Kaamagni.. Ye Aag Kab Bujhegi – Part IV
पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा की हम सब स्टूडेंट्स और जयनामेम युवा खेल महोत्सव में दिल्ही जाने एक वॉल्वो ए.सी. बस से रवाना हुए। मुझे जयनामेम के पैर में मोच थी तो उसे सहारा देने उसने मुझे अपने पास बिठाया और ए।सी की ठण्ड से बचने मुझे अपनी शाल ओढाकर मुजपे ढलकर मेरे कंधे पे अपना सर रख सो गयी और मेंरे अन्दर उसके गोरे चिकने बदन की गर्मी से कामवासना की आग दहकने लगे थी।
अब आगे..
अब रात हो चुकी थी और अँधेरा और भी गहरा रहा था। बस अपनी गति से जा रही थी। लगता था सब सो चुके हे, बस के अन्दर हलकी रौशनी में मैंने अपनी नज़र दौड़ाई तो नीरव शांति हो गयी थी। अचानक जयनामेम कराही…
जयना: (मेरे कान पे अपने मुह लाके दबी आवाज़ में) सी सी सी सीस आह्ह साहिल मेरा पैर दर्द कर रहा हे।
मैं: (थोडा चोककर) अ अ कहा?
जयना: साहिल मेरा पैर दर्द कर रहा हे मुझे उसपे दवाई लगानी हे।
उसने अपने पर्स से एक ट्यूब निकली और शाल हटाकर अपनी साडी घुटनों तक ऊपरकर अपनी गोरी चिकनी टांग पर दवाई रगड़ ने लगी। उसके मुह से वो दर्दभरी आवाज़े निकाल रही थी।
जयना: ओह्ह्ह म..आ.. (वो सिट पे थोड़ी मुड़ी और अपनी पीठ खिड़की की और टिकाकर अपने पैरो को सिट के ऊपर लेके मेरे सामने बैठी और अपने पैर पे दवाई मल रही थी) अह्ह्ह..माँ
उसने दवाई लगाते हुए अपने पैरो को चोडा किया हुआ था तो बसकी हलकी रौशनी में उसकी बड़ीबड़ी मस्त लचकती चिकनी गोरी जंघाए चमक रही थी। वो थोड़ी ढकी और थोड़ी नंगी दिख रही थी।
मैं: (सहानुभूति दिखाते हुए) मेम में कुछ कर सकता हु?
जयना: हा यार जरा ये दवाई अच्छे से पैरो पे लगा दे।
उसने अपनी साडी थोड़ी और ऊपर सरकाई। उफ्फ्फ क्या नज़ारा मेरे दोस्तों! मेरे दिल, दिमाग और तनबदन में आग लगा रहा था, उसे देख मेरी नइ नवेली जवानी अंगड़ाई लेते हुए जागने लगी। मेरे अन्दर का बच्चा मर्द होने लगा और में बड़ा बेताब होने लागा.. क्या करू? मैंने कंपते हाथो में ट्यूब लेकर उसके घुटनों के निचे पैरो के पिछले हिस्सेवाले मुलायम मसल्स को दवाई हलके से मलनी शरू की।
उसे बहोत ही अच्छा लग रहा था, वो आंखे बन्धकर अपनी टाँगे फेलाकर शुकून से बैठ गयी और मेरा मरदाना हाथो की महसूस करने लड़ी। ओह्ह यारो टाँगे बहोत मुलायम, गोरी और चिकनी थी। दवाई मलते हुए मेरे लंड के सुपाडे में जटके आ रहे थे। मेंरे अन्दर वासना की आग लगने लगी थी।
जयना (दबी आवाज़ में) आह्ह साहिल बस वही…बस ऐसे हां बस ऐसे.. थोडा और ऊपर लगा
(उसने अपनी टांगे फैलाई तो साडी थोड़ी और खुल गयी और मुझे अन्दर से उसकी वाइट पेंटी दिखाई देने लगी)। में एकदम हलके हाथो से उसके पैर को सहलाते हुए प्यार से दवाई का मर्दन कर रह था। वो आंखे बांध किये हुए उसे महसूस कर रही थी। अचानक वो बोली..
जयना: अरे साहिल इतनी अच्छी मसाज़ तू केसे शिखा?
मैं: मेम में हाईस्कूल से अपने बदन पे एक खास किस्म का मेरे दादाजी का शिखाया हुआ तेल बनाकर रोज मसाज करता हु। ये तो मेरी आदत हे। मेरे स्वस्थ शरीर का यही तो राज हे।
जयना: वा…व… क्या तुम शरीर मसाज करना जानते हो?
मैं: हा मेम बहोत अच्छी तरह। आपकी मोच तो अब अच्छी हो ही गयी ये आप समज लो।
जयना: थैंक्स साहिल… तुम कितने अच्छे और भोले हो!!!! अचानक उसने मेरे चहेरे को अपने दोनों कोमल हाथो से प्यार से पकड़ अपनी मुझे अपनी और खीच मेरे गाल पर अपने कांपते हुए गर्म मुलायम गुलाबी गिले होठो से कस के चुम्बन कर लिया.. पुच..
