Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 39


कर्नल साहब (जस्सूजी) ने काफी समय पहले ही कैंप के मैनेजमेंट से दो कमरों का एक बड़ा फ्लैट टाइप सुईट बुक करा दिया था। उसमें उनके दोनों बैडरूम को जोड़ता हुआ परदे से ढका एक किवाड़ था। वह किवाड़ दोनों तरफ से बंद किया जा सकता था।
जब तक दोनों कमरों में रहने वाले ना चाहें तब तक वह किवाड़ अक्सर बंद ही रहता था। अगर वह किवाड़ खुला हो तो एक दूसरे के पलंग को दोनों ही जोड़ी देख सकती थी। दोनों ही बैडरूम में एक एक वाशरूम जुड़ा हुआ था।
बैडरूम का दुसरा दरवाजा एक साँझा बड़े ड्रॉइंग कम डाइनिंग रूम में खुलता था। सुईट के अंदर प्रवेश उसी ड्रॉइंगरूम से ही हो सकता था। ड्रॉइंगरूम में प्रवेश करने के बाद ही कोई अपने कमरे में जा सकता था।
जब कैंप में आगमन के तुरंत बाद सुबह में पहली बार दोनों कपल कमरों में दाखिल हुए थे (चेक इन किया था) तब सबसे पहले सुनीलजी ने सुईट की तारीफ़ करते हुए जस्सूजी से कहा था, “जस्सूजी, यह तो आपने कमाल का सुईट बुक कराया है भाई! कितना बड़ा और बढ़िया है! खिड़कियों से हिमालय के बर्फीले पहाड़ और खूबसूरत वादियाँ भी साफ़ साफ़ दिखती हैं। मेरी सबसे एक प्रार्थना है। मैं चाहता हूँ की जब तक हम यहां रहेंगे, दोनों कमरों को जोड़ते हुए इस किवाड़ को हम हमेशा खुला ही रखेंगे। मैं हम दोनों कपल के बिच कोई पर्दा नहीं चाहता। आप क्या कहते हैं?”
जस्सूजी ने दोनों पत्नियों की और देखा। ज्योतिजी फ़ौरन सुनीलजी से सहमति जताते हुए बोली थी, “मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भाई मान लो कभी भी दिन में या आधी रात में सोते हुए अचानक ही कोई बातचित करने का मन करे तो क्यूँ हमें उठकर एक दूसरे का दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े? इतना तो हमें एक दूसरे से अनौपचारिक होना ही चाहिए। फिर कई बार जब मेरा न करे की मैं मेरी प्यारी छोटी बहन सुनीता के साथ थोड़ी देर के लिए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तुम्हारे पलंग पर आ सकती हूँ ना?”
उस वक्त ज्योतिजी ने साफ़ साफ़ यह नहीं कहा की अगर दोनों कपल चाहें तो बिना किसी की नजर में आये एक दूसरे के पलंग में सांझा एक साथ सो भी तो सकते हैं ना?
सुनीता सारी बातें सुन कर परेशान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पति सुनीलजी को अपने कमरे में खिंच कर ले गयी और बोली, “तुम पागल हो क्या? तुम एक रात भी मुझे प्यार किये बिना तो रह नहीं सकते। अगर यह किवाड़ खुला रखा तो फिर रात भर मुझे छेड़ना मत। यह समझ लो।”
अपनी पत्नी की जिद देख कर सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता के कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, “डार्लिंग, तुम्ही ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दूसरे से पर्दा नहीं करेंगे। अब क्यों बिदक रही हो? और अगर हम प्यार करेंगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करेंगे? बिस्तर में रजाई ओढ़कर भी तो हम चुदाई कर सकते है ना?”
