर रहूंगी। फिर तो तुम मुझसे नाराज नहीं होंगे ना? बोलो? फिर तो तुम किसी और लड़की से शादी कर लोगे ना?”
मैंने कहा, “तुम मेरी कैसे रहोगी? तुम तो हर रोज उसके बिस्तर में सोओगी।”
पूजा ने कहा, “मैं तुम्हारे साथ शादी के पहले एक बार जरूर सोऊंगी और तुम मुझसे जो करना चाहो कर सकते हो। मैं तुम्हें खुश कर दूंगी। मैं वादा करती हूँ।” मेरे आँसूं पोंछते हुए फिर वह बोली, “अब तो तुम मुझसे रूठे नहीं हो ना?”
मैंने कहा, “ठीक है। तुम अपना वादा जरूर पूरा करना। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।”
पर दुर्भाग्य से हमारा मिलना उस के बाद हुआ ही नहीं। पूजा के मुझे मेसेजिज़ भी आये की वह मुझसे मिलना चाहती थी। पर हुआ कुछ ऐसा की हम मिल नहीं पाए।
कॉलेज ख़तम होने के बाद मुझे पोस्ट ग्रेजुएट में कहीं और दाखिला मिल गया और मैं उस शहर से दूर चला गया और मेरी और पूजा की कहानी वहीँ ख़तम हो गयी। पूजा ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया। मैंने भी फिर पूजा को परेशान करना ठीक नहीं समझा। उस दिन से जब तक राज मुझे पूजा से मिलाने लाया तब तक मेरा पूजा के साथ कोई भी संम्पर्क नहीं था।
मैंने जैसे ही पूजा को देखा तो मेरे दिल में वही घमासान शुरू हो गया। पूजा को एक बार फिर पाने की ललक उठी। हालांकि शादीशुदा पूजा को अपनी बनाना तो नामुमकिन था पर पूजा को चोदने की चाहत जो मैं कॉलेज में पूरी नहीं कर पाया था उसे देख और मिल कर भड़क उठी। अब मुझे येन केन प्रकारेण वह चाहत पूरी करनी थी चाहे मुझे इसके लिए कुछ भी क्यों ना करना पड़े।
पूजा की आँखों में भी मैंने मेरे लिए नकारात्मक भाव तो बिलकुल नहीं देखे थे। बल्कि मुझे पूजा की आँखों में वही पुरानी आधी शरारती, आधी शर्मीली लज्जा भरी सकारात्मक निगाहें नजर आयीं। मुझे लगा जैसे पूजा की आँखें मुझे चुनौती दे कर कह रहीं हों, “आगे बढ़, कोशिश कर।” या फिर वह मेरे मन का वहम था?
जो भी हो मेरी पुरानी गर्ल फ्रेंड पूजा को देख, उसे मिलकर और उसकी आँखों में आँखें मिलाकर मेरे पतलून में मेरा लण्ड उछल रहा था। शायद उसे भनक लग गयी की उसका मालिक अब उसका सपना पूरा कर के ही छोड़ेगा। शायद मेरे लण्ड को भी उसके ऊपर पूजा की कोमल उँगलियों का स्पर्श याद आ गया। उसे याद आये वह दिन जब उसके कौमार्य के दिनों में पूजा की उँगलियों ने कैसे उसे यौवन का नजारा महसूस कराया था?
