हम दोनों एक दूसरे की आँखों में झांक रहे थे और वो धीरे धीरे मेरे करीब आता जा रहा था । नजदीक आकर उसने अपना एक हाथ मेरी कमर में डाला, मुझे लगा फिर से डांस करना चाहता हैं। मैं मुस्कुरा दी, और उसने अपना दूसरा हाथ मेरी पीठ पर लगा कर अपनी तरफ खिंचा। हम दोनों एकदम करीब आ गए थे।
खड़े खड़े ही उसने अपने होंठ मेरे होंठो के पास लाना शुरू कर दिया था। उसके होंठ मेरे होंठो से सिर्फ एक इंच की दुरी पर थे और मेरे मम्मे उसके सीने से टकरा गए । मेरे नाजुक मम्मे स्प्रिंग की तरह थोड़ा दब गए और उसके होंठ मेरे होंठो को चूमने ही वाले थे कि मुझे मेरी शपथ याद आ गयी।
मुझे अब इन सब एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की चीजों में नहीं पड़ना था। मैंने उसको दूर किया और मुड़ कर भागते हुए फिर पार्टी हॉल में आ गयी। सब लोग अभी खाना खाने की तैयारी कर रहे थे । वहा जाने के बाद सुधा आंटी मेरे पास आये।
सुधा आंटी: “तुम्हे पता हैं आज बरसो बाद राहुल ने सालाना पार्टी में डांस किया हैं। पिछली बार उसने अपनी गर्ल फ्रेंड रूही के साथ किया था जब उसके पापा बिज़नेस सँभालते थे,और उसके बाद जाकर आज तुम्हारे साथ। ”
मैं सोचने लगी शायद इस कारण से राहुल को मुझ में रूही की झलक मिली थी।
सुधा आंटी: “मैंने इस कंपनी में बरसो से काम किया हैं। काफी समय बाद उसको इस तरह खुश देखा मैंने। ”
उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा और कहा : “काश तुम शादी शुदा ना होती। ”
ये कहते हुए वो वहा से चली गयी । मैं सोच मैं पड़ गयी, जाने अनजाने में मैंने राहुल की दुखती रग छेड़ दी थी। मेरा ऐसा कोई मकसद तो नहीं था पर मैंने आग तो लगा ही दी थी जिसे बुझाना मेरे बस में भी नहीं था। मुझे अब बहुत संभल कर चलना था।
इसके बाद मैं पूरी पार्टी में राहुल से दूर दूर ही रही। उसने जरूरतमंद कर्मचारियों के लिए घर छोड़ने के लिए कैब की व्यवस्था भी कर रखी थी। मैं घर तो आ गयी पर गहरी सोच में डूबी थी। मैंने क्या अनर्थ कर दिया था।
पार्टी शुक्रवार को थी तो अच्छा था, अगले दो दिन छुट्टी थी और मुझे राहुल का सामना नहीं करना था। उन दो दिनों में भी मैं सोचती रही कि राहुल का व्यवहार कैसा होगा, कही वो फिर से मुझे पकड़ कर चूमने की कोशिश तो नहीं करेगा। अब आगे मुझे क्या करना चाहिए था इसकी रुपरेखा बनाने लगी।
सोमवार को भी आना ही था। मैंने अपने सारे छोटे कपड़े एक बेग में भर स्टोर रूम में छुपा दिए। मुझे अब इनकी कोई जरुरत नहीं थी और भूल कर भी उन्हें नहीं पहनना था। मैंने अपने पुराने वाले कपड़े जो बदन को पुरे ढकने वाले ऑफिस वियर थे निकाल लिए और गले में सीने को ढकता स्कार्फ़ पहन लिया।
अपनी कुर्सी पर बैठ मेरा दिल धक् धक् कर रहा था। राहुल आया और सीधा अपने केबिन में चला गया, अपनी आदत के अनुसार बिना दाएं बाएं देखे। मुझे डर था कि कही वो मुझे अंदर बुला ना ले। जल्द ही उसका बुलावा भी आया। मैंने अपना स्कार्फ़ थोड़ा और नीचे खिंच कर अपना पूरा सीना ढकने की कोशिश की और डरते हुए उसके केबिन में प्रवेश किया।
वो अपने लैपटॉप में डूबे हुए ही मुझे कुछ काम के निर्देश देने लगा। मेरी तरफ देखा तक नहीं। शायद ऑफिस वाला राहुल, पार्टी वाले राहुल से एकदम अलग था, जैसे दो जुड़वाँ भाई अलग अलग व्यवहार के साथ। मैं अब बाहर जाने लगी और उसकी आवाज सुन रुक गयी।
