ऐसा कहकर मैंने समीर को अपने करीब खींचा और उसे लिपट गयी और काफी लम्बे समय तक लिपटी रही और फिर उसके होठों के एकदम करीब उसके गाल पर मैंने एक गहरा चुम्बन किया। मैं इतनी आवेश में थी की मेरा मन किया की मैं समीर के होंठ चुम लूँ। पर मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को नियत्रण में रखा। बेस्ट हिन्दी चुदाई कहानी देसी टेल्स
मैंने जब समीर के गाल चूमे तो समीर की शक्ल देखने वाली थी। वह काफी समय तक अजीब ढंग से बिना कुछ बोले वहीं पर बैठा रहा। थोड़ी देर बाद समीर ने कहा, “जब तुम सो रही थी तब राज का एक बार फ़ोन आया था। राज को मैंने तुम्हारी तबियत के बारे में बताया और कहा की तुम उस वक्त सो रही थी। तब राज ने मुझे कहा की वह एक घंटे बाद फ़ोन करेगा। राज ने मुझे यहीं रुक जाने को भी कहा। पर मैंने उसे कहा की देर रात हो चुकी थी और मुझे घर जाना चाहिए। तब राज ने जब तक तुम उठ न जाओ तब तक मुझे रुक ने के लिए कहा। अब तुम उठ गयी हो तो फिर मुझे जाना चाहिए।”
ठीक उसी वक्त मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी। मैंने समीर को बैठने का इशारा किया। वह मेरे पति राज का फ़ोन था। राज ने मेरी तबियत के बारें में पूछा. उसे मेरी चिंता हो रही थी। मैंने कहा की समीर मेरे साथ ही था और मुझे बेहतर लग रहा था। मैंने यह भी कहा की समीर जाना चाहता था। तब राज एकदम गुस्सैल हुए और मुझे फ़ोन समीर को देने के लिए कहा। जब समीर राज से बातें करने लगे तो मुझे लगा की राज समीर को खूब डाँट रहे थे और समीर के मुंह से जवाब में आवाज भी नहीं निकल रही थी। समीर की शकल खिसियानी लग रही थी।
थोड़ी देर बाद समीर ने फ़ोन बंद किया और बोले, “लगता है आज मेरा डाँट खाने का ही दिन है। तुमसे डाँट खाने के बाद तुम्हारे पति ने भी मुझे झाड़ दिया और मुझे कह दिया की अब मुझे घर नहीं जाना है और यहीं तुम्हारे साथ ही रहना है। मुझे समझ में नहीं आता की मैं क्या करूँ?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
मैं समीर की बात सुन कर हंस पड़ी और बोली, “तो तुम यहां से जाने के लिए क्यों अड़े हुए हो? और फिर इतनी तेज बारिश में इतनी रात गए तुम जाओगे कैसे? तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड वहां तुम्हारा इंतजार कर रही है क्या, जो ऐसे जिद पकड़ के बैठे हो? मैं तुम्हें खा नहीं जाउंगी। तुम जाकर के ड्राइंग रूम में सो जाओ। ”
समीर ने कहा, “जब तुम सो रही थी तो मैंने खाना तैयार कर लिया है। अब तुम्हें खाना बनाने की जरुरत नही है।” ऐसा कह कर समीर ने चावल चपाती और कुछ सब्जी एक प्लेट में मेरे सामने रख दी।
