समय के बीतते योगराज नजरें भी मेरे पुरे बदन पर घूमने लगीं। अब वह पहले वाला अजीब सा भाव जाता रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे से नजरे मिलने पर जैसे कोई गुप्त सन्देश दे रहे थे।
उनकी नजर इतनी शुक्ष्म और गुह्य थी की हमारे पुरे ऑफिस में कोई भी हमारी नज़रों का आदान प्रदान के बारे में समझ ही नहीं सका।
शुरू से ही मैं भी उनकी नजरों का मेरी पैनी नजर से जवाब देना चाहती थी, पर चूँकि मैं शादी शुदा थी और उस समय शादी के कस्मे वादे बगैरह में मेरा अंध विश्वास था, मैं उनके इशारों को उपेक्षित करती रही।
पर अजित से नाता तोड़ने के कुछ हफ़्तों के बाद से मैंने योग (योगराज) की नज़रों का मीठी सी मुस्कान देकर जवाब देना शुरू किया।
जैसे ही मैंने योग को मीठी नजर से जवाब देना शुरू किया, की हम दोनों के बीच की आँखों आँखों की मस्ती बढ़ती गयी।
योग की कटार सी तीखी नजरें देखते ही मेरी हालत लड़खड़ा जाने लगी। उनकी कामुक नजर मेरे बदन पर पड़ते ही मेरे पुरे बदन में एक कम्पन सी होने लगती।
अब मैं भी उनसे अकेले में मिलने के बेताब होने लगी थी। और मुझे ऐसे कुछ मौके अनायास मिल भी गए।
ख़ास तौर से मैं उस सुबह को नहीं भूल सकती जब मुझे ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गयी थी। भागते भागते मैं जब लिफ्ट में दाखिल हुई तो योगराज अकेले वहाँ पहले से ही खड़े थे।
मैंने उन्हें “हेलो” कहा और उन्होंने भी थोड़ा सा मुस्का कर मुझे “हाई प्रिया!” कहा।
मुझे साफ़ साफ़ याद है की उस दिन मैंने काला स्कर्ट और लूस सफ़ेद टॉप पहन रखा था। मेरे लिफ्ट में दाखिल होते ही लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ। लिफ्ट में मैं और योगराज ही थे।
थोड़ा चलते ही अचानक बिजली गुल हो गयी और लिफ्ट में अन्धेरा हो गया। लिफ्ट बीच में ही रुक गयी। अँधेरा होते ही मेरी हालत खराब हो गयी। मेरी साँस घुटने लगी।
मैं एकदम मारे डरके घबड़ा उठी और बिना सोचे समझे योगराज को अँधेरे में ढूंढने लगी और उनके बदन को छूते ही हाथ फैला कर उनको पकड़ कर अपने करीब लाने की कोशिश करने लगी।
मेरी इस तरह की हरकतें देखकर योगराज भी बड़े अचम्भे में पड़े होंगे। पर मुझ में यह सब सोचने की क्षमता कहाँ थी?
मैं तो अँधेरे के डर के मारे चिल्ला उठी, “योग, मुझे बचा लो। मुझे अपनी बाहों में लेलो। छोड़ना मत। मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है। मेरा दम घुट रहा है। तुम कहाँ हो?”
