खैर उस बात को सालों बीत गए थे। अब तो मैं लड़की से एक औरत बन गयी थी जो अपने पति से हजारों बाद चुदवा चुकी थी। अब मुझे पति से चुदवा ने में कोई झिझक नहीं होती थी, पर अगर कोई और मर्द मुझे छू ले तो मुझे कुछ अजीब सा नकारात्मक भाव होता था।
समीर के बारे में मेरे पति राज की बात सुनकर मुझे बड़ा सदमा लगा। राज की बात सौ फीसदी सही थी। मुझे समझ नहीं आ रहाथा की मैं क्या बोलूं। आखिरमें राज जुंझला कर बोले, “तुम औरतें न, बात का बतंगड़ बनाने में बड़ी माहीर हो। तुमने ही यह आग लगाई है अब तुम्ही उसे बुझाओ।”
मैंने अपना सर हिलाकर अपनी सहमति देते हुए पूछा, “डार्लिंग तुम सही हो। मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा है। मैंने समीर के साथ कई बार बात करने की कोशिश की पर वह मुझसे बात करना ही नहीं चाहता। तुम्ही बताओ अब मैं क्या करूँ?”
राज ने मेरी परिस्थिति देख सहानुभूति भरे स्वर में कहा, “जानू अब तुम यह काम मुझ पर छोड़ दो। अब मैं ही कुछ करता हूँ।
दूसरे दिन, सुबह मेरी ऑफिसमें राज ने मुझे फ़ोन किया और कहा की वह फ़ोन मैं समीर को दूँ। वह समीर से बात करना चाहता था। मैं समीर के पास गयी और उसे फ़ोन देते हुए कहा की मेरे पति राज, समीर से बात करना चाहते थे। समीर को थोड़ा आश्चर्य तो हुआ पर उसने मुझसे फ़ोन लिया और राज से बात करने लगा। मैं तुरन्त ही अपने स्थान पर आ गयी। समीर की राज से काफी समय तक बात चली। मुझे पता नहीं उनमें क्या बात हुई। जब समीर मुझे फ़ोन वापस करने आया तो बोला, “तुम्हारा पति राज एक अच्छा, सुलझा और समझदार व्यक्ति है। शुक्र है, तुम सही व्यक्ति की देखभाल में हो।
राज से बात करने के उपरान्त समीर में थोड़ा परिवर्तन जरूर आया। वह अब हम सबसे ज्याद अच्छी तरह से बात करने लगे। परंतु उनके अंदर जो पहले की चुलबुलाहट और जोश खरोश था वह पूरी तरह से गैर हाजिर था। मुझे अब लगने लगा की मैंने मेरी सख्ती से समीर के दिल का कोई कोना तोड़ डाला था जो जोड़ना अब मुश्किल था।
एक रात को फिर अच्छे खासे सेक्स के बाद जब मेरे पति राज अच्छे मूड में थे तब मैंने उनको समीर के बारेमें कहा. मैंने कहा की अब समीर बात तो करने लगे हैं, पर वह पहले वाली आत्मीयता या तत्परता नहीं थी। उनकी सारी बातें खोखली सी लग रही थी।
राज ने मेरी और देखा और पूछा, “जानू, क्या तुम सचमुच समीर को पहले की ही तरह देखना चाहती हो?”
मैंने सहज रूप से थोड़ा आश्चर्य जताते हुए कहा, “हाँ, पर तुम मुझे यह क्यों पूछ रहे हो?”
