Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 23


सुबह होते ही सब नहा धो कर फ्रेश होकर ट्रैन में ले जाने के लिए नाश्ता बगैरह बची खुची तैयारी होते ही सब कपडे पहन कर तैयार होने लगे।
सुनीता ने अपने पति के आग्रह पर परम्पराओं को तोड़ कर कैप्री (लम्बी सी शोर्ट या हाफ पेण्ट) पहनी थी। ऊपर से खुला टॉप पहना था। टॉप गले के ऊपर से काफी खुला हुआ था पर स्तनों के बिलकुल निचे तना हुआ बंधा था। बालों को एक क्लिप से बाँध कर बाकी खुला छोड़ रखा था।
शॉर्ट पहनने के कारण सुनीता की सुआकार करारी जाँघें कामुक और ललचाने वाला नज़ारा पेश कर रही थी। सुनीता ने पहनी हुई कैप्री (देसी भाषा में कहें तो चड्डी) निचे से काफी खुली थी, पर घुटने से थोड़ी ही ऊपर तक थी।
सुनील ने पिछली शाम सुनीता के लिए एक वेणी खरीदी थी उसे सुनीता ने बालों में लटका रखा था। होँठों की कुदरती लालिमा को हलकी सी लिपस्टिक से उनका रसीलापन दिख रहा था। सुनीता के गाल वैसे ही काफी लालिमा भरे थे। उन्हें और लालिमा आवश्यकता नहीं थी।
तैयार हो कर जब सुनीता कमरे से बाहर आयी और दोनों टाँगें मिलाकर थोड़ा टेढ़ी होकर अपनी पतली कमर और उभरे हुए कूल्हों को उकसाने वाली सेक्सी मुद्रा में खड़ी हो कर जब उसने अपने पति को पूछा, “मैं कैसी लग रही हूँ?”
सुनील ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लेकर, उसके ब्लाउज में से बाहर उभरे हुए स्तनों पर अपना हाथ रख कर, उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाते हुए सुनीता के होँठों पर हलका सा चुम्बन करते हुए कहा, “पूरी तरह से खाने लायक। तुम्हें देख कर मुझे तुम्हें खाने को मन करता है।”
सुनीता ने अपने पति को हल्का सा धक्का मारते हुए टेढ़ी नजर कर कहा, “शर्म करो। कल रात तो तुम मुझे पूरा का पूरा निगल गए थे। पेट नहीं भरा था क्या?”
सुनील ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, “वह तो डिनर था। मैं तो नाश्ते की बात कर रहा हूँ।”
सुनीता ने अपने पति के होँठों से होँठ चिपकाकर उन्हें एक गहरा चुम्बन किया। फिर कुछ देर बाद हट कर नटखट अदा करती हुई बोली, “नाश्ते में आज यही मिलेगा। इससे ही काम चलाना पडेगा।
दुपहर में लंच तो नहीं दे पाउंगी, पर रात को फिर डिनर करने की इच्छा हो तो कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। चलती ट्रैन में कम्पार्टमेंट में तुम्हें खिलाना थोड़ा मुश्किल है। पर जनाब पहले यह तो देखो की कहीं जे जे (जस्सूजी और ज्योतिजी) घर से बाहर निकले या नहीं?”