यह कह कर मैं उनके बदन पर हाथ फिराने लगी, जिससे मुझे उनका हाथ मिले और उन हाथों के बंधन में मैं बँध जाऊं।
उनके लिए तो यह एक सुनहरा मौक़ा था। उनके बदन पर घूम रहे मेरे हाथ को योग ने धीरे से पकड़ कर जैसे अनजाने में ही अपने दो पाँवों के बिच में रख दिया।
उनकी पतलून में लटकता हुआ उनका आधा कड़क लण्ड मेरे हाथ में अनायास ही आ गया। मैंने अपने हाथ में योग का लण्ड लिया और उसे महसूस किया।
बापरे! उनका आधा ही खड़ा लण्ड भी कितना लंबा और मोटा था यह मैंने बिच में कपड़ा होते हुए भी महसूस किया। मेरे पुरे बदन में एक सिहरन फ़ैल गयी।
मेरी गभराहट देख कर योगराज ने मुझे अपनी बाँहों में खिंच लिया और बोले, “बिलकुल चिंता मत करो प्रिया (मेरा नाम) डार्लिंग, मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मैं यहीं हूँ।”
उनका हाथ मैंने मेरी कमर के घिरावे पर रखा। उस समय मैं डर से कम और उन्माद भरी उत्तेजना से ज्यादा प्रभावित थी।
मैं योग के लण्ड को अनजाने में अनायास ही कुछ देर तक सहलाती रही। मैं फिर यह सोच कर घबरा गयी की कहीं योग मेरे ऐसा करने को मेरी सम्मति ना मान ले।
यदि उसे ज़रा सी भी भनक पड़ गयी की मैं भी योग से चुदवाने के लिए तैयार हूँ तो उसको मेरे स्कर्ट को ऊपर उठा कर और मेरी पैंटी को निचे खिसका कर अपनी पतलून की ज़िप खोल कर अपना मोटा लंड मेरी चूत में घुसेड़ने में कोई वक्त नहीं लगेगा।
और अगर ऐसा हुआ तो वह मुझे वहीँ लिफ्ट में ही पकड़ कर चोदने लग जाएगा। फिर मैं भी उसे रोक भी नहीं पाउंगी।
डर के मारे फ़ौरन मैंने अपना हाथ योग के लण्ड के ऊपर से हटा दिया। मुझे इतना करीब पाकर और ऐसी हरकतें करते हुए महसूस करने पर योग का लण्ड खड़ा हो जाना स्वाभाविक ही था।
मेरे उन्नत उरोज उनकी चौड़ी छाती को रगड़ रहे थे। उनका लण्ड एकदम ना सिर्फ खड़ा हो गया बल्कि ऊँचा उठते हुए मेरे दो पॉंव के बिच में टक्कर मारने लगा।
जैसे ही मैंने उनके खड़े लण्ड को मेरे पाँव के बिच में महसूस किया की मेरे बदन में डर की जगह उत्तेजना भरी काम की ज्वाला फ़ैल गयी।
मैं उनको जैसे कस कर दबा रही थी तो वह भी तो थोड़े टेढ़े हो कर उनके हाथ मेरी गाँड़ की गोलाई पर घुमाने और मेरे कूल्हों को बड़े प्यार से सेहला ने लगे।
उनके टेढ़े होने से उनका लण्ड सीधा ही मेरी चूत में मेरे कपड़ों के बिच में से टोचने लगा। इस का अनुभव होते ही मेरी चूत में से जैसे मेरे स्त्री रस की धारा बहने लगी।
तब शायद योगराज को ध्यान आया की उन्होंने अलार्म बटन तो दबाया ही नहीं था। वह मुझे थोड़ा बाजु में खिसकाते हुए बोले, “रुको, मैं ज़रा अलार्म बटन दबाता हूँ।”
यह कह कर खिसक कर बटन दबाने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया और वह अँधेरे में अलार्म का बटन ढूंढने लगे। उनके हटने से मैं एकदम डर गयी।
पता नहीं, शायद मेरे मन की गहराईयों में मैं नहीं चाहती थी की वह अलार्म बटन दबाये जिससे की लिफ्ट के दरवाजे जल्दी से खुल जाए और हम बाहर निकल पाएं।
मैं घूम गयी और उनका हाथ पकड़ कर अपने सीने से चिपका कर बोली, “नहीं, आप कहीं भी नहीं जाएंगे। मुझसे ज़रा भी दूर मत जाइये।”
मैंने योगराज के बदन को मेरे पिछवाड़े से धक्का मार कर लिफ्ट की दिवार के साथ सटा दिया और उनके बदन को कस कर दबा कर खड़ी हो गयी।
तब मेरी गाँड़ उनके खड़े हुए लण्ड को दबा रही थी। उनके दोनों हाथ मेरी छाती पर मेरे उन्नत फुले हुए दो पके हुए आम के फल सामान मेरे स्तनों को जकड़े हुए थे।
इसी हफरा तफ़री में योग निचे फर्श पर फिसल पड़े। क्यूंकि हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड रखा था तो मैं भी उनके साथ फर्श पर फिसल पड़ी। तब मैं उनकी गोद मैं ही बैठ गयी थी। मेरे कूल्हे के निचे उनका खड़ा लण्ड दब रहा था।