तब मेर पति ने मुझे बड़ी गंभीरता से कहा, “क्योंकि, समीर की सहजता और वही आत्मीयता लानेके लिए तुम्हें कुछ ख़ास करना पड़ेगा, और मैं नहीं जानता की तुम वह करने के लिए तैयार होगी।” मैंने कोई जवाब न देते हुए मेरे पति की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।
राज ने कहा, “तुम्हें अपना स्वाभिमान और गैर मर्द के प्रति उदासीनता या नफरत के भाव पर नियत्रण रखना होगा। तुम्हे अधिक उत्साहित होना पड़ेगा और अपने स्त्री सुलभ चरित्र से समीर को यह जताना है की तुम वास्तव में अपने किये पर पछता रही हो। तुम्हें समीर के साथ एकदम तनाव मुक्त हो कर आराम से बात करनी होगी। यदि वह कोई सेक्सुअल या दुहरे अर्थ वाले जोक कहता है तो उनका हंसकर मजाक में लेना है। यदि गलती से या फिर जानबूझकर अनजान बनते हुए तुम्हारे स्तनों को या तुम्हारे कूल्हों को थोड़ा सा छू लेता है तो तुम कोई अड़ंगा मत खड़ा करना, तुम उसे हंसी मजाक में ले लेना। दफ्तर में, खेल में, साथियों में ऐसा होता रहता है। युवा युवतियां इसको एन्जॉय करती हैं, बुरा नहीं मानती। तुम कोई चिंता मत करो, बाकी मैं सब सम्हाल लूंगा।”
मैं बड़े ही असमंजस में पड़ गयी। मैं सोचने लगी की क्या मैं ऐसा कर पाउंगी? मेरे लिए मेरे पति राज की बात मान कर आगे बढ़ना बड़ी ही टेढ़ी खीर थी। पर अब मेरे आस और कोई चारा भी तो नहीं था। मैंने अपना सर हिला कर हामी भर दी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
दूसरे दिन राज ने मुझे ऑफिस में फ़ोन किया और फ़ोन समीर को देनेके लिए कहा। राज और समीर में थोड़ी देर बात हुई और फिर समीर मुझे फ़ोन वापस करने आया और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोला, “राज ने मुझे रातको डिनर पर बुलाया है। वास्तव में तुम्हारा पति एक बहुत अच्छा इंसान है।”
उस दिन छुट्टी थी। सुबहसे ही जब मैं समीर के आने की तैयारी मैं लगी हुई थी, तो मेरे पति राज मेरे पास आये और बोले, “जानू, मैं चाहता हूँ की आजकी शाम एक यादगार शाम हो”
मैंने जब प्रश्नात्मक दृष्टि से राज को देखा तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ की आज शाम के लिए आप कुछ ख़ास कपडे पहनिए और आज आप कुछ खेलदिली दिखाइए। ”
राज का ‘ख़ास’ वस्त्रों का अर्थ मैं भली भाँती जानती थी। उनका कहना का अर्थ था ‘भड़कीले’ कपडे पहनना। पर मैं खेलदिली का अर्थ नहीं समझी। मैंने राज से पूछा, “खेलदिली से तुम्हारा क्या मतलब है?”
“मेरी प्यारी नीना, मैं चाहता हूँ की आज शाम को आप जैसे बहाव बहता है ऐसे ही बहते जाओ। आप एकदम तनाव मुक्त रहो और यदि बातचीत कुछ उत्तेजना पूर्ण हो जाए तो भी कोई तरह की खीच खीच मत करना।” मेरे मनमें कुछ द्वन्द हुआ की क्या मेरे पति मेरी और समीर की करीबी की बातें सुनकर उत्तेजित हो रहे थे और चाहते थे की बात कुछ आगे बढे? पर इसका कोई जवाब मेरे पास नहीं था। यह सिर्फ मेरे मनका एक तरंग ही था।
मेरे पति राज ने मुझे शामके लिए आधी (घुटनों तक की) जीन्स और ऊपर जाली वाली ब्रा पहन कर उसके ऊपर कॉटन का पतला टॉप पहन ने को कहा जो ऊपर से एकदम ढीला और खुला था और निचे ब्रा के पास एकदम कस कर बंद होता था। मेरा टॉप, बस ब्रा के के किनारे पास ही ख़तम हो जाता था जिससे मेरे स्तनों के निचले हिस्से से लेकर पूरी कमर, पेट, नाभि और उसके बाद का थोड़ा सा उभार और फिर एकदम ढलाव (जो मेरी दो टांगों के मिलन से थोड़ा ही ऊपर तक था) का हिस्सा पूरा नंगा दिख रहा था।
