Kaamagni.. Ye Aag Kab Bujhegi – Part III


Kaamagni.. Ye Aag Kab Bujhegi – Part III
हम लोग नेशनल यूथ फेस्टिवल में हिस्सा लेने कोलेज गेट पर इकठा हो गए थे और हमारी जयना मेम भी आ गयी थी। अगली रात उसके पैर में मोच आ गयी थी फिर भी वो वक्त पे आ गयी। उसकी कार से गेट तक उसे अपने कंधो के सहारे में और तम्मना गेटतक लाये..
अब आगे..
अरेंजमेंट के मुताबिक मुझे सबके सामान को बस आते ही बस की डिकी में रखवना था और तमन्ना के पास सबकी टिकट्स थे तो उसे सबको अपनी सिटपर नंबरवाइज बिठाना था। हमारी बस अपने टाइम पर आगयी। मेरे अलावा सब लोग बस बैठे। लास्टमें में, सह्नाज़ और मेम बचे थे। में सामान को बस में रखवाकर वहा लॉक करवाकर बस के दरवाजे पे आया तो सक्कापक्का रह गया। मेम सह्नाज़ के कंधो के सहारे खड़ी थी उसका हाथ उसके गले के पीछे से होते हुए सह्नाज़ के मम्मे पर था। दोनों हंसहंस कर बाते कर रही थी। मेरे आते ही..
जयना: सह्नाज़ तू तमन्ना के पास बैठ, क्योंकि मुझे बस में चड़नेउतरने के लिए साहिल जैसे मजबूत और हट्टेकट्टे कंधो की जरुरत पड़ेगी। तुम लडकिया मेरा बोज ना उठा पाओगी। तो तुम और तमन्ना साथ बेठो, साहिल मेरे पास बेठेगा। ये बोलकर जयना ने मेरे तमन्ना के रातभर बस में दिल्ही तक साथ बेठने के प्लान पे पानी फेर दिया।
मैं चमका और सह्नाज़ के सामने देखा तो वो मुझे चुपके से आंख मार बेस्टलक का इशारा कर बस में चढ़ गयी। उसने जयना मेम को हाथ पकड़ बस में चढाने की कोशिश की पर उसे ऊपर चढ़ने दिक्कत हो रही थी तो मैंने मेम को पीछे जाकर कंधे से थोडा उठाया, और उसके कुलहो पर दबाव् डाल उसे उठाया तो वो अआआअ…ओउच करते हुए बस पे चढ़ गयी पर उसके मांसल कुलहो छूने से फिर से एक सेक्सी एह्स्सास मेरे अन्दर दौड़ने लगा और इससे शांत हो रहा मेरा लंड फिर निकर में टाइट होकर जटके देते हुए फंफंनाने लगा।
मेंने चुपके से बरमुडा में हाथ डाल अपने लंड को ऊपर की और सेट कर दिया पर उसके बावजूद मेरे बरमूडा के बीचोबीच मेरे कड़े लंड का उभार में छुपा नहीं सका। इस तरह करते हुए मुझे देख सह्नाज़ व्यंग में मुस्कुराई।
मैं जैसे ही बस में चढ़ा और जयना मेम के बगलवाली अपनी सिट पर बैठने जा रहा था तभी उसने अहिस्ता से किसी को पता न चले ऐसे अपने हाथ से मेरे लोडे पे एक मस्त रगड़ मारी, मेने उसकी और देखा तो वो अजीब सी सेक्सी मुस्कान बिखेरे तम्मु की सिट की और जाते हुए मुझे बाय कहा। में अन्दर ही अन्दर बोख्लाते हुए जा के अपनी सिट पर बैठा।
वहा जयना मेम पहले से ही फैल के बैठ चुकी थी और वो सिट बिलकुल बस के लास्टवाली थी ताकि कोई चलते फिरते उसका पैर न दुखाये। तमन्ना अपनी सिट पर मुह चढ़ाये गुस्सा हो कर बैठी बैठी मुझे और सह्नाज़ को गालिया दे रही थी। उसने जोर से सह्नाज़ को नाख़ून चुभोते हुए चिमटी काटी.. (सह्नाज़ दभी आवाज़ में चीखी)
तम्मु: साली सह्नाज़ की बच्ची..मेम की चमची हमलोग साथ में बेठना तुजसे देखा नहीं गया क्यों? यह सब तेरा किया कराया हे, साली हमदोनो को अलग कर तुजे क्या मिला?
