मैं अपनी साड़ी लपेट चुकी थी और बालो को आखिरी स्वरुप दे रही थी की तभी सासु माँ की आवाज़ आयी की तैयार हुई की नहीं, सब लोग आ चुके होंगे ज्यादा देर नहीं करते अब।
मैं तुरंत कंघा नीचे रखते हुए बोली हो गया बस और कमरे से बाहर निकल गयी। सासु जी तैयार थे पडोसी के यहाँ एक रात्री जागरण में जाने के लिए। मैंने तुरंत कमरे को ताला लगाया और सासुजी के साथ पैदल घर से निकल पड़ी।
सासु जी कुछ बोलते हुए चल रहे थे पर में किन्ही और ख्यालो में थी, पति को दूसरे शहर गए 4 महीने हो चुके थे और बहुत याद आ रही थी, विरह के कुछ महीने काट रही थी।
दस मिनट के बाद ही हम पड़ोस के मकान के सामने खड़े थे, अंदर काफी चहल पहल थी, रात्रि जागरण का माहौल बन चूका था। एक बड़े हाल में सारे पुरुष लोगो के लिए व्यवस्था थी।
वहाँ की मेरी भाभी सहेलिया दूसरे थोड़े छोटे कमरे में थी अपने पीहर और घनिष्ट सहेलियों के साथ, इसलिए थोड़े अभिवादन के बाद मैंने उनको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा।
अंदर एक बड़े कमरे में सारी औरते बैठी बातों में मशगूल थी, हमारे आते हैं उन्होंने स्वागत किया और हम लोग बैठ गए। कुछ औरते बातों में मग्न थी कुछ ने सोने की तैयारी कर ली थी। पता चला पूजा आरती का कार्यक्रम सुबह 5 बजे होने वाला हैं।
मैं अपने पुराने दिनों और विचारो में खो गयी और मध्य रात्रि होने वाली थी, अब तक सारी औरते और पुरुष सो चुके थे। शायद सुबह 5 बजे उठने की तैयारी में, मगर मेरी आँखों में नींद नहीं थी, भीड़ भरा माहौल देख कर मेरी नींद वैसे भी जा चुकी थी। मैं कमरे से बाहर लघु शंका के बहाने किसी तरह औरतो के पाँव बचाते हुए बाहर निकली।
तभी सामने मोहित दिखाई दिया, जिसका यह घर था। एक हंसमुख और मुखर स्वभाव का युवक मेरे पति का हम उम्र। जब भी किसी फंक्शन में जाता अपनी बातों से वह शमा बाँध लेता। मुझे ऐसे व्यक्तित्व हमेशा आकर्षित करते हैं।
पिछली बार जब कुछ महीने अपने पति से दूर थी तब जब भी वह मिलता मेरी कुशलक्षेम जरुर पूछता और मदद के लिए पूछता। मगर कभी उसे मदद का मौका नहीं दिया।
मुझे देखते ही उसने हँसते हुए सवाल दाग दिया की मेरे पति कब आने वाले हैं। मुझे भी पक्का पता नहीं था पर बोल दिया कुछ और महीने लगेंगे। फिर उसने पूछा की मैं अब तक सोई क्यों नहीं जब की सारे लोग सो चुके थे।
फिर उसने सुबह 5 बजे के प्रोग्राम के बारे में बताया। मैंने उसे समझाया की इस भीड़ में मैं नहीं सो सकती। उसको मुझ पर दया आयी और कुछ सोचने लगा। उसकी इस उधेड़बुन को देखते हुए मैंने एक सवाल दाग दिया आप अब तक क्यों नहीं सोये।
उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तेर गयी और हाथ में पकड़ी कम्बल को थोड़ा उठाते हुए बोला की उसके सोने का एक विशेष प्रबंध किया हैं उसने घर की छत पर। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, और पूछा छत पर तो बहुत मच्छर होंगे और सुबह होने तक ठण्ड भी बढ़ जाएगी।