मेरे दोनों स्तन मंडल उभरे हुए दिख रहे थे। मैंने राज से बड़ी मिन्नतें की की वह मुझे ऐसे ड्रेस पहनने के लिए बाध्य न करे पर वह टस का मस न हुआ। उसका कहना था की अगर मैं चाहती हूँ की समीर ठीक हो तो मुझे जो वह कहता था वह करना ही पड़ेगा। मुझे मेरे पति पर पूरा भरोसा था की वह कभी मुझे गलत काम करने के लिए नहीं कहेंगे। मैंने तब यही ठीक समझा की मैं राज की बात मानूं और उसे सहयोग दूँ।
तैयार होने पर जब मैंने अपने आपको आयने में देखा तो मैं भी खुद पर फ़िदा हो गयी। मेरे थोड़ा झुकने से मेरे दोनों स्तनों का उभार और बिच की गहरी खाई स्पष्ट रूप से दिख रहे थे। मरे दोनों कूल्हे बड़े ही तने हुए उभरे हुए दिख रहे थे। मेरे पति ने मेरे लिए यह वेश ख़ास दिनों के लिए खरीदा था। मैंने कभी इसे पहले पहना नहीं था। मेरी यह वेशभूषा समीर को कैसे लगेगी और उसका क्या हाल होगा यह सोचकर मेरी टांगों के बिच में से पानी चूने लगा और मैं सिहर उठी। मुझे डर लग रहा था की कहीं इस हाल में देख कर वह मुझे अपनी बाहों में दबोच ही न ले और कोई कुकर्म न कर बैठे। पर चूँकि मेरे पति भी होंगे, यह सोच कर मेरी जान में जान आयी।
मैं कपडे पहन कर मेरे पति के पास गयी और बोली, “जानू, बताओ, मैं कैसी लग रही हूँ।?”
राज ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोले, “हे भगवान्! जानू, तुम तो बड़ी कातिलाना लग रही हो! मन करता है की मैं तुम्हे खा जाऊँ।” ऐसा कहकर, राज मुझ पर लपक पड़े और मुझे अपनी बाहों में दबोच लिया।
मैंने धक्का मार कर उन्हें बड़ी मुश्किल से दूर किया और कहा, “दूर रहो। समीर के आने का समय हो चुका है। एक बार समीर को वापस चले जाने दो, फिर मुझे तुम पेट भर के खा लेना। वह आ गए और उन्होंने यदि हमें इस हालात में देख लिया तो उनके मनमें लोलुपता का भाव पैदा हो जायेगा। ”
राज ने आँख मारते हुए कहा, “समीर के मनमें ऐसे भाव तो हैं ही। और अगर नहीं है तो मुझसे मिलने के बाद हो ही जाएंगे”
राज के कहने का मतलब मैं समझ नहीं पायी। मैं जैसे ही राज को पूछने जा रही थी की दरवाजे की घंटी बज पड़ी। मैंने दरवाजा खोला। दरवाजे पर समीर खड़े थे। उनके हाथों में एक वाइन की बोतल भेंट के पैकिंग में थी। समीर ने मुझे देखा तो उनके होश ही जैसे उड़ गए। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। उनकी आँखें मेरे बदन पर गड़ी की गड़ी रह गयीं। मुझे देखकर उनकी आँखें जैसे चौंधिया सी गयी थीं। मैं समीर के चेहरे के भाव देख परेशान हो गयी। मैंने पीछे हट कर उनको अंदर आनेके लिए आमंत्रित किया। पर समीर तो वहीं के वहीं खड़े ही रह गए। तब राज पीछे से आगे आये और समीर को गले से लगाते हुए उन्हें घर में ले आये।
समीर ने झुक कर राज को वह वाइन की बोतल दी, जिसे राज ने स्वीकार की और समीर को ड्राइंग रूम में आदर पूर्वक सोफे पर बिठाया। मेरे पति ने तीन गिलास में वह वाइन डाली । मैं शराब तो नहीं पीती थी,पर कभी कभी वाइन ले लेती थी। जब मेरे पति राज ने काफी आग्रह किया तो थोड़ा हल्का फुल्का विरोध करने के बाद मैंने वाइन के गिलास को हाथ में लिया और हम तीनों ने ‘चियर्स’ किया और मैंने एक छोटीसी घूंट ली और मैं रसोई में चली गयी।
