जीन पीने के पश्चात नीना काफी तनाव मुक्त लग रही थी। जो तनाव शुरू में अनिल की हरकतों की वजह से वह महसूस कर रही थी वह नहीं दिख रहा था। अनिल ने शुरू में जब यह कहा था की वह कुछ सेक्सुअल विषय के बारे में बताने जा रहा था, तो नीना डर रही थी की कहीं वह गंदे शब्द जैसे लुंड, चूत, चोदना इत्यादि शब्दों का प्रयोग तो नहीं करेगा।
परन्तु अनिल का बड़े मर्यादित रूप में सारी सेक्सुअल बातों को बताना तथा गंदे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना नीना को अच्छा लगा। इसी कारण वश जब अनिल ने नीना का हाथ थामा और अपनी जांघ पर रखा तो वह कुछ न बोली।
कार्यक्रम शुरू होचुका था। मैदान लोगों से खचाखच भरा था। एक के बाद एक शायर, कभी लोगों पर, कभी राजनेताओं पर, कभी अमीरों पर यातो कभी मंच पर बैठे दूसरे कविओं पर जम कर ताने कसते हुए हास्य कविताएं एवं शायरी सुना रहे थे। लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे।
अनिल ने कार को मंच से काफी दूर एक कोने में एक पेड़ के पीछे दीवार के पास खड़ी की। हम उसी तरह कार में ही बैठे रहे। बड़े लाउड स्पीकरो के कारण हमें दूर भी साफ़ सुनाई दे रहा था। बल्कि इतनी तेज आवाज थी की हम बात भी नहीं कर पा रहे थे।
जहां हम रुके थे वहां काफी अँधेरा था। आते जाते कोई भी हमें बाहर से देख नहीं पाता था। कार के अंदर भी अँधेरा था। अनिल अब एक तरह से ̣नीना का हाथ हमेशा के लिए अपनी जांघों पर रखे हुए था और अपना हाथ उसने नीना के हाथ के ऊपर रखा हुआ था।
तब एक शायर ने महिलाओं की शिक्षा और काबिलियत के बारेंमे एक कविता सुनाई। यह सुन कर नीना मेरी और मुड़ी और बोली, “देखा, मिस्टर राज, मैं आपको क्या कहती थी? आज की महिलाऐं पुरुषों से कोई भी तरह कम नहीं हैं। वह कमा भी सकती हैं और घर भी चला सकती हैं। कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। मैं तो यह कहती हूँ के महिलाओं को पुरुष के बरोबर तनख्वाह मिलनी चाहिए।”
मुझे उसकी आवाज में थोड़ी सी थरथर्राहट सी सुनाई दे रही थी। लगता था जैसे थोड़ा नशा उसपर हावी हो रहा था।
मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, “महिलाऐं कभी भी पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। महिलाऐं नाजुक़ और कमजोर होती हैं और उनमें साहस की कमी होती है। वह छोटी छोटी बातों में पीछे हट जाती हैं। जैसे की अभी तुम्हीने व्हिस्की पीने से मना कर दिया था। भला वह पुरुषों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं?” मैंने एक तीर मारा और नीना के जवाब का इन्तेजार करनेकरने लगा।
नीना ने तुरंत पलट कर कहा, “तो क्या हुआ? मैं भी व्हिस्की पी सकती हूँ। पर मैं आप लोगों की तरह बहक ना नहीं चाहती। तुम पुरुष लोग क्या समझते हो अपनेआपको? क्या हम कमजोर हैं?” नीना ने तब अनिल की और देखा।
अनिल ने तुरंत कहा, “राज, नीना बिलकुल ठीक कह रही है। आज की नारी सब तरह से पुरुषों के समान है। वह ज़माना चला गया जब औरतें घर में बैठ कर मर्दों की गुलामी करती थी। अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। अब वह कोई भी तरह पुरुषों से पिछड़ी नहीं है। जो हम पुरुष करते हैं उसमे वह जरूर सहभागिनी बनती है।”
