Adla Badli, Sanyog Ya Saajish – Episode 13


दोपहर से मैं अपने पति और पायल के बीच बने संबंधो को छुपाने की कोशिश कर रही थी, पर अब इतना कुछ हो गया था तो मैं अब ओर उनको नहीं बचा सकती थी.
मैंने डीपू के मन में भी शक के बीज बो दिए कि पायल और अशोक के बीच शर्तो के खिलाफ जरूर कुछ हुआ हैं. अब आगे इस देसी सेक्स हिन्दी स्टोरी में क्या हुआ जानिए..
डीपू: “सही हैं, इन धोखेबाजो को मैं सबक सिखाऊंगा. मैं तुम्हे अभी चोदूंगा और अपना लंड तुम्हारे अंदर ही रख कर हम सो जायेंगे. सुबह जब ये उठ कर देखेंगे तो इनको पता चलेगा धोखा देना क्या होता हैं.”
मैं: “पागल हो क्या? करना हैं तो कर लो पर इनको नहीं पता चलना चाहिए कि हमने पूरा किया हैं. मेरे पति को मेरे पर भरोसा हैं, वो टूटना नहीं चाहिए.”
डीपू अपना लंड रगड़ कर कड़क करने लगा, उसको मुझे चोदने का मौका एक बार फिर मिल गया था. वैसे भी वो कल शाम को बहुत तड़पा था जब मेरे पति के सामने ही मसाज कर रहा था और आगे कुछ कर नहीं पाया था.
मैं: “कम से कम अब तो कंडोम पहन लो. दो बार बिना प्रोटेक्शन कर चुके हो.”
डीपू : “नहीं हैं, मैं दो रात के हिसाब से दो ही लाया था. एक सुबह घूमने जाने से पहले पायल पर इस्तेमाल कर लिया पर दूसरा मिला नहीं.”
मैं: “दूसरा कहाँ गया?”
डीपू : “नहीं मिला, पायल ने बोला इधर उधर कही बेग में छुप गया होगा, पर मुझे नहीं मिला.”
मैं सोचने लगी, उस रात जब अशोक इतनी देर से वापिस रूम में आये थे, तब हो न हो वो पायल के साथ ही थे, एक कंडोम तब यूज हुआ होगा. शायद पायल को अभी तक पता नहीं हैं कि मेरे पति किसी को माँ नहीं बना सकते.
मैं: “तो फिर पीछे वाले छेद में कर लो.”
डीपू: “आगे लेने में तुम्हारी हालत ख़राब हो जाती हैं, पीछे वाले छेद में ये लंबा वाला लंड सहन कर पाओगी तुम?”
मैं: “नहीं, आगे ही ठीक हैं. पीछे वाले में तो मेरी चीखें ही नहीं रुकेगी.”
डीपू: “चलो मेरा कड़क होकर तैयार हैं. दो बार बिना प्रोटेक्शन किया हैं तो एक बार ओर सही. वैसे भी दोपहर में मैं तुम्हे इमरजेंसी पिल लाकर दे दूंगा.”
मैं: “पक्का दे देना. और धीरे धीरे करना, तुम्हारा बहुत लंबा हैं, मेरी चीख निकली तो भांडा फुट जायेगा.”
डीपू: “दिन में जंगल में किया था तब तो इतनी चीख नहीं निकली थी.”
मैं: “तब तो वो दोनों मेरे सामने उधर नीचे खड़े थे न. बड़ी मुश्किल से रोका था खुद को.”
डीपू “तो अभी ये दोनों तुम्हारे सामने ही तो हैं. फिर से कण्ट्रोल कर लेना, पर मैं तो जैसे करता हूँ वैसे ही करूँगा.”