सह्नाज़: आअईईईइ इसस ये मैंने नहीं, मेम ने किया हे… मुझे पता नहीं। मेतो ऐसे ही उससे बात कर रही थी। साहिल उसको अच्छे से उठा सकता हे तो मेम ने ही कहा हे यार मुझे दोष मत दो। ओह्ह्ह्ह मा..साली ला तेरे तो में नाख़ून काट फेक दू.. देख तो हरामखोर मुझे खून आ गया।
सह्नाज़: (उसे समजाते हुए) देख तम्मु की बच्ची साहिल तेरा ही माल हे तू उसे मार काट कुछ भी कर पर मुझे क्यों मार रही हो साली? और दिल्ही में तुजे दस दिन मिलेंगे… साली काट के खा जाना उसे तू…
उसने तम्मु को उसके स्कर्ट के ऊपर से उसकी जांघो पे चिमटी काटी और अपना बदला लेते हुए जोर से उसकी बगल में जोर से पटककर बैठी और उसके कान में बोली..
सहनाज: मेरे चिकन..साहिल यहाँ तेरे पास बैठके जो करनेवाला था वो में सारी रात करुँगी मेरी जान..! तुजे साहिल की याद नहीं आने दुगी उम्म्मम्म पुच (उसने तम्मु के गाल को हल्का सा किस किया..
तम्मु: (शरमाते हुए प्यार से उसके गुलाबी गाल पे हलके से थप्पड़ माँरते हुए) चल हट बदमास..ये ले ठेंगा। तुजे तो में हाथ नहीं लगाने दूंगी। एक और चिमटी..(तमु ने उसकी कोमल कमर फिर से ली..) सह्नाज़ अपना निचला होठ अपने दांतों में दबाये अपने आप को उनसे छुडाते हुए धीरे से ओह्ह्ह्हह.. माँ मर गयी.. साल्ली इतना मारती क्यों हे? अबतो देख साहिल को में इतनी लाइन मारूंगी… देख तू…
शैला और ध्वन्नी ये नज़ारा देख रही थी। दोनों पिछली सिट से नजदीक आके: क्यों आज दोनों का क्या इरादा हे? दोनों में प्यार तो नहीं हो गया ना..
इसबीच
जयना: चलो कोई बाकि नहीं ना? संजय ड्राईवर को बोलो बस चलाये..
संजय: (ड्राईवर को) चलो भैया सब आ गए.. बस चलाओ…..और बस चलने लगी…
शाम को करीब ७ बज चुके थे और हल्का सा अँधेरा छाने लगा था। बस का ए।सी। ठंडी खुशबूदार हवा फेक रहा था और मस्ती का आलम था। बस वोल्वो होने ने कारन एकदम मस्त हिचकोले लेते हुए चल रही थी। जयना के बदन से औरतोवाली एक निशिली खुशबू आ रही थी पर मेरा ध्यान तम्मु में था।
सोच रहा था साली वो मुझे गलिया दे रही होगी पर क्या करू? में मेम पर थोडा गुस्से भी था क्योंकि उसने मुझे तम्मु की वजाए अपने पास बिठाकर हमदोनो को अलग कर दिया और मेरा और तम्मु का १० दिनों से रातभर बस में साथ बेठे हुए दिल्ही तक मस्ती करने के प्लान को चोपट कर दिया था। उसपे ये सह्नाज़.. साली चुडेल ने खेल ख़राब कर मुझे और गुस्सा कर दिया था। मन ही मन में उसे गलिया दे रहा था “मिलने दे साली को अकेले में साली गांड फाड़ दूंगा”।
में हताश होकर मेम के बगल में सहमा हुआ बैठ गया। मेरे लंड का उभार अभी भी थोडा बरक़रार था। जयनामेम बारीबारी उसे देख रही थी ये मेरा ध्यान गया तो मे शरमाके अपने पैरो को थोडा सिकुड़ ने लगा।
जयना: (आंखे ज़पकते हुए) अरे साहिल तुम ठीक से बैठ पा रहे हो ना?
वो थोड़ी खिसकी और मुझे थोडा अन्दर की तरफ अच्छे से बैठने को कहा।
जयना : (मुझे शायद दिलाशा देने) साहिल देखो अब हम टीचर स्टूडेंट नहीं अच्छे दोस्त हे…मत शरमाओ ठीक से बैठो मिलाओ हाथ। (उसने अपनी कोमल गुलाबी गर्म हथेली से मेरा हाथ पकड़ दबाया)
मेरी तन्द्रा टूटी और…
मैं: जी जी जी मेम..