यह सुन कर सुनीता का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पति से कभी यह वादा नहीं किया था की वह जस्सूजी और ज्योतिजी से पर्दा नहीं करेगी। तब उसे याद आया की उसने ज्योतिजीसे यह वादा जरूर किया था। तो क्या ज्योतिजी ने उनदोनों के बिच की बातचीत सुनीलजी को बतादी थी क्या? खैर जो भी हो, उसने वादा तो किया ही था। सुनीलजी की बात सुन कर हार कर सुनीता चुपचाप अपने काम में लग गयी थी।
——
दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन में अलग अलग विचारों की बौछार हो रही थी। ज्योतिजी पहली बार अच्छी तरह कुदरत के आँगन में खुले आकाश के निचे सुनीलजी से चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतुष्ट महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही मन गुनगुना रहीं थीं। उनके पति जस्सूजी अपनी ही उधेड़बुन में यह सोचने में लगे थे की जो राज़ था उसे कैसे सुलझाएं। उस राज़ को सुलझाने का मन ही मन वह प्रयास कर रहे थे।
सुनीता मन ही मन खुश भी थी और दुखी भी। खुश इसलिए थी की उसने तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ जस्सूजी से सीखे थे और इस लिए भी की उसे जस्सूजी के लण्ड को सहलाने के मौक़ा मिला था। वह दुखी इस लिए थी की सब के चाहते हुए भी वह जस्सूजी का मन की इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी। सुनीलजी को दोनों हाथों में लड्डू नजर आ रहे थे। बिस्तर में वह अपनी बीबी को चोदेंगे और कहीं और मौक़ा मिला तो ज्योति को।
दोपहर का खाना खाने के बाद अलग अलग वजह से दोनों ही कपल थके हुए थे। डाइनिंग हॉल से वापस आते ही ज्योतिजी और जस्सूजी अपने पलंग पर और सुनीलजी और सुनीता अपने पलंग पर ढेर हो कर गिर पड़े और फ़ौरन गहरी नींद सो गए। बिच का किवाड़ खुला ही था।
शाम को छे बजे स्वागत और परिचय का कार्यक्रम था और साथ में सब मेहमानों को अगले सात दिन के प्रोग्राम से अवगत कराना था। उसके बाद खुले में कैंप फायर (एक आग की धुनि) के इर्दगिर्द कुछ ड्रिंक्स (शराब या जूस इत्यादि) और नाच गाना और फिर आखिर में खाना।
शाम के पांच बजने वाले थे। सबसे पहले जस्सूजी उठे। चुपचाप वह हलके पाँव वाशरूम में जाने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपने पत्नीकी और देखा। वह अपने गाउन में गहरी नींद सोई हुई बड़ी ही सुन्दर लग रही थी। ज्योति के घने बाल पुरे सिरहाने पर फैले हुए थे। उसका चेहरा एक संतुष्टि वाला, कभी हलकी सी मुस्कान भरा सुन्दर प्यारा दिख रहा था। जस्सूजी के मन में विचार आया की कहीं उस झरने के वाटर फॉल के पीछे सुनीलजी ने उनकी बीबी को चोदा तो नहीं होगा?
विचार आते ही वह मन ही मन मुस्काये। हो सकता है सुनीलजी और ज्योति ने उस दोपहर अच्छी खासी चुदाई की होगी। क्यूंकि ज्योतिजी और सुनीलजी काफी कुछ ज्यादा ही दोस्ताना से एक दूसरे घुलमिल रहे थे। जस्सूजी के मन में स्वाभाविक रूपसे कुछ जलन का भाव तो हुआ, पर उन्होंने एक ही झटके में उसको निकाल फेंका। वह ज्योति को बेतहाशा प्यार करते थे। ज्योति सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं थी। उनकी दोस्त भी थी। और प्यार में और दोस्ती में हम अपनों पर अपना अधिकार नहीं प्यार जताते हैं। हम अपनी ख़ुशी से ज्यादा अपने प्यारे की खुशी के बारे में ही सोचते हैं।
खुले हुए किवाड़ के दूसरी और जब जस्सूजी ने नजर की तो देखा की सुनीलजी अपनीं बीबी को अपनी बाँहों में घेरे हुए गहरी नींद में सो रहे थे। सुनीता अपने पति की बाँहों में पूरी तरह से उन्मत्त हो कर निद्रा का आनंद ले रही थी।
जस्सूजी फुर्ती से वाशरूम में गए और चंद मिनटों में ही तैयार हो कर बाहर आये। उन्होंने फिर अपनी पत्नी को जगाया। ज्योति आखिर एक फौजी की बीबी थी। जस्सूजी की एक हलकी आवाज से ही वह एकदम बैठ गयी। अपने पति को तैयार देख वह भी वाशरूम की और तैयार होने के लिए अपने कपडे लेकर भागी। जस्सूजी हलके से चलकर बिच वाले खुले किवाड़ से अपने कमरे से सुनील और सुनीता के कमरे में आये।