कैसे वह पूजा की उँगलियों के स्पर्श मात्र से गहरी नींद में से उठ कर सेना के जवान की तरह पुरे “अटेंशन” में आ गया था और आखिर में पूजा की उँगलियों से जोरशोर से सहलाने के कारण उसके अंडकोषों के भीतर जो मीठा गरम लावा छिपा हुआ था वह लपलपाता ज्वालामुखी में से फट कर निकलते लावा के फव्वारे के सामान उसके बिच के छिद्र से फूट निकल पड़ा था।
हालांकि मुझे पूजा से मिलने का कोई अवसर कुछ दिनों तक नहीं मिला; मेरे शातिर दिमाग में यही योजना चल रही थी की कैसे पूजा का करारा बदन, उसके दूध से भरे स्तन, उसकी सुआकार गाँड़ और उसकी कमल की दण्डी जैसे जाँघों के बिच स्थित उसकी रसीली चूत को एक रात के लिए या फिर कुछ देर के लिए ही सही पर अपना बनाया जाये।
मेरे हाथ पूजा के करारे कमसिन बदन को सहलाने के लिये तड़प रहे थे। मुझे रातों में पूजा की उभरी हुई गाँड़ का दृश्य सताने लगा। ख़ास कर जब मैंने पूजा के ब्लाउज पर उसके दूध भरे स्तनों में से रिसकर निकले हुए दूध के गीले धब्बे देखे तब मैं बड़ी मुश्किल से अपने आप को सम्हाल पाया था।
पर मुझे धीरज रखना बहुत ही जरुरी था। कोई भी जल्द बाजी वाला कदम ना सिर्फ मेरी इच्छा को नाकाम कर सकता था बल्कि मुझे तिरस्कार और जलालत के अँधेरे में भी धकेल सकता था। मुझे खूब सोच समझ कर कदम उठाने होंगे ताकि मैं पूजा के मन को ऐसे जित लूँ की वह खुद ही चल कर अपने कमसिन बदन को अनावृत कर मुझे समर्पित करे और मैं उसको एन्जॉय कर पाऊं।
मेरे सामने कई अड़चनें थीं जिनको मुझे पार करना था। इन अड़चनों और अवरोधों को मुझे अपना सहायक बनाना था। तभी मैं अपनी इच्छा पूरी कर सकता था। मेरा सबसे पहला ध्येय होगा राज को राजी करना। मुझे उसमें कुछ सकारात्मक भाव नजर आये थे। मुझमें इंसानों के भावों को पढ़ने की कुछ देन है।
पहली बार जब उसने मेरे सामने पूजा को घुमाफिरा कर यह पूछा था की “क्या अनूप ने तुम्हें चोदा तो नहीं था?” तब मुझे उसके पूछने में इर्षा या गुस्सा नहीं पर उत्तेजना का भाव महसूस हुआ था। जब राज मुझे लिफ्ट तक छोड़ने आया तो मुझे पूछने लगा, “पूजा कैसी लगी?” तब मुझे ऐसा लगा जैसे वह मुझसे उसकी बीबी के बारे में कुछ सेक्सी लम्पटता से भरी हुई बातें सुनना चाहता था।
अगर मेरा निष्कर्ष ठीक था तब हो सकता है की राज स्वयं मुझे पूजा तक पहुंचानेमें मेरी मदद ना भी करे तो ज्यादा विरोध नहीं करेगा। यह बहुत जरुरी था। ऐसे किस्सों में कहीं ना कहीं कुछ गलती से या अकस्मात् से अगर मैं पकड़ा भी जाता हूँ तो राज से कुछ सहायता या यूँ कहिये की मेरी करनी की उपेक्षा भी जरुरी साबित हो सकती थी।
सबसे पहले मुझे पूजा के पति की सहायता या अवरोध निवृत्ति चाहिए थी। मैंने तय किया की सबसे पहले मुझे राज से दोस्ती बढ़ानी जरुरी थी। या यूँ कहिये की राज को भड़काना जरुरी था। मैंने सोचा देखते हैं जैसा माहौल वैसा इलाज। जैसा की मैं समझ रहा था की राज भी चाहता था की मैं आगे बढूं।
तो फिर मैं राज को भड़कीली बातें कर के उत्तेजित करूंगा ताकि वह पूजा को मेरे आगे कर सके। तब अपने आप ही पूजा मेरे सामने आ जायेगी। फिर तो मैं पूजा को उसका दिया हुआ वचन पालने के लिए मजबूर करूंगा और फिर तो पूजा को चोदने मैं कोई बाधा मुझे नजर नहीं आ रही थी।
पढ़ते रहिएगा.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!
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