सुनीता ने खिड़की में से झांका तो देखा की जस्सूजी और ज्योतिजी अपना सामान उठा कर निचे उतर ही रहे थे। निचे टैक्सी खड़ी थी।
सुबह के पांच बजे होंगे। भोर की हलकी लालिमा छायी हुई थी। हवा में थोड़ी सी ठण्ड की खुशनुमा झलक थी। सुनील ने जब ज्योति जी को देखा तो देखते ही रह गए। ज्योति ने फूलों की डिज़ाइन वाला टॉप पहना था और निचे स्कर्ट जिसका छोर घुटनोँ से थोड़ा ज्यादा ही ऊपर तक था पहन रखा था।
उनके ब्लाउज के निचे और स्कर्ट के बेल्ट के बिच का खुला हुआ बदन किसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था। पतली कमर, पेट की करारी त्वचा, नाभि में बिच स्थित नाभि बटन और फिर पतली कमर के निचे कूल्हों की और का फैलाव और फिर कातिल सी कमल की डंडी के सामान सुआकार जाँघें किसी भी लोलुप मर्द की आँखों को अपने ऊपर से हटने नहीं दें ऐसी कामुक थीं।
सुनीलजी के निचे उतरते ही दोनों पति दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी की नजर बचाकर चोरी छुपके से ताकने की होड़ में लगे थे।
सुनीलजी ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के हाथ में हाथ देते हुए उन्हें “गुड मॉर्निंग” कहा और फिर ज्योति से हाथ मिलाकर उनको हल्का सा औपचारिक आलिंगन किया।
उनका मन तो करता था की ज्योतिजी को कस के अपनी बाहों में ले, पर बाकी लोगों की नजरें और आसपास में खिड़कियों से झाँक रहे जिज्ञासु पड़ोसियों का ख्याल रखते हुए ऐसा करने का विचार मुल्तवी रखा।
जस्सूजी ने पर फिर भी सुनीता को कस कर अपनी बाहों में लिया और कहा, “तुम बला की खूबसूरत लग रही हो।” और फिर मज़बूरी में अपनी बाहों में से आजाद किया।
उन्हें टैक्सी में स्टेशन पहुँचने में करीब डेढ़ घंटा लगा। ट्रैन प्लेटफार्म पर खड़ी थी। टू टायर ए.सी. कम्पार्टमेंट में ६ बर्थ थीं। चार बर्थ जस्सूजी, ज्योतिजी, सुनीलजी और सुनीता की थीं।
अपना और जस्सूजी और ज्योतिजी का सामान लगाने के बाद सुनील ने देखा की साइड की ऊपर की बर्थ पर एक करीब २५ वर्ष की कमसिन लड़की थी। लड़की का सामान बर्थ के निचे लगाने के लिए एक जवान साथ में लिए एक प्रौढ़ से आर्मी अफसर दाखिल हुए।
उस प्रौढ़ आर्मी अफसर ने अपना परिचय ब्रिगेडियर खन्ना (रिटायर्ड) के नाम से दिया। उन्होंने बताया की वह युवा लड़की, जो की उनकी बेटी से भी कम उम्र की होगी, वह उनकी पत्नी थी।
सब इस उधेड़बुन में थे की इतने प्रौढ़ आर्मी अफसर की बीबी इतनी कम उम्र की कैसे हो सकती थी। खैर कुछ देर बाद उन प्रौढ़ आर्मी अफसर के साथ सबकी ‘हेलो, हाय’ हुई और तब सबको पता चला ब्रिगेडियर खन्ना को अपनी पत्नी के साथ रिज़र्वेशन नहीं मिल पाया था।
उन्हें दो कम्पार्टमेंट छोड़ कर रिज़र्वेशन मिला हुआ था। कुछ देर तक बातें करने के बाद जब ट्रैन छूटने वाली थी तब ब्रिगेडियर खन्ना अपने कम्पार्टमेंट में चले गए।
उस के कुछ ही समय बाद कम्पार्टमेंट में साइड वाली निचे की बर्थ पर जिनका रिज़र्वेशन था वह युवा आर्मी अफसर (जिसके यूनिफार्म पर लगे सितारोँ से पता चला की वह कप्तान थे) दाखिल हुए और फिर उन्होंने अपना सामान लगाया।
कर्नल की उम्र मुश्किल से पच्चीस या छब्बीस साल की होगी। लगता था की वह अभी अभी राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी से पास हुए थे। उनके सामने ही युवा लड़की नीतू बैठी हुई थी। दोनों ने एक दूसरे से “हेलो, हाय” किया।
ट्रैन ने स्टेशन छोड़ा ही था की कर्नल साहब, सुनील, ज्योति और सुनीता के सामने एक काला कोट और सफ़ेद पतलून पहने टी टी साहब उपस्थित हुए। हट्टाकट्टा बदन, फुले हुए गाल, लम्बे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और काफी लंबा कद।
वह टी टी कम और कोई फिल्म के विलन ज्यादा दिख रहे थे। खैर उन्होंने सब का टिकट चेक किया। टी टी साहब कुछ ज्यादा ही बातें करने के मूड में लग रहे थे।
उन्होंने जब सुनीलजी से उनका गंतव्य स्थान (कहाँ जा रहे हो?) पूछा तो कर्नल साहब ने और सुनीलजी ने कोई जवाब नहीं दिया। जब किसी ने कुछ नहीं बोला तो सुनीता ने टी टी साहब को कहा, “हम जम्मू जा रहे हैं।”
टी टी साहब फ़ौरन सुनीता की और मुड़े और बोले, “हां हाँ वह तो मुझे आप के टिकट से ही पता चल गया। पर आप जम्मू से आगे कहाँ जा रहे हैं?”