अब उसने अपना कड़क लंबा लंड पकड़ कर मेरी चूत के मुहाने पर रख दिया, और अपने हाथ से मेरे कूल्हे की हड्डी पकड़ते हुए मेरे कूल्हों के अपनी तरफ खिंचा और खुद को आगे की तरफ धक्का लगाते हुए अपना लंड मेरी चूत में पूरा पेल दिया. मेरी तो चीख निकलते निकलते बची.
वो अब गचागच झटके मारता हुआ मेरी चूत को चोद रहा था, और मैं बड़ी मुश्किल से अपने दोनों होंठों को भींचते हुए अपने कराहने की आवाज अंदर ही अंदर दबा रही थी.
मैं अपनी आँखें खुली रखने का प्रयास कर रही थी. ताकि देख पाऊ सामने लेटे दोनों लोग कही उठ ना जाये पर अपनी सिसकियों की आवाज को दबाने के चक्कर में मेरी आँखें बंद ज्यादा रही.
डीपू के लंड में सचमुच एक जादू सा था, या फिर मेरी चूत इसी तरह के लंड के लिए बनी थी. थोड़ी ही देर में हम दोनों का पानी बनने लगा था. और फच्च फच्च की आवाजे आने लगी.
मैं: “रुको, आवाज आ रही हैं. अब धीरे धीरे करो. थोड़ी देर में पानी छुट जाएगा फिर जोर से कर लेना.”
डीपू अब धीमे धीमे धक्के मारते हुए अंदर बाहर करने लगा. अब चिकने पानी पर लंड के रपटने की हलकी सी चिप चिप की आवाज आ रही थी.
धीरे धीरे जैसे ही वो आवाज बंद हुई तो डीपू ने फिर से जोर से झटके मारना शुरू कर दिया. वो अपने झटके इस तरह से एडजस्ट कर रहा था जहा से कम से कम आवाज आये.
जैसे भी झटके हो मेरी तो हालत ख़राब हो रही थी. मजा बहुत आ रहा था पर आवाज निकाल ही नहीं पा रही थी.
थोड़ी देर ऐसे ही चोदते चोदते हम दोनों एक के बाद एक झड़ गए. डीपू का लंड अभी भी मेरी चूत में ही था.
मैं: “चलो अब बाहर निकालो.”
डीपू: “अरे रहने दो ना, थोड़ी देर में नरम पड़ कर अपने आप बाहर आ जायेगा.”
मैं: “तुम मरवाओगे मुझे.”
डीपू मुझसे चिपक के लेटा रहा और मेरे मम्मो को हौले हौले सहलाता रहा और कच्ची नींद में उठने से मैं एक बार फिर नींद की आग़ोश में चली गयी.
सुबह मेरी आँख खुली. पायल और अशोक वहां नहीं थे. सामने घडी में देखा आठ बज चुके थे. तभी सामने बाथरूम से पायल और अशोक कपड़े पहने हुए बाहर आये, वो कुछ बातें कर रहे थे. मैंने अपनी आँखें बंद कर ली.
डीपू मेरे पीछे से चिपक के सोया हुआ था. उसका लंड मेरी दोनों जांघो के बीच फंसा था, चूत के एकदम पास.
मैं सोच में पड़ गयी, अशोक ने पता नहीं क्या देखा होगा. जब अशोक उठा होगा तब तक क्या डीपू का लंड मेरी चूत में ही होगा.
अशोक और पायल अब बिस्तर के नजदीक आते जा रहे थे और उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगी. मैं बिना हिले ढूले उनको बातें सुननी लगी.
पायल: “तुम मानो या न मानो, इन दोनों ने पक्का कोई गुल खिलाया हैं. देखो प्रतिमा की चूत के एकदम बाहर डीपू का लंड हैं.”
अशोक: “तुम प्रतिमा को नहीं जानती, बहुत पतिव्रता हैं. कल भी चेलेंज के टाइम वो कितना घबरा रही थी. उसने कुछ नहीं किया होगा.”
पायल: “तो फिर उसने डीपू को उसका लंड अपनी चूत के इतना करीब कैसे आने दिया, लगभग छू रहे हैं.”