में उसकी और अन्दर थोडा और खिसकके बैठा। मेरा पैर अन्दर की तरफ उसकी बड़ी मस्त जांघ से सट गया। मे उसके कपड़ो से सेंट की सेक्सी खुशबू और अच्छे से महसूस करने लगा। एक मस्त नशीला आलम बनने लगा था पर मेरे मन में तम्मना का चिकना मस्त गदराया बदन, उसकी गोल नर्म उन्नत चुचिया, गुलाबी नोकीली निप्पल, मस्त मटकते कुल्हे घूम रहे थे।
मुझे आज वो सब करना था जो वो मुझे कोलेज में सब दोस्तों के सामने नहीं करने देती थी। उसने मुझे वादा किया था के दिल्ही जर्नी दे दोरान वो मेरे साथ बैठ एक हॉट रोमांस करने देगी। इसीलिए तो उसने आज स्कर्ट और लो नैक टॉप पहना था ताकि सब आशानी से हो सके। ये लडकिया बड़ी चालक होती हे पर हमारी उम्मीदों पे पानी फिरता नज़र आ रहा था..
मैंने बोर होते हुए हमारे बाजुवाली सिट पे नज़र डाली तो वहा एक बुड्ढा कपल बैठा था। वो तो आंखे बन्ध कर अपने ऊपर चददर डाल आंखे बंधकर आराम से सोने लगा था। मेरे सब दोस्त आगे की सीटो पर बैठे हुए एक दुसरे से हसी मजाक कर मजे कर रहे थे और में यहाँ चुपचाप शिस्त से बैठा था, मेरे मन की मन में रह गयी..
अच्छा मोका था आज तम्मना के पुरे बदन को अपने हाथो से नोच लेता उसे अच्छे से तराश लेता पर.. वो भी गया। उधर तम्मु भी बहोत गुस्से में थी और वो भी वहा तड़प रही थी। तम्मना और मेरे बाकि दोस्त मेरे फ़ोन पर मेसेज करके मुझे गालिया देने लगे।
“साले कुछ भी बहाना कर यहाँ आजा वरना तू गया। मेम को बोल नहीं सकता, साले कुत्ते, कमीने.., कैसा मर्द हे एक औरत के सामने बोल नहीं सकता? मुह में जबान नहीं? कुछ भी बोल मेम को और जटसे यहाँ आजा।”
वो मेसेज दवारा अपना गुस्सा मुज पे निकाल रही थी। मेरे सब दोस्त भी मुझे वोट्सअप पर गलिया देकर मुझे आगे आने को कह रहे थे। पर में क्या करू, मेम को कैसे कहू???? मुझे तम्मु के पास बैठना हे। मेम के डर से में तो उसे मेसेज के जवाब भी नहीं दे पा रहा था। मैंने थोड़ी हिम्मत कर मेम को पूछा…
मैं: मेम आप आराम से बैठी होना..? (थोडा शरमाते हिचकिचाते हुए) अगर आप ठीक हो तो में आगे की सिट पे अपने दोस्तों के साथ बैठू? सह्नाज़ यहाँ आपके साथ..
जयना: क्यों? अब में तुमारी दोस्त नहीं? मेरे साथ बैठना तुमे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो। मुझे पता हे वो लोग तुजे मेसेज कर बुला रहे हे। उन्हें पता नहीं के हम पिकनिक पर नहीं गेम्स लके लिए जा रहे हे। अभी बस में सोयेगे नहीं तो में उन लोगो को वहा आराम नहीं करने दूंगी। रुको में उन्हें भी सुला देती हु। ठहर में अभी कहती हु।
जयना: सब लोग अपना मोबाइल अपने बेग डाल दे और आराम करे। कल दिल्ही जाते ही हमें प्रैक्टिस करनी हे। अगर कोई ठीक से नहीं सोया और आराम नहीं किया तो कल उसे बक्शा नहीं जायेगा। वहा हमें पर्फोम करना हे याद रहे..(एक तरह से उसने सबको धमकाया)।
सबलोग फटाफट अपने फ़ोन अपनी बेग में डालने लगे क्योंकि जयना से सब की फटती थी।
जयना: संजू, रवि, सह्नाज़, तम्मु सबलोग अभी सो जाओ, १० बजे बस अहमदाबाद रुकेगी वहा हमारा रात का डिनर होगा। तब तक सब आराम करो और ड्राईवर को कहो अन्दर की लाइट बन्ध करदे..
मैं: ओह्ह्ह नहीं मेम एसा…नहीं..
