Ger Mard Sang Pehli Baar


Ger Mard Sang Pehli Baar
हैलो दोस्तो मेरा नाम सुजाता है और मैं आपके आस पास के ही किसी गाँव/शहर मे रहती हूँ। मेरी उम्र 42 साल है और मैं एक साधारण मगर एक भरपूर बदन की मल्लिका हूँ। पति है बच्चे हैं। घर परिवार है। पति से खुश हूँ। गाँव मे अपना घर है, कभी किसी और को देख कर मन नहीं डोला। सच कहूँ ताओ कभी ऐसे सोचा ही नहीं था के कभी किसी पराए मर्द के साथ कोई चक्कर चलेगा। मगर जो किस्मत मे लिखा होता है वो कोई टाल नहीं सकता। ऐसा ही मेरे साथ हुआ। बच्चे बड़े हो गए थे, सो काम को बढ़ाने के लिए मेरे पति ने अपना बिज़नस मुंबई मे शिफ्ट कर लिया। काम अच्छा चल पड़ा। बेटी को भी आगे पढ़ने के लिए मुंबई मे ही एड्मिशन दिलवा दिया। हम सब मुंबई मे रहने लगे। मगर कुछ समय बाद गाँव से इनके पिताजी का खत आया के उनकी तबीयत ठीक नहीं है। हम गाँव गए, तो पिताजी की देखभाल के लिए इनहोने मुझे गाँव मे ही रहने को कहा। अब मुंबई छोड़ कर गाँव मे रहना किसे अच्छा लगेगा मगर मुझे रहना पड़ा। हफ्ते दस दिन बाद ये भी गाँव का चक्कर लगा जाते थे। मैंने बड़े जी जान से पिताजी की सेवा की। क्योंकि जितनी जल्दी पिताजी ठीक होते उतनी जल्दी मैं वापिस अपने घर जा सकती थी। अब मैं भी इंसान हूँ।
दिन तो काम धंधे मे कट जाता था मगर रात को जान निकाल जाती थी। क्या करती, जब ज़्यादा काम दिमाग को चढ़ता तो उंगली से हस्तमैथुन करती, कभी कभी गाजर मूली का भी सहारा लेती। मगर मर्द का स्पर्श, मर्द का ही होता है। मर्द के ल्ंड का विकल्प तो था मेरे पास मगर मर्द के चुंबबों का विकल्प कहाँ से लाती, मर्द के सख्त हाथों से स्तनो को मसलने का विकल्प कहाँ से लाती। मैंने इनसे बहुत बार कहा के मुझे वापिस ले चलो, मगर ये संभव न हो सका। पड़ोस वाली काकी का बेटा कोई 24-25 साल का था वो अक्सर हमारे घर आता, घर के बहुत सारे काम वो कार्वा जाता, चोरी चोरी मुझे ताड़ता, मैं समझती थी के वो क्या चाहता है, मगर मैं नहीं चाहती थी सो उसे कभी लाइन नहीं दी। वो अक्सर मेरे भरपूर योवन को निहारता, मेरी तारीफ़े करता, मगर मैं नहीं मानती । ऐसे ही ज़िंदगी चल रही थी। एक दिन शाम की चाय का गिलास हाथ मे ले कर मैं अपने घर की छत्त पे गई। छट पे एक चौबारा है, मैं अंदर चली गई। शाम के करीब साढ़े पाँच का समय होगा। मैं खिड़की के पास खड़ी हो गई। पीछे रमेश भाई साहब का घर था। वो शायद कहीं से आए थे। उनकी बीवी गुज़र चुकी हैं दोनों बेटे बाहर गाँव मे काम करते हैं, 48 साल के थोड़े से साँवले मगर बहुत ही बलिष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं।
कभी कभी आते हैं हमारे घर मे। मैं वैसे ही बेखयाल सी खड़ी देख रही थी। उन्होने अपने कपड़े उठाए और बाथरूम मे घुस गए। उनका बाथरूम मेरी खिड़की के बिलकुल नीचे था और आम गाँव के बाथरूम की तरह बिना छत के था। उन्होने ने नहाने के लिए अपने कपड़े उतारे, चौड़ा सीना, मजबूत कंधे, गोल जांघें, मगर सबसे बड़ी बात, एक बड़ा सा काला ल्ंड जो उनकी दोनों जांघों के बीच झूल रहा था। मैंने जब उनका ल्ंड देखा तो मेरे तो सारे बदन मे झुरझुरी से दौड़ गई। मैं खिड़की से हट गई, “हे भगवान, ये मैं क्या कर रही हूँ, मुझे इस तरह से किसी को नहाते हुए नहीं देखना चाहिए”। मैंने बेड पे बैठे बैठे चाय की चुस्की ली, मगर अब तो मुझे चाय का भी स्वाद नहीं आ रहा था। इसी कशमकश