अशोक: “दोनों अंग इतने पास में हैं इसका मतलब ये थोड़े ही न हैं कि अंदर भी डाला ही होगा. अगर डीपू ने प्रतिमा को सोते हुए कुछ किया होता तो प्रतिमा जग जाती और उसको रोक देती.”
पायल: “तुम्हे डीपू के लंड पर सूखा हुआ सफ़ेद पानी नहीं दिख रहा क्या?”
अशोक: “डीपू का थोड़ा बहुत पानी निकल गया होगा, प्रतिमा सो गयी थी, उसको थोड़े ही पता होगा.”
पायल: “चलो अभी इनको उठा कर पूछते हैं.”
पायल और अशोक अब हम दोनों को उठाने लगे. मैंने नींद में होने का नाटक किया, पर डीपू जग गया और उन दोनो को देख हड़बड़ी में मुझसे अलग हुआ.
फिर मैंने भी अपनी आँखों पर हाथ मलते हुए अपनी आँखें खोली. उनको देखते ही मैंने भी जल्दी से वहा पड़े अपने कपड़े उठाये और पहनने लगी. डीपू ने तब तक अपना पाजामा पहन लिया था.
पायल: “अब कपड़े पहनने का क्या फायदा, सब कुछ तो कर लिया तुमने.”
मैं: “क्या बकवास कर रही हो? तुम लोग रात को मस्ती कर रहे थे और मेरी आँख लग गयी, उसके बाद तो मैं अब उठी हूँ. मेरे नीचे के कपड़े किसने खोले?”
अशोक: “चिंता मत करो, हमारे सामने कल रात को डीपू ने ही खोले थे.”
डीपू: “प्रतिमा के बाद मुझे भी नींद आ गया थी. तुम लोगो का क्या हुआ फिर?”
पायल: “क्या होना था, तुम दोनों तो सो गए, फिर अशोक ने मुझे उकसाना जारी रखा और फिर मैंने हार मान ली.”
डीपू: “हार गयी ! मतलब?”
पायल: “ज्यादा शक मत करो, मैंने अशोक को बोल दिया कि अब परेशान करना बंद करो मैं हार मान लेती हूँ.”
डीपू: “मैं शक थोड़े ही कर रहा हूँ. मैं तो ये कह रहा था कि ये राउंड तो तुम्हारे लिए ज्यादा आसान था.”
पायल: “तुमने तो मेरी मदद नहीं की ना. तुम प्रतिमा को हराने की कोशिश कर सकते थे, पर सो गए.”
डीपू: “अब नींद आ गयी तो क्या कर सकते हैं.”
पायल: “मेरे साथ तो गलत हुआ न? प्रतिमा सोने की वजह से बच गयी. ये अनफेयर हैं. देखा जाये तो प्रतिमा ने चेलेंज पूरा किया ही नहीं.”
अशोक: “अरे अब छोडो, नहा धो कर नाश्ता कर लेते हैं. हम चेकआउट करके सामान होटल के लॉकर में रख देते हैं, फिर घूमने निकलते हैं. शाम को हमें घर के लिए निकलना भी हैं.”
मैं: “चलो चलते हैं, हमारा रूम कल रात से सूना पड़ा हैं. एक रात के पैसे बर्बाद हो गए.”
पायल: “चेकआउट तो बारह बजे तक कर सकते हैं. तब तक यही रुकते हैं. वैसे भी आज ज्यादा जगह नहीं हैं घूमने को, तीन चार घंटे में कवर कर लेंगे.”
डीपू: “चेकआउट का बाद में देखते हैं, पहले नहा धो कर नाश्ता कर लो, कैंटीन बंद हो जाएगी.”
अशोक: “आज नाश्ता फ़ोन करके अपने अपने कमरे में ऊपर ही मंगा लेते हैं, क्यों कि नहा के जाएंगे तब तक देर हो जाएगी.”