वह मेरे सवालो के जवाब के साथ तुरंत तैयार था। उसने बताया की उसने एक मच्छरदानी का इंतज़ाम पहले से कर लिया हैं और ठण्ड के लिए कम्बल लेने ही आया था।
यह कम्बल भी उसने किसी और सोते हुए व्यक्ति के सिरहाने से निकाल कर लिया हैं। मैं उसकी इस शरारत पर खिलखिला पड़ी। मेरे चेहरे पर हंसी देख कर उसको अच्छा लगा और मुझे मदद के रास्ते सोचने लगा।
मैंने मजाक करते हुए कहा आपके अच्छा हैं विशेष इंतेज़ाम हैं, हमारा क्या? यह बात उसकी दिल को लगी। उसमे मुझे सुझाव दिया की मैं छत पर मच्छरदानी में सो जाऊ। मुझे लगा वह मजाक कर रहा हैं, पर वह इस बात पर गंभीर था।
उसने अब और ज्यादा आग्रह किया तो तो मैंने उसको टालने के लिए बोल दिया की फिर आप कहा सोएंगे। उसने बोला की वह नीचे ही सो जायेगा पुरुषो के कमरे में।
मैंने उसका प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया की यह नहीं हो सकता, सारी महिलाये यहाँ हैं मैं वहां अकेले जाउंगी और किसी को पता लगा तो अच्छा नहीं होगा।
उसने बताया की छत पर कोई नहीं हैं और मैं छत पर लगे दरवाज़े को अंदर से बंद करके सो सकती हूँ, किसी को पता नहीं चलेगा और सुबह सबके जागने तक वापिस नीचे आ सकती हूँ। मुझे कुछ और नहीं सुझा तो बहाना मार दिया की मैं वहाँ अकेले नहीं सो सकती डर लगता हैं।
कुछ सोचने के बाद वह बोला कि वह मेरे साथ सो जायेगा। उसके यह कहते ही एक चुप्पी सी छा गयी। उसे अहसास हुआ की उसने क्या बोल दिया और तुरंत अपनी बात सुधारते हुए बोला कि वह पास में ही दूसरा बिस्तर लगा के सो जाएगा।
मैंने तुरंत मना कर दिया कि मेरी वजह से मैं उसको मच्छरों का भोजन नहीं बना सकती। वह अपने आप को लाचार महसूस करने लगा। हमेशा मदद के लिए ऑफर करने वाला आज मदद मांगने पर नहीं कर पा रहा था।
उसने अपना आखिरी प्रस्ताव रखा कि मच्छरदानी पलंग के साइज की हैं जिसमे दो लोग आसानी से सो सकते हैं और अगर मुझे आपत्ति ना हो तो हम दोनों वहां सो सकते हैं।
मेरे हां कहने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता पर अब उसने एक ब्रह्मास्त्र छोड़ा की अगर मैं उसपे थोड़ा सा भी भरोसा करती हु तो हां कर दू। अब मैं बुरी तरह फंस चुकी थी। न हां कह सकती और न ही ना कह सकती। एक तरफ कुआ दूसरी तरफ खाई।
ऐसा नहीं था की मैं उसपे भरोसा नहीं करती। परन्तु यह समाज, अगर किसी को पता चल गया, तो कुछ ना होते हुए भी मुझे बहुत कुछ होने वाला था। अपने पति को क्या जवाब दूंगी।
मैं हां या ना कुछ कह पाती उसके पहले ही उसने मुझे निर्देश दिया कि मैं अपनी सासुजी को बोल दू की मैं दूसरे कमरे में भाभी (उसकी पत्नी) के साथ सो रही हु और फिर मैं छत पर आ जाऊ वह मेरा इंतज़ार करेगा। यह कहते हुए वह सीढिया चढ़ते हुए चला गया।
मेरे पाँव अब जम गए, फिर औरतो वाले कमरे की तरफ गयी सासुजी दूसरे कोने में सो रहे थे और उन तक पहुंचने के लिए काफी लोगो को लांघ कर जाना था, फिर सासुजी की नींद ख़राब करना ठीक नहीं समझा। मैं मुड़ कर सीढ़ियों की तरफ भारी कदमो से बढ़ने लगी।
