Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 46


सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थाम कर दबाया और बोली, “यह यूनिफार्म पहन कर आप को क्या हो जाता है? अचानक आप इतने बदल कैसे जाते हो? और आपने अपने पीछे यह बैकपैक में क्या रखा हुआ है?”
जस्सूजी ने सुनीता की और आश्चर्य से देखा और बोले, “कैसे? मैं कहाँ बदला हूँ? पीछे मेरे बैकपैक में कुछ जरुरी सामान रखा हुआ है।”
सुनीता ने हँस कर कहा, “एक जवान मर्द और एक जवान खूबसूरत औरत मुख्य मार्ग छोड़कर जहां कोई नहीं हो ऐसी जगह भला क्यों जाएंगे? उस बात को समझ कर एन्जॉय करने के बजाय आप खतरे की बात कर रहे हो? अगर ख़तरा वहाँ हो सकता है, तो खतरा यहां भी तो हो सकता है?”
जस्सूजी ने कहा, “सुनीता, तुम नहीं जानती। पिछले दो तीन दिनों में इस एरिया में कुछ आशंका जनक घटनाएं हो रहीं हैं। खैर, यह सब बात को छोडो। चलो हम उन्हें जा कर सावधान करते हैं और मुख्य रास्ते पर आ जाने के लिए कहते हैं।”
सुनीता ने अपनी आँखें नचाकर पूछा, “खबरदार! आप ऐसा कुछ नहीं करोगे। आप वहाँ जाकर किसी के रंग में भंग करोगे क्या?”
जस्सूजी ने कहा, “अगर कुछ ऐसा वैसा चल रहा होगा तो फिर हम वहाँ उनको डिस्टर्ब नहीं करेंगे। पर उनको अकेला भी तो नहीं छोड़ सकते।”
सुनीता ने कहा, “वह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिये। आप चुपचाप मेरे साथ चलिए। हम लोग छुपते छुपाते चलते हैं ताकि वह दोनों हमें देख ना लें और डिस्टर्ब ना हों। देखते हैं वहाँ वह दोनों क्या पापड बेल रहे हैं। और खबरदार! आप बिलकुल चुप रहना।”
सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थामा और दोनों चुपचाप नीतू और कुमार जिस दिशा में गए थे उस तरफ उनके पीछे छिपते छिपाते चल पड़े। पीछे आ रहे ज्योतिजी और सुनीलजी ने दूर से देखा तो उन्हें नजर आया की सुनीता जस्सूजी का हाथ थामे मुख्य मार्ग से हट कर निचे नदी की कंदराओं की और बढ़ रही थी। आश्चर्य की बात यह थी की वह कभी पौधों के पीछे तो कभी लम्बी लम्बी घाँस के पीछे छिपते हुए चल रहे थे।
मौक़ा मिलते ही ज्योति ने कहा, “सुनीलजी, देखा आपने? आपकी पतिव्रता पत्नी, मेरे पति का हाथ थामे कैसे हमसे छिप कर उन्हें अपने साथ खींचती हुई उधर जा रही है? लगता है उसका सारा मान, वचन और राजपूतानी वाला नाटक आज बेपर्दा हो जाएगा। मुझे पक्का यकीन है की आज उसकी नियत मेरे पति के लिए ठीक नहीं है…
