Bhoot To Chala Gaya – Part 4


राज ने मेरी और देख कर कहा, “डार्लिंग, सोचो मत, पत्ते फ़ैंटो और बाँटो।”
जब मैं हारी तब मैं बड़े ही असमंजस में पड़ गयी की मुझे क्या सजा मिलेगी। समीर ने मुझे फैशन परेड मैं जैसे लडकियां कैट वाक करती हैं, ऐसे चलने के लिए कहा। मैंने बड़ा नाटक करते हुए जैसे लडकियां टेढ़ी मेढ़ी चलती हैं ऐसे चलने लगी और फिर समीर के पास जाकर कूल्हे को टेढ़ा कर रुक गयी और उसे मेरी अंगभंगिमा का नजारा देखने दिया। फिर कूल्हों को हिलाते हुए राज के पास चली गयी। दोनों मर्दों ने खूब तालियां बजायी।
अब मेरे पति राज की बारी थी की वह मुझे हारने पर सजा दे। तब राज ने मुझे एक बड़ी अजीब सजा दी। उन्होंने कहा की मैं समीर के पास जाऊं और उसे गाल पर चुम्बन करूँ। मैं परेशान हो गयी। यह तो ठीक नहीं था। मैंने मेरे पति की और देखा। उन्होंने धीरे से मुझे आँख मारी और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। शायद यह उनका समीर को खुश करने का प्लान था।
मैं आगे बढ़ी और समीर के करीब जाकर मैंने समीर के गाल पर अपने होंठ रख दिए और उसे एक गहरा चुम्बन किया। मुझे महसूस हुआ की मेरे समीर को चुम्बन करने से समीर के बदन में भी एक सिहरन सी दौड़ गयी और उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रखा और मुझे अपनी और खिंच कर मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैं पागल सी हो रही थी। यह मेरे पति मुझसे क्या करवा रहे थे?
खैर मैंने अपने आपको सम्हाला। तब समीर ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा, “नीना और राज, मैं आप दोनों को अत्यंत ऋणी हूँ। आज आपने मुझे यह एहसास कराया की मुम्बाई में भी मेरी अपनी फॅमिली है।” मेरी और देखते हुए समीर ने कहा, “नीना तुम बड़ी भाग्यशाली हो की राज जैसा पति तुम्हें मिला है।”
तब तक मेरे पति राज और समीर पर वाइन चढ़ने का असर साफ़ नजर आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे राज उस शाम की पार्टी को जल्दी में खतम करने के मूड में नहीं थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
राज ने समीर की और देखा और पूछा की क्या कॉलेज में उनकी कोई गर्ल फ्रेंड भी थी? समीर ने कंधे हिला कर कहा, “हाँ! थोड़ा बहूत तो होता ही है।”
तब राज ने पूछा, “समीर अभी तो तुम अपनी पत्नी से इतने दूर हो। कभी तुम्हारा मन नहीं करता की कोई स्त्री का साथ मिले?” जब समीर मौन रहे तो राज ने कहा, “भाई, मैं तुमसे थोड़ा अलग हूँ। मैं यह मानता हूँ की स्त्री और पुरुष एक दूसरे के साथ होते हैं तो जीवन में एक अद्भुत उत्साह और उमंग होता है और अगर मन मिलता है तो एक दूसरे का साथ निभाने में कोई बुराई नहीं है। मैं मानता हूँ की ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो’ मैं यह बात नीना को भी कहता हूँ। मैं मौज से जीता हूँ और चाहता हूँ की तुम और नीना भी मौज से जियो। एक दूसरे के साथ का आनंद लो। छोटी मोटी चिंताओं और मानसिक संकुचितता को दूर रखो।”
मेरे पति शायद समीर से ज्यादा यह बात मुझे सुना रहे थे ऐसा मुझे लगा। मुझे मेरे पति की बातों से ऐसा लगा की वह हम दोनों के बिच की दीवार पूरी तरह से तोड़ना चाहते थे। मैंने समीर की और देखा तो पाया की वह फिर से वही लोलुपता भरी निगाहों से मुझे छुप छुप कर देखने लगे थे। अब वही उनका पुराना नटखट अंदाज दिख रहा था। मेरे छोटे टॉप और भड़कीली वेशभूषा के कारण मैं उन्हें कुछ अधिक ही उत्तेजक लग रही थी।