किसी तरह बेमन से मैं छत पर पहुंची, वहा वो मेरा इंतज़ार कर रहा था। उसने छत के दरवाज़े पर कुण्डी लगाते हुए मुझे आश्वासन दिया कि चिंता ना करू और किसी को पता नहीं चलेगा।
उसने अच्छे से गद्दा लगा रहा था और मच्छरदानी के अंदर दो तकिये लगे हुए थे। उसने कही से मेरे लिए दूसरे तकिये का इंतज़ाम कर लिया था। शायद फिर किसी के सिरहाने से खिंच कर।
अब हम दोनों एक ही बिस्तर पर आस पास लेटे आसमान को निहार रहे थे। चांदनी रात थी आसमान साफ़ था तारो से भरा हुआ और बहुत खुशनुमा रात का मौसम था। हलकी सी हवा चल रही थी पर ठण्ड शुरू नही हुई थी इसलिए कम्बल एक कोने में पड़ा था। थोड़ी देर ऐसे ही बातें करते रहे फिर थोड़ी ख़ामोशी और पता ही नहीं चला कब मेरी आँख लग गयी।
अचानक मैंने अपने सीने पर कुछ हलचल महसूस कि और मेरी नींद टूट गयी पर आँखें अभी भी बंद ही थी। मैंने मह्सूस किया कुछ उंगलिया मेरे ब्लाउज के हुक को खोल रही थी। मैं डर से काँप उठी, क्या यह उसी की हरकत हैं।
अब में क्या कर सकती हु। अगर चिल्लाई तो लोग पूछेंगे मैं यहाँ अकेले क्यों आयी और मुझ पर ही शक करेंगे। मैंने आँखें बंद किये हुए ही कुछ इंतज़ार करना ठीक समझा।
तब तक सारे हुक खुल चुके थे और मेरे खुले ब्लाउज के अंदर कुछ हवा प्रवेश कर गयी। मैं फिर से कांप उठी और एक अनिष्ट की आशंका से गिर गयी। मैं इंतज़ार करने लगी आगे क्या गलत होने वाला हैं।
अब उसका हाथ मेरे पेट पर था, पुरे 4 महीने बाद किसी पुरुष ने मुझे छुआ था, पुरे शरीर में एक तरंग सी दौड़ गयी। कुछ मजा भी आ रहा था पर डर ज्यादा था। उसने अब मेरे पेटीकोट से साड़ी की पटली निकालने की कोशिश की जिसमे वह कामयाब नहीं हुआ, शायद मेरे जाग जाने के डर से ज्यादा ताकत नहीं लगाई। मैंने चैन की सांस ली।
अब उसने मेरा ब्लाउज सामने से और खुला कर दिया शायद मेरे स्तन देखना चाहता था, पर कसे हुए ब्रा की वजह से कुछ हो नहीं पाया। ब्रा का हुक पीठ पर था और मैं पीठ के बल ही सोइ थी इस बात की ख़ुशी थी। वो चाहते हुए भी ब्रा नहीं खोल सकता था।
कुछ मिनट ऐसे ही निकल गए और वो मेरे कमर और ऊपरी सीने पर ऐसे ही हाथ मलता रहा, फिर जब उसे अहसास हुआ की कुछ होने वाला नहीं तो मेरे हुक वापिस लगा दिए। मैंने चैन की लम्बी सांस ली और थोड़ी देर बाद कब फिर आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
मेरी नींद में दूसरी बार व्यवधान आया, इस बार मैं करवट लेके उसकी और पीठ करके सोई हुई थी इसलिए आँखें खोली, अभी भी गहरी चांदनी रात थी और नींद खुलने का कारण वही था।
पर थोड़ी देर हो चुकी थी, ब्लाउज के सारे हुक खुल चुके थे। फिर से डर की लहर कोंध गयी कि इस बार कैसे बचूंगी क्यों की मैं करवट लेके सोई थी और ब्रा का हुक उसकी तरफ था।
कुछ सोच पाती उसके पहले ही खट की आवाज़ से ब्रा का हुक खुल चूका था और अचानक सीने पर कस के बाँधा हुआ प्रोटेक्शन ढीला हो चूका था। मैंने एक साये को अपने चेहरे की तरफ आते महसूस किया और तुरंत अपनी आँखें बंद कर ली।