और मेरे पति भी तो देखो! कैसे बेशर्मी से उसके पीछे पीछे छुपते छुपाते हुए चल रहे हैं। अरे भाई तुम्हारी चूत में खुजली हो रही है तो साफ़ साफ़ कहो। हम ने कहाँ रोका है? पर यह नाटक करने की क्या जरुरत है? चलो हम भी उनके पीछे चलते हैं और देखते हैं की आज तुम्हारी बीबी और मेरे पति क्या गुल खिलाते हैं? हम भी वहाँ जा कर उनका पर्दाफाश करते हैं।”
सुनीलजी ने कहा, “उन्हें छोडो। शायद सुनीता को पेशाब जाना होगा। इसी लिए वह उस साइड हो गए हैं। उनकी चिंता छोडो। आप और हम आगे बढ़ते हैं।” यह कह कर सुनीलजी ने ज्योतिजी का हाथ थामा और उनके साथ मुख्य रास्ते पर आगे जाने के लिए अग्रसर हो गए।
थोड़ा सा आगे बढ़ते ही सुनीता ने दोनों युवाओँ को एक दूसरे की बाँहों में कस के खड़े हुए प्रगाढ़ चुम्बन में मस्त होते हुए देखा। कुमार नीतू के ब्लाउज के ऊपर से ही नीतू की चूँचियों को दबा रहे थे और मसल रहे थे। नीतू कुमार का सर अपने दोनों हाथों में पकडे कुमार के होँठों को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई सपेरा किसीको सांप डंस गया हो तो उसका जहर निकालने के लिए घाव चूस रहा हो।
कुमार साहब का एक हाथ नीतू के बूब्स दबा रहा था तो दुसरा हाथ नीतू की गाँड़ के गालों को भींच रहा था। इस उत्तेजनात्मक दृश्य देख कर जस्सूजी और सुनीता वहीं रुक गए। सुनीता ने अपनी उंगली अपनी नाक पर लगा कर जस्सूजी को एकदम चुप रहने को इशारा किया। जस्सूजी समझ गए की सुनीता नहीं चाहती की इन वासना में मस्त हुए पंखियों को ज़रा भी डिस्टर्ब किया जाए।
जस्सूजी ने सुनीता के कानों में कहा, “इन दोनों को हम यहां अकेला नहीं छोड़ सकते।”
यह सुनकर सुनीता ने अपनी भौंहों को खिंच कर कुछ गुस्सा दिखाते हुए जस्सूजी के कान में फुसफुसाते हुए कहा, “तो ठीक है, हम यहीं खड़े रहते हैं जब तक यह दोनों अपनी काम क्रीड़ा पूरी नहीं करते।”
सुनीता ने वहाँ से हट कर एक घनी झाडी के पीछे एक पत्थर पर जस्सूजी को बैठने का इशारा किया जहाँसे जस्सूजी प्रेम क्रीड़ा में लिप्त उस युवा युगल को भलीभांति देख सके, पर वह उन दोनों को नजर ना आये। चुकी वहाँ दोनों को बैठने की जगह नहीं थी इस लिए सुनीता जस्सूजी के आगे आकर खड़ी हो गयी। वहाँ जमीन थोड़ी नीची थी इस लिए सुनीता ने जस्सूजी की टाँगे फैलाकर उन के आगे खड़ी हो गयी। जस्सूजी ने सुनीता को अपनी और खींचा अपनी दो टांगों के बिच में खड़ा कर दिया। सुनीता की कमर जस्सूजी की टांगों के बिच में थीं। घनी झाड़ियों के पीछे दोनों अब नीतू और कुमार की प्रेम क्रीड़ा अच्छी तरह देख सकते थे।
इन से बेखबर, नीतू और कुमार काम वासना में लिप्त एक दूसरे के बदन को संवार और चूम रहे थे। अचानक नीतू ने घूम कर कुमार से पूछा, “कुमार क्या कर्नल साहब हम को न देख कर हमें ढूंढने की कोशिश तो नहीं करेंगे ना?”
