सभी देसी कहानी पढ़ने वाले दोस्तों और सहेलियों को राहुल का नमस्कार. मैं एक देहाती गाँव में रहता हूँ, गाँव में मेरा एक दोस्त रमेश भी रहता है. रमेश और मैं बचपन से ही बहुत अच्छे दोस्त हैं.
हमारी जोड़ी पुरे गाँव में जय-वीरू की जोड़ी के नाम से मशहूर है. रमेश के घर में केवल उसकी माँ रीता रहती है जिसे में चाची बुलाता हूँ, जिसकी उम्र 45 साल होगी, रमेश के पिताजी ने चाची को छोड़ दिया है और दूसरी शादी करके शहर में बस गए हैं.
रीता चाची के बारे में आपको शॉर्ट में बता दू. चाची दिखने में गोरी, मोटे और कसे हुए बदन वाली एक मर्दाना, कामुक, गाँव की देहाती औरत है जो साड़ी व ब्लाउज पहनती है.
चाची के उभरे हुए वक्ष और मोटे मोटे नितम्ब बहुत ही आकर्षक लगते हैं. चाची ब्लाउज इस तरीके से पहनती है कि उनकी संकरी-काली घाटी हर समय दिखाई देती है और कामोत्तेजना प्रकट करती है. यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
मेरी तो चाची को चोदने की इच्छा काफी पहले से थी परंतु रमेश के होते हुए यह सम्भव नही था. लेकिन एक दिन मेने टूटते हुए तारे से मन्नत मांगी और मेरी इच्छा पूरी हुयी. रमेश की फौज में नौकरी लग गयी और उसे गाँव से दूर सीमा में भेज दिया. अब घर में चाची अकेलीे रह गयी थी.
मेरे आवारापन के चलते मेरी नौकरी नही लग सकी तो मेरे पिताजी ने मुझे शहर में नौकरी करने का दबाव डाला तो मैने गाँव में ही खेती-बाड़ी करने का निर्णय लिया. क्योंकि मैं रीता चाची को ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकता था.
दिन बीतते गए. एक दिन चाची खेत में घास काट रही थी और मैं भी हल चला रहा था. झुक कर घास काटने की वजह से चाची के आधे से ज्यादा वक्ष ब्लाउज से बहार आने को बेकाबू हुये जा रहे थे. ब्रा न पहनने के कारण चाची की चुच्चियों का उभार भी साफ़ साफ़ पता चल रहा था.
चाची घास काटे जा रही थी और उनके मम्मे हिले जा रहे थे और ये दृश्य देखकर मेरा लण्ड पैजामे में तंबू बन गया. कच्छा न पहनने की वजह से तंबू भी साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था. चाची ने साड़ी घुटनों के ऊपर तक उठायी हुयी थी जिसके कारण उनके गोरे मोटे पैर और मोटी जांघें दिख रही थीं और उनमें हलके हलके बाल भी थे. मैं चाची से बात करने लगा.
मैं- चाची, रमेश के न होने से बड़ा अकेलापन सा लग रहा है.
चाची- हाँ बेटा, तुझे क्या बताऊँ जब से वो गया है तब से सुना सूना सा है घर.
(चाची ने मेरे पैजामे में बने तंबू को देख लिया और लज्जा गयी व अपने बूब्स को साड़ी से छिपाने लगी)
मैं- अरे नही चाची, मैं हूँ ना, मुझे तू रमेश ही समझ, जब कभी भी अकेलापन लगे मुझे बुला लिया कर.
चाची- ठीक है बेटा, कभी कभी तू ऐसे ही घर आ जाया कर, मुझे भी साथ मिल जायेगा.
मैं- चाची तू कितनी मोटी है, कितना खाना खाती है?
चाची- हट बदमाश, नज़र मत लगा मुझ पर. तू भी तो कितना तगड़ा है.
मैं- मैं बहुत तगड़ा हूं चाची, तुझे गोद में भी उठा सकता हूँ.
चाची- चल हट झूठा, मुझे कोई नही उठा सकता गोद में, एक बार रमेश ने कोशिस करी थी लेकिन उसकी कमर में ही नस चढ़ गयी.
मैं- अगर मेने उठा लिया तो क्या देगी मुझे इनाम, बता?
