अगले सोमवार को मैंने नयी खरीदी पेंसिल स्कर्ट पहन ली। उस तंग काली घुटनो से थोड़ा ऊपर तक की शार्ट स्कर्ट के पीछे से मेरे नितंबो का उभार और उस पर मेरी पतली कमर बहुत ही सेक्सी लग रही था।
सोचा ऊपर भी कोई स्किन दिखाऊ टॉप पहन लेती हु पर अपने आप को रोका कि एक साथ दो झटके ठीक नहीं होंगे। मैंने अपना बटन डाउन सफ़ेद तंग शर्ट पहना। उसमे से मेरे सीने का उभार जैसे फट कर बाहर आ रहा था तो मैंने गले में स्कार्फ़ डाल कर उससे सपना सीना ढक लिया।
ऑफिस में पहुंचने के बाद तो क़यामत ही आ गयी, पुरुष तो पुरुष महिलाये भी तारीफ़ करने लगी कि मुझे कभी ऐसे छोटे कपड़ो में नहीं देखा। पुरुष कर्मचारी में कोई नहीं बचा जो आकर मेरी तारीफ़ ना कर गया हो।
मुझे लगा कि इन लोगो पर असर तो पड़ा हैं मतलब राहुल भी मुझ पर ध्यान जरूर देगा।
मैं इंतज़ार करने लगी कि कब राहुल अपने केबिन में आएगा और मैं वहा जाकर उसको आश्चर्यचकित कर पाऊँगी। हमेशा की तरह बिना दाए बाए देखे राहुल अपने केबिन में चला गया। उसके कुछ मिनट के बाद मैंने ही कोई बहाना बना उसके केबिन में जाने का मन बनाया।
मैं पहले वाशरूम में हो आयी अपना मेकअप टच अप कर लिया और कपड़े देख लिए कि सब ठीक लग रहा हैं। सोचा सीने पर पड़ा स्कार्फ़ भी हटा लू और अपने सीने का उभार भी दिखा दू फिर सोचा ठीक नहीं रहेगा।
वाशरूम से जाने लगी फिर कुछ सोच स्कार्फ़ हटा लिया और मेरे टाइट शर्ट से मेरे मम्मो का उभार बहुत ही उत्तेजित लग रहा था। फिर कुछ मन में आया और ऊपर का एक बटन भी खोल दिया। बहुत हल्का सा मम्मो का नंगा उभार दिखने लगा।
मैंने दूसरा बटन भी खोल कर देखा और मेरा क्लिवेज दिखने लगा। ये ज्यादा हो जायेगा सोच दूसरा बटन फिर बंद कर दिया। एकदम से जो कुछ दिख रहा था बंद हो गया। अपने शर्ट के दोनों खुले हिस्सों को पकड़ थोड़ा चौड़ा कर अपना सीना दिखाया।
अब बाहर जाने की बारी थी, पर राहुल के केबिन के बाहर अपनी सीट तक जाते जाते मुझे दूसरे लोगो के सामने से जाना होगा। मैंने अपना स्कार्फ़ फिर से कंधे पर डाल अपना खुला सीना ढक लिया।
मैं अपनी सीट पर पहुंची। आस पास देखा, सब अपने क्यूबिकल में बैठे थे तो कोई नजर नहीं आया, मैंने अपना स्कार्फ़ रख दिया और अपने सीने को देखा और शर्ट को फिर इस तरह एडजस्ट कर लिया कि मेरा सीना दिखने लगे।
मैं फाइल उठा राहुल के केबिन की तरफ मुड़ी और एक दस्तक दी। राहुल ने अंदर आने को बोला और मैंने एक गहरी सांस भरी और अंदर घुसी। राहुल ने एक नजर देखा कौन आया हैं और फिर नीचे टेबल पर पड़े अपने लैपटॉप में देख अपना काम करने हुए पूछा कि मैं किस काम से आयी हूँ।
मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया कि मैं बता नहीं सकती। खैर मैं जिस बहाने से गयी वो बताया और उसने मुझे देखे बिना उसका समाधान कर दिया और मुझे एक हारे हुए खिलाडी की तरह वापिस वहा से जाना था।
दरवाजा खोलने से पहले एक हाथ से फिर अपने शर्ट के खुले हिस्से को पकड़ बंद किया और बाहर आकर अपनी कुर्सी की सीट में धंस गयी।
मेरी उस वक्त रोने की हालत हो गयी थी। इतनी तैयारी कर के मैं अंदर गयी और उस निष्ठुर ने एक झलक तक ध्यान से नहीं देखी। कम से कम दो तीन पलो के लिए ही देख लेता।
मैं अपने दोनों हाथ टेबल पर मोड़ कर अपने चेहरे को उस पर रख छुपा दिया। बिन कहे इतना अपमान तो मेरा कभी नहीं हुआ था। फिर सोचा मुझे कोई ऐसे देख ना ले।
मैंने फिर से अपना बटन बंद कर दिया और वो स्कार्फ़ फिर से लगा लिया। कुछ समय बाद राहुल ने मुझे एक क्लाइंट की फाइल ले मुझे किसी काम से केबिन में बुलाया। मैं सोचने लगी क्या ये मेरे लिए दूसरा अवसर हैं।
कही वो मुझे दुबारा तो देखना नहीं चाहता। मैंने फटाफट से अपना स्कार्फ़ हटाया और शर्ट का एक बटन फिर से खोल कर शर्ट को थोड़ा ऊपर से खोल चौड़ा कर दिया और वो फाइल लिए एक बार फिर अंदर पहुंची।
इस बार तो मेरे अंदर पहुंचने पर उसने देखा तक नहीं क्यों कि उसको पहले ही पता था कि मैं आने वाली थी। मैंने वो फाइल उसके सामने रख कर खड़ी हो गयी। उसने फाइल में नजरे गड़ाए मुझसे उस बारे में कुछ पूछा।
मैं उसके टेबल से घूमते हुए उसकी तरफ आयी और कुर्सी के करीब आ खड़ी हुई। फिर आगे झुक फाइल में ऊँगली लगा उसकी शंका का समाधान करने लगी। इस बीच मैं जितना हो सके उसके करीब गयी ताकि उसे मेरी परफ्यूम या बदन की खुशबु तो आये।
वो मेरी बातों से संतुष्ट हो गया और बोला ठीक हैं और आगे का काम बता दिया पर मेरी तरफ फिर भी नहीं देखा। मुझे इसी में संतोष मिल गया कि उसने कम से कम मेरी खुशबु तो महसूस की होगी।
फिलहाल मेरे लिए ये छोटी ख़ुशी ही मेरी जीत थी। वापिस आते वक्त मैंने फिर अपना शर्ट ऊपर से हाथ से बंद कर दिया ताकि बाहर बैठे लोग ना देखे।
अपनी कुर्सी पर बैठ अपना खुला बटन बंद कर और स्कार्फ़ वापिस लगाते मैं यही सोच रही थी कि आज की मेरी योजना कामयाब हुई भी या नहीं। मैंने सोच लिया कि अगली बार जब मैं अंदर जाउंगी तो राहुल से पूछ ही लू कि मेरे ऐसे कपड़े पहनने पर उसे कोई आपत्ति तो नहीं।
दोपहर के बाद मुझे एक बार फिर उसने किसी काम से अपने केबिन में बुलाया और अपनी आदत के अनुसार मेरी तरफ देखना भी गवारा नहीं समझा। उसने जो पूछा मैंने उसका जवाब दिया और मैं बाहर जाने के लिए फिर मुड़ी।
फिर मैं ठिठक कर रुकी और हिम्मत कर उसकी तरफ पीछे मुड़ी और अपना सोच कर रखा सवाल दाग दिया। मैं इस बार भी बिना स्कार्फ़ से अपना सीना ढके और ऊपर का बटन खोल अपना सीना थोड़ा दिखाए आयी थी।
मैं: “राहुल एक बात पूछनी थी।”
राहुल ने मेरी तरफ देख बिना पूछा : “बोलो”
मैं: “मेरे ऐसे कपड़े पहनने पर आपको कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं हैं?”
राहुल ने एक नजर मुझ पर डाली, शायद पहली बार वो मेरे कपड़े देखने के लिए अपनी नजरे मुझ पर डाल रहा था। उसके मेरी तरफ देखते ही मैं शरमाते हुए धक्क से रह गयी।
उसने मेरी नजरो से नजरे मिलाई और बोला “हमारे ऑफिस में कोई ड्रेस कोड नहीं हैं, जब तक कि कोई क्लाइंट नहीं आने वाला हो। कोई भी कुछ भी पहन सकता हैं जब तक कि किसी की भावनाओ को ठेस ना पहुंचे।”
उसने एक बार फिर अपनी नज़रे अपने लैपटॉप पर डाली और अपना काम करते हुए पूछा “और कोई सवाल?”
मैंने हँसते हुए ना कहा और अपनी जीत जा जश्न मनाते हुए जैसे बाहर निकली। मैंने उसको अपनी तरफ देखने को मजबूर जो कर दिया था।
वापिस सीट पर आकर मैंने अपने शर्ट का बटन बंद कर स्कार्फ़ फिर लगा सीना ढक दिया। मैं सोचने लगी क्या राहुल ने थोड़े खुले शर्ट से मेरे मम्मो का उभार देखा होगा। शायद मुझे थोड़ा तिरछा खड़ा होना चाहिए था ताकि वो मेरे नितंबो और सीने के वक्र को और अच्छे से देख पाए।
राहुल ने हालाँकि मेरी तरफ देखा था पर अगले ही क्षण मेरी आँखों में देख बात कर रहा था। मतलब उसपर कोई असर नहीं पड़ा मेरे इस फिगर और छोटे कपड़ो का! शायद मुझे शर्ट का दूसरा बटन भी खोल देना चाहिए था, इससे तो राहुल पर जरूर फर्क पड़ता। शाम होने तक मैं इसी उधेड़बुन में रही।
रात को बिस्तर में सोते वक़्त भी यही ख्याल आ रहे थे कि मुझे आज और क्या क्या करना चाहिए था। साथ ही अगले दिन मैं क्या कर सकती हु ये सोचने लगी। इन्ही सारे ख्यालो के साथ मैं सो गयी।
अगली सुबह मैंने वो स्लीवलेस टॉप पहना जिसमे मेरी नाभी और पतली कमर दिख रही थी। कल के मुकाबले आज और भी छोटी स्कर्ट पहन ली। अपने आप को आईने में देखा और मुझे ये सब करना कुछ ठीक नहीं लगा और फिर से वो कपडे उतार कर हमेशा वाले पुरे ढके कपडे पहन लिए।
फिर मुझे लगा ये तो कदम पीछे खींचने वाली बात हुई, क्या मुझे इतनी आसानी से हार मान लेनी चाहिए या कोशिश करते रहना चाहिए, एक दिन तो राहुल खुल कर सामने आएगा। मैंने फिर से वैसे कपड़े पहने जैसे कल पहने थे, घुटनो तक स्कर्ट और टाइट टॉप।
उसके केबिन में जाते ही मैंने साइड पॉज में खड़े हो एक हाथ अपनी कमर पर रखा और अपने आगे और पीछे के कर्व दिखाने की कोशिश की। पर इन सब का भी उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ था राहुल।
अगले कई दिनों तक मैंने प्रयत्न किया कि कभी तो राहुल मेरी तरफ देख कर अपनी नजरे रोक देगा और मेरी खूबसूरती या बदन की तारीफ़ करेगा। पर वो दिन तो आ ही नहीं रहा था।
पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी..
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