जयना: तो बस आराम से बैठो और सो जाओ..(उसने मेरे सर पे मारते हुए कहा)।
बस मैं आगे की पहली सिट वाली छोटी लाइट को छोडके सब लाइट बध…अब बस में शांति और एक हल्का सा अँधेरा छा गया। मुझे ये पता नहीं था की यहाँ वही मस्ती जयना मेम के साथ भी होने वाली हे।
जयना मेम मुझसे बहोत सटकर बैठी थी और बस हिचकोले ले चल रही थी तो कभी में मेम पर तो कभी मेम मेरे पर ढल रहे थे। ऐसे में उसका चिकना मक्कखन सा रेशमी बदन मेरे बदन पे बारीबारी रगड़ मार रहा था.. मुझे थोडा अजीब लग रहा था और ये डर भी.. की कही मेम मेरा बदन उसे छू जाने पर डाट ना दे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ उल्टा वो मुश्कुराने लगती। आज उसका ये शांत रूप देख मुझे अचंबा हो रहा था।
मैंने अक्सर उसे गुस्से में सबको डाटते हुए ही देखा हे, उसके तीखे नाक पे मैंने हमेशा गुस्सा और तीखे तेवर देखे हे। बहरहाल अभी तो उसके मुलायम बदन की रगड़ मुझे मजा देने लगी थी। एक बात कहू यार..? उसका बदन ए।सी। चालू होने के बावजूद भी गरम महसूस हो रहा था। जयना के बदन से औरतो वाली एक अजीब सी मीठी खुशबू और हलकी सी गर्माहट मेरे लंड को बगावत के लिए उकसा रहे थे। घुटनों के निचे की तरफ मेरे नंगे पैर ठण्ड से हलके से कंप रहे थे। मेम ने अपने पर्स से अपनी शाल निकाली और ओढने लगी और मुझे कहा।
जयना: चलो अपनी शाल निकालो और आराम करो..
मैं: ओह्ह मेम मेरी साल पीछे डिकी में सामान में रह गयी हे। अब में कैसे निकालू…
जयना: तुम लड़के ऐसे ही अनाड़ी होते हो। अपनी काम की चीज़ भी साथ नहीं रखते? ये ले मेरी शाल थोड़ी तू भी ओढ़ ले (उसने अपनी शाल मेरी और फैलाई..)
मैं: अहह जी मेम…
में मेम को कैसे समजाउ की मेरे लिए एक बड़ा सा कम्बल तम्मना लायी हे। काश में उसके पास होता तो उसके बदन की गरमी से अपने आपको सेक रहा होता..
मेने कंपते हाथो से उस शाल को थोडा सा ओढा.. अन्दर गजब की खुशबू मजे और दीवाना बना रही थी, मेरे दिमाग में एक सरबती एहसास होने लगा। वो मुझसे एकदम चिपकके बेठ गयी थी और मेरा लोडा निकर के अन्दर अपना सर जोरजोर से टकरा रहा था। मेरे दिमाग में आया की साली को दबोच के मशल दू पर हिम्मत नहीं हो रही थी।
जयना: अब ठण्ड नहीं लग रही ना।
मैं: नहीं मेम थैंक्स…
जयना: अरे इसमें थैंक्स क्यों? चलो सो जाओ..
में आंखे बंधकर अपना बदन ढीला छोड़ सिट पे अपनी पीठ को टिकाकर आंखे बन्ध कर सोने लगा। वो भी थोड़ी रिलैक्स हुई और मुझे शाल अच्छे से ओढाने मेरी और थोड़ी और खिसकी और जरा और सट के बैठी। उसका दाया कन्धा मेरे बाये कंधे के पीछे आ चूका था और उसके नर्म मोटे मम्मे मेरे कंधे से सटे और दबे रहे थे। साला मेरा दिमाग सून्न होने लगा, मेरा दिल जोर से धडकने लगा। मेरे बदन में गर्माहट आने लगी। में कांप रहा था।
एक अजीब सा नशीला एह्स्सास होने लगा जो मेने अपनी इतनी जिंदगी कभी नहीं किया था। जैसे जैसे बस हिचकोला लेती उसकी चुचिया हाथ पे जोर से दबती और मेरी सांसे रुक जाती। थोड़ी देर के बाद वो भी आंखे बन्धकर सो गयी और शायद नींद की वजह से उसने अपना सर मेरे कंधे पे दाल दिया और सिट पे दोनों पैरो को उठाके आशन लगा कर मुजपे काफी जुक कर गयी उसने अपनी जांघ मेरी जांघ पे रख दी थी। ओह्ह्ह्हह.. मेरे लंड के सुपाडे में अजीब सी सनसनाहट और जटके आ रहे थे।
दोस्तों असली कहानी यहाँ से शुरू हो रही हे दिल और लंड, चूत थाम के बेठो…
पढ़ते रहिये क्योकि.. कहानी अभी जारी रहेगी।
दोस्तों मेरी ईमेल आई डी है “[email protected]”। कहानी पढने के बाद अपने विचार नीचे कमेंट्स में जरुर लिखे। ताकी हम आपके लिए रोज और बेहतर कामुक कहानियाँ पेश कर सकें। डी.के

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