चाची- जो तू मांगेगा वो दूंगी.
मैं- सोच समझकर बोल चाची, देना पड़ेगा.
चाची- ऐसी क्या चीज़ है जो इतना सोचना पड़ेगा.
मैं- जो रमेश को बचपन में देती थी तू.
चाची- क्या देती थी बचपन में उसे जो अब नहीं देती हूँ, साफ़ साफ़ बता, कुछ पल्ले ना पड़ा भतीजे.
मैं- अरे चाची दूध की बात कर रहा हूँ.
चाची- हाँ तो दे दूंगी, वो तो मैं रमेश को अभी तक देती हूँ उसमे बचपन में क्या.
मैं- मेरी भोली चाची, शायद तू समझी नहीं, दूध गाय का नहीं, तेरा चाहिए, जैसे रमेश बचपन में चुस चुस कर पीता था.
चाची- ओहो, वो तो अभी तक पीता था मेरा दूध, उसमे क्या है, माँ का दूध तो कभी भी पियो, बच्चे तो बच्चे रहते हैं न, तू भी पी लियो. लेकिन सिर्फ चूसना होगा, इसमें दूध निकलता नही है.
मैं- चाची मैं भी तो रमेश जैसा हूँ, मुझे भी पिलाया कर तू.
चाची- ठीक है ठीक है लेकिन पहले मुझे गोद में उठा कर दिखा तब जानू.
मैं- अभी रुक तू.
(मैने चाची को दोनों हाथों से पकड़ा और एक ही झटके में गोद में उठा लिया, मेरा खड़ा लण्ड चाची के नितम्बो से छू रहा था जो चाची को महसूस हो रहा था, और शर्म से चाची के गाल लाल हो गए और वो गोद से नीचे उतरने की गुजारिश करने लगी, लेकिन मेने चाची को ऐसे ही पकड़े रखा, बड़ा ही मनमोहक दृश्य चल रहा था, अचानक मेरे ठरकी पिताजी खेत पर आ गए और ये अश्लील दृश्य देखकर चौंक गए)
पिताजी- ये सब क्या हो रहा है बेटा, रीता को छोड़ नीचे.
(और फिर चाची ने भी अपना ब्लाउज, साड़ी ठीक करी और शरमाकर-घबराकर घर चली गयी)
पिताजी- ये क्या कर रहा था तू रीता के साथ हरामखोर.
मैं- अरे पिताजी इस जवानी में सहन ना होता अब. तो जरा मजे ले रहा था.
पिताजी- जो भी करना है कर लियो, लेकिन एक चीज़ का ध्यान रखना, शादी के लिए बोले तो मना कर दियो, इतनी बुढ़िया के प्यार के चक्कर में ना पड़ियो, समझा??
मैं- काहे घबराते हो पिताजी, काम वाम करके छोड़ देंगे, वैसे भी रमेश की माँ है, रमेश मेरा दोस्त है, अगर मेने चाची से शादी करी तो वो मेरा बेटा बन जायेगा.
पिताजी- चल ज्यादा मत सोच अब भोसडीके, और सुन मेरा भी ध्यान रखना बाद मे.
मैं- चिंता मत करो पिताजी, पहले मुझे नहा लेने दो फिर आपको भी डुबकी लगवा देंगे.
पिताजी- बड़ा हरामी है तू मादरचोद, चल अब जल्दी जा चाची के घर में, कैसे लज्जा कर भागी है वो देख.
(और मैं चाची के घर चला गया)
मैं- चाची वो पिताजी गलत समझ बैठे.
चाची- अरे तो समझेंगे नही का, तूने उठाया ही ऐसे था गोद में, अच्छा हुआ कोई और ना देखा.
मैं- देख अब उठा लिए हम, तू दूध पिला अब.
चाची- ठीक है भतीजे, कौन सा वाला पियेगा- दायां या बायां?
मैं- चाची दोनों ही पियूँगा, बारी बारी.
(चाची की साडी का पल्लू नीचे गिर गया था, और साँसे घबराहट से तेज़ चल रही थी और सांस के साथ साथ बूब्स भी बलाउज में उभर रहे थे जिसे देखकर मेरा लोडा कस गया, और चाची ने जब अपना ब्लाउज अपनी छाती से अलग करा तो मेरी सांस ही रुक गयी, इतने बड़े विशालकाय बूब्स मेने किसी के नही देखे थे, अंगूर के दाने के बराबर कसे हुए निप्पल देखकर मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी, मेरे मुह से अचानक गाली निकल गयी)
मैं- भेंचो, क्या है ये?