जस्सूजी ने सुनील और सुनीता के पलंग में बदहाल गहरी नींद में लेटी हुई सुनीता को देखा। सुनीता का गाउन ऊपर उसकी जाँघों तक आ गया था। अगर थोड़ा झुक कर टेढ़ा होकर दो जाँघों के बिच में देखा जाये तो शायद सुनीता की चूत भी दिख जाए। बस उसकी चूत के कुछ निचे तक गाउन चढ चुका था। सुनीता की दो जाँघों के बिच में गाउन के अंदर कुछ अँधेरे के कारण गाउन सुनीता की प्यारी चूत को मुश्किल से छुपा पा रहा था। यह जाहिर था की सुनीता ने गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था।
जस्सूजी को बेहाल लेटी हुई सुनीता पर बहुत सा प्यार आ रहा था। पता नहीं उन्हें इससे पहले कभी किसी औरत पर ऐसा आत्मीयता वाला भाव नहीं हुआ था। वह सुनीता को भले ही चोद ना पाएं पर सुनीता से साथ सो कर सारी सारी रात प्यार करने की उनके मन में बड़ी इच्छा थी। उन्होंने जो कुछ भी थोड़ा सा वक्त सुनीता को अपनी बाँहों में लेकर गुजारा था वह वक्त उनके लिए अमूल्य था। सुनीता के बदन के स्पर्श की याद आते ही जस्सूजी के शरीर में एक कम्पन सी सिहरन दौड़ गयी।
सिरहाने की साइड में खड़े होकर देखा जाए तो गाउन के अंदर सुनीता के दो बड़े बूब्स के बिच की खाई और उसके दो मस्त पहाड़ की चोटी पर विराजमान निप्पलोँ तक का नजारा लण्ड खड़ा कर देने वाला था। वह इसलिए की गहरी नींद में लेटे हुए सुनीलजी के दोनों हाथ अपनी बीबी के उन्मत्त स्तनोँ को नींद में ही दबा रहे थे।
जस्सूजी को सुनीलजी के भाग्य की बड़ी ईर्ष्या हुई। सुनीलजी को सुनीता के साथ पूरी रात गुजारने से रोकने वाला कोई नहीं था। वह जब चाहे सुनीता के बूब्स दबा सकते थे, सुनीता की गाँड़ में अपना लण्ड घुसा सकते थे, सुनीता को जब चाहे चोद सकते थे। एक गहरी साँस ले कर जस्सूजी ने फिर यह सोच तसल्ली की की जिस सुनीलजी को वह अति भाग्यशाली मानते थे वही सुनीलजी उनकी पत्नी ज्योति के आशिक थे। यह विचार आते ही वह मन ही मन हंस पड़े। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर।
जस्सूजी का बड़ा मन किया की सुनीलजी के हाथ हटा कर वह अपने हाथ सुनीता के गाउन में डालें और सुनीता के मस्त नरम और फिर भी सख्त बूब्स को दबाएं, सहलाएं और अच्छी तरह से मसल दें।
सुनीता करवट लेकर पलंग के एक छोर पर सो रहीथी और उसके पति सुनीलजी उसके पीछे सुनीता की गाँड़ में अपना लण्ड वाला हिस्सा पाजामे के अंदर से बिलकुल सुनीता की गाँड़ में जाम किये हुए सो रहे थे। दोनों मियाँ बीबी इतनी गहरी नींद सो रहे थे की उन्हें जस्सूजी के आने का एहसास नहीं हुआ.
जस्सूजी ने अपने आप पर बड़ा नियंत्रण रखते हुए सुनीता के बालों में उंगलियां डाल उन्हें बालों को उँगलियों से कँघी करते हुए हलके से कहा, “सुनीता, उठो।”
जब जस्सूजी की हलकी आवाज का कोई असर नहीं हुआ तब जस्सूजी सुनील के सिरहाने के पास गए और थोड़ी सख्ती और थोड़े मजाक के अंदाज में सुनीलजी से कहा, “दोपहर का आप दोनों के मिलन का कार्यक्रम पूरा हुआ नहीं क्या? उठो, अब आप एक सेना के कैंप में हैं। आप को कुछ नियम पालन करने होंगें। सुबह साढ़े चार बजे उठना पडेगा। उठकर नित्य नियम से निपट कर सबको कुछ योग और हलकी फुलकी कसरत करनी पड़ेगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ। ठीक छे बजे प्रोग्रम शुरू हो जाएगा। मैं जा रहा हूँ। आप तैयार हो कर मैदान में पहुंचिए।”
जस्सूजी का करारा फरमान सुनकर सुनीता चौंक कर उठ गयी। उसने जस्सूजी को पलंग के पास में ही पूरा आर्मी यूनिफार्म में पूरी तरह से सुसज्ज खड़ा पाया। जस्सूजी आर्मी यूनिफार्म में सटीक, शशक्त और बड़े ही प्यारे लग रहे थे। सुनीता ने मन ही मन उनकी बलाइयाँ लीं। सुनीता ने एक हाथ से जस्सूजी को सलूट करते हुए कहा, “आप चलिए। आपको कई काम करने होंगें। हम समय पर पहुँच जाएंगे।”
चंद मिनटों में ही सुनीलजी उठ खड़े हुए हुए और वाशरूम की और भागे। सुनीता ने देखा की ज्योतिजी नहा कर बाहर निकल रही थीं। तौलिये में लिपटी हुई वह सुंदरता की जीती जागती मूरत समान दिख रही थीं। सुनीता को वह दिन याद आया जब उसने ज्योतिजी की “मालिश” की थी। सुनीता उठ खड़ी हुई और किवाड़ पार कर वह ज्योतिजी के पास पहुंची। सुनीता को आते हुए देख ज्योतिजी ने अपनी बाँहें फैलायीं और सुनीता को अपनी बाँहों में घेर लिया और फिर प्यार भरे शब्दों में बोली, ‘सुनीता कैसी हो? मेरे पति ने तुम्हें ज्यादा छेड़ा तो नहीं ना?”