उसके हाथों ने अब मेरा ब्रा, मेरे शरीर के एक महत्पूर्ण अंग से उठा दिया और हवा की लहरे अब मेरे स्तनों को छू रही थी। उस साये में मैंने मह्सूस किया कि अब वह मेरे शरीर के उस भाग को घूर रहा हैं जिसे देखने की असफल कोशिश उसने कुछ देर पहले ही की थी, पर अब वो कामयाब हो चूका था।
मैं अपने आप को कोसने लगी क्यों मैंने करवट ली। और उससे भी पहले क्यू मैं उसको ना नहीं बोल पाई छत पर आने के लिए। पर अब क्या हो सकता था, या अब भी बहुत कुछ रोका जा सकता था।
अगले कुछ क्षणों के बाद उसने एक हाथ से मेरे स्तन को दबोच लिया था, मैं अंदर से पूरी तरह सिहर गयी थी। पर कुछ बोलने या करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। और यह प्रार्थना करने लगी की इससे बुरा कुछ न हो, या शायद अंदर ही अंदर कही से यह चाहती थी की 4 महीने के एकांत वास को टूटने दिया जाये। शायद मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रही थी और खुद को भाग्य के हाथों छोड़ दिया था।
कुछ देर ऐसे खेलने के बाद उसके हाथ फिर मेरी साड़ी की पटली की तरफ बढे और कुछ सेकंड के जद्दोजहद के बाद पटली पेटीकोट के बाहर थी और अगले कुछ मिनटों में मेरी पूरी साड़ी पेटीकोट से अलग हो चुकी थी।
अब मैं एक अबला की नारी तरह पड़ी थी जिसके शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था ऊपर के वस्त्र सामने से खुले थे। फिर से एक खट की आवाज़ हुई और मेरे पेटीकोट का नाड़ा खुल चूका था और उसने मेरा पेटीकोट कमर से नीचे खिसकाना शुरू कर दिया।
मैंने आंखें खोली तो पेटीकोट पूरा निकल कर मेरी आँखों के सामने पड़ा चिढ़ा रहा था। और कुछ सोचने के पहले ही मेरे नीचे के अंगवस्त्र भी निकल कर पेटीकोट का साथ पड़े थे।
अब मुझे अहसास हो चूका था कि बचने का कोई रास्ता नहीं हैं और आत्म समर्पण कर देना चाहिए या तुरंत उठ कर फटकार लगा देनी चाहिये कि उसकी यह हिम्मत कैसे हुई। फिर किसी डर की आशंका से या काफी समय से शरीर की जरुरत पूरी नहीं होने की वजह से मैं चुप चाप लेटी रही।
मेरे नग्न शरीर को देख कर अब शायद उसका अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहा था और पीछे से उसका शरीर मुझसे चिपका हुआ था और रह रह कर ऊपर निचे रगड़ रहा था। और उसका एक हाथ मेरे कमर, कूल्हों और स्तनों पर फेरा रहा था।
फिर उसने अपना शरीर मुझसे अलग कर लिया, मुझे लगा उसका इरादा बदल गया लगता हैं और मैं सुरक्षित हूं, पर मैं गलत थी। फिर कुछ कपडे निकलने की आवाज़ आयी।
अब मैंने अपने पीछे के निछले हिस्से में एक गर्म बदन का स्पर्श महसूस किया, मुझे समझते देर नहीं लगी की उसने क्या किया हैं। और अब वो पूरा नग्न था मुझसे पीछे से फिर चिपक गया। इस बार शायद कुछ ज्यादा ही जोर से, शायद नग्नावस्था में उसकी इन्द्रिया और सक्रीय हो गयी थी।
उसका लचीला अंग मेरे पुठ्ठो को छु गया। अब शायद कही न कही मैं अपने आप को तैयार कर चुकी थी एक अनपेक्षित मिलन के लिए। उसका शरीर बराबर मुझे पीछे से रगड़ रहा था। मैं महसुस कर पा रही थी उसका लचीला अंग धीरे धीरे कठोर होता जा रहा था। अब वह जोर जोर से मेरे स्तनों को दबाते हुए कुचलने लगा पर अब मुझे बुरा नहीं लग रहा था।
कुछ देर बार उसने हाथ स्तनों से हटा लिया। उसका कठोर अंग अब मेरे दोनों टांगो के बीच खोजी कुत्ते तरह कुछ ढूंढ रहा था। शायद अंदर प्रवेश का मार्ग पर मिल नहीं रहा था। एक दो बार वह मेरे योनि द्वार के आस पास भी पंहुचा था।
थोड़े प्रयासों के बाद ही उसे मेरे शरीर पर गीली जमीन मिल गयी और वो रुक गया। उसका लिंग अब मेरे योनि द्वार पर था। मेरी साँसे जैसे रुक गयी। एक भटकते हुए प्यासे राहगीर के होठों पर जैसे किसी ने पानी का गिलास रख दिया था।
उसके लिंग ने थोड़ी ऊपर नीचे हरकत की और थोड़ा सा योनि में अंदर गड़ गया। मैंने आँखें जोर से बंद कर ली अगले क्षणों में जो होने वालो था उसकी तैयारी में। पति के अलावा पहली बार कोई पुरुष मेरी योनि में प्रवेश करने वाला था। इतनी देर की रगड़ से मेरे अंदर पहले ही थोड़ा गीला हो चूका था।
मक्खन की तरह धीरे धीरे उसका लिंग फिसलते हुए अंदर आता गया और उसके मुँह से सिसकी निकलती गयी। मेरा हाथ चेहरे के पास ही था, सो अपने होठों पर रख मुँह बंद कर दिया। उसने अपने हाथ से एक बार फिर मेरा स्तन दबोच लिया।
मैं अपने काफी अंदर तक उसके कठोर लिंग को महसूस कर पा रही थी। जितनी धीमी गति से वो अंदर गया उसी धीमी गति से उसने फिर उसको आधे से भी ज्यादा बाहर निकाला। अंदर और बाहर निकलते समय उसका लिंग मेरी योनी की दीवारों को रगड़ते हुए जा रहा था और मेरा पूरा शरीर अंदर ही अंदर कम्पन कर रहा था।
दो सेकंड के विराम के बाद एक बार फिर उसी धीमी गति से वो दीवार रगड़ता हुआ अंदर गया। जितना अंदर वो गया उससे मुझे अहसास हो गया उसकी लम्बाई कितनी ज्यादा रही होगी, और जिस तरह वो मेरी दीवारों से रगड़ खा रहा था इतनी मोटाई मैंने तो पहले महसूस नहीं की थी।
काफी समय तक वो ऐसे ही मालगाड़ी की रफ़्तार से धीरे धीरे अंदर जाता थोड़ा रुकता और बाहर आता फिर थोड़ा रूककर अंदर जाता। हर बार अंदर जाते ही उसकी एक लम्बी आह निकलती।
पता ही नहीं चला कब उसकी मालगाड़ी फ़ास्ट ट्रैन में बदली और कब राजधानी एक्सप्रेस बन गयी। उसका लिंग अंदर योनी में एकत्रित पानी को तेजी से चीरता हुआ आ जा रहा था जिससे छपाक छपाक की आवाज़े आने लगी थी। उसकी झटको की गति बढ़ने के साथ छपाक की आवाज़े काफी तेज हो गयी थी।
अब वह तेजी से बार बार झटके मारते हुए अंदर बाहर हो रहा था और मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी। उसके मुँह से अब आहें निकलने लगी और समय के साथ तेज होती गयी।
मुझे डर लगा कही कोई सुन न ले। रात के सन्नाटे में ऐसी आवाज़ें ज्यादा ही गूंजती हैं। पर मैं मन ही मन चुपके से उसका आनद भी लेती जा रही थी। कुछ ही देर में न चाहते हुए भी मैं भी उस आनंद में भीग गयी।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज़ अभी तक दबा के रखी हुई थी, जो की अब आपे से बाहर होता जा रहा था। मेरे होठों के बीच से एक आवाज़ छूट ही गयी।
इसके पहले कि मैं अपने हाथों से ओर जोर से मुँह को दबाती, उसने सुन लिया और डरने की बजाय मेरी आह को मेरी मौन स्वीकर्ती मान कर उसने कुछ जोर के झटके मुझे मारे, जिससे मेरी हलकी चीख निकलने लगी।
अब कोई फायदा नहीं था आवाज़ दबाने का। जिस चीज़ के लिए मैं कुछ महीनो से तड़प रही थी वह मिली तो भी इस तरह से और वह भी किस व्यक्ति से, यह सपने में भी नहीं सोचा था।
उसने अब मेरे ब्लाउज और ब्रा को पूरी तरह मेरे शरीर से अलग कर दिया था। अब मेरे शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था और ना ही उसके। पर अब हमें कपड़ो की परवाह नहीं थी, हम इन क्षणों को पूरी तरह सफल बनाने में झूट गए।
हम दोनों की आहे एक ही सुर में छपाको की आवाज़ से ताल मिला रही थी। इतनी देर करने के बाद भी उसकी शक्ति क्षीण नहीं हुई थी और उसी गति से उसके झटके निर्बाध जारी थे।
मैं अपनी योनी के बाहर कुछ तरल पदार्थ रिसता हुआ महसूस कर पा रही थी जो उसके लिंग के बाहर आते वक़्त साथ बाहर आ रहा था। मैं अपने चरम की तरफ बढ़ती जा रही थी और दुआ कर रही थी की मुझसे पहले कही वो छूट ना जाये।
पर शायद इन मर्दो को दूसरी औरतो के साथ करते वक़्त ज्यादा ही ताकत मिल जाती हैं। मेरा नशा अब सर तक चढ़ने लगा था और जैसे चक्कर आने लगे, मैं निश्तेज महसूस करने लगी थी, ये चरम के नजदीक पहुंचने के संकेत थे।
मैंने अपनी टाँगे अब खोल दी, जिससे बाहर छलके पानी से हवा टकराई और एक ठंडक का अहसास हुआ। टाँगे खुलने से उसको और भी बड़ा रास्ता मिला और उसने अपना लिंग ओर गहराई में ड़ाल दिया। शायद एक इंच ओर गहरा वो उतर गया था।
अगले कुछ मिनट बहुत कीमती थे, उसने जिस गहराई से एक के बाद एक तेज झटके मारे मैं पूरा छूट गयी, मेरी छोटी छोटी आहें चरम पर आते ही एक लम्बी चीख में तब्दील हो गयी, और उसके बाद मेरी कुछ हलकी चीखे निकली और मैंने अपना चरम प्राप्त कर लिया।
मेरे चरम से उसका उत्साहवर्धन हुआ और वो भूखे भेड़िये की तरह आवाज़े निकालते हुए झटको पर झटके मारता रहा। मेरे स्तन को वो अब बुरी तरह से मौसम्बी की तरह निचोड़ रहा था।
फिर एक झटका उसका इतनी गहराई में उतरा की लिंग बाहर नहीं निकला और वही पड़ा हुआ कुलबुला कर फुफकारने लगा। मैंने अपने अंदर एक गर्म लावा महसूस किया, उसने सारा पानी अंदर छोड़ दिया था। वो कुछ देर तक ऐसे ही निढाल पड़ा रहा।
सारी प्रतिक्रियाए शांत हो चुकी थी जैसे एक तूफ़ान के बाद की शांति। अब भी वह मुझे झकड़े हुए था और उसके शरीर का एक हिस्सा मेरे शरीर में था।
कुछ क्षणों के बाद अपनी चेतना को लौटाते हुए उसने अपने आप को मुझसे अलग किया, उसके बाहर निकलते ही ऐसे लगा जैसे मेरे शरीर का कोई हिस्सा मुझसे अलग हो गया, और एक हलके दर्द से मेरी आह निकली।
मुझे में पीछे मुड़ कर उससे आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं थी, जबकि सारी गलती उसकी थी, शायद मेरी गलती सिर्फ यह थी की मैंने उसे नहीं रोका। पर क्या मैं उसको रोक सकती थी! इसमें मेरी क्या गलती थी, शायद मेरे पति की गलती थी जो की इतने महीनो तक मुझसे दूर रहा और इस हाल में छोड़ दिया की मैं इस गलती में न चाहते हुए भागीदार बनी।
मैंने एक एक कर फिर से अपने कपडे पहनना शुरू किआ। मुझे यह सुनिश्चित करना था की सुबह उठ कर जब नीचे जाउंगी तो मेरी हालत देख कर किसी को कुछ शक ना हो।
कपडे पहनने के बाद जैसे ही मैं मुड़ी देखा वह काफी पहले ही कपडे पहन चूका था और मेरा इंतज़ार कर रहा था दूसरी और देख कर। शायद कपडे पहनते वक़्त भी उसने मुझे घुरा होगा, पर मैंने मन में सोचा अब उधर देखने का क्या फायदा, सब कुछ को वह पहले ही देख चूका हैं।
क्या उसे अपने किये पर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए। गलती तो उसने की हैं या फिर मुझे उसको शुक्रिया कहना चाहिए था। उसकी इस जबरदस्ती ने मुझे कई दिनों के बाद एक मानसिक और शारीरिक सुख की प्राप्ति कराई थी। काफी समय के बाद मैं अपने आप को बहुत पूर्ण, तरो ताज़ा और तंदरुस्त महसूस कर थी।
वह मेरे पास चलते हुए आया और पास आकर खड़ा हो गया। मुझे लगा मुझसे माफ़ी मांगेंगा और मैं उसे झूठमूठ गुस्सा करके डाट दूंगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
उसने कहा साढ़े चार बज गए हैं और थोड़ी देर में सब लोग उठने लगेंगे अब मुझे नीचे जाना चाहिए। मैंने उसको दबे शब्दों में कहा आप जरा मेरे आगे चलिए और देखिये कोई मुझे सीढ़ियों से उतरते हुए न देख ले।
उसने तुरंत मेरे हुक्म का पालना किया, और करता भी क्यों नहीं, मैंने उसको उसके एक सपना पूर्ण करने में साथ दिया जो नैतिक तौर पर गलत था। मैंने चैन की सांस ली कि सब ठीक हैं और किसीने नहीं देखा मुझे यह पाप करते हुए।
मैं सासु जी के पास बैठी और थोड़ी ही देर में वह उठ गए। मुझसे कहने लगे तू उठ गयी? नींद तो ठीक से आयी ना? मैंने शरमाते हुए हां में सर हिला दिया और एक कुटिल मुस्कान अंदर ही दबा ली।
सुबह के 7 बज रहे थे और सारे कार्यक्रम ख़त्म हो चुके थे और लोग अपने अपने घरो की तरफ जाने के लिए निकल रहे थे। सासुजी ने आंटी से विदा ली और हम लोग उस घर से बाहर निकले।
कुछ कदम चलने के बाद मैंने पीछे मुड़ कर घर की छत को देखा जहां मैंने कभी ना भूलने वाली रात बितायी थी। वह अभी वही छत पर खड़ा था, शायद मौन रह कर माफ़ी मांग रहा था या शायद मुझे शुक्रिया कह रहा था।
तभी उसने ऊपर से जोर से आवाज़ लगायी “मौसी, मंगलवार को दूसरा जागरण भी रखा हैं याद रखना, जरूर आना हैं”। मेरी सासु जी ने मुस्करा कर “हां याद हैं” जवाब दिया और फिर चल पड़े।
मैंने सासुजी को कहा की मम्मी आप मंगलवार के जागरण में अकेले जाओ तो मुझे भी ले जा सकते हो कंपनी देने के लिए। उन्होंने हां में सर हिलाया। मैं मन ही मन एक मुस्कान लिए उनके साथ अपने घर की तरफ चल पड़ी।
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