जब फिर सुनीलजी और कर्नल साहब से जवाब नहीं मिला तब टी टी ने सुनीता की और जिज्ञासा भरी नजरों से देखा। फिर क्या था? सुनीता ने उनको सारा प्रोग्राम जो उसको पता था सब टी टी साहब को बता दिया।
सुनीता ने टी टी को बताया की वह सब आर्मी के ट्रेनिंग कैंप में जम्मू से काफी दूर एक ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे। सुनीता को जब टी टी ने उस जगह का नाम और वह जगह जम्मू से कितनी दुरी पर थी पूछा तो सुनीता कुछ बता नहीं पायी।
सुनीता को उस जगह के बारे में ज्यादा पता नहीं था। चूँकि कर्नल साहब और सुनीलजी बात करने के मूड में नहीं थे इस लिए टी टी साहब थोड़े मायूस से लग रहे थे। उस समय ज्योतिजी नींद में थीं।
सुनील, सुनीता, कर्नल जसवंत सिंह और ज्योतिजी का टिकट चेक करने के बाद टी टी साहब दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए। उन्होंने उस समय और किसी का टिकट चेक नहीं किया।
टी टी के चले जाने के बाद सब ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया। साइड की निचे की बर्थ पर स्थित युवा अफसर कप्तान कुमार थे। वह भी ज्योतिजी, जस्सूजी, सुनील और सुनीता की तरह ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे।
देखते ही देखते दोनों युवा: कप्तान कुमार और नीतू खन्ना करीब करीब एक ही उम्र के होने के कारण बातचीत में मशगूल हो गए। नीतू वाकई में निहायत ही खूबसूरत और कटीली लड़की थी। उसके अंग अंग में मादकता नजर आ रही थी।
कप्तान कुमार को मिलते ही जैसे नीतू को और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था। कुमार का कसरत से कसा हुआ बदन, मांसल बाज़ूओं के स्नायु और पतला गठीला पेट और कमर और काफी लंबा कद देखते ही नीतू की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी।
कुमार का दिल भी नीतू का गठीला बदन और उसकी मादक आँखें देखते ही छलनी हो गया था। नीतू के अंग अंग में काम दिख रहा था। नीतू की मादक हँसी, उसकी बात करते समय की अदाएं, उसके रसीले होँठ, उसके घने काले बाल, उसकी नशीली सुआकार काया कप्तान को भा गयी थी।
कप्तान कुमार की नजर नीतू के कुर्ते में से कूद कर बाहर आने के लिए बेताब नीतू के बूब्स पर बार बार जाती रहती थी।
नीतू अपनी चुन्नी बार बार अपनी छाती पर डाल कर उन्हें छुपा ने की नाकाम कोशिश करती पर हवाका झोंका लगते ही वह खिसक जाती और उसके उरोज कपड़ों के पीछे भी अपनी उद्दंडता दिखाते।
नीतू का सलवार कुछ ऐसा था की उसके गले के निचे का उसके स्तनोँ का उभार छुपाये नहीं छुपता था। नीतू की गाँड़ भी निहायत ही सेक्सी और बरबस ही छू ने का मन करे ऐसी करारी दिखती थी। बेचारा कुमार उसके बिलकुल सामने बैठी हुई इस रति को कैसे नजर अंदाज करे?