मैं धीरेसे मेरे पति के पास गयी और उनके बालों को प्यार से सहलाने लगी तब राज मुझे अपनी बाहों में लेते हुए बोले, “समीर, मैं मेरी पत्नी नीना को बहुत प्यार करता हूँ। मैं उसे थोड़ा सा भी दुखी नहीं देख सकता। पर मुझे आजकल एक बड़ी चिंता रहती है।”
समीर ने प्रश्नात्मक दृष्टि से राज की और देखा तो राज ने कहा, “मैं आजकल ज्यादातर पुणे रहता हूँ और काफी काम होने के कारण मुम्बाई ज्यादा आ नहीं पाता। तब नीना यहां अकेली बहुत परेशान हो जाती है। कई बार उसे डिप्रेशन हो जाता है। वह बुरे सपने देखने लगती है। तुम भी यहां अकेले हो।
नीना ने मुझे बताया की तुम्हें बाहर खाने में दिक्कत होती है। तो मैं चाहता हूँ की तुम हमारे यहाँ आओ और शाम का खाना रोज हमारे यहां खाओ। मेरे न रहते हुए भी तुम जरूर बिना हिचकिचाहट के आओ। मैं जब रहता हूँ तो हम दोनों गपशप मारेंगे। मुझे बहुत अच्छा लगेगा। देखो मना मत करना। हाँ अगर तुम्हें नीना का खाना पसंद नहीं है तो और बात है।”
मैंने समीर की और देखा। वह बहुत ही लज्जित लग रहे थे। वह थोड़ा हिचकिचाते हुए बोले, “आप जब हो तो अलग बात है, पर आप ना हो तो? मुझे थोड़ा अजीब लगेगा। एकाध दिन खाना एक अलग बात है, पर रोज?”
राज ने समीर का हाथ अपने हाथों में थामा और बोले, “देखो, हम तुम्हें अपना समझते हैं। तुम नीना का दफ्तर में बहुत ध्यान रखते हो। मैं चाहता हूँ की घर में भी तुम नीना का ध्यान रखो। जहाँ तक रोज खाने की बात है तो चलो तुम एक काम करना, जब मौक़ा मिले तुम सब्जी, राशन बगैर ले आना। अब तो ठीक है?”
समीर बेचारा क्या बोलता? उसने मुंडी हिला कर हामी भरदी और उठकर खड़ा हुआ और बोला की वह जाना चाहता है। मेरे पति समीर को सीढ़ी से उतर कर नीचे तक छोड़ने गए। तब मैंने मेरे पति को समीर से कहते हुए सुना की, “समीर, देखो, हमारे कोई संतान नहीं है। नीना अकेले में बड़ी परेशान हो जाती है। तुम आ जाओगे तो हमें नयी जिंदगी मिलेगी।” इसी तरह बातें करते हुए दोनों बाहर निकले। राज का आखरी में ऐसी बात कहने का क्या मतलब था वह मैं समझ नहीं पायी।
समीर के जाने के बाद मेरे पति राज ने मुझसे कहा, “देखा जानू, आज की शाम कितनी आनंद वाली रही? मुझे सच सच बताना, क्या तुम्हे मज़ा नहीं आया? क्या समीर में वह परिवर्तन नहीं आया जो तुम चाहती थी?”
मैंने परे पति राज की और देखा और बिना झिझक बोली, “हाँ राज, मुझे बहोत मजा आया। ख़ास तौर से समीर को इतना तनाव मुक्त और स्वच्छंद देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। तुमने वास्तव में ही कुछ जादू कर दिया ऐसा लगता है।”
तब राज ने कहा, “जादू मैंने नहीं, तुमने किया। पहली बात यह की तुमने ऐसे कपडे पहने जिससे समीर को ऐसा अंदेशा हुआ की तुम्हें तुम्हारे सेक्सी बदन को दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। अगर वह तुम्हारे खुले हुए बदन को झांकेगा तो तुम बुरा नहीं मानोगी। दूसरी बात। तुमने समीर के पास जा कर जो अंगभंगिमा की और उसको अपने कूल्हे दिखाए उससे उसकी प्यासी आँखों को थोड़ा सुकून मिला।
तीसरी बात, जब मैंने तुम्हें समीर के पास जाकर समीर को गालों पर चुम्बन करने को कहा और तुमने उसे एक गहरा चुम्बन किया तो उसे लगा की अब तुम उससे काफी खुल गयी हो और अब पहले की तरह तुम बुरा नहीं मानोगी। और उसने क्या कहा? उसने कहा की उसको लग रहा था की मुंबई में भी उसकी कोई फॅमिली है। यह एक बहुत बड़ी बात है।”