राहुल: “प्रतिमा, हो सके तो कल रात के लिए माफ़ कर देना। माफ़ी लायक तो नहीं हूँ, पर पता नहीं मुझे कल
रात क्या हो गया था।”
मैंने बिना पीछे मुड़े उसकी पूरी बात सुनी और केबिन के दरवाजे से बाहर आ गयी। अपनी सीट पर बैठे ये सोचने लगी मैंने जो प्रतिक्रिया दी वो सही थी या नहीं। मुझे कुछ जवाब तो देना चाहिए था, कही मैंने अशिष्ट व्यवहार तो नहीं किया था राहुल के साथ। क्या मुझे वापिस अंदर जाकर उसको माफ़ कर देना चाहिए या थोड़ा और इंतजार करना चाहिए।
तभी मुझे राहुल का एक ईमेल मिला, उसने मुझे उसके आज के सारे अपॉइंटमेंट कैंसिल करने को बोला। ईमेल पूरा पढ़ा ही था कि राहुल अपने केबिन से निकला और चला गया। शायद वो मुझसे नाराज था और गुस्से में घर चला गया।
अगले दिन भी वो ऑफिस नहीं आया और घर से ही ऑफिस का काम करता रहा। उसके फेस तो फेस मीटिंग्स सारे कैंसिल करने का ईमेल आया था। उसके जैसे चरित्रवान पुरुष से अगर कोई छोटी सी गलती हो जाये तो उसके लिए ये बहुत बड़ी बात थी। हालांकि उसने गलत कुछ किया नहीं था, बल्कि करने वाला था।
मैं अब क्या करू, उसने जो किया उसके लिए माफ़ करू या खुद माफ़ी मांगू अपने किये की। सोचा फ़ोन करू, पर शायद शब्द ही मुँह से ना निकले। अंत में मैंने उसको मैसेज किया कि उसने जो भी किया वो नेचुरल था, मैंने बुरा नहीं माना हैं और हम उस घटना से आगे बढ़ सकते हैं। उसका थैंक यू का मैसेज आया।
अगले दिन राहुल ऑफिस आया और फिर से पहले वाला राहुल बन चूका था। हमने सब कुछ भुला दिया था।
दो महीने बाद ऑफिस में काफी हलचल थी, कंपनी के एक पुराने क्लाइंट के साथ बहुत बड़ी डील होने वाली थी। ये डील कंपनी को बहुत फायदा पहुंचाने वाली थी वरना काफी नुकसान की उम्मीद थी क्यों कि इस डील को पाने के लिए काफी तैयारियां कर ली गयी थी ।
मुझे इस कंपनी में अब काफी महीने हो गए थे और मेरी मेहनत और राहुल के भरोसे के बल मैं अब सिर्फ एक सेक्रटरी नहीं रही थी पर राहुल का दायां हाथ बन चुकी थी। मेरी भी इस डील में काफी बड़ी भूमिका थी । ये एक विदेशी क्लाइंट था, नाम था बॉब।
अगले महीने वो यहाँ डील साइन करने आने वाला था। इस बीच हमारा काम काफी बढ़ गया था। फिर पता चला कि बॉब किसी और काम से नहीं आ पायेगा और इसके बदले उसकी बीवी सैंड्रा आने वाली थी, जो कंपनी की वीपी भी थी।
आखिर सैंड्रा हमारे शहर आयी और एक होटल में रुकी। अगले दिन हमारी मीटिंग होनी थी पर राहुल ने शिष्टाचार के नाते सुबह उसके होटल में जाकर उसको फूलो का गुलदस्ता दे स्वागत करने का निर्णय किया। राहुल चाहता था कि मैं भी उसके साथ जाऊ, ताकि वो मुझे उनसे मिलवा सके क्यों कि मैं पहली बार मिलूंगी उनसे।
सुबह नौ बजे के करीब उस होटल में पहुंचे। दरवाजे पर दस्तक दी पर कुछ देर तक किसी ने दरवाजा नहीं खोला। मैं चाहती थी कि फिर से दस्तक दी जाये पर राहुल ने मना कर दिया और हमने थोड़ा और इंतजार किया। राहुल सही था, एक महिला ने दरवाजा खोला।
सामने सैंड्रा खड़ी थी, एक पेंतीस के लगभग उम्र की एक बेहद खूबसूरत सी महिला थी। घुंघराले भूरे खुले बाल और भूरी आँखें, पूरा गौरा रंग बहुत ही आकर्षक थी । उसने एक छोटा सा गाउन पहन रखा था जो घुटनो के ऊपर ही ख़त्म हो गया था और ऊपर नूडल स्ट्रैप थे। गाउन का गला इतना गहरा था कि बीच से उसके दोनों मम्मो की घाटियां साफ़ दिखाई दे रही थी।