डीपू: “ठीक हैं नाश्ते के बाद हम तुम्हारे रूम में आते हैं, फिर आगे का प्लान करते हैं.”
मैं और अशोक अब हमारे रूम में आ गए. अशोक मेरे बारे में पूछने लगा.
अशोक: “डीपू ने मेरे सोने के बाद तुम्हे परेशान तो नहीं किया ना?”
मैं: “मैं तो सो गयी थी, पता नहीं. क्यों क्या हुआ तुम्हे कुछ गड़बड़ लगा?”
अशोक: “नहीं, मेरा मतलब. अगर कोई नींद में.. कुछ करने की कोशिश..”
मैं: “हम औरतो को सब पता चलता हैं, बेहोशी में भी कोई करे तो उठने के बाद पता चल जाता हैं. तुम मुझ पर शक तो नहीं कर रहे?”
अशोक: “तुम पर नहीं, डीपू पर, जिस तरह कल उसने मजाक मजाक में तुम्हारे शर्ट में हाथ डाल दिया था.”
मैं: “ये सारा चेलेंज वाला खेल भी तो तुम्ही लोगो ने शुरू किया था. मुझ बेचारी को तो ऐसे ही फंसा दिया. पता नहीं क्या क्या काम करवाया मुझसे बेशर्मो वाला.”
अशोक: “आई एम सॉरी, वो दोस्ती यारी में चेलेंज चेलेंज करते ज्यादा ही हो गया. चलो तुम पहले नहा धो लो. मैं तब तक नाश्ते के लिए फ़ोन कर देता हूँ.”
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मैं अब नहाने को चली गयी. वापिस आयी तब तक अशोक ने नाश्ता कर लिया था. वो नहाने गया तब तक मैंने भी नाश्ता कर लिया.
फिर मैं और अशोक अभी भी बाथरोब पहने हुए थे कि पायल और डीपू भी आ गए. वो लोग भी हमारी तरह अभी तैयार नहीं हुए थे और बाथरोब में ही थे.
मैं: “हम तो अभी तैयार भी नहीं हुए, तुम बड़ा जल्दी आ गए. और तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हुए, बाहर नहीं जाना क्या?”
पायल: “मुझे न्याय चाहिए. ये डीपू मुझ पर शक कर रहा हैं कि इसके सोने के बाद मैंने कुछ किया हैं अशोक के साथ मिलकर.”
अशोक: “डीपू ये क्या हैं? अपने दोस्त पर यकीन नहीं तुम्हे?”
पायल: “डीपू ही नहीं, ये अशोक भी सुबह डीपू और प्रतिमा को चिपक कर सोते हुए देख शक कर रहा था.”
अशोक: “झूठी, शक तुम कर रही थी, मैं नहीं.”
मैं: “अच्छा ! यहाँ रूम में आने के बाद भी तुम मुझे पूछते हुए शक कर रहे थे, उसका क्या?”
अशोक: “अरे यार तुम दोनों बीवियां तो मेरे पीछे ही पड़ गयी. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था.”
डीपू: “थोड़ा बहुत पूछ लिया तो क्या हो गया. क्लियर ही तो कर रहे थे.”
पायल: “इसे पूछना नहीं, शक करना कहते हैं. हम बीवियों ने तो तुम पतियों पर शक नहीं किया फिर. तुम ही क्यों करते हो?”
मैं: “वो तो ठीक हैं कि कल रात वाला तीसरा चेलेंज बीच में ही छूट गया, वरना ये दोनों पति तो शक के मारे पता नहीं क्या करते हमारा.”
अशोक: “ना तो हम शक करते हैं और ना ही किसी चेलेंज से डरते हैं.”
डीपू : “चाहिए तो वापिस करा लो चेलेंज.”
पायल: “चेलेंज तो होकर ही रहेगा. मैं प्रूव कर दूंगी कि ये दोनों पति शक्की हैं.”