एक मादक आवाज़ गूंज उठी…मेरे गाल उसके थूक से गिले हो गए।
उसकी ऐसी अचानक हरकत से में थोडा बावला हो गया। उसके पैर से मेरा हाथ उसने मुझे जब खीचा तो घुटनों से उसकी साडी के अन्दर सरकते हुए उसकी मखमली लचकती मस्त बड़ी चिकनी जांघ पर फिसल गया और उसके निक्कर तक मेरी उंगलिया टच हो गयी। अभीतक मेरी ऊँगलीया उसके निक्कर को सटे हुए थी और वहा उसकी चूत की जबरदस्त गर्मी मेरी उंगलिया माँनो जला रही थी।
मैं अपना आपा खो रहा था और बड़े ताजुब से अपनी नशीली आँखों से उसे देख रहा था। वो भी मुझे बड़े प्यार से देख रही थी। उसकी आंखे बड़ी विवश थी, उसमे एक तड़प थी, एक प्यास थी, एक आग का सोला पर मेरे लिए एक मीठी प्यारी भावनाये भी थी। वो मानो अपनी आँखों से मेरा सुक्रिया अदा कर रही थी।
जयना: साहिल तू जितना सुन्दर और अच्छा हे उतना ही भोला भी। तू मुझे बहोत अच्छा लगा। अब मसाज क्यों बन्ध कर दिया.. करोना…
में ज़ुन्ज़ुलाकर कर अपना हाथ वहा से खीचकर फिर से मसाज करने लगा। मेरा बदन गर्म हो गया था और मेरे हाथो में गर्माहट पा कर जयना बोली..
जयना: साहिल में एक खास बात पुछू?
मैं: (शरमाते हुए नज़र निचे कर) जी मेम पूछिये..
जयना: मुझे एक खास बात पूछनी हे और मुझे सचसच बताना में तुमपर कितना भरोषा कर सकती हु? प्लीज आज कोई जूठ मत बोलना..
मैं: (थोडा जिज्ञाशावश उसकी और देखते हुए) मेम अपने आप से ज्यादा। मेम हमलोग वादे के बहोत पक्के हे। चाहे जान चली जाये, हम वादा नहीं तोड़ते.. आप बेजीजक मुझे कुछ भी कह सकती हो।
जयना: देख किसीसे कहेगा तो नहीं???? अपने दोस्तों को भी नहीं समजा…
मे: मेम मेरे दिल में ऐसे कही राज हे, मैंने उस गहराई तक अभीतक किसीको जगा नहीं दी हे।
जयना: में आपलोगो को बहोत स्ट्रिक्ट, डरावनी टीचर लगती हु पर असल में अपनी जिंदगी से बहोत परेशान हु और इस लिए में हमेशा गुस्से में रहती हु पता हे क्यों? मेरे पति गे हे। उसे औरतो से ज्यादा मर्दों में दिलचस्पी हे ये बात मुझे अपनी बेटी के पैदा होने के बाद पता चली। शादी के २ साल तक उसने मुजपे यह बात ज़ाहिर नहीं होने दी। मेरी जिंदगी अब नरक हो चुकी हे।
मैं: (अचंबित होकर) ओह्ह्ह नो…मेम फिर आपका शादी शुदा जीवन?
जयना: मेरी जिंदगी में अब कोई रोमांस नहीं। में बिलकुल अकेली हु और मेरी लाइफ से में काफी बोर हो चुकी हु। जब किसी को हँसतेखेलते देखती हु तो बोखला जाती हु और ना चाहते हुए भी मुझे गुस्सा आ जाता हे और..बस्स…ह्ह्ह्ह अ..ब… ऐ…सी घ…र की बा..ते ह्ह्ह्हह्ह कि..से… क..हू (उसकी आवाज़ कांप उठी, उसका गला भर गया और आंखे नम हो गयी।)
मैंने उसकी आंखे पोछते हुए… कहा…
मैं: ओह्ह्ह नो मेम आप रो रही हो.. प्लीज मत रोओ मेम मुझसे किसीके आसु देखे नहीं जाते। मत रो ओ…(मेरा गला भी भर गया) मुझे कुछ ना सुजा तो मैंने उसे अचानक ही अपनी बाहों में भर लिया। उसने भी अपनी बाहे फेलाकर मुझे अपने कलेजे पे जुलते स्तनों से कस लिया और अपने गुलाबी गिले होठ मेरे होठ पे चिपकाये उसका रसपान करने लगी। अब बस दिल में जोरो की धडकन, दिमाग में भयानक आग, बदन में शोले और बस हमदोनो एक दुसरे में पिघलकर समाने लगे…
रात मथ्थम मथ्थम बीते जा रही थी, बस में ठंडी लहर, एक खुशबू… और बस अपनी मंजिल की और अपनी रफ़्तार में दौड़े जा रही.. लग रहा था बस जिंदगी अब थम सी गयी हे। ये रात की कभी सुबह ना हो..
पढ़ते रहिये क्योकि.. कहानी अभी जारी रहेगी।
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