राज तब थोड़ा रुक गए और उन्होंने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब मैंने कहा, “हाँ, तुम सही कह रहे हो। समीर को आज हमारे यहां बहुत अच्छा लगा। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
“राज ने कहा,तुम्हे इतना तनाव मुक्त देख मुझे बहुत अच्छा लगा। एक बात समझो। सब पुरुष एक से नहीं होते। समीर दूसरों से अलग है। तुमने समीर को चुम्बन किया, समीर ने तुम्हें बाहों में जकड़ा, तो कोन सा आस्मां टूट पड़ा? क्या हम सब ने एन्जॉय नहीं किया? मैंने सबसे ज्यादा एन्जॉय किया। याद रखो, ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो” मेरे पति की समझ की मैं कायल हो गयी।
राज एकदम उत्तेजित हो गए थे। उनका लण्ड तो फौलाद की तरह अकड़ा हुआ था। तो मैं भी तो काफी गरम हो गयी थी। मेरा ह्रदय धमनी की तरह धड़क रहा था। समीर की बाहों में लिपटना और राज के ऐसे उकसाने वाले बयानों से मेरी चूत में से तो पानी का जैसे फव्वारा ही छूट रहा था। राज ने मुझे अपनी बाँहों में लिया और उठाकर मुझे पलंग पर लिटा दिया। उस रात राज ने और मैंने खूब जमके सेक्स किया जैसा पता नहीं हमने इसके पहले कब किया होगा।
ऑफिस में समीर अपने फिर वही पुराने अंदाज में आगये थे। सब कर्मचारी समीर के परिवर्तन से बड़े खुश थे। मुझे पता था की समीर मुझसे करीबियां बनाने के लिए बड़े ही आतुर थे। वहाँ तक तो ठीक था। पर अब मैं डर रही थी की कहीं मैं कोइ ऐसी वैसी परिस्थिति में न फंस जाऊं।
मुझे समझ नहीं आरहा था की कैसे मैं अपनी मर्यादा में भी रह सकूँ और समीर को भी बुरा न लगे। इसके लिए मैंने यही सोचा की समीर से अपनी दोस्ती तो बढ़ाऊँ पर उससे फिर भी एक अंतर रखूं जिससे उसके मनमें मेरे लिए एक सम्मान हो और वह मेरे बारे में उलटा पुल्टा सोचने से कतराए।
समीर के लिए मैं घरसे खाना बना कर लाने लगी। ऑफिस में समीर और मैंने साथ में खाना शुरू किया। कई बार ऐसा हुआ की समीर ने मुझे दोस्ती जताते हुए छुआ जैसे अकस्मात से ही हुआ हो। कई बार समीर मेरे पास से संकड़ी जगह में से मेरे स्तनों को छू कर निकल गए।
मुझे अपना फीडबैक देने के लिए कृपया कहानी को ‘लाइक’ जरुर करें। ताकि कहानियों का ये दोर देसी कहानी पर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।
राज ने मुझे पहले से ही कह रखा था की ऐसा तो होगा और मैं उसके लिए तैयार भी हो चली थी। मैं भली भांति जानती थी की समीर मुझे छूने के लिए लालायित रहते थे। मैं उनकी ऐसी छोटी बड़ी हरकतों को नजर अंदाज करने लगी। मैंने सोचा अगर इससे उनको ख़ुशी मिलती है तो ठीक है, जबतक ज्यादा कुछ नहीं होता तब तक ठीक है।
इसी तरह हफ़्तों बीत गए। अब तो हमारे ऑफिस में भी धीरे धीरे अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा था। सब को समीर और मेरे बिच कुछ चल रहा था उसका अंदेशा हो रहा था। एक शाम को ऑफिस छूटने के एक घंटे पहले, बॉस मेरे पास आये और मुझे एक मोटी फाइलों का बंडल पकड़ाते हुए बोले, “इस ग्राहक का पूरा बही खाता और नफ़ा नुक्सान का स्टेटमेंट मुझे आज ही तुम्हारे ऑफिस छोड़ने के पहले चाहिए। जाते समय तुम इसे सिक्योरिटी में गार्ड के पास छोड़ कर जाना। मेरे बॉस रात में ही उसे उनके बॉस को पहुंचाएंगे। ऊपर से आर्डर आया है। काम में कोई देरी नहीं चलेगी। काम शाम को ही ख़तम हो जाना चाहिए।”
पढ़ते रहिये.. क्योकि ये कहानी अभी जारी रहेगी..
पाठकों से निवेदन है की आप अपना अभिप्राय जरूर लिखें ईमेल का पता है [email protected]

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