मे मैं फिर से उठी और खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई, रमेश जी नहा चुके थे और अपना बदन पोंछ रहे थे, मेरे दिल मे चाहत उठी,”लाइये रमेश भाई साहब, तोलिया मुझे दीजिये मैं आपका बदन पोंछ देती हूँ”। मैं ऊपर से देखती रही, उन्होने अपना सारा बदन पोंछा, अपना ल्ंड भी पोंछा “उफ़्फ़ काश ये ल्ंड मेरे हाथ मे होता” उन्होने ने अपने कपड़े पहने और चले गए, मगर वो मेरी ज़िंदगी मे आग लगा गए थे। मैं ऊपर खिड़की मे खड़ी कितनी देर खड़ी उस बाथरूम को ही देखती रही।
उस रात मैंने एक खीरे को रमेश जी का ल्ंड मान कर अपनी प्यास बुझाई। उसके बाद तो मैं हमेशा अपनी शाम की चाय ऊपर वाले चौबारे मे पीने लगी। क्योंकि शाम को ही रमेश अपने काम काज से आते और आ कर सबसे पहले नहाते और फिर अपनी चाय बना कर पीते थे। एक दिन मैंने देखा के रमेशजी नहाने से पहले हस्त मैथुन कर रहे थे और ये जायज़ भी था, मगर बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी, जब वो नीचे बाथरूम मे मुट्ठ मार रहे थे मैं ऊपर से उन्हे देख कर अपनी चूत सहला रही थी। वो तो खैर थे ही नंगे, मगर मैंने भी ऊपर अपना एक हाथ अपनी साड़ी मे डाल रखा था और दूसरे हाथ से अपने ब्लाउज़ और ब्रा को उठा कर अपने दोनों स्तन बाहर निकाल रखे थे, वो किसके बारे मे सोच रहे थे मैं नहीं जानती मगर मैं तो उनके बारे मे ही सोच रही थी, जब उनका वीर्यपात हुआ तो उनके लंड से वीर्य की पिचकारियाँ निकली और सामने दीवार पे गिरी और मैं सोच रही थी के काश ये वीर्यपात मेरे पेट और और मेरे स्तनो पे हुआ होता। मैं और बर्दाश्त न कर सकी और बिस्तर पे लेट गई, मैंने अपनी साड़ी ऊपर उठाई और अपनी दोनों तांगे और चूत बाहर निकाल कर अपनी बड़ी उंगली को अपनी चूत मे अंदर बाहर करने लगी और मेरे मुह से सिर्फ एक ही बात निकाल रही थी,” रमेश जी चोदो मुझे, रमेशजी चोदो मुझे”।
और थोड़ी सी देर मे ही मैं भी झाड गई, मेरी चूत से भी पानी से फुवारे छूटे और बिस्तर की चादर पे एक बड़ा सा गीला गोल घेरा बन गया। कितनी देर मैं वैसे ही नंगी हालत मे बेड पे लेटी रही। मुझे इस बात का भी विश्वास था के यहाँ ऊपर कौन आने वाला है। खैर अब दिन ब दिन रमेश जी मेरे दिमाग मे घर करते जा रहे थे, मैं उनसे चुदने को बहुत ही ललाईयत हो रही थी। बीच मे जब कभी मेरे पति गाँव आते तो मैं बड़ा खुल के उनसे चुदाई करती, सारी सारी रात हम दोनों नंगे सोते, एक रात मे दो-दो तीन-तीन बार चुदाई करते। मुझे लंड चूसना पसंद नहीं मगर मैं फिर भी थोड़ा बहुत पति को गरम रखने के लिए चूस लेती। कभी कभी वो कहते ,” सुजाता तेरी चूत तो चोदली अब तेरी गाँड मारने का दिल कर रहा है” तो मैं खुद तेल लाकर उनके ल्ंड और अपनी गुदा पे लगाती। वो मुझे उल्टा लिटा कर मेरे ऊपर लेटते और अपना तेल से चुपड़ा ल्ंड मेरी गुदा मे डाल देते, मुझे थोड़ा दर्द होता मगर उनके मज़े के लिए मुझे सब मंजूर था। मगर जब भी हम सेक्स करते न जाने क्यों, हमेश रमेश जी ही मेरे ख़यालों मे होते। मैं अपने पति मे भी रमेश जी को ढूंदती। एक दिन शाम को मैं ऊपर से खड़ी रमेश जी को नहाते हुये देख रही थी। नहाने के बाद जब वो ल्ंड को पोंछ रहे थे तो न जाने क्यों अपने ल्ंड से खेलने लगे।