मेरे पति राज और समीर दोनों मर्द आपस में ख़ास दोस्तों की तरह बातें करने लगे। मैं रसोई में जाकर अपने काम में लग गयी। कभी कभी मुझे रसोई में से उनकी बाते थोड़ी बहोत सुनाई देती थी। कई बार उनको मैंने मेरे बारेमें बात करते हुए सुना। जब मैं रसोई से सारा काम निपटा कर बाहर आयी तो समीर एकदम बदले से लग रहे थे। उन्होंने पहली बार मुझे देखकर खुल कर मुस्काते हुए “हाई” कहा। समीर में इतना परिवर्तन लाने के लिए मेरे पति ने क्या किया वह मेरी समझ से बाहर था। मैं समीर के लिए फिर भी खुश थी।
मैं तुरंत रसोई में गई और मैंने मेरे पति राज को रसोई में से ही आवाज देकर बुलाया। जब राज आये तो मैं उनसे लिपट गई और बोली, “तुम्हारे में जादू है। तुमने भला क्या कर दिया की समीर इतने थोड़े समय में ऐसे बदल गए? खैर, जो भी हो, तुमने मेरे सर से एक बड़ा भारी बोझ हल्का कर दिया।”
तब राज ने कहा, “यह तो ट्रेलर था। डार्लिंग, पिक्चर तो अभी बाकी है।” मैं हैरानगी से सोचने लगी की और क्या क्या होगा।
खाने के बाद हम तीनो ड्राइंग रूम में जा बैठे। राज ने अपनी जेब से एक ताश के पत्तों का पैकेट निकाला और ताश की गड्डी को अपनी उँगलियों के बिच फैंटते हुए बोले, “तुम दोनों मेरे पास आ जाओ। हम ताश खेलेंगे। हम तीन पत्ती का खेल खेलेंगे”
समीर और मैं भी बड़ी उत्सुकता पूर्वक ताश खेलने के लिए तैयार हो गए। मैंने ताश खेला था और मैं ताश के नियम जानती थी। राज ने कहा, “पर यह ताश का खेल थोड़ा सा अलग है। इसमें कोई पैसे नहीं डालने हैं पर एक शर्त है। हर एक खेल के बाद जो हार जाएगा उसको बाकी दोनों की एक एक बात माननी पड़ेगी। बोलो मंजूर है?”
समीर और मैंने कहा, “मंजूर है।”
खेल में पहले मेरे पति राज हार गए। मैंने कोई फिल्म का एक गाना अपने ऑडियो सिस्टम पर चलाया और उन्हें उस पर नाचने के लिए कहा। राज बुरा मुंह बनाते हुए अजीबो गरीब तरीके से नाचने लगे। मैंने और समीर ने खूब हंस कर तालियां बजायी। समीर ने राज को कोई गाना गाने के लिए कहा। राज की आवाज सुरीली थी और एक गाने की एक लाइन उन्होंने सुनाई। मैंने और समीर ने फिर से तालियां बजायी।
दूसरा खेल समीर हारे। राज ने समीर को किसी की भी नक़ल करने को कहा। समीर ने मेरी ही नक़ल करना शुरू किया। मैंने कैसे उन्हें बुरी तरह से डाँट दिया उसकी नक़ल करने लगे। नक़ल करते हुए समीर गंभीर हो गए और उन की आँखों में आंसू आ गये। राज और मैं उनके पास गए। राज ने उनको गले लगाया और कहा, “समीर, डाँटते तो अपने ही हैं। झगड़ा तो अपनों से ही किया जाता है, परायों से नहीं। नीना और मैं तुम्हें अपना मानते हैं। नीना मुझे भी डाँटती रहती है। तुम तो बुरा मान सकते हो, पर मैं क्या करूँ? अगर मैं कुछ बोला तो मुझे तो भूखों रहना पडेगा। भाई मैं तो भूखा नहीं रह सकता।”
राज की बात सुन कर समीर हंस पड़े और कहा, “नीना, मैं कुछ ज्यादा ही बड़बोला हूँ। मुझे माफ़ कर दो।”
राज ने कहा, “जो एक दूसरे को प्यार करते हैं वह कभी माफ़ी नहीं मांगते।”
जब मैंने मेरे पति राज से यह सूना तो मेरे मन में एक डर पैदा हुआ। मैं सोचने लगी की ऐसा कहते हुए मेरे पति राज ने क्या समीर और मैं हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे ऐसा जता ने की कोशिश तो नहीं की थी?
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