कुमार ने नीतू को जो जवाब दिया उसे सुनकर जस्सूजी का सर चकरा गया। कुमार ने कहा, “अरे कर्नल साहब के पास हमारे बारेमें समय कहाँ? उनका तो खुदका ही सुनीताजी से तगड़ा चक्कर चल रहा है। अभी तुमने देखा नहीं? कैसे वह दोनों एक दूसरे से चिपक कर चल रहे थे? और उस रात ट्रैन में वह दोनों एक ही बिस्तर में क्या कर रहे थे? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो हमसे भी तेज निकली।”
जस्सूजी ने जब यह सूना तो उनका हाल ऐसा था की छुरी से काटो तो खून ना निकले। इन युवाओँ की बात सुनकर जस्सूजी का मुंह लाल हो गया। पर करे तो क्या करे? उन्होंने सुनीता की और देखा। सुनीता ने मुस्कुरा कर फिर एक बार अपने होँठों और नाक पर उंगली रख कर जस्सूजी को चुप रहने का इशारा किया। सुनीता ने जस्सूजी के कान में बोला, “आप चुप रहिये। अभी उनका समय है। पर यह बच्चे बात तो सही कह रहे हैं।” उस समय जस्सूजी की शकल देखने वाली थी।
नीतू ने निचे की बहती नदी की और देख कर कुमार के हाथ पकड़ उन्हें अपनी गोद में रखते हुए कुमार के करीब खिसक कर कहा, “कुमार, देखो तो! कितना सुन्दर नजारा दिख रहा है। यह नदी, ये बर्फीले पहाड़ यह बादल! मन करता है यहीं रह जाऊं, यहां से वापस ही ना जाऊं! काश वक्त यहीं थम जाए!”
कुमर ने चारों और देख कर कहा, “मैं तो इस समय सिर्फ यह देख रहा हूँ की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा?”
नीतू ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा, “कुमार तुम कितने बोर हो! मैं यहां इतने सुन्दर नजारों बात कर रही हूँ और तुम कुछ और ही बात कर रहे हो!”
कुमार ने नीतू का गोरा मुंह अपनी दोनों हथेलियों में लिया और बोले, “मुझे तो यह चाँद से मुखड़े से ज्यादा सुन्दर कोई भी नजारा नहीं लग रहा है। मैं इस मुखड़े को चूमते ही रहना चाहता हूँ। मैं इस गोरे कमसिन बदन को देखता ही रहूं ऐसा मन करता है। मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूं। हमारे ढेर सारे बच्चें हों और हमारी जिंदगी का आखरी वक्त तक हम एक दूसरे के साथ रहें।” फिर एक गहरी साँस लेते हुए कुमार ने कहा, “पर मेरी ऐसी तकदीर कहाँ?”
नीतू कुमार की और गौरसे और गंभीरता से देखती रही और बोली, “क्या तुम मेरे साथ हरदम रहना चाहते हो?”
कुमार ने दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा बोले, “हाँ। काश ऐसा हो सकता! पर तुम तो शादीशुदा हो।”
नीतू ने कहा, “देखो, कहने के लिए तो मैं शादीशुदा मिसिस खन्ना हूँ, पर वास्तव में मिस खन्ना ही हूँ। ब्रिगेडियर साहब मेरे पति नहीं वास्तव में वह मेरे पिता हैं और मुझे बेटी की ही तरह रखते हैं। उन्होंने मुझे बदनामी से बचाने के लिए ही मेरे साथ शादी की। शादी के बाद हमारा शारीरिक सम्बन्ध मुश्किल से शुरू के कुछ महीनों तक का भी नहीं रहा होगा। उसके बाद उनका स्वास्थ्य लड़खड़ाया और तबसे उन्होंने मुझे गलत इरादे से हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने मुझे एक बेटी की तरह ही रखा है। वह मेरे लिए एक पिता की तरह मेरे लिए जोड़ीदार ढूंढ रहे हैं।