मैं: “नहीं बाबा, मुझे नहीं करना. मैं अब ओर कपड़े नहीं उतारने वाली फिर से.”
पायल: “चिंता मर कर कपड़े के अंदर कोई नहीं देखेगा.”
अशोक: “तो फिर बाहर घूमने का क्या? हम तो घूमने आये थे.”
पायल: “मुझे सिर्फ एक घंटा दो, तुम दोनों मर्दो की पोल खोल दूंगी.”
डीपू: “आ जाओ, जो करना हैं करो. हम शक नहीं करेंगे.”
पायल: “चल प्रतिमा, बेड पर चल.”
मैं: “पर मैं अब कपड़े नहीं खोलूंगी.”
पायल: “अरे हां, नहीं खोलने, चल.”
मैं और पायल कल रात की तरह बेड के बीच एक दूसरे की तरफ मुंह कर करवट लेके लेट गए.
पायल: “तुम दोनों पति अपने बाथरोब की लैस खोल कर एक दूसरे की बीवियों के पीछे चिपक कर लेट जाओ.”
अपने बाथरोब की लैस खोल कर डीपू मेरे पीछे आकर लेट गया और अशोक पायल के पीछे.
पायल: “अब पहले किसका टेस्ट ले?”
मैं: “पहले तुम ही करके बताओ क्या करना चाहती हो.”
पायल: “ठीक हैं. मैं और अशोक मिल कर डीपू के मन में शक पैदा करने की कोशिश करेंगे. अगर डीपू को शक हुआ तो वो अपनी जगह से उठ कर हमारे पास में आ शक दूर करने की कोशिश करेगा. अगर वो वही लेटा रहा तो मतलब उसे शक नहीं हैं. सिंपल?”
सबने इसमें अपनी हामी भरी.
पायल: “अशोक अपना सामान तैयार करो.”
अशोक: “ऐसे कैसे करू, कुछ मूड नाम की चीज भी तो होती हैं.”
पायल: “ऐसे करो” ये कहते हुए पायल ने अपने बाथरोब की लैस खोल उसको पीछे से ऊपर कर अपनी गांड को बाहर निकाल दिया.
मुझे और डीपू को तो आगे से कुछ नहीं दिखा पर अशोक तो पायल के पीछे ही था, उसे दिखा. अशोक पायल की गांड को घूरते हुए अपना लंड को पकड़ आगे पीछे रगड़ते हुए कड़क करने लगा.
अगले दो तीन मिनट में ही अशोक अपने कड़क सामान के साथ तैयार था.
अशोक: “अब बोलो, तैयार हैं?”
पायल: “मेरे पीछे चिपक कर लेट जाओ और अपना सामान से मेरे पीछे झटके मारो, पर याद रखना मेरी उस जगह के वहा ना जाए.”
अशोक ने अब पायल के पिछवाड़े के उभारो पर जोर जोर से झटके मारना शुरू कर दिया. पायल की गुदगुदेदार गांड से अशोक के शरीर के टकराने से थाप थाप की आवाजे आने लगी.
आगे से देखने पर एकदम ऐसा भ्रम हो रहा था जैसे सचमुच अशोक पायल को चोद रहा हो.
पायल: “डीपू, जब भी तुम्हे शक हो तो आकर देख लेना, कही हम कुछ कर तो नहीं रहे.”
डीपू: “अब तो तुम असली में कर लो फिर भी नहीं आऊंगा.”
पायल ने जानबूझकर सिसकियाँ निकालनी शुरू कर दी जैसे सच में चूदा रही हो. पर डीपू समझ गया था ये उसको फंसाने का जाल था. पायल ने अब अपनी अगली तरकीब लगायी.
पायल: “अशोक, अपना सामान अब मेरे जांघो के बीच रखो. एक दम ऊपर की तरफ जहा दोनों टाँगे मिलती हैं.”
पायल ने अपनी ऊपर की टांग को थोड़ा उठा दिया और अशोक ने पायल की चूत के एकदम पास अपना लंड रख दिया. पायल ने अपनी टांग फिर बंद कर दी.
हमें आगे से सिर्फ पायल की दोनों जाँघे दिख रही थी. अशोक ने अब फिर झटके मारने शुरू कर दिए और पायल ने सिसकिया मारते हुए डीपू को जलाना.
थोड़ी देर ये चलता रहा पर डीपू पर कोई असर नहीं हुआ, हां उसका लंड जरूर कड़क हो, मेरे पिछवाड़े को छू, चुभ रहा था.
पायल: “ये आखिरी प्रयास हैं. प्रतिमा जरा चादर लाकर हम दोनों के कमर से लेकर नीचे टांगो तक ओढ़ा दे.”
मैं सोचने लगी अब ये क्या करने वाली हैं. मैंने वैसा ही किया और फिर अपनी जगह आकर लेट गयी.
उनके नीचे का हिस्सा पूरा ढक चूका था तो कुछ दिख ही नहीं रहा था. अशोक के झटको की वजह से सिर्फ चद्दर हिल रहा था.
थोड़ी देर बाद अशोक के हाथ की उंगलियों की आकृति पायल के कूल्हों पर चादर में से दिख रही थी. धीरे धीरे जरूर पायल की सिसकियाँ तेज होने लगी थी.
फिर थोड़ी देर में अशोक की जोर लगाने वाली हलकी सिसकिया भी सुनाई देने लगी. पायल असल में सिसकियाँ निकाल रही थी या नकली ये कह पाना बहुत मुश्किल हो गया था.
डीपू का लंड अब काफी कड़क हो चुका था और शायद उसने अपने बाथरोब के आगे के थोड़े खुले हिस्से से अपना लंड बाहर निकाल कर मेरे मोटे बाथरोब के बाहर से ही मेरी गांड में घुसाने की कोशिश कर रहा था.
कुछ मिनटों तक ऐसा ही खेल चलता रहा, पर डीपू ने हिम्मत दिखाते हुए अपने शक़ को बाहर नहीं आने दिया. थोड़ी देर बाद पायल जोर जोर से सिसकिया निकालते हुए चीखने लगी.
पायल: “आह्ह्ह्हह अह्ह्ह्हह्ह डीपू आओ चादर हटा कर देखो अह्ह्ह्हह अह्ह्ह्हह्ह जाओ. देखो मैं सच में चूदवा रही हूँ. ये देखो अशोक का लंड मेरे अंदर तक गया. बचाओ अपनी बीवी को उई माँ अह्ह्हह्ह्ह्ह अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह मर गयीईई.”
डीपू : “नाटक बाज कही की, मैं तुम्हारे झांसे में नहीं आने वाला.”
थोड़ी देर ऐसे ही आवाजे निकालने के बाद पायल हाँफते हुए चुप हो गयी. थोड़ी देर वो चादर में ही रहे और अपने बाथरोब ठीक करने लगे. फिर उन्होंने वो चादर निकाल दी और अपनी लैस फिर से बाँध दी.
डीपू: “हो गया मेरा टेस्ट या ओर भी करना हैं?”
पायल: “तुम्हारा हो गया अब अशोक का करना हैं. प्रतिमा मैंने किया वैसा ही तुम भी करो और देखो मजे.”
शायद पायल ने सच में अशोक के साथ चुदाई करवाई और डीपू ने उनको पकड़ने तक की जहमत नहीं उठाई. अब मेरा नंबर था, मुझे ये डर था कि कही डीपू सच में कुछ कर ना बैठे और अशोक मुझे रंगे हाथों ना पकड़ ले.
आगे क्या होगा अब यह तो इस देसी सेक्स हिन्दी स्टोरी के अगले एपिसोड में पता चलेगा, पढ़ते रहिये..

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