योग को इससे शायद परेशानी हो रही थी। योग ने मुझे कमर से पकड़ कर थोड़ा ऊपर उठाया। मुझे पता नहीं चला पर अँधेरे में ही शायद योग ने मेरे स्कर्ट को ऊपर की और खिसकाया और फिर अपना लण्ड मेरी पैंटी में छिपी मेरी चूत को निशाना बनाते हुए मेर दोनों पॉंव को फैला कर बिच में रख दिया और मुझे अपने दोनों पॉंव के बीच में अपनी गोद में बिठा दिया। अगर बिच में पैंटी नहीं होती तो शायद योग का लण्ड मेरी चूत में घुस जाना तय था।
बापरे! मैं तो डर और उत्तेजना के मारे काँप रही थी। ऐसा अजीबो गरीब अनुभव जिंदगी में मुझे पहले कभी नहीं हुआ था, जब डर और उन्माद का ऐसा अनूठा मिश्रण हुआ हो।
एक और मैं अँधेरे में डर के मारे मरी जा रही थी, तो दूसरी और योग मुझे लिफ्ट में ही चोदने की जैसे पूरी तैयारी कर रहे थे।
योग ने इस मौके का फायदा उठाते अपने दोनों हाथ मेरे स्तनों पर रखे और मेरे स्तनों को मेरे टॉप के ऊपर से ही मुझे आश्वासन देते हुए मसलने लगे।
एक तरफ योग का लण्ड मेरी गीली चूत को कुरेद रहा था, तो दुसरी और उनके हाथ मेरे स्तनों को मसलने और दबाने में लगे हुए थे।
मुझे उस समय अँधेरे से बिलकुल डर नहीं लग रहा था, क्यूंकि मैं जानती थी की योग मुझे इस पोजीशन में छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे।
बस वह मुझे यही कह कर सांत्वना देते रहे की, “प्रिया डार्लिंग, डरना मत। अब जल्द ही बिजली आ जायेगी और हम जल्द ही बाहर निकल सकेंगे।”
मैं सच कह रही हूँ की अगर योगने उस समय लिफ्ट में मेरी पैंटी खिसका कर अपना मोटा लंड मेरी गीली चूत में डाल दिया होता तो मैं उनका ज़रा भी विरोध नहीं करती। क्योकि शायद मैं इंतजार कर रही थी की योग ऐसा कुछ करे।
मेरी साँसे धमनी की तरह फूली हुई तेज चल रही थीं। योग के हाथ मेरे स्तनों का पूरा आनंद ले रहे थे।
मैं उस समय ऐसे दिखावा कर रही थी जैसे मैं एकदम डरी हुई थी और योग की हरकतों को नजर अंदाज कर रही थी और योग ऐसे दिखावा कर मेरे स्तनों को जोर से दबा रहे थे जैसे वह मुझे पकड़ रख कर मेरी सहायता कर रहे हों। शायद हम दोनों के मन में बात तो एक ही थी।
पर वह दिखावा ऐसा कर रहे थे जैसे वह मुझे सांत्वना देते हुए मेरी छाती पर ढाढस देने के लिए ही अपना हाथ फैला रहे थे। योग ने अपना दुरा हाथ खीसका कर धीरे से मेरी स्कर्ट के निचे मेरी पैंटी पर रखा।
वह प्यार से मेरी जाँघों को सहलाने लगे और साथ में सांत्वना के बोल, “बिलकुल डरना नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ।” बोलना भूलते न थे।
मैंने अँधेरे में महसूस किया की योग अपने फुले हुए कड़क लण्ड को अपने हाथ में पकड़ कर सहलाते हुए मेरी पैंटी से रगड़ रहे थे।
मुझे ऐसा लगने लगा की योग अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहे थे। मेरी चूत के टीले पर मेरी पैंटी के ऊपर वह अपना हाथ सहलाते तो कभी वह अप्पने लण्ड को सहलाते हुए मेरी पैंटी पर रगड़ते।
मैं भी अपना आपा खोने लगी थी, की अचानक लिफ्ट में आँखें चौंधियाने वाला उजाला फ़ैल गया।
इसके पहले की योग और मैं सम्हल पाएं, लिफ्ट अगले माले पर जा रुकी और जब दरवाजा खुला तो कुछ लोग लिफ्ट का इंतजार करते हुए मुझे मेरा स्कर्ट ऊपर की और उठा हुआ और मेरी गीली पैंटी में योग की जांघों के बिच में बैठे हुए उसके लण्ड को मेरी पैंटी को टोचते हुए और योग को मेरे स्तनों को दबाते और मलते हुए देख कर आधे शर्म से और आधे शरारत से मुस्कुराने लगे।
तब मैंने अपना स्कर्ट ठीक कर के राज की गोद में से उठकर फ़टाफ़ट लिफ्ट के बाहर भाग कर निकलना ही ठीक समझा।
मेरी कहानी आगे जारी रहेगी..
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