चाची- गाली काहे देते हो भतीजे, अब पियो दूध जितना मर्ज़ी, अब तो खोल दिए हम.
(और मैने आव देखा न ताव, एक भूखे भेड़िये के जैसे चाची के दूधों में झपट गया और रगड़ रगड़ कर निप्पल चुसन करने लगा, लगभग 15 मिनट तक चूसता रहा और चाची भी चुदायिपूर्ण आहें व सिसकारियां भरने लगी)
चाची- अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… भतीजे…. अह्ह्हह्ह्ह्ह ऐसे ही चुस अपनी चाची के दूध मेरे प्यारे लाल…. शहह्ह्ह्ह्ह…..
(जब मुझे लगा कि मेरी रंडी चाची गर्म हो चुकी है तो मैने अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिए और जीभ व होंठ रसपान करने लगा, चाची भी पूरी अर्धांग्नी के जैसे मेरा साथ दे रही थी, हम दोनों के थूक का आदान प्रदान एक दूसरे के मुह में हो रहा था, चुम्बन करते करते हम दोनों एकदम नंगन हो गए, और करीब 30 मिनट तक हम ऐसे ही फ्रेंच चुम्बन करते रहे )
चाची- भतीजे, अब तड़पा मत मेरे राजा, डाल दे अपना लण्ड मेरी चूत में और मिटा दे मेरी सालों की खुजली मेरे स्वामी.
मैं- मेरी रांड, आज तेरी चूत से खून की बारिश होगी, फाड़ दूंगा तेरी चूत और गांड को मेरी चाची.
(ज्यादा देर न करते हुए मेने अपना खड़ा लण्ड चाची की चूत के ऊपर रखा और 1 जोरदार धक्का लगाया जिसके कारण चाची की चीख निकल गयी, और धीरे धीरे वो चीख आनन्द की ध्वनि में परिवर्तित हो गयी और शुरू हुआ एक चुदायिपूर्ण सफर का सिलसिला, मैं चाची को एक पत्नी के आदर से चोद रहा था और चाची मुझे पति परमेश्वर मान कर चुदा रही थी, पूरा घर हमारी चीख, आह, और सिसकारियों से गुंझ उठा)
चाची- उईईई……माँ…..अह्ह्ह्ह्ह…. मार दिया रेर्रर्रर्रर्र… उम्म्ममम्ममम्म…. श्ठठठह… मेरे पतिदेव अह्ह्हह्ह्ह्ह…. बच्चा दानी में चोट मार रहा है तेरा हथियार, अह्ह्ह्ह्ह्ह…
मैं- चाची एक और बच्चा दूंगा तुझे मेरी जान, मेरी रांड…. स्स्स्सस्स्स्स….
(और कब आधा घंटा बीता पता नहीं चला, मैं और चाची एक साथ झड़े, मेरा पूरा माल चाची की चूत के अंदर था, हम दोनों एक दूसरे से कांपते हुए लिपट गए, एक अलग ही अनुभव था, एक दूसरे को चुम्बन करते हुए और प्यार करते हुए ऐसे ही बिस्तर पर सो गए)
(जब नौ महीने बाद रमेश घर आया तो अपने नए भाई को देखकर चौंक गया और शर्म से उसका मुह लाल हो गया, गाँव में उसका रहना मुश्किल हो गया, सभी उसे चिढ़ाने लगे, लेकिन पुरे गाँव में किसी को नहीं पता था कि उसका भाई किसका पाप है.
रमेश के जाने के बाद मेरे ठरकी बाप और मैने बाजरे के खेत में एक साथ चाची को चोदा, और अब यह क्रिया चलती रहती है, हम बहुत खुश हैं, चाची कभी कभी पैसों के लिए ग्राम प्रधान से भी चुदवा लेती है लेकिन मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि रंडी का काम ही चुदवाने का होता है)
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सुचना – **इस कहानी के सभी पात्र और घटनाऐं काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा**