Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 25


नीतू ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, “कप्तान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।”
कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, “आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।”
जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी नीतू का हाथ इस तरह नहीं थामा था।
नीतू हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है।
नीतू को अक्सर सपने में वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था।
फिर नीतू ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं कुमार की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।
कुमार ने देखा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई विरोध नहीं किया और नीतू अपने ही विचारो में खोयी हुई कुमार के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी।
उसने नीतू को अपनी और खींचते हुए कहा, “क्या देख रही हो, नीतू? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?”
नीतू अपनी तंद्रा से जाग उठी और कुमार की और देखती हुई बोली, “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?”
कुमार: “देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?”
नीतू: “अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?”
कुमार: “तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?” ऐसा कह कर बिना नीतू की हाँ का इंतजार किये कुमार उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थ को निचा करना चाहा।
मज़बूरी में नीतू को भी उठना पड़ा। कुमार ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा किया।
नीतू ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो कुमार ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, “भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।”
नीतू और खिसक कर ठीक कुमार के करीब बैठी। उसने महसूस किया की उसकी जाँघें कुमार की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। कुमार ने धीरे से नीतू को अपने और करीब खींचा तो नीतू ने उसका विरोध करते हुए कहा, “क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?”
कुमार समझ गया की उसे नीतू ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। नीतू ने कुमार का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया, उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था।
यह इशारा कुमार के लिए काफी था। कुमार समझ गया की नीतू मन से कुमार के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।”
कुमार ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला कर बंद कर दिया जिससे उन तो बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था।
जब नीतू ने देखा की कुमार ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, “कुमार यह क्या कर रहे हो?”
कुमार: ” मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कहीं कोई देख ना ले। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?” नीतू क्या बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा।
नीतू को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिच में से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। नीतू अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था।
नीतू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था।
कुमार ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो कुमार ने नीतू को अपनी और करीब खींचा और नीतू के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर नीतू को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया।
जैसे ही कुमार ने नीतू को अपनी गोद में बिठाया की नीतू मचलने लगी। नीतू ने महसूस किया की कुमार का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था।
उसकी गाँड़ की दरार में वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की नीतू जान गयी की कुमार का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।
नीतू से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे कुमार को नीतू की हालत का पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी।
हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी नीतू एक मानिनी शादीशुदा औरत थी।
अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा कुमार को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना?
नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई।
उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, “बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।”.
नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।
नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा।
सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से कम्बल और चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।
नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के शीशे के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था।
सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।
फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, “इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।”
और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर कम्पार्टमेंट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ पहुंची जो हिस्सा ऐयर-कण्डीशण्ड नहीं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते हैं।
पीछे पीछे कुमार भी भाग कर पहुंचा और नीतू को लपक कर पकड़ना चाहा। नीतू दरवाजे की और भागी। दुर्भाग्य से दरवाजा खुला था। वहाँ फर्श पर कुछ दही या अचार जैसा फिसलन वाला पदार्थ बिखरा हुआ था। नीतू का पाँव फिसल गया। वह लड़खड़ायी और गिर पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से फिसल कर तेज चल रही ट्रैन के बाहर लटक गए।
कुमार ने फुर्ती से लपक कर ट्रैन के बाहर फिसलकर गिरती हुई नीतू के हाथ पकड़ लिए। नीतू के पाँव दरवाजे के बाहर निचे खुली हवा में पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से चिल्ला रही थी, “बचाओ बचाओ। कुमार प्लीज मुझे मत छोड़ना।”
कुमार कह रहे थे, “नहीं छोडूंगा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नहीं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।”
नीतू कुमार के हाथोँ के सहारे टिकी हुई थी। कुमार के पाँव भी उसी चिकनाहट पर थे। वह अपने को सम्हाल नहीं पाए और चिकनाहट पर पाँव फिसलने के कारण गिर पड़े।
कुमार के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का ऊपरी हिस्सा दरवाजे के बाहर था। चूँकि उन्होंने नीतू के हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखे थे, इस लिए वह किसी भी चीज़ का सहारा नहीं ले सकते थे और अपने बदन को फिसल ने से रोक नहीं सकते थे।
कुमार ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और फिसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फर्श पर फैली हुई चिकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खिसकता जा रहा था।
पीछे ही सुनीता आ रही थी। उसने यह दृश्य देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। कुछ ही क्षण की बात थी की नीतू और कुमार दोनों ही तेज गति से दौड़ रही ट्रैन के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फेंक दिए जाएंगे।
सुनीता ने भाग कर फिसल रहे कुमार के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव टिका कर कुमार के शरीर को बाहर की और फिसलने से रोकने की कोशिश करने लगी।
कुमार नीतू के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फेंके जाने से रोकने की भरसक कोशिश में लगा हुआ था।
तेज हवा और गाड़ी की तेज गति के कारण नीतू पूरी तरह दरवाजे के बाहर जैसे उड़ रही थी। कुमार ने पूरी ताकत से नीतू के दोनों हाथ अपने दोनों हाथोँ में कस के पकड़ कर रखे थे। नीतू के पाँव हवा में झूल रहे थे।
अक्सर नीतू का घाघरा खुल कर छाते की तरह फ़ैल कर ऊपर की और उठ रहा था। नीतू डिब्बे में से नीचे उतरने वाले पायदान पर अपने पाँव टिकाने की कोशिश में लगी हुई थी।
सुनीता जोर से “कोई है? हमें मदद करो” चिल्ला ने लगी।
कुछ देर तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कर्नल साहब और सुनीलजी को सुनीता की चीखें नहीं सुनाई दी। पर किसी और यात्री के बताने पर सुनीता की चिल्लाहट सुनकर एकदम कर्नल साहब और सुनीलजी उठ खड़े हुए और भाग के सुनीता के पास पहुंचे। कर्नल साहब ने जोर से ट्रैन की जंजीर खींची।
इतनी तेजी से भाग रही ट्रैन एकदम कहाँ रूकती? ब्रेक की चीत्कार से सारा वातावरण गूँज उठा। ट्रैन काफी तेज रफ़्तार पर थी। नीतू को लगा की उसके जीवन का आखरी वक्त आ चुका था। उसे बस कुमार के हाथ का सहारा था।
पर कुमार की भी हालत ऐसी थी की वह खुद फिसला जा रहा था। एक साथ दो जानें कभी भी जा सकतीं थीं।
कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते हुए नीतू का हाथ नहीं छोड़ा। नीतू और कुमार के वजन के कारण सुनीता की पकड़ कमजोर हो रही थी।
सुनीता कुमार के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। कुमार के पाँव सुनीता के हाथोँ में से फिसलते जा रहे थे। ट्रैन की रफ़्तार धीरे धीरे कम हो रही थी पर फिर भी काफी थी।
अचानक सुनीता के हाथोँ में से कुमार के पाँव छूट गए। कुमार और नीतू दोनों देखते ही देखते ट्रैन के बाहर उछल कर निचे गिर पड़े। थोड़ी दूर जाकर ट्रैन रुक गयी।
नीतू लुढ़क कर रेल की पटरियों से काफी दूर जा चुकी थी। बाहर घाँस और रेत होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर कुमार को पत्थर पर गिरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था। निचे गिरने के बाद चोट के कारण कुमार कुछ पल बेहोश पड़े रहे।
ट्रैन रुकजाने पर कर्नल साहब और सुनीलजी के साथ कई यात्री निचे उतर कर कुमार और नीतू को पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ दुरी पर उन्हें कुमार गिरे हुए मिले।
कुमार रेल की पटरियों के करीब पत्थरों के पास बेहोश गिरे हुए पड़े थे। उनके सर से काफी खून बह रहा था। सुनीता भी उतर कर वहाँ पहुंची। उसने अपनी चुन्नी फाड़ कर कुमार के सर पर कस के बाँधी। कुछ देर बाद कुमार ने आँखें खोलीं।
कर्नल साहब कुमार को सुनीता के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दुरी पर उन्हें नीतू दिखाई दी। नीतू और पीछे गिरी हुई थी।