मैंने देखा की अनिल के सपोर्ट करने से नीना खिल सी गयी। नीना ने ख़ुशी के मारे अनिल के हाथ को अपनी जांघ पर रखा और उस पर अपने हाथ फेरने लगी। वह बोली, “राज, तुम अपने मित्र से कुछ सीखो। वह कितना सभ्य है।” मैं चुप हो गया।
हम फिर थोड़ी और देर तक कविताएं सुनते रहे। उस दौरान मैंने महसूस किया की अनिल ने नीना को अपने पास खीच लिया था। मैंने अँधेरे में भी ध्यान से देखा तब पता लगा की अब अनिल का हाथ नीना की साडी पर जांघ के ऊपर था और वह जांघ को साडी के ऊपर से सहला रहा था।
उस समय शायद नीना का हाथ अनिल की जांघों पर था। मुझे शक हुआ के कहीं अनिल ने नीना का हाथ अपनी टांगों के बिच तो नहीं रख दिया था। मेरी प्यारी पत्नी इतना कुछ होते हुए भी जैसे कविताएं सुनने में व्यस्त लग रही थी।
अनिल को मैंने कहा, “अरे अनिल, यार इस कार्यक्रम से तो तुम्हारी कहानी ही ठीक थी। चलो कार को कहीं और ले लो। यहां बहुत शोर है।“
अनिल ने कार को मोड़ा और वहाँ से दूर मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर कार को एक जगह खड़ा किया। बाहर दूर दूर कहीं रौशनी दिखती थी, पर कार में तो अँधेरा ही था। आँखों पर जोर देनेसे थोड़ा बहुत दिखता था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
कार रुकने पर पीछे की बात को जारी रखते हुए मैंने कहा, “अनिल तुम्हारी कहानी सटीक तो थी, एक बात कहूँ? तुमने तो कहानी को बिलकुल फीका ही कर दिया। सारा मझा ही किरकिरा कर दिया। ना तो तुमने कोई सेक्स कैसे हुआ यह बताया, ना तो सारी बातें स्पष्ट रूप से खुली की। शायद मेरी प्यारी और नाजुक़ पत्नीके डर से तुमने तो सारे मज़े का लुत्फ़ ही नहीं पर उजागर किया। मेरे ख्याल से मेरी पत्नी में इतनी तो हिम्मत है की वह पुरुषों के साथ बैठ के ऐसे सेक्सुअल बातें भी सुन सकती है। क्यों डार्लिंग? क्या तुम थोड़ी और खुली बातें सुनने से पीछे तो नहीं हट जाओगी?”
तब अनिल ने बड़ी सम्यता से कहा, “नहीं राज, हमें महिलाओं के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए। मैं नहीं चाहता की नीना भाभी के मन को मेरी बातों से कोई ठेस पहुंचे।” अनिल की इतनी शालीन बात सुनकर नीना और भी प्रसन्न हुई।
अब तो नीना अनिल को बड़े सम्मान और अपने प्रेम से देख रही थी। नीना ने अनिल के दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और उन्हें प्रेम से सहलाने लगी। पर वह मेरे ताने को भूली नहीं थी।
नीना ने मुझसे नाजुक शब्द सूना था तो उसे तो जवाब देना ही था। वह जोश में आ कर और बोली, “नहीं अनिल, तुम जरूर वह कहानी पूरी सुनाओ। मैं क्यों भला हिचकिचाउंगी? आखिर सेक्स भी तो हमारी ज़िंदगी का एक स्वाभाविक ऐसा हिस्सा है जिसको हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। अनिल तुम बे झिझक कहो। मेरी वजह से मत हिचकिचाओ। अगर पुरुष लोग सेक्स की बातें करते हैं और सुनते हैं तो भला स्त्रियां क्यों नहीं सुन सकती? मेरे पति को अगर उसे सुनना है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। उन के दिमाग पर तो हमेशा सेक्स ही छाया रहता है।” नीना ने मुझ पर अपने गुस्से की झड़ी जैसे बरसा दी।
तब तक अनिल ने महेश और उसके मित्र दम्पति की कहानी थोड़ी दबा छिपा कर सुनाई थी। उसने कहीं भी अभद्र कहे जाने वाले शब्दों का उपयोग नहीं किया था। ना ही उसने मैथुन का स्पष्ट रूप से वर्णन कियाथा। जब मैं ने उसे उकसाया और उसको नीना की भी अनुमति मिल गई तब वह उसी बात को और स्पष्ट रूप से बताने लगा।
अब अनिल ने स्पष्ट रूप से महेश के मित्र और उसकी पर्त्नी के सेक्स के बारे में विस्तार से बताने लगा। महेश ने कैसे उसके मित्र की पत्नी की चूत को चाटा और कैसे उसकी चूत के झरते हुए पानी को चूसने लगा।
महेश के मित्र की पत्नी ने अपने पति और महेश दोनों के लण्ड को अपने दोनों हाथोंमे सहलाती थी, और उसने दोनों के लण्ड को कैसे बारी बारी से चूसा यह सुन कर हम तीनों उत्तेजित हो उठे।
तब अनिल ने कहा की जब पहली बार महेश ने अपनी पत्नी का ब्लाउज और ब्रा खोली तब उसने उस के ब्लाउज के निचे अपनी ऊँगली डाली। यह कहते हुए, अनिल ने भी नीना के ब्लाउज के निचे अपनी एक ऊँगली डाली और उसके ब्लाउज को ऊपर खींचने लगा।
जैसे ही नीना को इस बात की समझ आई तो वह एकदम गुस्साई आँखों से मेरी और देखने लगी। मैं समझ गया की अगर कुछ नहीं किया तो नीना जरूर बरस पड़ेगी और शामका सारा मज़ा और हमारे प्लान पर पानी फिर जायेगा।
मैंने तुरंत नीना को मेरी और पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचा और उसके रसीले होठों पर अपने होंठ रख कर उसे किस करने लगा। नीना को मेरी तरफ घूमना पड़ा।
किस करते करते मैंने नीना की साडी को उसकी जांघों से ऊपर खींचते कहा, “अनिल, तुम्हारी कहानी इतनी उत्तेजित करती है की मैं अपने आप को कंट्रोल में रख नहीं पा रहा हूँ। नीना भी उतनी उत्तेजित हो गयी थी की वह मुझसे लिपट कर जोश से चुम्बन करने लगी और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझसे अपनी जीभ चुस्वाति रही। उसे अब अनिल के देखने की कोई चिंता नहीं थी। अनिल की उंगली नीना के घूमने से नीना की पीठ पर जा पहुंची। नेना की पीठ खुली हुई थी और नीना की ब्रा की पट्टी का हुक अनिल की उंगली में आ गया।
तब नीना मुझे पूरी तरह जकड़ कर मुझे अपने पुरे जोश से चुंबन कर रही थी। शायद अनिल ने अपनी हथेली मेरी बीबी की ब्रा के अंदर घुसेड़ दी थी और वह अनिल इस बात का फायदा उठाकर अपनी उँगलियों से नीना की भरी मद मस्त चुंचियों को सहलाता जा रहा था। उस चुम्बन के जोश में शायद नीना को इस बात का अहसास नहीं था की अनिल क्या कर रहा है।
थोड़ी देर बाद नीना ने घूम कर देखा तो पाया की अनिल नीना और मेरे चुम्बन को देख रहा था। उसे बेचारेअनिल पर थोड़ा सा तरस आया। नीना ने अनिल का सर अपने हाथों पकड़ा और अपने कन्धों पर रखकर अनिल के बालों में अपनी उंगलियां डाल कर ऐसे सहलाने लगी जैसे की कंघी कर रही हो। ।
नीना का अनुमोदन पाकर अनिल फुला नहीं समा रहा था। उसने मेरी तरफ अपनी दो उँगलियों से अपनी सफलता का ‘V’ का निशान मुझे दिखाया। मैंने भी उसे अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने के लिए इशारा किया।
अनिल ने फिर कार रोक कर मुझसे पूछा, “क्या यार अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?”
मैंने कहा, “मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।“
नीना ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, “अनिल अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। ”
मैंने तब कहा, “मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।”
अनिल ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “तू क्या बकवास कर रहा है राज? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है नीना को पाकर? इतनी अक्लमंद, इतनी सुन्दर, इतनी सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है। मैंने आजतक नीना भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि। इसमें तू मेरी बीबी अनीता को भी शामिल कर सकता है।”
नीना ने शायद अनिल ने उसे सेक्सी कहा वह सुना नहीं या फिर अनसुना कर दिया। पर अनिल की बात सुनकर नीना को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, “देखा? तुम्हारा अपना दोस्त क्या कह रहा है? सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर। तुम्हे मेरी कद्र कहाँ?”
मैं अपने मन में अनिल की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। अब नीना की समझ से अनिल जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं। मैंने अनिल से कहा, “भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बतादो की क्या बात थी?”
मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक अनिल के चेहरे का रंग एकदम फीका पड़ गया था। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब अनिल ने बड़ी गंभीरता से नीना को कहा, “नीना भाभी, आपसे मेरी एक अर्ज है। मैं आप को कुछ बताना चाहता हूँ। पर उसके लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा।”
अनिल ने नीना को इतनी महत्ता दी उससे नीना बड़ी खुश नजर आ रही थी। पर अनिल के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी । मैंने नीना से कहा, “अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात में बात करने से लोगों का ध्यान भी हमारी और जाता है। अनिल के घर में और कोई है भी नहीं। चलो चलते हैं। ” उस पर नीना ने भी अपनी सम्मति दे दी और अनिल ने कार अपने घर की और मोड़ी।
पुरे रास्ते में अनिल के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने नीना के कान में कहा, “लगता है कोई गंभीर बात है। अबतक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम अनिल के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।“
नीना की नजर में अनिल एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी नीना अनिल की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही अनिल के घर पहुंचे तो नीना ने अनिल की कमर में हाथ डाला और बोली, “आज मैं एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। इसका श्रेय तुम्हे जाता है।” मैं जानता था की नीना का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास था।
अनिल को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर अनिल की शक्ल रोनी सी हो रही थी। नीना बड़ी उलझन में थी। अनिल के मूड में यह परिवर्तन मेरी और नीना की समझ में नहीं आया। मैंने अनिल से पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। नीना ने तब मुझे मुझे इशारा किया की मैं जा कर हम सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।
अनिल ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। अनिल ने तब तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो नीना ने जोर से कहा, ” अनिल, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ के एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। ”
नीना ने अनिल के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। अनिल भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो नीना वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।
मैंने और अनिल ने भी अपने गिलास खाली किये। अनिल ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, “देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। राज, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। नीना क्या मैं तुम्हे अनीता की कोई नाईटी दूँ?”
मैंने नीना की और इशारा करते हुए अनिल को बोला, “भाई मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे तेरे कपडे खुले में पहनमें कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
अनिल ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और नीना और अनिल के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए अनिल का नाईट सूट पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया। नीना और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।
नीना ने अनिल की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, “मुझे भी तुम्हारे या अनिता के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है अनीता का नाईट गाउन?” मैं समझ गया की अनीता को चढ़ गयी है।
अनिल ने जल्दी से चुन कर अनीता का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। अनिल ने अपने हनीमून पर अनीता के लीये वह ख़रीदा था। फिर उसने नीना से कहा, “राज तो पागल हो गया है। अरे इसे कोई शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं? क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? नीना रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।
नीना को वह गाउन पकड़ा कर अनिल वहाँ से गायब हो गया। अब नीना के मनमें अनिल के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए अनिल एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अनिल की सुबह वाली शरारत को जैसे वह भूल चुकी थी।
नीना ने अनीता गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, “अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। नीना इधर उधर देखा। अनिल जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। मैंने नीना को कई बार नंगे देखा था..
पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। नीना की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसे आज अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। अनिल यदि जिद करता तो नीना को उसके सामने शायद मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। पर अनिल ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने नीना को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से नीना अनिल की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।
पढ़ते रहिये.. क्योकि ये कहानी अभी जारी रहेगी.. और मेरी मेल आई डी है “[email protected]”.