सुनीता ने देखा की कुमार और नीतू पहली मुलाक़ात में ही एक दूसरे के दीवाने हों ऐसे लग रहे थे। दोनों की बातें थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं। सुनीता अपने मन ही मन में मुस्काई। यह निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है।
जब दो युवा एकदूसरे को पसंद करते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक सकती। सुनीता को लगा की कहीं यह पागलपन नीतू की शादीशुदा जिंदगी को मुश्किल में ना डाल दे।
कर्नल साहब और सुनील भी उन दो युवाओँ की हरकत देख कर मूंछों में ही मुस्कुरा रहे थे। उनको भी शायद अपनी जवानी याद आ गयी।
सुनील ज्योतिजी की बर्थ पर बैठे हुए थे। ज्योतिजी खिड़की के पास नींद में थीं। जस्सूजी भी सामने की खिड़की वाली सीट पर थे जबकि सुनीता बर्थ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी।
कम्पार्टमेंट का ए.सी. काफी तेज चल रहा था। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट एकदम ठंडा हो गया था। सुनीता ने चद्दर निकाली अपने बदन पर डाल दी। चद्दर का दूसरा छोर सुनीता ने जस्सूजी को दिया जो उन्होंने भी अपने कंधे पर डाल दी।
थोड़ी ही देर में जस्सूजी की आँखें गहरा ने लगीं, तो वह पॉंव लम्बे कर लेट गए। चद्दर के निचे जस्सूजी के पॉंव सुनीता की जाँघों को छू रहे थे।
कप्तान कुमार और नीतू एक दूसरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज में बात कर रहे थे। बिच बिच में वह एक दूसरे का हाथ भी पकड़ रहे थे यह सुनीता ने देखा।
उन दोनों की बातों को छोड़ कम्पार्टमेंट में करीब करीब सन्नाटा सा था। ट्रैन छूटे हुए करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और टिकट निरीक्षक पुरे कम्पार्टमेंट का टिकट चेक करते हुए सुनीता, सुनील, जस्सूजी और ज्योति जी के सामने खड़े हुए और टिकट माँगा।
उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, “टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?”
टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, “अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे ए.सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में ए.सी. के छे डिब्बे हैं।
इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?”
सुनीलजी ने कहा, “नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।”
टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, ” चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये आ जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।” यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने।
सुनील ने जस्सूजी की और देखा। जस्सूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। सुनीता चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
सुनीता ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा नीतू लड़की को “हाय” किया । उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजू में बिठाया और बातचित शुरू हुई। सुनीता ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर नीतू को दिए। नीतू ने एक संतरा लिया और सुनीता और नीतू बातों में लग गए।
सुनीता की आदत अनुसार सुनीता और नीतू की बहुत ही जल्दी अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। सुनीता को पता लगा की उसका नाम मिसिस नीतू खन्ना था।
सब नीतू के बारे में सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे हुआ की इतनी कम उम्र की युवा लड़की नीतू की शादी ब्रिगेडियर खन्ना के साथ हुई। सुनीता ने धीरे धीरे नीतू के साथ इतनी करीबी बना ली की नीतू पट पट सुनीता को अपनी सारी राम कहानी कहने लगी।
नीतू के पिताजी ब्रिगेडियर खन्ना के ऑर्डरली थे। उनको ब्रिगेडियर साहब ने बच्चों की पढाई और घर बनाने के लिए अच्छा खासा कर्ज दिया था जो वह चुका नहीं पा रहे थे।
नीतू भी ब्रिगेडियर साहब के घर में घर का काम करती थी। ब्रिगेडियर साहब की बीबी के देहांत के बाद जब वह लड़की ब्रिगेडियर साहब के घर में काम करने आती थी तब ब्रिगेडियर साहब ने उसे धीरे धीरे उसे अपनी शैया भगिनी बना लिया।