नीतू के कपडे फटे हुए थे पर उसे ज्यादा चोट नहीं आयी थी। वह उठ कर खड़ी थी और अपने आपको सम्हालने की कोशिश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह कुमार को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।
कर्नल साहब और कुछ यात्री ने गार्ड के पास रखे प्राथमिक सारवार की सामग्री और दवाइयों से कुमार और नीतू की चोटों पर दवाई लगाई और पट्टियां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस ट्रैन में लाकर उनकी बर्थ पर रखा।
सुनीता और ज्योतिजी उन दोनों की देखभाल करने में जुट गए। ट्रैन फिर से अपने गंतव्य की और जाने के लिए अग्रसर हुई।
नीतू काफी सम्हल चुकी थी। वह कुमार के पाँव के पास जा बैठी। उसने कुमार का हाल देखा तो उसकी आँखों में से आँसुओं की धार बहने लगी।
कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। कुमार बच गए यह कुदरत का कमाल था। तेज रफ़्तार से चलती ट्रैन में से पत्थर पर गिरने से इंसान का बचना लगभग नामुमकिन सा होता है।
पर कुमार ने फिर भी अपनी जान को जोखिम में डाल कर नीतू को बचाया यह नीतू के लिए एक अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव था। उसने सोचा भी नहीं था की कोई इंसान अपनी जान दुसरेकी जान बचाने के लिए ऐसे जोखिम में डाल सकता था।
सुनीता और ज्योति नीतू को ढाढस देकर यह समझा रहे थे की कुमार ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।
कम्पार्टमेंट में एक डॉक्टर थे उन्होंने दोनों को चेक किया और कहा की उन दोनों को चोटें आयीं थी पर कोई हड्डी टूटी हो ऐसा नहीं लग रहा था।
कुछ देर बाद कुमार बैठ खड़े हुए और इधर उधर देखने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। उन्होंने नीतू को अपने पाँव के पास बैठे हुए और रोते हुए देखा।
कुमार ने झुक कर नीतू के हाथ थामे और कहा, “अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मैंने तुम्हें कहा था ना, की सब ठीक हो जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली में लेकर घूमते हैं। चाहे देश की अस्मिता हो या देशवासी की जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मैं बिलकुल ठीक हूँ तुम भी ठीक हो। अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।”
थोड़ी देर बाद सुनीता और ज्योति अपनी बर्थ पर वापस चले गये। नीतू ने पर्दा फैला कर कुमार की बर्थ को परदे के पीछे ढक दिया।
पहले तो वह कुमार के पर्दा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पर्दा फैला कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर ना जाकर निचे कुमार की बर्थ पर ही अपने पाँव लम्बे कर एक छोर पर बैठ गयी।
नीतू ने कुमार को बर्थ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने को कहा। कुमार के पाँव को नीतू ने अपनी गोद में ले लिए और उनपर चद्दर बिछा कर वह कुमार के पाँव दबाने लगी।
नीतू के पाँव कुमार ने करवट लेकर अपनी बाहों में ले लिए और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। देखते ही देखते कप्तान कुमार गहरी नींद में सो गये।
धीरे धीरे नीतू की आँखें भी भारी होने लगीं। संकड़ी सी बर्थ पर दोनों युवा बदन एक दूसरे के बदन को कस कर अपनी बाहों में लिए हुए लेट गए।
एक का सर दूसरे की पाँव के पास था। ट्रैन बड़ी तेज रफ़्तार से धड़ल्ले से फर्राटे मारती हुई भाग रही थी।
आगे क्या होने वाला है ये तो आने वाले एपिसोड्स में ही पता चलेगा, क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!
[email protected]

शेयर
meri chut storyshadi ki pehli suhagraatdesi aunty chudaibus group sexகூதிக்குள்new tamil kamakathaigallong hindi sex storyvacation sex storieshindi sex story in familyમામી સાથે સેકસtamil mami sex storiesसिस्टर की चुदाईइंडियन सेक्स गर्ल्सsexy bhabhi desichodai k kahanisex stories of collegeaunty ki chudayifree download lesbian sexma ko choda storymaa bete ki antarvasnaek galtikannada sex storeytichar sexhindi mai sexy storiesdesi x storydidi ko raat bhar chodawww sex story in odiadoodh bhabhijija ji chat par hai episodesbhai se chudai kahanihot mom son storysexy kya hainew gay stories in hindimaa ko bus me chodasex chudai ki kahanihindi sex novelhot storiedgaon ki chudairead kannada sex storiesxxx kahnechudayi story hindireal indian porn clipsholi ki chudaidesi bhai behan sex storiesreal sex desiwww papa sexgand fbreal hindi sexy storychachi ko chodne ke tarikehot deshi comdesi suhagraat storiesbudhe ne chodawap desi sexmeri chudai karomaa ki chut imageindian threesome nudefacebook aunty hotdesi kahani recentsexxy khaniyaभाभी बोली- लो, तुम तो अभी ही निकल लियेmeri chutbest sex story ever in hindirandi ki chut chudaihindi sax story newkhet mai chudaimummy ki chudaereal aunty sex storiesbhabhi ke sath sexdesi khanihumsafar season 1 episode 6saxy lundfree indiansexstoriesbadi gaadmast chudai storybhabhi ke doodhmar jaungi akhilindian short sex storiesindian wife swap picsbari mushkil_se coverindian aunty sex storiesnew desi chudai storykhade lund pe dhokateacher sex story in tamilsex story behanwww hindi desi sex combhan sexsexy kahani hindhibhai ne bahan ko choda story