मेरा खाने का मन नहीं था। पर समीर ने अपने हाथों से जबरदस्ती मुझे यह कह कर खिलाया की खाली पेट में दवाइयों का बुरा असर पड़ेगा। समीर और मैंने चुपचाप थोड़ा खाया। समीर ने फिर प्लेट्स हटाकर किचन के बेसिन में साफ़ कर दी और वापस मेरे पास आ गये।
मेरा शर्दी और जुखाम कम हो गया था, पर बदन टूट रहा था , मेरे कांधोंमें और पाँव में सख्त दर्द हो रहा था। मैंने दो हाथों में अपना सर पकड़ा समीर की और देखा। मुझे कपकपी सी आ रही थी। शायद बुखार भी था। समीर ने देखा की मैं कष्ट महसूस कर रही थी। समीर ने तुरंत मुझे पलंग पर लिटाया और मुझे चद्दर ओढ़ाई। समीर ने मेरे सर पर हाथ रख कर मेरा तापमान चेक किया। शायद मुझे थोड़ा बुखार था। मेरी ऑंखें लाल हो रही थी और नींद आ रही थी। समीर ने मुझे “पैरासिटेमोल” दवाई दी और मुझे लेटने को कहा।
मैंने समीर की और देख कर कहा, “रुकने के लिए धन्यवाद। अगर तुम चले गए होते तो मुझे दिक्कत होती।”
समीर ने कहा, “ठीक है, पर बस अब मैं यहीं हूँ और कहीं जाने वाला नहीं हूँ। अब तुम आराम करो और अगर तुम्हें कोई भी चीज़ की जरुरत हो तो मैं यहाँ ही बैठा हूँ।”
मैंने समीर का हाथ पकड़ा और मैंने लेटने की कोशिश की पर मेरी पीठ में बहुत दर्द हो रहा था। मैंने अपने कन्धों को अपने अंगूठों से दबाने की कोशिश की जिससे थोड़ा आराम मिल सके। समीर ने देखा की मुझे कन्धों में दर्द हो था तो उसने मुझे बैठाया और ऐसे घुमाया जिससे मेरी पीठ उस की तरफ हो। फिर उसने अपने दोनों हाथ मेरे कंधे पर रख कर अपने अंगूठे से मेरे कन्धों की रीढ़ को जोरों से दबाया। शुरू में तो मुझे दर्द हुआ। परन्तु कुछ समय बाद मुझे बेहतर लगा और आराम हुआ। मैंने समीर से कहा, “”सही है, ठीक लग रहा है। जारी रखो। ”
समीर ने मुझे अपनी और खींचा और कहा, “तुम थोड़ा और करीब आ जाओ जिससे मैं तुम्हारे कन्धों को ठीक तरह से दबा सकूँ।”
मैं और कितना पीछे खिसक सकती थी? मेरे कूल्हे तो समीर के पाँव से सटे हुए ही थे। समीर अपने पांव की गुथ्थी मार कर बैठा हुआ था। समीर ने मुझे मेरी बगल में हाथ डालकर ऊपर उठाया जिससे मैं कूल्हों को थोड़ा उठाकर समीर की गोद में जा बैठूं। अब समीर का हाथ आराम से मेरे कन्धों की पसलियाँ को ठीक से दबा सकता था। उस शाम यह दूसरी बार मैं समीर की गोद मैं बैठ रही थी। मैंने एक बार सोचा भी की मैं उसका विरोध करूँ, पर क्या फायदा? मैं एक बार पहले भी तो अपनी ही मर्जी से उसकी गोद में बैठ गयी थी!
मेरे समीर के गोद मैं बैठने के परिणाम तो होने ही थे। मैं महसूस कर रही थी की धीरे धीरे समीर का लण्ड खड़ा हो रहा था और थोड़ी ही देर में मैंने मेरी गांड पर उसे ठोकर मारते महसूस किया। मैंने एक पतला सा गाउन ही पहना था। उस में से समीर का मोटा और कड़ा लण्ड मेरी गांड की दरार में जैसे घुस रहा था। ठीक से कन्धों को दबाने किए लिए मैंने मेरे गाउन के ऊपर के दो बटन खोल दिए थे। अगर ऊपर से झांका जाय तो मेरे दोनों स्तन साफ़ दिख सकते थे। समीर चाहता तो अपने हाथ थोड़े और लम्बे करके मेरे बूब्स को छू सकता था और दबा सकता था। मुझे उसका डर था। पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
सबसे बड़ी समस्या यह थी की मेरे पॉँव के बिच में से रस झरना शुरू हो गया था। अब अगर मैं समीर की गॉद मैं बैठी रही तो वह पानी उसके पाजामे को भी गिला कर सकता था। इससे यह जाहिर हो जाता की मैं भी समीर के स्पर्श से एकदम गरम हो गयी थी।
समीर के आघोश में रहते हुए, मैं भी उत्तेजित हो रही थी। उनके मांसल हाथ मेरे दोनों कन्धों पर मसाज कर रहे थे, उनकी मर्दाना खुशबु मेरे पॉंव के बिच में अजीब सी मीठी टीस पैदा कर रही थी। उन का खड़ा लण्ड पाजामे के अंदरसे मेरे गाउन को दबाते हुए मेरी गांड की दरार में घुसने की कोशिश कर रहा था। पर समीर का ध्यान उन की हथेलियां और अंगूठे, जो मेरे कांधोंकी हड्डी के निचे की मांस पेशियोँ दबाने में लगे थे उस पर था। मेरा मन हुआ की उनके खड़े लण्ड को पकड़कर उसे महसूस करूँ। पर मैंने अपने आप को काबू में रखा और समीर की गोद से हटते हुए बोली, “अब बहुत ठीक लग रहा है। शुक्रिया।”
कंधा तो ठीक हुआ पर अभी पॉँव में दर्द काफी था। समीर ने मुझे एक पॉँव से दूसरे पॉँव को दबाते हुए देखा तो वह समझ गये की मुझे पाँव में काफी दर्द हो रहा था। समीर ने कहा, “तुम्हें पाँव में सख्त दर्द हो रहा है। लाओ मैं तुम्हारे पाँव दबा दूँ।”
समीर से मेरे पाँव छुआना मुझे ठीक नहीं लगा। मैंने कहा, “नहीं, कोई बात नहीं। मैं ठीक हूँ।”.
समीर ने तब मेरे सिरहाने ठीक किये और मुझे सो जाने के लिए कहा। मैं पलंग पर सिरहाना सर के निचे दबाकर लम्बी हुई। धीरे धीरे धीरे मेरी आँखें गहराने लगीं। मैंने महसूस किया की समीर ने मेरे पाँव से चद्दर उठा कर मुझे ओढ़ाया और खुद मेरे पाँव के पास बैठ गये। मैं थकी हुई थी और गहरी नींद में सो गयी। उस बार न तो मुझे कोई सपना आया न तो मुझे कोई डर लग रहा था। समीर के पास में होने से मैं एकदम आश्वस्त थी।
काफी समय गुजर गया होगा। मेरी आँख धीर से खुली। सुबह के चार बजने में कुछ देर थी। मैं गहरी नींद में चार घंटे सो चुकी थी। रात का प्रहर समाप्त हो रहा था। चारों और सन्नाटा था। मुझे काफी आराम महसूस हो रहा था । मुझे मेरे पाँव हलके लग रहे थे। आधी नींद में मैंने महसूस किया की समीर मेरे पाँव दबा रहे थे। मैं एकदम हैरान रह गयी, क्यूंकि समीर इतने अच्छे तरीके से मेरे पाँव दबा रहे थे की मेरे पाँव का दर्द जैसे गायब ही हो गया था।
उनका मेरे पाँव को छूना मेरे जहन में अजोबो गरीब तूफान पैदा कर रहा था। अब मेरा मन मेरे नियत्रण में रखना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। वैसे ही मैं समीर के एहसानों में दबी हुई थी। उपर से आज उन्होंने मेरी इतनी सेवा की और बदले में मैंने और मेरे पति ने उनको कितना डाँटा पर फिर भी उन्होंने पलट कर ऊँचे आवाज से बात नहीं की यह सोच कर मुझे बुरा भी लगा और उन पर प्यार भी आया। पिछले दिन की घटनाओं से मैं ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। समीर की अपनी आतंरिक उत्तेजना को मैं समझ सकती थी। मेरे पति को मेरे बिना कुछ दिन भी अकेले सेक्स किये बिना रहने में बड़ी मुश्किल होती थी। समीर तो इतने महीनों से अपनी पत्नी के बगैर कैसे रहते होंगे यह सोचकर मैं परेशान हो रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
मेरे पाँव में समीर के स्पर्श से मैं मदहोश हो रही थी। हालांकि समीर मेरे घुटनों तक ही पाँव दबा रहे थे और उसके ऊपर हाथ नहीं ले जाते थे। मैं उनके संयम पर आश्चर्य रही थी। ऐसा संयम रखना उनकी लिए कितना कठिन रहा होगा यह मैं समझ सकती थी। मुझे उनपर तरस आया। पहले अगर किसीने मेरे पाँव को छूने की कोशिश भी की होती तो उसकी शामत आ जाती। पर उस रात मैं चाह रही थी की समीर अपना हाथ थोड़ा ऊपर खिसकाएं और मेरी गीली चूत पर हाथ रखें। हे भगवान् यह मुझे क्या हो रहा था?
मैंने सोते रहने का ढोंग किया। मैं मन ही मन में उम्मीद कर रही थी की समीर अपना हाथ थोड़ा ऊपर की और खिसकाएं और मेरी जांघों को सहलाएं और फिर मेरी चूत के ऊपर के उभार को स्पर्श करें। पर समीर बड़े निकम्मे निकले। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। मैंने मेरी जांघों के बिच के सारे बालों को साफ़ कर रखा था।
शायद समीर को लगा होगा की मेरे पाँव का दर्द ख़तम हो चुका था। क्यूंकि वह मेरे पाँव दबा नहीं रहे थे बल्कि हलके से सेहला रहे थे। वह शायद मेरे पाँव के स्पर्श से आनंद का अनुभव कर रहे थे। उनके स्पर्श के कारण हो रहे उन्माद पर नियंत्रण में रखना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। न चाहते हुए भी मेरे मुंह से एक हलकी रोमांच भरी आह निकल गयी।
मैंने सोचा बापरे यह क्या हो गया। अनजाने में ही मैंने यह जाहिर कर दिया की मैं जाग गयी थी और समीर के पाँव सहलाने से आह्लादित हो रही थी। इस उम्मीद में की शायद समीर ने मेरी आह नहीं सुनी होगी; मैं चुपचाप पड़ी रही और समीर के मेरे पाँव के स्पर्श का आनंद लेती रही। थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद जब मैंने आँखें खोली तो देखा की समीर का एक हाथ उनके पाँव के बिच था और दूसरे हाथ से वह मेरे पाँव को सेहला रहे थे। मुझे यकीन था की उस समय जरूर समीर का लण्ड तना हुआ एकदम कड़क होगा क्यूंकि मैंने उनके पाँव के बिच में तम्बू सा उभार देखा। उस समय मेरी मानसिक हालात ऐसी थी की मुझे ऐसा लग रहा था की जिस दिशा में मैं बहती चली जा रही थी वहांसे से वापस आना असंभव था। और मेरी इस बहकावे का कारण समीर नहीं था। मैं स्वयं अपने आप को नियत्रण में नहीं रख पा रही थी।
मेरे पति मेरी इस हाल के पुरे जिम्मेवार थे। वह जिद करते रहे की मेरे और समीर के बिच की दुरी कम हो, समीर हमारे यहां शामका खाना खाने के लिए आये, समीर हमारे यहाँ रात को रुके इत्यादि इत्यादि। मुझे ऐसा लगने लगा की कहीं न कहीं मेरे पति कोई ऐसी चाल तो नहीं चल रहे जिससे की समीर और मैं (हम) मिलकर सेक्स करें और मैं समीर से चुदवाऊं। मैंने सोचा की अगर ऐसा ही है तो फिर हो जाये। फिर मैं क्यों अपनी मन की बात न मानूं?
मैंने तय किया की जो भी होगा देखा जाएगा। मैं जरूर अपने पति को पूरी सच्चाई बताऊँगी और वह जो सजा देंगे वह मैं कबुल करुँगी। पर उस समय यह सब ज्यादा सोचने की मेरी हालत नहीं थी। मेरी चूत में जो खुजली हो रही थी उसपर नियत्रण करना मेरे लिए नामुमकिन बन रहा था। हकीकत तो यह थी की मैं सीधी सादी औरत से एक स्वछन्द और ढीले चरित्र वाली लम्पट औरत बन रही थी जो मेरे पति के अलावा एक और मर्द का लण्ड अपनी चूत में डलवाने की लिए उत्सुक थी।
शायद समीर को पता लग गया था की मैं जाग गयी थी। उन्होंने मेरे पाँव से उनका हाथ हटा कर चद्दर से मेरे पाँव ढक दिए और अपना हाथ धीरे से मेरी कमर पर चद्दर पर रख दिया। मुझे लगा की कहीं वह मेरी चूँचियों को सहलाना और मसलना शुरू न कर दे। बल्कि मेरे मन में एक ख्वाहिश थी की अगर वह ऐसा कर ही देते हैं तो अच्छा ही होगा। उस हाल में मुझे कोई शुरुआत नहीं करनी पड़ेगी। हर पल बीतने पर मेरी साँसों की गति तेज हो रही थी। समीर ने भी उसे महसूस किया क्यूंकि उसने अपना चेहरा मेरे चेहरे के बिलकुल सामने रखा। और धीरे से मेरे कान में बोलै, “नीना क्या आप बेहतर महसूस कर रही हो?”
उस हालात में क्या बेवकूफी भरा प्रश्न? मैंने धीरेसे मेरी आँखें खोलीं तो मेरी आँखों के सामने समीर को पाया। समीर की नाक मेरी नाक को छू रही थी। मुझे समीर के सवाल से गुस्सा तो आया पर मैंने उसके जवाब में समीर की और मुस्काते हुए कामुक नजर से देखा। मेरी कामुक नजर और मेरी शरारत भरी मुस्कान ने शब्दों से कहीं ज्यादा बयाँ कर दिया। समीर ने झिझकते हुए मेरी आँखों में देखा और मेरे भाव समझ ने की कोशिश करने लगे। तब मैंने वह किया जो मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी। मैंने अपने दोनों हाथ समीर के सर के इर्दगिर्द लपेट दिए और जोरसे उसके चेहरे को मेरे चेहरे पर इतने जोरों से दबाया की जिससे उसके होँठ मेरे होठों से भींच गए।
मुझे अपना फीडबैक देने के लिए कृपया कहानी को ‘लाइक’ जरुर करें। ताकि कहानियों का ये दोर देसी कहानी पर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।
समीर को तो बस यही चाहिए था। वह झुके और उन्होंने मुझे मेरे होंठों पर इतना गाढ़ चुम्बन किया की कुछ क्षणों के लिए मेरी सांस ही रुक गयी। उनकी हरकत से ऐसा लगता था की वह इस का इंतजार हफ़्तों या महीनों से कर रहे थे। महीनों तक उन्होंने अपनी इस भूख को अपने जहन में दबा के रखा था। पर मेरी इस एक हरकत से जैसे मैंने मधु मक्खी के दस्ते पर पत्थर दे मारा था। समीर मेरे होंठों को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हम करीब तीन मिनट से ज्यादा देर तक एक दूसरे के साथ चुम्बन में लिपटे रहे।
अपने होंठों से उन्होंने मेरे होंठ को प्यार से सहलाया, मेरे ऊपर के होंठ को चूमा, दबाया और खूब इत्मीनान से चूसा। फिर उसी तरह मेरे निचले होंठ को भी बड़ी देर तक चूसते रहे। मेरे होठों को अपने होठों से बंद करके उनको बाहर से ही चूसते रहे और अपने मुंह की लार अपनी जीभ से मेरे होठों के बाहरी हिस्से में और मेरे नाक और गालों पर भी लगाई। फिर मेरे होंठों अपने होंठों से खोला और अपनी सारी लार मेरे मुंह में जाने दी। मैं उनकी लार को मेरे मुंह के अंदर निगल गयी। मुझे उनकी लार बहुत अच्छी लगी।
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