उसने गाउन में ब्रा नहीं पहना था ये साफ़ पता चल रहा था क्यों कि उसके तीखे तीखे निप्पल उसके गाउन से झांक रहे थे। मैंने उसका पहनावा देख थोड़ा असहज महसूस किया, शायद इन विदेशियों को इन सब चीजों से फर्क नहीं पड़ता हैं।
राहुल ने उसको बूके देकर स्वागत किया और मेरी और सैंड्रा की पहचान कराई।
सैंड्रा ने अब अंग्रेजी में हमसे बोला : “अंदर आओ, तुम्हे किसी से मिलवाती हु ”
वो हमें अंदर लेकर गयी। कमरे के अंदर दो बेड लगे थे, पहले बेड पर रजाई जो की त्यों सिमटी पड़ी थी, शायद किसी ने वो बेड इस्तेमाल ही नहीं किया था। दूसरे बेड पर एक बीस बाइस साल का लड़का आँख खोले लेटा था। उसने रजाई से अपने आप को ढका था और सिर्फ मुँह बाहर था।
सैंड्रा ने हमे आपस में मिलवाया, उसने बताया कि वो उसका बेटा जैक हैं। जैक के सुनहरे लम्बे बाल थे, नीली नीली आँखें और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह पतले पतले हलके गुलाबी होंठ थे। उसने अपना एक हाथ रजाई से निकाल हमें देख अपना हाथ हिला कर हेलो बोला।
उसने हाथ बाहर निकाला तो उसका नंगा कंधा देख मैं समझ गयी कि उसने ऊपर कोई कपडे नहीं पहने थे। एक अजीब सी पहेली थी, सैंड्रा की उम्र के हिसाब से उसका इतना बड़ा लड़का तो नहीं हो सकता था। दूसरा ऐसा लग रहा था कि वो दोनों रात भर एक ही बेड पर सोये थे क्यों कि जैक के बगल में बेड पर चादर पर सिलवटे थी जैसे कोई वहा सोया था।
अभी सारे सवाल मेरे मन में ही थे कि एक और बड़ा सवाल सामने आ गया। वाशरूम से एक राक्षस से आकार का काला पहलवान आदमी बाहर निकला। उसने नीचे एक बॉक्सर के अलावा शरीर पर कुछ नहीं पहना था। उसकी भुजाए लगभग मेरी जांघो के बराबर थी और पुरे शरीर पर मसल्स बने थे।
मैं तो उसको देखते ही डर गयी, जब वो चलता हुआ आ रहा था तो उसके बॉक्सर के अंदर उसका लंबा मोटा लटकता हुआ लंड साफ़ महसूस हो रहा था जो एक पेंडुलम की तरह हिल रहा था। अगर नरम होकर लटकने पर ये छह इंच का हैं तो कड़क होने पर तो आठ नौ इंच का हो ही जायेगा। मैंने तो इतना बड़ा कभी नहीं देखा था।
सैंड्रा ने उससे हमारा परिचय कराया, वो जोसफ था, उसका साथी। उसने आगे बढ़ राहुल से हाथ मिलाया और मुझे देख अंग्रेजी में बोलने लगा “व्हाट ए फकिंग ब्यूटी” और मेरी तरफ बढ़ने लगा। मैं दो कदम पीछे हट गयी।
राहुल ने उसका हाथ पकड़ उसे रोका और अंग्रेजी में ही बोला : “ये भारत हैं, यहाँ ये सब नहीं चलता।”
जोसफ एकदम से रुक गया। उसने मेरी तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया। उसका विशालकाय हाथ देख मैंने अपने हाथ जोड़ लिए और नमस्ते किया। वो समझ गया और मुझसे भी नमस्ते बोला।
क्या जोसफ भी इनके साथ उसी कमरे में ठहरा था, पर दूसरा बिस्तर तो लग नहीं रहा था कि इस्तेमाल किया था, फिर ये तीनो क्या एक साथ सो रहे थे। एक माँ अपने जवान बेटे और अपने ऑफिस के कर्मचारी के साथ एक साथ सोई थी।
सैंड्रा जैसी नजाकत वाली महिला ने जोसफ का इतना बड़ा लंड कैसे लिया होगा और सहन किया होगा, वो भी अपने बेटे के सामने। मेरे सामने की पहेलियाँ बढ़ती ही जा रही थी। फिलहाल राहुल ने कल मीटिंग में मिलने का बोल वहा से विदा लिया।
कहानी आगे जारी रहेगी..
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