चूँकि वह सरकारी रिकॉर्ड में ऑफिशियली मेरे पति हैं, तो अगर कोई मेरा मनपसंद पुरुष मुझे स्वीकार करता है तो वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार हैं। मैं जानती हूँ की तुम्हारे माता पिता शायद मुझे स्वीकार ना करें। मैं इसकी उम्मीद भी नहीं करती। पर अगर वास्तव में तुम तुम्हारा परिवार मुझे स्वीकार करने लिए तैयार हो और सचमें तुम मेरे साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहते हो तो मेरे पिता (खन्ना साहब) से बात करिये।”
नीतू इतना कह कर रुक गयी। वह कुमार की प्रतिक्रिया देखने लगी। नीतू की बात सुनकर कुमार कुछ गंभीर हो गए थे। उनका गम्भीर चेहरा देख कर नीतू हँस पड़ी और बोली, “कुमार साहब, मैं आपसे कोई लेनदेन नहीं कर रही हूँ। मैं आप से यह उम्मीद नहीं रख रही हूँ की आप अथवा आपका परिवार मुझे स्वीकार करेगा। उन बातों को छोड़िये। आप मुझे अपना जीवन साथी बनाएं या नहीं; हम यहां जिस हेतु से वह तो काम पूरा करें? वरना क्या पता हमें ना देख कर कर्नल साहब कहीं हमारी खोज शुरू ना करदें।” यह कह नीतू ने कुमार की पतलून में हाथ डाला।
कुमार का लण्ड नीतू का स्पर्श होते ही कड़ा होने लगा था। कुमार ने अपने पतलून की झिप खोली और अपनी निक्कर में से अपना लण्ड निकाला। नीतू कुमार का लण्ड हाथ में लेकर उसे सहलाने लगी। नीतू ने हँसते हुए कहा, “कुमार यह तो एकदम तैयार है। तुमतो वाकई बड़े ही रोमांटिक मूड में लग रहे हो।
कुमार ने नीतू के होठोँ को चूमते हुए अपना एक हाथ नीतू की स्कर्ट को ऊपर उठा कर उसकी पेंटी को निचे खिसका कर उसकी एक टाँग को ऊपर उठा कर नीतू की जाँघों के बिच उसकी चूत में उंगली डालते हुए कहा, “तुम भी तो काफी गरम हो और पानी बहा रही हो।”
बस इसके बाद दोनों में से कोई भी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे। वहीं पत्थर के सहारे खड़े खड़े कुमार और नीतू गहरे चुम्बन और आलिंगन में जकड़े हुए थे। कुमार का एक हाथ नीतू की मस्त गाँड़ को सेहला रहा था और दुसरा हाथ नीतू की उद्दंड चूँचियों को मसलने में लगा हुआ था।
नीतू ने कुमार से कहा, “जो करना है जल्दी करो वरना वह कर्नल साहब आ जाएंगे तो कहीं रंग में भंग ना कर दें।”
जस्सूजी कुमार और नीतू की बात सुनकर एक तरह शर्मिन्दा महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ गरम भी हो रहे थे। पर उस समय वह आर्मी के यूनिफार्म में थे। सुनीता ने पीछे घूम कर जस्सूजी की पतलून में उनकी टाँगों के बिच देखा तो पाया की नीतू और कुमार की प्रेम क्रीड़ा देख कर जस्सूजी का लण्ड भी कड़क हो रहा था और उनकी पतलून में एक तम्बू बना रहा था।
मन ही मन सुनीता को हंसी आयी। सुनीता जस्सूजी का हाल समझ सकती थी। जस्सूजी एक पत्थर पर निचे टाँगें लटका कर बैठे हुए घनी झाडी के पीछे नीतू और कुमार को देख रहे थे। सुनीता उनकी टाँगों के बिच में कुछ नीची जमीन पर खड़ी हुई थी। सुनीता की पीठ जस्सूजी के लौड़े से सटी हुई थी।
जस्सूजी की दोनों टांगें सुनीता के कमर के आसपास फैली हुई सुनीता को जकड़ी हुई थीं। जस्सूजी का हाथ अनायास ही सुनीता के बूब्स को छू रहा था। जस्सूजी अपना हाथ सुनीता के बूब्स से छूने से बचाते रहते थे। सुनीता ने जस्सूजी का खड़ा लण्ड अपनी पीठ पर महसूस किया।