सुनीता ने शर्माते हुए कहा, “दीद झूठ नहीं बोलूंगी। जितना छेड़ना चाहिए था उतना छेड़ा। बस ज्यादा नहीं। पर मेरी छोडो अपनी बताओ। मेरे पति ने आपके साथ कुछ किया की नहीं?”
ज्योतिजी ने कहा, “बस मेरा भी कुछ वैसा ही जवाब है। थोड़ा सा ही फर्क है। तुम्हारे पति ने जितना कुछ करना था सब कर लिया, कुछ छोड़ा नहीं। अरी! तेरे शौहर तो बड़े ही रंगीले हैं यार! तेरी तो रोज मौज होती होगी। इतने गंभीर और परिपक्व दिखने वाले सुनीलजी इतने रोमांटिक हो सकते हैं, यह तो मैंने सोचा तक नहीं था।”
सुनीता अपने पति की किसी और खूबसूरत स्त्री से प्रशंशा सुनकर उसे मुश्किल से हजम कर पायी। पर अब तो आगे बढ़ना ही था। सुनीता ने ज्योतिजी से कहा, “दीदी, लाइए मैं आपके बालों को आज की पार्टी के लिए सजा देती हूँ। मैं चाहती हूँ की आज मेरी दीदी अपनी खूबसूरती, जवानी और कमसिनता से सारे ही जवानों और अफसरों पर गजब का कहर ढाये! मैं सबको दिखाना चाहती हूँ की मेरी दीदी पार्टी में सब औरतों और लड़कियों से ज्यादा सुन्दर लगे।”
सुनीलजी जब वाशरूम में से तैयार होकर निकले तो उन्होंने देखा की सुनीता ज्योतिजी को सजाने में लगी हुई थी। ज्योतिजी को आधे अधूरे कपड़ों में देख कर सुनीलजी ने अपने आप पर संयम रखते हुए दोनों महिलाओं को “बाई” कहा और खुद जस्सूजी को मिलने निकल पड़े।
शामके ठीक छह बजे जब सब ने अपनी जगह ली तब तक सुनीता और ज्योति जी पहुंचे नहीं थे। मंच पर जस्सूजी और कैंप के अधिकारी कुछ गुफ्तगू में मशगूल थे। जस्सूजी को भी मंच पर ख़ास स्थान दिया गया था। धीरे धीरे सारी कुर्सियां भर गयीं। प्रोग्राम शुरू होने वाला ही था की ज्योतिजी और सुनीता का प्रवेश हुआ। उस समय सब लोग एक दूसरे से बात करने में इतने मशरूफ थे की पूरा हॉल सब की आवाज से गूँज रहा था।
जैसे ही सुनीता और ज्योतिजी ने प्रवेश किया की सब तरफ सन्नाटा छा गया। सब की निगाहें सुनीता और ज्योतिजी पर गड़ी की गड़ी ही रह गयीं। ज्योतिजी ने स्कर्ट और उसके ऊपर एक फ्रिल्ल वाला सतह पर सतह हो ऐसा सूत का सफ़ेद चिकन की कढ़ाई किया हुआ टॉप पहना था। ज्योतिजी के बाल सुनीता ने इतनी खूबसूरती से सजाये थे की ज्योति नयी नवेली दुल्हन की तरह लग रहीं थीं। ज्योतिजी का टॉप पीछे से खुला हुआ ब्लाउज की तरह था।
ज्योति जी के सुदृढ़ बूब्स का उभार उनके टॉप से बाहर उछल कर निकल ने की कोशिश कर रहा था। ज्योतिजी के कूल्हे इतने सुगठित और सुआकार लग रहे थे की लोगों की नजर उस पर टिकी ही रह जाती थीं।
सुनीता ने साडी पहन रक्खी थी। ज्योतिजी के मुकाबले सुनीता ज्यादा शांत और मँजी हुई औरत लग रही थी। साडी में भी सुनीता के सारे अंगों के उतार चढ़ाव की कामुकता भरी झलक साफ़ साफ़ दिख रही थी। सुनीता की गाँड़ साडी में और भी उभर कर दिख रही थी।
यह कहानी आगे जारी रहेगी..!
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