जब नीतू के पिताजी का भी देहांत हो गया तो वह लड़की के भाइयों ने घर का कब्जा कर लिया और बहन को छोड़ दिया। नीतू अकेली हो गयी और ब्रिगेडियर साहब के साथ उनकी पत्नी की तरह ही रहने लगी। उन के शारीरिक सम्बन्ध तो थे ही। आखिर में उन दोनों ने लोक लाज के मारे शादी करली।
सुनीता को दोनों के बिच की उम्र के अंतर का उनकी शादीशुदा यौन जिंदगी पर क्या असर हुआ यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी।
जब सुनीता ने इस बारे में पूछा तो नीतू ने साफ़ कह दिया की पिछले कुछ सालों से ब्रिगेडियर साहब नीतू को जातीय सुख नहीं दे पाते थे। नीतू ने ब्रिगेडियर साहब से इसके बारे में कोई शिकायत नहीं की।
पर जब ब्रिगेडियर साहब उनकी उम्र के चलते जब नितु को सम्भोग सुख देने में असफल रहे तो उन्होंने नीतू के शिकायत ना करने पर भी बातों बातों में यह संकेत दिया था की अगर नीतू किसी और मर्द उसे शारीरिक सुख देने में शक्षम हो और वह उसे सम्भोग करना चाहे तो ब्रिगेडियर साहब उसे रोकेंगे नहीं।
उनकी शर्त यह थी की नीतू को यह सब चोरी छुपी और बाहर के लोगों को ना पता लगे ऐसे करना होगा। नीतू अगर उनको बता देगी या इशारा कर देगी तो वह समझ जाएंगे।
नीतू ने सुनीता को यह बताया की ब्रिगडियर साहब उसका बड़ा ध्यान रखते थे और उसे बेटी या पत्नी से भी कहीं ज्यादा प्यार करते थे। वह हमेशा नीतू को उसकी शारीरक जरूरियात के बारे में चिंतित रहते थे।
उन्होंने कई बार नीतू को प्रोत्साहित किया था की नीतू कोई मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखना चाहे तो रख सकती थी। पर नीतू ने कभी भी इस छूट का फायदा नहीं लेना चाहा।
नीतू ने सुनीता को बताया की वह ब्रिगेडियर साहब से बहुत खुश थी। वह नीतू को मन चाहि चीज़ें मुहैय्या कराते थे। नीतू को ब्रिगेडियर साहब से कोई शिकायत नहीं थी।
सुनीता ने भी अपनी सारी कौटुम्बिक कहानी नीतू को बतायी और देखते ही देखते दोनों पक्के दोस्त बन गए। बात खत्म होने के बाद नीतू वापस अपनी सीट पर चली गयी जहां कप्तान कुमार उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
सुनीता की ऑंखें भी भारी हो रहीं थीं। जस्सूजी की लम्बी टाँगें उसकी जाँघों को कुरेद रहीं थीं। सुनीता ने अपने पॉंव सामने की सीट तक लम्बे किये और आँखें बंद कर तन्द्रा में चली गयी।
पढ़ते रहिये, क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी..!
[email protected]

शेयर
tamil kaamaveribehan chodafirst night kamakathaikaldesi first fuckmaa ki chudai 2016vidhwa maa ki chudai ki kahaniindiansex storeschudai ka tarikasexy desi girlsgangbang partymalayalam pron storiesnew mallu sex storieshindi sex stories in english fontdesi gay sex.comwww tamil sex kathikal comtelugu sex stories momlatest desi porngirls kamakathaikalphone sex chat indiaraped sex stories in hindisex in hotel storyamma sex stories in telugubeta chudaimaa ki dost ko chodaaparna ki chudaihindi sex indiaananya sexbhai behan ki chudai hindi kahanishalini sexhot tamil sexrandi ke sath chudaianterwasna sex kahanisex stories between teacher and studentrecent chudai storiesindian gay sex.comindian desi sex netpayal sexgay sex stories malayalamoffice sex storiessex story mom sonfamily sex picdesi chut tumblrindian girl sexbhabi desisexcy story in hindihindi gand chudai storyhindi sex story.comdeai sexaunty badi gandshadi ki pehli suhagraatdesi sex.netkambi malayalam kadhakalsexy kahani punjabimaa aur behan ki chudaihot desi.comhot new sex storieskamuta hindithukaiintimate stories in hindilatest porn desiindian sex stories tamilincest kathalumausi ki bradaily updated sex storiesbadi sexdesi hindi sexylund mai chutbahan bhai sex storynavel sex storieslesbi sexiss stories desichudai kaise karna chahiyemere samne wali khidki memaa beti ki sexaisi hai tanhai storyxxx hindi kahania