खेलते खेलते ल्ंड तन गया। जब तन गया तो वो मुत्थ मारने लगे, उन्हे देख कर मैं भी गरम हो गई, मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपनी साड़ी वगैरह उतार कर मैं भी बिलकुल नंगी हो गई। जब उनका छूटा तो आनंद मे उन्होने अपना सर ऊपर उठाया और ऊपर उन्होने मुझे खिड़की मे खड़ी देख लिया। बेशक मैं एक दम से हट गई, मगर वो मुझे देख चुके थे। मुझे बहुत शर्म आई मगर अब क्या हो सकता था। खैर अगले दिन मैंने सोचा के मैं नहीं जाऊँगी मगर, 5 बजते बतजे मैं चाय का गिलास लेकर फिर से खिड़की मे खड़ी थी। जब रमेश भाई साहब आए तो उन्होने ने मुझे हाथ हिला कर अभिवादन किया और मैंने सर झुका कर नमस्ते की;। उन्होने कपड़े उतारे और रेज़र ले कर अपनी झांट साफ करने लगे, पहले ल्ंड के आस पास के बाल साफ किए फिर आँड के बाल साफ किए। उसके बाद ल्ंड हिला हिला कर उसे खड़ा किया। जब ल्ंड तन गया तो वो नीचे बैठ गए और ऊपर देखने लगे, मैं भी बेशर्मो की तरह ऊपर खड़ी उन्हे देख रही थी। उन्होने अपना ल्ंड अपने हाथ मे पकड़ा और इशारे से मुझे पूछा,” क्या तुम्हें ये चाहिए”। मैंने भी हाँ मे सर हिला दिया। उन्होने स्माइल किया और एक फ्लाइंग किस मेरी तरफ फेंकी।
उसके बाद कितनी देर हम एक दूसरे को इशारे करते रहे। इस बार उन्होने ने मुझे दिखा के मुट्ठ मारी और अपने वीर्य की एक बूंद अपनी उंगली पे लगा कर मेरी तरफ उछाली। उनकी इसी अदा पे मैं तो झाड गई। उसके बाद भाई साहब अक्सर हमारे घर आने लगे, वो पिताजी के पास बैठ कर बहुत सारी बातें करते, मैं सिर्फ चाय देने के लिए जाती, हम सिर्फ एक दूसरे को देखते, नमस्ते से ज़्यादा हमारे बीच कोई बात न होती, क्योंकि पिताजी वहाँ होते, मगर आँखों आँखों मे हम एक दूसरे से सब कुछ कह देते, वो मेरे चेहरे की , मेरे होंठों की, मेरे स्तनो की, मेरे भरी भरकम चूतड़ों की, सब की तारीफ करते और मैं उनकी नजरे जब अपने बदन पे महसूस करती तो आँखों आखोन मे ही उनका शुक्रिया भी करती। एक दिन शाम को मैं चाय बना रही थी के पिताजी ने मुझे आवाज़ लगाई, मैं उनके पास गई तो वहाँ रमेशजी भी बैठे थे, मैंने मुस्कुरा कर उन्हे नमस्ते किया। पिताजी बोले, ” अरे बहू, रमेश आया है एक कप चाय और बना लेना”। मैंने “जी पिताजी” कहा और रमेश जी को एक और स्माईल देकर कीचेन मे आ गई। अगस्त का महिना था, हल्की हल्की बूँदा बाँदी हो रही थी। मेरा मन तो वैसे ही उतावला हो रखा था। रसोई मे आलू की बोरी रखी थी।
मैंने अपनी साड़ी उठाई और उस आलू की बोरी के ऊपर बैठ गई और अपनी चूत एक आलू पे रगड़ के बोली,” रमेशजी अब आप नीचे आऊ और मैं ऊपर बैठ कर खुद करूंगी”। सच मे मैं आँखें बंद करके रमेशजी से चुदाई का एहसास कर रही थी। तभी मैंने अपना होश संभाला, और चाय के साथ पकोड़े भी तल कर उनको दिये। हल्की बूँदाबाँदी अब तेज़ बारिश मे बादल गई थी। पिताजी ने रमेशजी को खाना की भी दावत दे दी। मैं खाना बनाने की तैयारी करने लगी। ना जाने मेरे मन मे क्या आया, मैं स्टोर मे गई और स्टोर के पीछे वाले कमरे मे एक गद्दा बिछा आई। बारिश तेज़ पर तेज़ होती जा रही थी। खाना वाना खा कर रमेशजी पिताजी के कमरे मे ही लेट गए। मैं अपने कमरे मे लेटी थी, मगर मेरी नींद न जाने कहाँ उड़ी थी। घड़ी की टिक टिक 10-11-12 बाजा चुकी थी। पहले मैंने सोचा के हस्त मैथुन कर के अपनी प्यास शांत कर लूँ, मगर मन ने कहा नहीं, क्या पता आज रात… आज रात… और मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो जाती। खैर जब काफी देर नींद नहीं आई तो मैं उठ कर बाहर पेशाब के लिए जाने लगी। जब कमरे से बाहर निकली तो सामने ही रमेश जी खड़े थे। उन्होने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया और मुझे धकेल के कमरे के अंदर ले गए।