सहज रूप से ही सुनीता ने अपनी कोहनी पीछे की और जस्सूजी की जाँघों के बिच में टिका दीं। सुनीता ने अपनी कोहनी से जस्सूजी का लण्ड छुआ और कोहनी को हिलाते हुए वह जस्सूजी का लण्ड भी हिला रही थी। सुनीता की कोहनी के छूते ही जस्सूजी का लण्ड उनकी पतलून में फर्राटे मारने लगा
कुमार ने नीतू को उठा कर पत्थर के पास हरी नरम घास की कालीन पर लिटा दिया। फिर बड़े प्यार से नीतू के स्कर्ट को ऊपर उठाया और उसकी पैंटी निकाल फेंकी। उसे स्कर्ट में से नीतू की करारी जाँघे और उनके बिच स्थित उसकी सुन्दर रसीली चूत के दर्शन हुए। उसने जल्द ही नीतू की स्कर्ट में मुंह डाल कर उसकी चूत को चूमा। नीतू को कुमार का लंड डलवाने की जल्दी थी।
उसने कहा, “अरे जल्दी करो। यह सब बाद में करते रहना। अभी तो तुम ऊपर चढ़ आओ और अपना काम करो। कहीं कोई आ ना जाए और हमें देख ना ले।” उसे क्या पता था उन दोनों की चुदाई की पूरी फिल्म जस्सूजी और सुनीता अच्छी तरह से देख रहे थे।
कुमार ने अपना लण्ड पतलून से जब निकाला तब उसे जस्सूजी ने देखा तो उनके मुंहसे भाई हलकी सी “आह… ” निकल गयी। शायद उन्होंने भी उसके पहले इतना बड़ा लण्ड अपने सिवाय कभी किसीका देखा नहीं था। सुनीता ने पीछे मूड कर देखा। जस्सूजी की प्रतिक्रया देख कर वह मुस्कुराई और जस्सूजी की टांगों के बिच खड़े हुए टेंट पर सुनीता ने अपना हाथ रखा।
जस्सूजी ने फ़ौरन सुनीता का हाथ वहाँ से हटा दिया। सुनीता ने जस्सूजी की और देखा तो जस्सूजी कुछ
हिचकिचाते हुए बोले, “अभी मैं ड्यूटी पर हूँ। वैसे भी अब मैं तुम्हारे साथ कोई भी हरकत नहीं करूंगा क्यूंकि फिर मेरी ही बदनामी होती है और हाथ में कुछ आता जाता नहीं है। मुझे छोडो और इन प्रेमी पंछियों को देखो।”
सुनीता ने अपनी गर्दन घुमाई और देखा की नीतू ने कुमार को अपनी बाँहों में दबोच रखा था और कुमार नीतू के स्कर्ट को ऊंचा कर अपनी पतलून को नीचा कर अपना लण्ड अपने हाथों में सेहला रहा था।
नीतू ने फ़ौरन कुमार को अपना लण्ड उसकी चूत में डालने को बाध्य किया। कुमार ने देखा की नीतू की चूत में से उसका रस रिस रहा था। कुमार ने हलके से अपना लण्ड नीतू की चूत के छिद्र पर केंद्रित किया और हिलाकर उसके लण्ड को घुसने की जगह बनाने की कोशिश की। नीतू की चूत एकदम टाइट थी। कई महीनों या सालों स नहीं चुदने के कारण वह संकुडा गयी थी। वैसे भी नीतू की चूत का छिद्र छोटा ही था।
कुमार ने धीरे धीरे जगह बनाकर और अपने हाथों से अपना लण्ड इधर उधर हिलाकर नीतू की टाइट चूत को फैलाने की कोशिश की। नीतू ने दर्द और डर के मारे अपनी आँखें मूंद लीं थीं। धीरे धीरे कुमार का मोटा और कडा लण्ड नीतू की लगभग कँवारी चूत में घुसने लगा।
नीतू मारे दर्द के छटपटा रही थी पर अपने आप को इस मीठे दर्द को सहने की भी कोशिश कर रही थी। उसे पता था की धीरे धीरे यह दर्द गायब हो जाएगा। कुमार ने धीरे धीरे अपनी गाँड़ के जोर से नीतू की चूत में धक्के मारने शुरू किये।
कहानी अभी जारी रहेगी..
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