“ओह सुजाता, कब से इस दिन का इंतज़ार था, कितनी देर से तुम्हारे दरवाजे के बाहर खड़ा हूँ, अब सब्र नहीं होता, जान” कह कर उन्होने ने मेरे होंठों को चूम लिया। मैं तो सकपका गई, । “रमेश भाई साहब ये आप क्या कर रहे हो, पिताजी जाग जाएंगे”। मगर वो तो सब कुछ भुला कर सिर्फ मुझे यहाँ वहाँ चूमने मे लगे थे। मैं नहीं चाहती थी के हमारी आवाज़ पिताजी तक पहुंचे, मैं उन्हे अपने साथ स्टोररूम के पीछे वाले कमरे मे ले गई। वहाँ पे मैंने दरवाजा बंद करके मोमबती जला ली क्योंकि लोड शेडडिंग की वजह से लाइट की प्रोब्लेम थी। मोमबत्ती की रोशनी मे जब उन्होने ने मुझे अपनी बाहों मे भरा तो मैं भी उनसे लिपट गई। हम दोनों ने एक दूसरे के होंठ चूसे। कभी मैं तो कभी वो, कभी नीचे वाला तो कभी ऊपर वाला, एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे। होंठ चूसते चूसते हमने एक दूसरे के मूंह मे अपनी अपनी जीभ भी घूमा दी, दोनों ने एक दूसरे की जीभ को चूसा। मैंने अपने हाथ उनके चौड़े विशाल कंधो पे रखे थे तो वो अपने हाथों से मेरी पीठ और मेरे चूत्ड़ सहला रहे थे और इसी दौरान उन्होने ने मेरी साड़ी खोल दी, अब मैं सिर्फ चोली और पेटीकोट मे थी। उन्होने अपने दोनों हाथों मे मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और खूब ज़ोर ज़ोर से मसले। मुझे अपनी चूत मे गीलापन और अपने स्तनो मे कड़ापन महसूस हो रहा था।
फिर रमेश जी ने मुझे अपने से अलग किया और अपने कपड़े उतारने लगे। मैं जाकर गद्दे पे लेट गई। मोमबत्ती की रोशनी मे मैंने देखा, रमेश का काला मस्त ल्ंड जो अभी तक पूरी तरह से तना नहीं था और उसके पीछे झूलते उनके चीकू जैसे दो आँड। जब वो पूरे नग्न हो कर मेरी तरफ आए तो मैंने खुद ही अपना पेटीकोट ऊपर उठाया और अपनी टाँगे फैले कर उन्हे अपने अंदर आने का न्योता दिया। उन्होने मेरी चूत को देखा फिर झुक कर मेरी चूत का एक चुंबन लिया, चूत के बाद मेरी जांघो, कमर, बगलों पर चुंबनो की बौछार कर दी। मैं तो तड़प उठी, मैं तो चाहती थी के रमेश जी झट से अपना ल्ंड मेरी चूत मे डाले और मुझे चोद दे। सो जब वो मेरे स्तनो को दबा रहे थे और मेरे क्लीवेज मे अपनी जीभ घूमा के चाट रहे थे तो मैंने उनका ल्ंड जो अब पूरा तन चुका था, अपने हाथ मे पकड़ा और अपनी चूत पे रखा और अपने दोनों हाथ उनके चूतड़ों पे रख कर उन्हे आगे को दबाया। रमेश जी मेरे मन की बात समझ गए और उन्होने ने अपना ल्ंड मेरी चूत मे ठेल दिया। बड़े आराम से उनका ल्ंड मेरी चूत मे समा गया। वो बड़े आराम से मुझे चोद रहे थे। मैंने खुद अपना ब्लाउज़ और ब्रा ऊपर उठा कर अपने दोनों स्तन उनको पेश किए, जिसे उन्होने अपने मूंह मे लेकर चूसा। “आह,” क्या आनद था।
मुझे लगा रहा था के मैं ज़्यादा देर नहीं टिक पाऊँगी। मैंने कहा,” रमेशजी, मैं ज़्यादा देर सहन नहीं कर सकती, मुझे जल्दी से सखलित करवा दो, ज़ोर ज़ोर से करो”। रमेश जी ने वैसे ही किया, करीब 1 मिनट के भीतर ही मैं सखलित हो गई। मैंने अपनी पूरी ताक़त से रमेश जी को अपने मे भींच लिया। मेरी आँखों से आँसू निकाल गए। इस आनंद के लिए मैं इतने दिनो से तरस रही थी, आखिर वो आनंद मुझे मिल ही गया। उसके बाद करीब 40 मिनट मे रमेश जी भी मेरे अंदर ही सखलित हो गए। उनके वीर्य की पिचकारियाँ मैं अपनी चूत मे महसूस कर रही थी। मुझे चोद कर वो मेरे पास ही लेट गए। उसके बाद हम आपस मे धीरे धीरे बातें करते रहे। करीब आधे घंटे बाद रमेश जी बोले,” सुजाता, एक बार और करें”। मैंने कहा,” मैं तो खुद आपसे ये कहने वाली थी”। वो बोले,” देखो तुमने तो मुझे कई बार नंगा देखा है, पर मैंने तुम्हें कभी नंगी नहीं देखा, मैं तुम्हें बिलकुल नंगी देखना चाहता हूँ”। मैंने भी जवाब दिया,” अब तो मैं आपकी हूँ, मुझे नंगी देखना चाहते हो तो खुद नंगी करो और देख लो””। मैंने कहा तो उन्होने ने मेरा पेटीकोट खोला, मेरा ब्लाउज़ और ब्रा उतारा और फिर मुझे खड़ा करके देखा, मेरे सारे बदन पे अपने हाथ फिराये, मेरे सारे बदन को चूमा।
वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती, प्यार कैसे करते हैं ये उन्होने मुझे बतलाया था और मेरे जिस्म के हर एक अंग को अपने चुंबनो से सहलाया था। दोस्तों मेरी ईमेल आई डी है “[email protected]”। कहानी पढने के बाद अपने विचार नीचे कमेंट्स में जरुर लिखे। ताकी हम आपके लिए रोज और बेहतर कामुक कहानियाँ पेश कर सकें। डी.के

शेयर
sex toriesमुझे लड़के का कुंवारा लण्ड लेने की कोशिशsex story with chachibhabhi ji ko chodaantervasna sex storiesgandi kahani newkhala ki chudai videorekha auntychachi ne doodh pilayamaa ne chodna sikhayabhai bhen sex storythami sexoriya sex gapasexi story indianenglish gay storieshindi srx storimeri boobshindi seksi storynew xxx story in hindisex story in junglesex hindi story in hindidesi aunty secpakathu veetu aunty kamakathaikalkakimar pod maramaa ka phone ayakudi main punjab diurdu gandi kahaniyajanwar sex storysamuhik chudai storymobi desi sexdeshi pappa15 saal ki ladki ko chodawonder woman sex storieslund chudaichachi se shadi kigaram ladki pictamil ool kathaigal online123 tamil chataunty kahanigand chudai storyhindi story sexm chudihot porn sex storiestamil sex kathaigal with photoswww real indian sex comsex tory in hindipoonam ki chutsex kahani muslimporn star storiesdesi chachi ki chudaipadosan storysex stort in hindidesi sexstory comlun fudighar ki randiyasexxy teachertamil kamakathaikal tamil fonttamil sex stories with picturebadi didi ki gandhttp indiansex comfirst time suhagraatdesitalesdesi family sex storychudai kaise karte haimalyalam kambi kathakalstory of first night in hindisexy mositamil kamakathakikaltamil list tamil languagesex girl friendkannada sex stories in kannada languagedesi indian sitesgay hindi sex storiesmarathi long sex storiesindian sexy.commom ki chudai hindi kahanihot desi porntamil sex kamakathaikal tamilhaidos marathi sex kathahot mom seभाभी, यह क्या कर रही हो ... छोड़ोhot indian sezbadwap कॉमmeri antarvasnaसेक्स की कहानीhindi font gay storieshinsi sexy storygroup sex.comsas ki chudaitamil kamakalchachi ji ki chudaiwww dasi girl sex combaap ne ladki ko chodasey bhabhisex urdu kahaniindian lesbion sexhot hindi sex